शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

************************************

निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

************************************

Sunday, 30 May 2021

गजिन्द्र हाथी

 ॐ श्री साँई राम जी



गजिन्द्र हाथी

एक निमख मन माहि अराधिओ गजपति पारि उतारे ||


सतिगुरु अर्जुन देव जी महाराज बाणी में फरमाते हैं कि हाथी एक पल प्रभु का सिमरन किया तो उसकी जान बच गई| परमेश्वर के नाम की ऐसी महिमा है| पशु-पक्षी जो भी नाम सिमरन करता है उसका जीवन सफल हो जाता है| गजपति (हाथी) दुःख-पीड़ा से व्याकुल था| उसकी चिल्लाहट ने जब कुछ भी न संवारा तो उसने भक्ति और परमात्मा की तरफ ध्यान किया| उसी समय परमात्मा अपनी शक्ति के साथ उसकी सहायता हेतु आ गए| उस हाथी को तेंदुए ने पकड़ रखा था और उसे पानी से बाहर नहीं आने दे रहा था|

हे जिज्ञासु जनो! एकाग्रचित होकर कथा सुनो कि किस तरह हाथी के बंधन मुक्त हो गए| महाभारत के अनुसार कथा इस प्रकार है -

होता एवं ब्रह्मा दो भाई हुए हैं| वह दोनों परमात्मा का सिमरन किया करते थे और इकट्ठे ही रहते थे| एक दिन दोनों सलाह-मशविरा करके एक राजा के पास दक्षिणा लेने गए|

यह मालूम नहीं, क्यों?

किसी कारण या स्वाभाविक ही भाई होता को दक्षिणा ज्यादा मिली तथा ब्रह्मा को कम| ब्रह्मा ने सोचा कि मुझे कम दक्षिणा मिली है तो भाई को ज्यादा, बराबर-बराबर करनी चाहिए| उसने शीघ्र ही सारी दक्षिणा मिला कर एक समान कर दी| उसके दो हिस्से करके भाई को कहने लगा - 'उठा ले एक हिस्सा|'

होता-'नहीं! यह नहीं हो सकता, मैं तो उतना हिस्सा लूंगा जितना मुझे मिला है| दक्षिणा इकट्ठी क्यों की?'

ब्रह्मा-'ईर्ष्या क्यों करते हो?'

होता-ईर्ष्या एवं लालच आप करते हो, जब आप को दक्षिणा कम मिली तो आप ने एक जैसी कर दी| कितनी बुरी बात है, मेरा पूरा हिस्सा दो, लालची!

ब्रह्मा-'मैं लालची हूं तो तुम तेंदुए की तरह हो| जाओ, मैं तुम्हें श्राप देता हूं तुम गंडकी नदी में तेंदुए बन कर रहोगे लालची|'

होता भी कम नहीं था उसने भी भगवत भक्ति की थी और उसने भी आगे से श्राप दे दिया - 'यदि मैं तेंदुआ बनूंगा तो याद रखो तुम भी मस्त हाथी बनोगे तथा उसी नदी में जब पानी पीने आओगे तो तुम्हें पकड़कर गोते देकर मारूंगा, फिर याद करोगे, ऐसे लालच को| तुमने सर्वनाश करने की जिम्मेदारी उठाई है, नीच ज़माने के|

यह कहता हुआ होता अपना हिस्सा भी छोड़ गया तथा घर को आ गया| कुछ समय पश्चात दोनों भाई मर गए और अगला जन्म धारण किया| होता तेंदुआ बना तथा ब्रह्मा हाथी| दोनों गंडकी नदी के पास चले गए| वह नदी बहुत गहरी थी|

हे भक्त जनो! ध्यान दीजिए लालच कितनी बुरी भला है| भाई-भाई का आपस में झगड़ा करा दिया| इतना मूर्ख बनाया कि दोनों का कुल नाश हो गया| वास्तव में अहंकार और लालच बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है| लालच में बंधे हुए लोग दुखी होते हैं| ऐसे ही लालच की अपरंपार में बंधे हुए लोग दुखी होते हैं| ऐसे ही लालच की अपरंपार महिमा है| लालच कभी नहीं करना चाहिए|

ब्रह्मा एक बहुत बड़ा हाथी बना जैसे कि सब हाथियों का सरदार था, कोई हाथी उसके सामने नहीं ठहरता था| वह सब हाथिनों के झुण्ड साथ लेकर इधर-उधर घूमता रहता| वह जंगल का राजा था| ब्रह्मा को जो श्राप मिला था, उसे तो पूरा होना ही था| भगवान की माया अनुसार वह हाथी एक दिन उस गंडकी नदी के पास चला गया| पानी पीया| पानी बहुत ठण्डा था और सारे हाथी प्यासे थे| सबसे आगे वही हाथी था जो पूर्व जन्म में ब्रह्मा था| जब वह पानी पीने के लिए आगे बढ़ा तो आगे उसका भाई तेंदुए का रूप धारण करके बैठा था| उसने ब्रह्मा की टांगें पकड़ कर उसको गहरे पानी में खींचना शुरू कर दिया| वह आगे - आगे गया| जब हाथी डूबने लगा तो उसने चिल्लाना शुरू कर दिया| वह पानी के बीच बिना डूबे खड़ा हो गया| बस सिर और सूंड ही नंगी थी| ऐसा देख कर बाकी हाथी बहुत हैरान हुए, हाथिनें चिल्लाने लगीं, पर हाथी को बाहर निकालने की किसी में समर्था नहीं थी|

तेंदुए ने ब्रह्मा से बदला लेना था| इसलिए वह ज़ोर से उस हाथी को पकड़ कर बैठा रहा| हाथी बल वाला था, उसको भी ज्ञान हो गया कि पिछले जन्म का हिसाब बाकी है| वह अपने आप को बचाने का यत्न करने लगा| वह पानी में सिर न डूबने देता| तेंदुआ भी उस हाथी को डुबोने का यत्न करता|

तेंदुए तथा हाथी को लड़ते हुए कई हजार साल बीत गए| हाथी भूखा रहा, पानी में से वह क्या खाए| तेंदुए का भोजन तो पानी में ही था| हाथी बिना कुछ खाए-पीए कमज़ोर हो गया वह पानी में डूबने लगा तो उसी समय उसने अपनी सूंड ऊपर उठा कर आकाश की तरफ देख कर भगवान को याद किया| उसने प्रार्थना की-हे प्रभु! मैं हाथी की योनि में पड़ा हूं, दया करें कि मैं पानी में न डूबूं| यदि यहां मरा तो जरूर किसी बुरी योनि में जाऊंगा| मेरी प्रार्थना सुनो प्रभु!"

ब्रह्मा (हाथी) ने शुद्ध हृदय से पुकार की, उसी समय परमात्मा ने उसकी प्रार्थना सुनी और स्वयं नदी किनारे आए| सुदर्शन चक्र से तेंदुए की तारें काटी और हाथी को डूबने से बचाया| उसकी हाथी की योनि से मुक्त करवाया, फिर भक्त रूप में प्रगत किया| वह प्रभु का यश करने लगा| तेंदुए का जन्म भी बदल गया|

For Donation

For donation of Fund/ Food/ Clothes (New/ Used), for needy people specially leprosy patients' society and for the marriage of orphan girls, as they are totally depended on us.

For Donations, Our bank Details are as follows :

A/c - Title -Shirdi Ke Sai Baba Group

A/c. No - 200003513754 / IFSC - INDB0000036

IndusInd Bank Ltd, N - 10 / 11, Sec - 18, Noida - 201301,

Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh. INDIA.

बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.