शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday, 6 November 2017

भक्त शेख फरीद जी - जीवन परिचय


ॐ साँई राम जी

भक्त शेख फरीद जी




देखु फरीद जु थीआ दाड़ी होई भूर || 
अगहु नेड़ा आइआ पिछा रहिआ दूरि || १ ||

शेख फरीद जिनका पूरा नाम फरीद मसऊद शकर गंज था|शेख फरीद जी का जन्म 1172 ई० में गाँव खोतवाल जिला मुल्तान में हुआ| इनके पिता का नाम शेख जमान सुलेमान तथा माता का नाम मरियम था|इनकी माता धर्मात्मा इस्लामी तालीम की ज्ञाता थी| वह शुद्ध ह्रदय वाली व ईमानदार थी| उसकी शिक्षा का प्रभाव फरीद जी के ऊपर बचपन में ही बहुत पड़ा| आप १२ साल से पहले ही कुरान मजीद अध्यन्न कर गए|यह भी कहा जाता है कि मौखिक रूप से पहले ही याद कर लिया तथा धार्मिक परिपक्व हो गए| इनके पिता मशहूर सूफी थे|


शेख फरीद जी के पूर्वज सुल्तान महमूद गजनवी के साथ संबंध रखते थे| आप के पिता गजनवी के भतीजे थे| सुलेमान पहले हिंद आ गया,फिर वहाँ से लाहौर आ बैठा| सुलेमान का फकीरी दायरा कायम हों गया|लाहौर से उठ कर जंगली इलाके मुलक की तरफ चले गए|अनत में पाकपटन में अपना स्थान कायम कर लिया|वहीं शेख फरीद जी का जन्म हुआ|

शेख फरीद जी का जन्म गुरु नानक देव जी से पहले पाँच सौ साल पहले माना जाता है|एक दिन माता ने तपस्या के बारे में बताया तो आप ने विचार बना लिया कि युवा होकर तपस्या करेंगे|जब युवा हुए, चेतना आयी तो घर से तपस्या के लिए निकल पड़े|

उन्होंने बारह साल जंगल में काटे| उनके बाल बढ़ गए व जुड़ गए| प्रभु का सिमरन करते हुए गर्मी-सर्दी में रहकर वन की पीलू, करीरो के डेले, थोहर का पक्का फल आदि खा लेते| कभी-कभी वृक्ष के पत्ते भी खा लेते| उनके मन में बारह साल भक्ति करके अहंकार आ गया| उन्होंने चिडियों को कहा "मर जाओ"| सचमुच ही चिडिया मर गई| "जीवित हो जाओ" वह सचमुच ही जीवित हो गई|उन्हें लगा कि उनकी भक्ति पूरी हो गई है| रिद्धिया-सिद्धिया मिल गई हैं| अच्छा हो गया है|

अहंकार में भरे हुए फरीद जी पास के गाँव में पहुंच गए| अपनी प्यास बुझाने के लिए कुएँ की तरफ चल दिए| वहाँ पर एक स्त्री पानी का डोल निकालती व भरकर उल्टा देती| फरीद जी ने कहा कन्या! मुझे पानी पिलाओ मैं दूर से आया हूँ|

परन्तु उस कन्या ने फरीद जी की तरफ ध्यान न दिया और अपने कार्य में लगी रही| फरीद जी क्रोधित हो गए और कहने लगे - "मैं कब से कह रहा हूँ मुझे पानी पिलाओ| जमीन पर पानी फैंकने से तुम्हें क्या लाभ?"

कन्या ने उत्तर दिया मेरी बहन का घर जल रहा है, आग बुझा रही हूँ| मेरी बहन का घर यहाँ से बीस कोस दूर है| फरीद जी यह सुनकर बहुत हैरान हुए| कन्या ने कहना शुरू किया कि यहाँ चिड़िया नहीं जिनको कहोगे "मर जाओ" तो वह मर जाएँगी तथा कहोगे "उड़ जाओ" तो उड़ जाएँगी| यहाँ यह नहीं|

यह बात सुनकर फरीद जी दंग रह गए कि उसे यह बात कहाँ से ज्ञात हुई| आप चाहे मुझे पानी न पिलाए परन्तु यह सारी शक्ति जानने तथ आग बुझाने की कहाँ से प्रप्त की?

कन्या ने उत्तर दिया "सेवा तथा पति प्रेम करती हूँ| यही तपस्या है अहंकार नहीं|" भला आपने तो परीक्षा की, प्रभु की परीक्षा मन में संदेह उत्पन किया| ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए था| फरीद जी ने पानी पिया और क्या देखते हैं कि कुआँ खाली है, न डोल, न फिरनी, न वह स्त्री| अकेले फरीद जी वहाँ खड़े थे| वह हैरान हो गए और जान गए कि परमात्मा ने यह सारा खेल रचा है|

घर पहुँचे तो माँ ने देखा कि पुत्र के बाल जुड़े हुए हैं| वह उसे सवारने लगी| फरीद जी को पीड़ा महसूस हुई| माँ कहने लगी पुत्र! जिन वृक्षों के पत्ते तोडकर खाते थे तो उनको पीड़ा नहीं होती थी? इसतरह दूसरों को दुःख देने से पीड़ा अनुभव होती है| सबमे अल्लाह का नूर है चाहे कोई पक्षी है या परिंदा| उन्हें ज्ञात हो गया कि उनकी भक्ति अभी अधूरी है| जो की थी चिड़ियों की परीक्षा में गवा ली| इस तरह उनके मन में दूसरी बार तपस्या करने का ध्यान आया|

बाबा फरीद ने फिर घर छोड़ दिया| धरती पर गिरी हुई चीज़ ही खाते, वृक्ष से पत्ता तक न तोड़ते| इस तरह कई साल बीत गए| उनका शरीर कमजोर हो गया| प्रभु दर्शन की लालसा थी| पर भगवान के दर्शन नहीं होते थे| उस समय की शारीरिक व मानसिक अवस्था को फरीद जी ने इस तरह बयान किया है -

कागा करंग ढंढोलिआ सगला खाइआ मासु || 
ऐ दुई नैना मति छुहउ पिर देखन की आस || १९ ||

भव- शरीर पिंजर मात्र ही रह गया है| इस तरह कई साल भक्ति करते बीत गए परमेश्वर नहीं आया| प्रभु के दर्शन एक दो बार हुए| मन को संतुष्ठी हुई पर पूर्णता प्राप्त नहीं हुई| उन्हें यह ज्ञात हो गया कि बिना मुरशद धारण किए मन को संतोष प्राप्त नहीं हो सकता| इसलिए गुरु धरण करना जरुरी है|

गुरु की ख़ोज में फरीद जी अजमेर में चिश्ती साहिब के पास पहुँच गए| उन्हें मुरशद मानकर सेवा करने लगे| भक्ति के लिए सेवा व श्रद्धा दो गुण चाहिए थे| आप डटकर सेवा करते रहे| आपकी सेवा गुरु को स्नान कराने की थी| स्वयं ही अग्नि जलानी और पानी गर्म करना| एक दिन खूब बारिश हुई| उस काल में माचिस न होने के कारण अग्नि संभालकर रखनी पड़ती थी| फरीद जी को चिंता हो गई| उसी भयंकर तूफान में डेरे से बाहर निकल पड़े और उन्होंने देखा कि वेश्या की बैठक में अग्नि जल रही है| फरीद जी निडरता के साथ अन्दर चले गए| उन्हें देखकर वेश्या मन ही मन कुछ ओर ही सोचती रही लेकिन उसका सोचना फरीद जी के विपरीत था| उन्होंने कहा माता जी! अग्नि चाहिए| यदि अग्नि न मिली तो स्नान कैसे होगा और चिश्ती जी खुदा की बंदगी कैसे करेंगे|

यह सुनकर कुकर्मी वेश्या हँस पड़ी और कहने लगी कि मुझे भी किसी चीज़ की आवश्कता है|
फरीद जी - किस चीज़ की आवश्कता है?
वेश्या - आपकी| मुझे आपकी आँखे बहुत प्यारी लगी हैं| अगर आप मुझे अपनी आँख की पुतली देंगे तो अग्नि अवश्य ही मिल जायेगी|
इतिहास में लिखा है - जैसे ही वेश्या ने तेज चाकू लिया और आँख पर लगाया उसे अचानक धक्का लगा और पीछे गिर गई| लेकिन फरीद की आँख पर घाव हो गया| उसने आँख पर पट्टी बाँध दी और फरीद जी तो अग्नि देकर फरीद जी से क्षमा माँगने लगी|

अपने नियम के अनुसार फरीद जी ने प्रातकाल अग्नि जलाई, पानी गर्म किया और गुरु जी को स्नान कराया| गुरु जी ने पूछा फरीद आँख पर पट्टी क्यों बांध रखी है? फरीद जी हाथ जोड़ कर खड़े रहे| "पट्टी खोल दो" गुरु जी ने हुक्म किया| जैसे की पट्टी खोली आँख पर कोई घाव नहीं था| आँख वैसे की वैसी थी| मुरशद ने वचन किया, तुम्हारी सेवा परवान हुई, तपस्या भी पूर्ण हुई| अहंकार मत करना|नम्रता अपनाना और खुदा को सदा याद रखना| रिद्धियां - सिद्धियां सदा आपके साथ रहेंगी| अपने घर जाकर खुदा की महिमा गाओ|

इस प्रकार हजरत चिश्ती साहिब प्रसन्नता पूर्वक वर देते गए और बाबा फरीद जी उनके चरण पकड़कर श्रवण करते हुए कृतार्थ हो गए|

बाबा फरीद जी अपने घर पाक पटन लौट आए और इस्लाम धर्म का प्रचार करने लगे| नेकी, सत्य और विनय का प्रकाश चारों तरफ जगमगा गया तथा आपकी गद्दी का यश दूर - दूर तक फ़ैल गया| जो भी उस गद्दी पर विराजमान होता उसका नाम फरीद रखा जाता| अब भी यह गद्दी करामाती गद्दी मानी जाती है|

साहितिक देन:

श्री गुरुग्रंथ साहिब में आप की बाणी के सलोक विद्यमान हैं जिन्हें "सलोक फरीद जी" कहा जाता है| इनकी सारी ही बाणी कल्याणकारी तथा उपदेश प्रदान करने वाली है|


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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.