ॐ सांँई राम जी
एक अकड़ बरकरार थी बड़ा होने की
तेरे दर की खाक छानने से पहले साँई
बड़ा होता क्या है, किसे कहते है बड़ा
तेरी चौखट पर माथा टेक कर समझ आई
मुझमें नहीं थी कोई भी खूबी
करामात कर डाली तूने बखूबी
तुझसे बड़ा साँई नाम है तेरा
तेरे नाम संग तर गया बेड़ा मेरा
पारस बन कर साँई हमें सोना कर दो
अपने मंदिर में मेरा एक कोना कर दो
जिंदगी से सदा के लिए दूर रोना कर दो
और किसी दर का नहीं जानता मैं बाबा
आप ही इस दास की आज झोली भर दो
ना भूख मुझे रोटी की है
ना प्यास मुझे पानी की है
चढ़ा हो सरूर जिस पर साँई का
उसे तमन्ना श्रध्दा में तर जाने की हैं
अजब हैं जादूगर, गजब साँई तेरी जादूगरी
अनमोल रत्न सौंपे हमें श्रध्दा और सबूरी
तेरी दहलीज पर पड़े हैं बाबा करम कर दो
मानो धर्म या अब मानों इसे साँई मजबूरी
ध्वनि साँई साँई नाम की
हर सोच को कर दे शून्य
कुछ नहीं रहता ज्ञात फिर
साँई है मात पिता सम तुल्य