शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Saturday, 2 December 2017

राजा उग्रसैन

ॐ श्री साँई राम जी 



राजा उग्रसैन


इस धरती पर अनेकों धर्मी राजा हुए हैं जिनका नाम आज तक बड़े आदर से लिया जाता है| उनका धर्म उजागर है| ऐसे राजाओं में यदुवंशी राजा उग्रसैन भी हुआ है| उसका धर्म-कर्म बहुत ही प्रसिद्ध था| वह मथुरा पुरी पर राज करता था| यमुना के दोनों किनारों पर उसी का राज था|

ऐसे नेक और धर्मी राजा के घर संतान की कमी थी| बस एक ही पुत्र था, जिसका नाम कंस था| वह उसी का पालन-पोषण करता था| उसके घर कोई कन्या पैदा न हुई| उसके विपरीत उसके छोटे भाई देवक के घर सात कन्याओं ने जन्म लिया| पर देवक के घर कोई पुत्र पैदा न हुआ| कन्यादान करने के लिए उग्रसैन ने अपने भाई की बड़ी कन्या देवकी को गोद लेकर अपनी पुत्री बना लिया| उसका पालन-पोषण करके उसे बड़ा किया| आमतौर पर सब यही समझते थे कि राजा उग्रसैन की दो सन्तानें कंस और देवकी हैं| समय बीतने के साथ-साथ देवकी और कंस जवान हुए| राजा उग्रसेन को उनका विवाह करने का ख्याल आया|

राजा उग्रसैन ने देवकी का विवाह वासुदेव से कर दिया| साथ ही देवकी की छोटी बहनों का भी वासुदेव से ही विवाह हो गया| वासुदेव नेक और धर्मात्मा था| उसका जीवन बड़ा ही शुभ था|

कंस का विवाह राजा जरासंध की लड़की से हुआ| जरासंध अच्छा पुरुष नहीं था| उसमें बहुत-सी कमियां थीं| वह अधर्मी और कुकर्मी था, प्राय: सबसे लड़ता रहता था| जैसा बाप वैसी ही उसकी कन्या थी| वह बहुत अभिमानी और उपद्रव करने वाली थी| उसने कंस को भी नेक न रहने दिया| धर्मी राजा उग्रसैन की संतान में विघ्न पड़ गए तथा अपशगुन होने लगे|

ग्रन्थों में लिखा है कि जब देवकी का विवाह वासुदेव के साथ हुआ तो डोली चलने के समय जब भाई-बहन मिलने लगे तो आकाश में एक भयानक बिजली की गड़गड़ाहट हुई| बिजली की चमक से सब हैरान और भयभीत हुए| उसी समय कंस के कानों में आकाशवाणी पड़ी-'पापी कंस! तेरे पापों से पृथ्वी कांप उठी है, धर्मी राजा उग्रसैन के राज में तेरे पापों की कथा है ....तुझे मारने के लिए देवकी के गर्भ से जो आठवां बालक जन्म लेगा वह तेरा वध करेगा| तुम्हारे बाद फिर तुम्हारा पिता उग्रसैन राज करेगा|'

इस आकाशवाणी को सुनकर कंस ने डोली को चलने से रोक दिया और क्रोध से पागल हो कर म्यान से तलवार निकाल ली| उसने देवकी को मारने का फैसला कर लिया| सब ने उसे ऐसा करने से रोका, पर मंदबुद्धि एवं दुष्ट कंस ने किसी की न सुनी| वह सदा मनमर्जी करता रहता था| उसी समय वासुदेव आगे आए और कहा, देवकी को मार कर अपने सिर पाप लेने का तुम्हें कोई फायदा नहीं है, तुम इस छोड़ दो| देवकी के गर्भ से जो भी बच्चा जन्म लिया करेगा, वह आपके पास सौंप दिया करेंगे, आप जैसा चाहे उस बच्चे को मरवा दिया करें|

ऐसा वचन सुन कर मुर्ख और पापी आत्मा कंस ने तलवार को म्यान में डाल लिया तथा देवकी और वासुदेव को हुक्म दिया कि वह उसी के महल में रहें, अपने घर न जाएं| ऐसा दोनों को करना ही पड़ा क्योंकि वह दोनों ही मजबूर थे, राजा कंस के साथ मुकाबला करना उनके लिए कठिन था| वह दोनों बंदियों की तरह रहने लगे| कंस ने उन्हें कारावास में डाल दिया|

इस दुर्घटना का असर राजा उग्रसैन के हृदय पर बहुत पड़ा| उसने पिता होने के कारण अपने पुत्र कंस को बहुत बार समझाया, मगर उसने एक न सुनी| इसके विपरीत अपने पिता को बंदी बना कर उसने कहा -'बंदी खाने के अंधेरे में पड़े रहो! तुम अपने पुत्र के दुश्मन हो| जाओ तुम्हारा कभी भी छुटकारा नहीं होगा, बस बैठे रहो|'

धर्मी राजा उग्रसैन की प्रजा ने जब सुना तो हाहाकार मच गई| प्रजा ने बहुत विलाप किया और शोक रखा| पर दुष्ट कंस ने उनको तंग करना शुरू कर दिया|

उधर देवकी बहुत दुखी हुई| उसका जो भी बालक जन्म लेता वही मार दिया जाता| वासुदेव को भी बहुत दुःख होता| इस तरह एक-एक करके सात बच्चे मार दिए गए, जिनका दुःख देवकी और वासुदेव के लिए असहनीय था|

आठवां बच्चा देवकी के गर्भ से भगवान का अवतार ले कर पैदा हुआ| पारब्रह्म की लीला बड़ी अद्भुत है जिसे कोई नहीं जान सकता, भगवान श्री कृष्ण ने जब अवतार लिया तो बड़ी मूसलाधार वर्षा हो रही थी| काल कोठड़ी के सारे पहरेदारों को गहरी नींद आ गई| भगवान ने वासुदेव को हिम्मत और साहस दिया| वासुदेव शिशु रूपी भगवान श्री कृष्ण जी को उठा कर भगवान की इच्छानुसार अपने मित्र नंद लाल के घर पहुंचाने के लिए चल पड़े| यमुना नदी के किनारे पहुंच गए| वर्षा के कारण यमुना में पानी बहुत भर गया था, वह जोर-जोर से छलांगें मार रहा था|

वासुदेव यमुना को देख कर कुछ समय के लिए भयभीत हो गए| वह सोचने लगे कि कहीं वह यमुना में ही न बह जाएं| उसी समय आकाशवाणी हुई-'हे वासुदेव! चलो, यमुना मैया तुम्हें मार्ग देगी| तुम्हारे सिर पर तो भगवान हैं जो स्वयं महांकाल के भी मालिक हैं| चलो!

यह सुन कर वासुदेव आगे बढ़े| यमुना के जल ने श्री कृष्ण जी के चरणों को स्पर्श किया और सत्य ही वासुदेव को जाने का रास्ता दे दिया| वासुदेव यमुना पार करके गोकुल नगरी में आ गए| यशोदा माता उस समय सोई हुई थी| अपना लड़का नंद लाल को दे दिया तथा उसकी कन्या को लेकर वापिस चल पड़े| यमुना ने फिर उसी तरह मार्ग दे दिया| वासुदेव वापिस काल कोठड़ी में आ गए, किसी को कुछ भी पता न चला| भगवान ने अपने भक्त की लाज रखी| रातों-रात ही सभी कार्य हो गए|

सुबह हुई तो वासुदेव ने अपने साले दुष्ट कंस को बताया कि उसके घर आठवीं संतान के रूप में कन्या ने जन्म लिया है| आकाशवाणी असत्य निकलीं| आप इसे मत करो, क्योंकि कन्या तो आपका वध नहीं कर सकती| यह सुन कर कंस क्रोध से बोला-क्यों नहीं? कन्या भी तो एक दिन किसी की मौत का कारण बन सकती है| लाओ! कंस ने वासुदेव के हाथ से कन्या को छीन लिया|

वह कन्या वास्तव में माया का रूप थी| जब कंस उसका वध करने लगा तो उसी समय वह बिजली का रूप धारण करके आकाश में चली गई और हंस कर बोली-हे पापी कंस! तुम्हारी मृत्यु अवश्य होगी, तुम्हें मारने वाला जन्म ले चुका है, उसका पालन हो रहा है और जवान होकर तुम्हारा अन्त करेगा|' यह कह कर कन्या आकाश में लुप्त हो गई|

पापी कंस ने भरसक प्रयास किए कि देवकी सुत श्री कृष्ण को ढूंढ कर खत्म कर दिया जाए, पर उसे कहीं से भी कोई सफलता न मिली| जवान होकर श्री कृष्ण ने कंस से युद्ध किया तथा उस का वध करके धर्मी राजा उग्रसैन को बंदीखाने से मुक्त किया| उसे राज तख्त पर बिठाया| 'उग्रसैन कउ राज अभै भगतह जन दियो|'

उग्रसैन को राज उसकी भक्ति के कारण मिला| कंस के ससुर जरासंघ ने भी कई बार मथुरा पर हमला किया और राजा उग्रसैन को पराजित न कर सका| राजा उग्रसैन के बाद श्री कृष्ण जी मथुरा के राजा बने| यह कथा राजा उग्रसैन की है, वह भक्तों में गिने जाते हैं|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.