शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Saturday, 2 June 2018

रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीलक्ष्मण

ॐ श्री साँईं राम जी



श्रीलक्ष्मणजी शेषावतार थे| किसी भी अवस्थामें भगवान् श्रीरामका वियोग इन्हें सहा नहीं था| इसलिये ये सदैव छायाकी भाँति श्रीरामका ही अनुगमन करते थे| श्रीरामके चरणोंकी सेवा ही इनके जीवनका मुख्य व्रत था| श्रीरामकी तुलनामें संसारके सभी सम्बन्ध इनके लिये गौण थे| इनके लिये श्रीराम ही माता-पिता, गुरु, भाई सब कुछ थे और उनकी आज्ञाका पालन ही इनका मुख्य धर्म था| इसलिये जब भगवान् श्रीराम विश्वामित्रकी यज्ञ-रक्षाके लिये गये तो लक्ष्मणजी भी उनके साथ गये| भगवान् श्रीराम जब सोने जाते थे तो ये उनका पैर दबाते और भगवान् के बार-बार आग्रह करनेपर ही स्वयं सोते तथा भगवान् के जागनेके पूर्व ही जाग जाते थे| अबोध शिशुकी भाँति इन्होंने भगवान् श्रीरामके चरणोंको ही दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया और भगवान् ही इनकी अनन्य गति बन गये| भगवान् श्रीरामके प्रति किसीके भी अपमानसूचक शब्दको ये कभी बरदाश्त नहीं करते थे| जब महाराज जनकने धनुषके न टूटनेके क्षोभमें धरतीको वीर-विहीन कह दिया, तब भगवान् के उपस्थित रहते हुए जनकजीका यह कथन श्रीलक्ष्मणजीको बाण-जैसा लगा| ये तत्काल कठोर शब्दोंमें जनकजीका प्रतिकार करते हुए बोले - 'भगवान् श्रीरामके विद्यमान रहते हुए जनकने जिस अनुचित वाणीका प्रयोग किया है, वह मेरे हृदयमें शूलकी भाँति चुभ रही है| जिस सभामें रघुवंशका कोई भी वीर मौजूद हो, वहाँ इस प्रकारकी बातें सुनना और कहना उनकी वीरताका अपमान है| यदि श्रीराम आदेश दें तो मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको गेंदकी भाँति उठा सकता हूँ, फिर जनकके इस सड़े धनुषकी गिनती ही क्या है|' इसी प्रकार जब श्रीपरशुरामजीने धनुष तोड़नेवालेको ललकारा तो ये उनसे भी भिड़ गये|

भगवान् श्रीरामके प्रति श्रीलक्ष्मणकी अनन्य निष्ठाका उदाहरण भगवान् के वनगमनके समय मिलता है| ये उस समय देह-गेह, सगे-सम्बन्धी, माता और नव-विवाहिता पत्नी सबसे सम्बन्ध तोड़कर भगवान् के साथ वन जानेके लिये तैयार हो जाते हैं| वनमें ये निद्रा और शरीरके समस्त सुखोंका परित्याग करके श्रीराम-जानकीकी जी-जानसे सेवा करते हैं| ये भगवान् की सेवामें इतने मग्न हो जाते हैं कि माता-पिता, पत्नी, भाई तथा घरकी तनिक भी सुधि नहीं करते|

श्रीलक्ष्मणजीने अपने चौदह वर्षके अखण्ड ब्रह्मचर्य और अद्भुत चरित्र-बल पर लंकामें मेघनाद-जैसे शक्तिशाली योद्धापर विजय प्राप्त किया| ये भगवान् की कठोर-से-कठोर आज्ञाका पालन करनेमें भी कभी नहीं हिचकते| भगवान् की आज्ञा होनेपर आँसुओंको भीतर-ही-भीतर पीकर इन्होंने श्रीजानकीजीको वनमें छोड़नेमें भि संकोच नहीं किया| इनका आत्मत्याग भी अनुपम है| जिस समय तापसवेशधारी कालकी श्रीरामसे वार्ता चल रही थी तो द्वारपालके रूपमें उस समय श्रीलक्ष्मण ही उपस्थित थे| किसीको भीतर जानेकी अनुमति नहीं थी| उसी समय दुर्वासा ऋषिका आगमन होता है और वे श्रीराम का तत्काल दर्शन करनेकी इच्छा प्रकट करते हैं| दर्शन न होनेपर वे शाप देकर सम्पूर्ण परिवारको भस्म करनेकी बात करते हैं| श्रीलक्ष्मणजीने अपने प्राणोंकी परवाह न करके उस समय दुर्वासाको श्रीरामसे मिलाया और बदलेमें भगवान् से परित्यागका दण्ड प्राप्तकर अद्भुत आत्मत्याग किया| श्रीरामके अनन्य सेवक श्रीलक्ष्मण धन्य हैं|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.