ॐ साँई राम जी
क्यों न मनाऊँ मै हर दिन एक त्यौहार ?
क्यों करता रहूँ मै खुशियों का इंतजार ?
आती है दिवाली तो झूम उठता हूँ मैं
रौशनी देती है खुशियों का एहसास
वो चार दिन बजते हैं मन मे पटाखे
सारा जग लगता है जैसे हो अपने पास
होली के रंग, ज़िन्दगी के इन्द्रधनुष
उल्ल्हास देते हैं, अपने हो या पराये
कुदरत के दिये हुए वो हसीन लम्हे
जैसे अपने साथ हर्ष उल्ल्हास लाये
वो हर त्यौहार, लाता है खुशियों का सन्देश
गुड़ी पडवा, पोंगल, राखी या हो कोई जन्मदिन
इंतज़ार रहता है, उन हसीन पलों का
कैसे बिताऊँ मैं वो बीच के बाकि दिन ?
अब मै जीऊँगा हर पल, हर दिन
न होऊंगा किसी दिन के लिए बेक़रार
क्यों न मनाऊँ मै हर दिन एक त्यौहार ?
क्यों करता रहूँ मै खुशियों का इंतजार ?