शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday 13 November 2017

भाई सुजान जी - जीवन परिचय

ॐ साँई राम जी


भाई सुजान जी




मंनै पावहि मोखु दुआरु || मंनै परवारै साधारु ||
मंनै तरै तारे गुरु सिख || मंनै नानक भवहि न भिख ||
ऐसा नामु निरंजनु होइ || जे को मंनि जाणै मनि कोई ||१५||
गुर का बचनु जीअ कै साथ || गुर का बचनु अनाथ को नाथ ||

उपरोक्त महां वाक का भावार्थ यह है कि जो परमात्मा के नाम का सुमिरन करते, उसको मानते, अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं वह सदा मोक्ष प्राप्त करते हैं| जो स्वयं भक्ति भाव पर चलते हैं, वह दूसरों को भी पार उतार देते हैं| साथ ही दाता का फरमान है कि गुरु जी का वचन, जिन्दगी भर न भूले, हृदय में बसाया जाए| गुरु जी का वचन, यह तो सब का आसरा है| उसके आसरे ही जीवन व्यतीत करते हैं भाव यह कि गुरु घर में हुक्म मानना, नाम का सुमिरन तथा सेवा ही महत्व रखती है| यही सिक्खी जीवन सर्वश्रेष्ठ है|

सेवा और नाम सिमरन करने वाले सिक्खों में एक सिक्ख वैद्य सुजान जी भी आते हैं| श्री कलगीधर जी की आप पर दया दृष्टि हुई थी| जन्म मरन के चक्र कट गए थे|

वैद्य सुजान जी लाहौर के रहने वाले थे| फारसी पढ़ने के साथ वैद्य हकीम भी बने थे तथा फारसी की कविता करते थे| वह हिकमत करते तो उनका मन अशांत रहता| मन की शांति ढूंढने के लिए एक कवि मित्र के साथ श्री आनंदपुर जा पहुंचे| उस समय श्री आनंदपुर में सतिगुरु जी के पास 52 कवि थे| आप कवियों का बहुत सम्मान करते थे| उनकी महिमा सारे उत्तर भारत में थी|

भाई सुजान जी आए| दो दिन तो श्री आनंदपुर शहर की महिमा देखते रहे| जब सतिगुरु जी के दरबार में पहुंचे व दर्शन किए तो सतिगुरु जी ने अद्भुत ही खेल रचा|

जब दर्शन करने गए भाई सुजान ने सतिगुरु जी के चरणों पर माथा टेककर नमस्कार की तो उस समय सतिगुरु जी ने एक अनोखा वचन किया|

हे सुजान! तुम तो वैद्य हो| दीन-दुखियों की सेवा करो| चले जाओ, दूर चले जाओ तथा सेवा करो| उसी में तुम्हें शांति प्राप्त होगी, पार हो जाओगे| दौड़ जाओ|'

'महाराज! कहां जाऊं?' भाई सुजान ने पूछा|

'दौड़ जाओ! तुम्हारी आत्मा जानती है कि कहां जाना है अपने आप ले जाएगी| बस आनंदपुर से चले जाओ!'

फिर नहीं पूछा, चरणों पर नमस्कार की, सारी भूख मिट गई, पानी पीने की तृष्णा नहीं रही| जूते पहनना भूल गया, नंगे पांव भाग उठा, कीरतपुर पार करने के पश्चात, सरसा पार कर गया, वह भागने से न रुका, एक सैनिक की तरह भागता गया| सूर्य अस्त होने वाला था, चरवाहे पशुओं को लेकर जा रहे थे| वह भागता जा रहा था, उसकी मंजिल कब खत्म होगी? यह उसको पता नहीं था| हां, सूर्य अस्त होने के साथ ही एक नगर आया| वहां दीवारों के पास जा कर उसको ठोकर लगी| जिससे वह मुंह के बल गिर पड़ा, गिरते हुए उसके मुंह से निकला-वाहिगुरु तथा मूर्छित हो गया|

नगर की स्त्रियों ने देखा भागता आता हुआ राही गिर कर मूर्छित हो गया है| उन्होंने शोर मचा कर गाँव के आदमियों को बुला लिया| मर्दों ने भाई सुजान चंद को उठाया| चारपाई पर लिटा कर उसकी सेवा की, नंगे पांव में छाले थे, रक्त बह रहा था, पैरों को गर्म पानी से धोया, उसे होश में लाया गया| जब होश आई तो पास मर्द-स्त्रियों को देख कर उसके मुंह से सहज ही निकल गया 'धन्य कलगी वाले पिता|'

'आपने कहां जाना है?' गांव के मुखिया ने पूछा

'कहीं नहीं, जहां जाना था वहां पहुंच गया हूं| मेरा मन कहता है मैंने यहीं रहना है| मैं वैद्य हूं रोगियों-दुखियों की सेवा तन-मन से करूंगा| बताओ जिन को रोग है, मैंने कोई शुल्क नहीं लेना, मैंने यहां रहना है भोजन पान तथा सेवा करनी है| सुजान चंद जी ने उत्तर दिया था|

सुनने वाले खुश हुए कि परमात्मा ने उन पर अपार कृपा की| वह गरीब लोग थे, गरीबी के कारण उनके पास कोई नहीं आता था| उनके धन्य भाग्य जो हकीम आ गया, एक माई आगे बढ़ी| उसने कहा- मेरा बुखार नहीं उतरता इसलिए मुझे कोई दवा दीजिए|

'अभी उतर जाएगा! यह....चीज़ खा लो| चीज़ खाते समय मुंह से बोलना, धन्य कलगीधर पातशाह!' वह माई घर गई उस ने वैद्य जी की बताई चीज़ को खाया व मुंह से कहा, 'धन्य गुरु कलगीधर पातशाह सचमुच उसका बुखार उतर गया, वह अरोग हो गई| वैद्य की उपमा सारे गांव में फैल गई| एक त्रिण की झोंपड़ी में उस ने चटाई बिछा ली, बाहर से जड़ी बूटियां ले आया और रोगियों की सेवा करने लगा| चटाई पर रात को सो जाता तथा वाहिगुरु का सिमरन करता| आए गए रोगी की सेवा करता| इस तरह कई साल बीत गए| पत्नी, बच्चे तथा माता-पिता याद न आए| अमीरी लिबास तथा खाना भूल गया, वह एक संन्यासी की तरह विनम्र होकर लोगों की सेवा करने लगा| शाही मार्ग पर गांव था, जब रोगियों से फुर्सत मिलती तो राहगीरों को पानी पिलाने लग जाता| हर पानी पीने वाले को कहता - कहो धन्य गुरु कलगीधर पातशाह! यात्री ज्यादातर श्री आनंदपुर जाते-आते थे| जो जाते वह श्री आनंदपुर जी जाकर बताते कि मार्ग में एक सेवक है, वह बहुत सेवा करता है| हरेक जीव से कहलाता है, 'धन्य गुरु कलगीधर पातशाह|' यह सुनकर गुरु जी मुस्करा देते|

एक दिन ऐसा आ पहुंचा| जिस दिन भाई सुजान की सेवा सफल होनी थी| उसके छोटे-बड़े ताप-संताप और पाप का खण्डन होना था| खबर आई कि सच्चे सतिगुरु जी आखेट के लिए इधर आ रहे हैं| यह खबर भाई सुजान को भी मिल गई| हृदय खुशी से गद्गद् हो गया, दर्शन करने की लालसा तेज हो गई, व्याकुल हो गया पर डर भी था कहीं दर्शन करने से न रह जाए| भाग्य जवाब न दे जाए| आखिर वह समय आ पहुंचा, गुरु जी गांव के निकट पहुंच गए| नगरवासी भाग कर स्वागत के लिए आगे जाने लगे, पर उस समय एक माई ने आकर आवाज़ दी-'पुत्र! जल्दी चलो, मेरी पुत्रवधू के पेट में दर्द हो रहा है| उसकी जान बचाओ| उसे उदर-स्फीति हो गई है| गरीब पर दया करो, चलो सतिगुरु तुम्हारा भला करे जल्दी चलो|'

भाई सुजान के आगे मुश्किल खड़ी हो गई, एक तरफ रोगी चिल्ला रहा है| दूसरी तरफ कलगीधर पिता जी आ रहे हैं| गुरु जी के दर्शन करने अवश्य हैं, पर रोगी को भी छोड़ा नहीं जा सकता| यदि माई की पुत्रवधू मर गई तो हत्या का भागी भाई सुजान होगा| उसकी आत्मा ने आवाज़ दी|

भाई सुजान! क्यों दुविधा में पड़े हो? रोगी की सेवा करो, तुम्हें सेवा करने के लिए दाता ने हुक्म किया है| उस प्रीतम का हुक्म है, गुरु परमेश्वर के दर्शन लोक सेवा में है|

उसी समय भाई सुजान दवाईयों का थैला उठा कर माई के घर को चल दिया| लोग उत्तर दिशा की तरफ दौड़े जा रहे थे, भाई सुजान दक्षिण दिशा की तरफ जा रहा था| लोगों को गुरु जी के दर्शन करने की इच्छा थी तथा भाई सुजान को रोगी की हालत देखने की जल्दी थी| लोग गुरु जी के पास पहुंचे तथा भाई सुजान माई के घर पहुंच गया| उसने जा कर माई की पुत्रवधू को देखा, वह सचमुच ही कुछ पल की मेहमान थी| उसने उसे दवाईयां घोल कर पिलाई| वैदिक असूलों के अनुसार देखरेख की हिदायतें दीं, पर पूरा एक घण्टा लग गया| माई की रोगी पुत्रवधू खतरे से बाहर हो गई| उसकी उदर-स्फीति अब धीमी हो गई| पेट का दर्द नरम हो गया| भाई सुजान जी दवाईयां दे कर वापिस मुड़े| जल्दी-जल्दी आए तो क्या देखते हैं कि उनकी झोंपड़ी के आगे लोगों की बहुत भीड़ है| घुड़सवार खड़े हैं, सारा गांव इकट्ठा हुआ है| भाई सुजान भीड़ को चीर कर आगे चले गए| झोंपड़ी के अन्दर जा कर क्या देखते हैं कि नीले पर सवार सच्चे पातशाह गरीब की चटाई पर बैठे हुए छत्त की तरफ देख रहे हैं| जाते ही भाई सुजान सतिगुरु जी के चरण कंवलों पर गिर पड़ा| आंखों में खुशी के आंसू आ गए, चरण पकड़ कर विनती की 'करामाती प्रीतम! दाता कृपा की जो गरीब की झोंपड़ी में पहुंच कर गरीब को दर्शन दिए, मेरे धन्य भाग्य|'

'भाई सुजान निहाल!' सच्चे सतिगुरु जी ने वचन किया| सचमुच तुमने गुरु नानक देव जी की सिक्खी को समझा है| गरीबों की सेवा की हैक यही सच्ची सिक्खी है| उठो! अब श्री आनंदपुर को चलो, हम तुम्हें लेने के लिए आए है|'

गुरु के वचनों को मानना सिक्ख का परम धर्म है| उसी समय उठ कर भाई सुजान गुरु जी के साथ चल पड़ा तथा श्री आनंदपुर पहुंचा| गुरु जी ने आप को अमृत पान करवा कर सिंघ सजा दिया| नाम 'सुजान सिंघ' रखा| लाहौर से परिवार भी बुला लिया| परिवार को भी अमृत पान करवाया गया| सारा परिवार भाई सुजान सिंघ को मिल कर बहुत खुश हुआ| भाई सुजान सिंघ की धर्म पत्नी जिसने कई साल पति की जुदाई सहन की तथा पति के हुक्म में सती के समान रही, उसके हृदय को कौन जान सकता है|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.