शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Sunday, 17 June 2018

श्री साईं लीलाएं - ऊदी का एक और चमत्कार

ॐ सांई राम


  
कल हमने पढ़ा था.. ऊदी का चमत्कार

श्री साईं लीलाएं

ऊदी का एक और चमत्कार
दादू की आँखों के आगे अपनी माँ, बहन और बीमार पत्नी के मुरझाये चेहरे घूम रहे थे|दादू ने जैसे ही घर के आंगन में कदम रखा, उसे पत्नी की उखड़ती हुई सांसों के साथ खांसने की आवाज कानों में सुनाई पड़ी| वह लपककर कोठरी में पहुंचा, जहां पिछले कई महीनों से उसकी पत्नी चारपाई पर पड़ी हुई थी|"क्या बात है सीता ?" दादू ने पूछा|सीता का शरीर टी.बी. की बीमारी के कारण बहुत जर्जर हो गया था| शरीर के नाम पर केवल वह मात्र हडिड्यों का ढांचा शेष रह गयी थी, उसकी हालत दिन-प्रतिदिन गिरती चली जा रही थी|दादू को घर आया देख उसकी अपंग बहन वहां आ गयी और बोली - "तुम कहां चले गये थे भैया ? भाभी की हालत पहले से ज्यादा खराब हो रही है| पहले जोरों की खांसी आती है और फिर खांसते-खांसते खून भी फेंकने लगती हैं| जल्दी से जाकर वैद्य जी को बुला लाओ|" उसके स्वर में घबराहट स्पष्ट नजर आ रही थी|दादू ने घूमकर अपनी पत्नी की ओर देखा तो सीता दोनों हाथों से अपना सीना पकड़े बुरी तरह से हांफ-सी थी| शायद बलगम उसके गले में अटककर रह गया था, जिसकी वजह से उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी| दादू ने उसे अपने हाथों से सहारा दिया और फिर उसकी पीठ मसलने लगा|

"जा बेटा, जा जल्दी से वैद्य जी को बुला ला, आज बहू की हालत कुछ ठीक नहीं है|" दादू की अंधी माँ ने रुंधे गले से कहा - "मुझे दिखाई तो नहीं देता, लेकिन बहू की सांस से ही मैं समझ गयी हूं| जा वैद्य जी को ले आ|"दादू को पता था कि पंडितजी बहुत ही जिद्दी आदमी हैं| वह किसी भी कीमत पर नहीं आने वाले| वह कुछ देर तक खड़ा हुआ मन-ही-मन सोचता रहा, फिर बहुत तेज चाल के साथ घर से निकला और द्वारिकामाई मस्जिद की ओर दौड़ता चला गया|वह बहुत बुरी तरह से घबराया हुआ था| अब उसे साईं बाबा के अतिरिक्त कोई सहारा दिखाई नहीं दे रहा था| वह द्वारिकामाई मस्जिद पहुंचा तो वहां साईं बाबा के पास कई लोग बैठे हुए थे|

"साईं बाबा...!" अचानक दादू की घबरायी हुई आवाज सुनकर सब लोग चौंक पड़े| उन्होंने पलटकर दादू की ओर देखा| उसके चेहरे पर दुनिया भर की घबराहट और पीड़ा के भाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे| आँखों से बराबर आँसू बह रहे थे|

"क्या बात है दादू ! तुम इतनी बुरी तरह से क्यों घबराये हुए हो ?" साईं बाबा ने उसे अपने पास आने का इशारा करते हुए कहा|दादू उनके पास पहुंचकर, फिर उसने रोते हुए साईं बाबा को पंडितजी की सारी बातें बता दीं|साईं बाबा मुस्करा उठे और बोले - "अरे, इतनी-सी बात से तुम इतनी बुरी तरह से घबरा गए| तुम्हें तो पंडितजी का अहसानमंद होना चाहिए| उन्होंने तुम्हें सही सलाह दी है|" -और खिलखिलाकर हँसने लगे|सब लोग चुपचाप बैठे दादू की बातें सुन रहे थे| बाबा ने अपनी धूनी में से एक-एक करके तीन चुटकी भभूति निकालकर उसे दी और बोले - "इस भभूती को ले जाओ और जिस-जिस तरह बताया है, उसी तरह प्रयोग करो| तुम्हारी सारी चिंताएं और कष्ट दूर हो जायेंगे|"साईं बाबा ने यह सारी बातें बड़े ही सहज भाव से कहीं| सब लोग आश्चर्य से उनकी ओर देख रहे थे|दादू ने खड़े होकर साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और फिर मस्जिद की सीढियों से उतरकर तेजी से अपने घर की ओर चल दिया|पंडितजी ने साईं बाबा के विषय में जो कुछ कहा था, उसे सुनकर वहां बैठे सभी लोग बड़ी हैरानी के साथ साईं बाबा को देख रहे थे| जिस दिन से साईं बाबा इस गांव में आए हैं, पंडितजी जैसे रात-दिन हाथ धोकर उनके पीछे पड़ गये थे| उन्हें तो जैसे साईं बाबा के विरुद्ध जहर उगलने के अलावा और कोई काम ही नहीं था| साईं बाबा को पंडितजी की इन बातों से जैसे कोई मतलब ही नहीं था| वह फिर से ईश्वर सम्बंधी चर्चा करने लगे|द्वारिकामाई मस्जिद अब साईं बाबा का स्थायी डेरा बन गयी थी| मस्जिद के एक कोने में साईं बाबा ने अपनी धूनी रमा ली थी| जमीन ही उनका बिस्तर थी| साईं बाबा को अपने खाने-पीने की कोई फिक्र न थी| जो कुछ भी उन्हें मिल जाता था, खा लेते थे| दो-चार घर से बाबा भिक्षा मांग लिया करते थे, वह उनके लिए बहुत रहती थी|दादू भभूती लेकर तेजी के साथ अपने घर आया|उसे बहुत ज्यादा चिंता सता रही थी, पर साईं बाबा की बात पर उसे पूरा विश्वास था| उसने वैसा ही करने का निर्णय किया, जैसा कि उसे साईं बाबा ने बताया था| मन-ही-मन उसे बड़ी तसल्ली मिल रही थी| उसे पूरा विश्वास था कि उसके सभी संकट दूर हो जायेंगे|घर पहुंचने पर उसने सबसे पहले अपनी अंधी माँ की आँखों में भभूति सुरमे की भांति लगा दी और थोड़ी-सी भभूति अपनी अपाहिज बहन को देकर कहा - "यह साईं बाबा की भभूति है, इसे ठीक से अपने हाथ-पैरों पर मल ले|"फिर उसने बेहोश पड़ी अपनी पत्नी का मुंह खोलकर थोड़ी-सी भभूति उसके मुंह में डाल दी| बाकी भभूति एक कपड़े में बांधकर पूजाघर में रख दी| फिर अपनी पत्नी के सिरहाने बैठ गया|थोड़ी देर बाद उसने महसूस किया कि सीता की उखड़ी हुई सांसें अब ठीक होती जा रही हैं| अब उसके गले में घरघराहट भी नहीं हो रही हैं| चेहरे का तनाव और पीड़ा भी अब पहले की अपेक्षा काफी कम हो गयी है|थोड़ी देर बाद सहसा सीता ने आँखें खोल दीं और बिना किसी सह्रारे के उठकर बैठ गई|

"अब कैसी तबियत है सीता?" -दादू ने अपनी पत्नी से पूछा|

"जी मिचला रहा है शायद उल्टी आयेगी|" सीता ने कहा|

"ठहरो ! मैं कोई बर्तन तुम्हारी चारपाई के पास रख देता हूं, उसी में उल्टी कर लेना| बिस्तर से उठो मत|" दादू ने कहा और फिर उठकर बाहर चला गया|सीता को निरंतर हिचकियां आ रही थीं| उसने अपने आपको रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन रोक नहीं पाई|वह तेजी से बिस्तर से उठने लगी|

"यह क्या कर रही हो भाभी, तुम मत उठो| बिस्तर पर लेटी रहो| चारपाई के नीचे उल्टी कर दो| मैं सब साफ कर दूंगी|" सीता की अपाहिज ननंद सावित्री ने कहा|

"नहीं...नहीं भाभी नहीं| तुम उठने की कोशिश मत करो|" उसकी अपाहिज ननंद धीरे-धीरे उसकी चारपाई की ओर बढ़ने लगी|सीता नहीं मानी और आखिर हिम्मत करके बिस्तर से उठकर खड़ी तो हो गई, लेकिन उठते ही उसे जोर से चक्कर आया| उसने घबराकर दीवार को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन दीवार उसकी पहुंच से बहुत दूर थी| वह दीवार का सहारा नहीं ले पायी और धड़ाम से नीचे गिर पड़ी|

"भाभी...!" सावित्री के मुंह से एक तेज चीख निकली और उसने तेजी से लपककर सीता को अपनी बांहों में भर लिया और फिर दोनों हाथों से उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया|और फिर जैसे ही उसने सीता को बिस्तर पर लिटाया, एक आश्चर्यभरी चीख उसके होठों से निकल पड़ी|

"क्या हुआ बेटी?" अचानक अंधी माँ ने सीता के बिस्तर की ओर बढ़ते हुए पूछा और फिर झुककर बेहोश सीता के चेहरे पर बिखर आये बालों को बड़े प्यार हटाते हुए पीड़ा और दर्दभरे स्वर में बोली - "हाय! कितनी कमजोर हो गयी है| चेहरा भी कितना पीला पड़ गया है| ऐसा लगता है कि जैसे किसी के चेहरे पर हल्दी पोत दी हो|"

"माँ...!" आश्चर्य और हर्ष-मिश्रित चीख एक बार फिर सावित्री के मुंह से निकल पड़ी| उसने अपनी माँ के दोनों कंधे पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमा लिया और फिर बड़े ध्यान से अपनी माँ के चेहरे की ओर देखने लगी| मारे आश्चर्य के उसकी आँखे फटी जा रही थीं|

"इस तरह पागलों की तरह क्या आँखें फाड़-फाड़ देख रही है तू मुझे? बात क्या क्या है?" सावित्री की माँ ने उसकी फटी-फटी आँखें और चेहरे पर छाये दुनिया बाहर के आश्चर्य को देखते हुए पूछा|

"माँ...क्या तुम्हें सच में भाभी का पीला-पीला चेहरा दिखाई दे रहा है?" सावित्री ने जल्दी से पूछा|

"सब कुछ दिखाई दे रहा है| यह तू क्या कह रही है बेटी?" माँ ने कहा|और फिर एकदम से चौंक पड़ी और बोली - "अरे हां, यह क्या हो गया, अरे यह तो चमत्कार है चमत्कार?" वह प्रसन्नता-मिश्रित स्वर में बोली - "मुझे तो सब कुछ साफ-साफ दिखाई दे रहा है| मैं तो अंधी थी|" फिर जोर से पुकारा -
"दादू ओ दादू, जल्दी से आ रे, देख तो मेरी आँखें ठीक हो गईं| अब मैं सब देख सकती हूं, मैं सब कुछ देख रही हूं रे|"माँ की आवाज सुनकर दादू तेजी से दौड़ता हुआ अंदर आया और मारे आश्चर्य के जैसे वह पत्थर की मूर्ति बन गया|बहन जो अभी तक हाथ-पैरों से अपाहिज थी, माँ के कंधों पर हाथ रखे सीता की चारपाई के पास खड़ी थी| अंधी माँ अपनी आँखों के सामने अपना हाथ फैलाए अपनी अंगुलियां गिन रही थी|

"बोलो साईं बाबा की जय...|" दादू के होठों से बरबस निकल पड़ा|फिर वह पागलों की भांति दौड़ता हुआ घर से निकल गया| वह गांव की पगडंडियों पर 'साईं बाबा कि जय' बोलते हुए पागलों की तरह भागा चला जा रहा था-भागा जा रहा था| उसका रुख द्वारिकामाई मस्जिद की ओर था|

"क्या हुआ दादू?" कुछ व्यक्तियों ने उसे रोककर पूछा|

"मेरे घर जाकर देखो|" दादू ने उनसे कहा और फिर दौड़ने लगा| दौड़ते-दौड़ते बोलते चला गया - "चमत्कार हो गया! चमत्कार हो गया! बोलो साईं बाबा की जय|"यह कहकर वह दौड़ता चला गया|दादू की हालत देखकर एक व्यक्ति ने कहा-"ऐसा लगता है, दादू की पत्नी चल बसी है और उसी की मौत के गम में यह पागल हो गया है|"तभी अपने घर से बाहर चबूतरे पर बैठे पंडितजी ने दादू की हालत देखकर कहा - "घरवाली तो चली गयी, अब अपाहिज बहन और अंधी माँ भी जल्दी ही चल बसेंगी और फिर दादू भी| देख लेना एक दिन गांव के इन सभी जवान छोकरों का भी यही हाल होने वाला है, जो रात-दिन उस ढोंगी के पास बैठे रहते हैं|"फिर पंडितजी की नजर उन लोगों पर पड़ी जो इकट्ठा होकर दादू के घर की तरफ जा रहे थे|दादू की बात का सारे गांव में शोर मच गया था| साईं बाबा की भभूति से दादू की माँ की आँखों में रोशनी आ गयी| अपाहिज बहन ठीक हो गई| टी.बी. की रोगी उसकी पत्नी स्वस्थ हो गयी|गांव भर में यह बात फैल गई|दादू के घर के सामने लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी| साईं बाबा का चमत्कार देखकर सब हैरान रह गये थे| दादू रह-रहकर साईं बाबा की जय-जयकार के नारे-जोर-जोर से लगा रहा था| लोग उसकी पत्नी, माँ और बहन को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे|गांव का प्रत्येक व्यक्ति साईं बाबा के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हो उठा| साईं बाबा वास्तव में एक चमत्कारी पुरुष हैं| सबको अब पूरी तरह से इस बात का विश्वास हो गया| गांव से साईं बाबा की प्रतिष्ठा और भी ज्यादा बढ़ गयी|पंडितजी इस घटना से बुरी तरह से बौखला गये| वह साईं बाबा के बारे में बहुत अनाप-शनाप बकने लगे| गांववालों ने पंडितजी को पागल मानना शुरू का दिया| कोई भी व्यक्ति उनकी बात सुनने के लिए तैयार न था| पंडितजी का विरोध करना कोई मायने नहीं रखता था|


कल चर्चा करेंगे.. महामारी से अनूठा बचाव
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.