शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday, 15 August 2017

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ - पुत्र का वरदान

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ


आप सभी को 71 वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें 

ॐ साँई राम जी

श्री साँई बाबा जी के चरण कमलों में हमारी अरदास है
कि बाबा जी अपनी कृपा दृष्टी आप सभी पर निरंतर बरसाते रहे
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनायें

बाबा जी की कृपा से आप सभी को अपनी परेशानियों से आज़ादी मिलें|






आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी हार्दिक शुभ कामनायें




पुत्र का वरदान


एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थीगुरु जी से आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं हैआप किरपा करके मुझे पुत्र का वरदान दोगुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भाग में पुत्र नहीं हैमाई निराश होकर बैठ गई|भाई गुरदास जी ने माई से निराशा का कारण पूछाउसने सारी बात भाई गुरदास जी को बताई कि किस तरह गुरु जी ने उसे कहा है कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं हैभाई गुरदास जी ने उसे दोबारा से गुरु जी को प्रार्थना करने को कहाअगर गुरु जी वही उत्तर देंगे तो आप उन्हें कहना कि महाराज! यहाँ वहाँ आप ही लिखने वाले हैंअगर पहले नहीं लिखातो अब यहाँ ही लिख दोआप समर्थ हैं|दूसरे दिन गुरु जी घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जाने लगेजल्दी से माई ने आगे हो कर गुरु जी से कहा कि महाराज! किरपा करके मुझे एक पुत्र का वरदान बक्श कर मेरी आशा पूरी करोगुरु जी ने फिर वही उत्तर दिया कि माई तेरे भाग्य में पुत्र नहीं लिखामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे रखकर कहा कि सच्चे पादशाह! अगर आपने वहाँ नहीं लिखा तो यहाँ लिख दोयहाँ वहाँ आप ही भाग्य विधाता हो|माई की यह युक्ति की बात सुनकर गुरु जी हँस पड़े और कहा माई तेरे घर पुत्र होगामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे कर दी और कहा महाराज! यह वचन मेरे हाथ पर लिख दो ताकि मेरे मन को शांति होगुरु जी ने कलाम पकड़कर जैसे ही माई के दाये हाथ पर लिखने लगे तो नीचे से घोड़े के पाँव हिलने से एक की जगह सात अंक लिखा गयागुरु जी ने हँस कर कहा माई तुम एक लेने आई थी परन्तु स्वाभाविक ही सात लिखे गए हैंअब तुम्हारे घर सात पुत्र ही होंगेमाई देसो गुरु जी की उपमा करती हुई खुशी खुशी अपने घर आ गई|एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थीगुरु जी से आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं हैआप किरपा करके मुझे पुत्र का वरदान दोगुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भाग में पुत्र नहीं हैमाई निराश होकर बैठ गई|भाई गुरदास जी ने माई से निराशा का कारण पूछाउसने सारी बात भाई गुरदास जी को बताई कि किस तरह गुरु जी ने उसे कहा है कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं हैभाई गुरदास जी ने उसे दोबारा से गुरु जी को प्रार्थना करने को कहाअगर गुरु जी वही उत्तर देंगे तो आप उन्हें कहना कि महाराज! यहाँ वहाँ आप ही लिखने वाले हैंअगर पहले नहीं लिखातो अब यहाँ ही लिख दोआप समर्थ हैं|दूसरे दिन गुरु जी घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जाने लगेजल्दी से माई ने आगे हो कर गुरु जी से कहा कि महाराज! किरपा करके मुझे एक पुत्र का वरदान बक्श कर मेरी आशा पूरी करोगुरु जी ने फिर वही उत्तर दिया कि माई तेरे भाग्य में पुत्र नहीं लिखामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे रखकर कहा कि सच्चे पादशाह! अगर आपने वहाँ नहीं लिखा तो यहाँ लिख दोयहाँ वहाँ आप ही भाग्य विधाता हो|माई की यह युक्ति की बात सुनकर गुरु जी हँस पड़े और कहा माई तेरे घर पुत्र होगामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे कर दी और कहा महाराज! यह वचन मेरे हाथ पर लिख दो ताकि मेरे मन को शांति होगुरु जी ने कलाम पकड़कर जैसे ही माई के दाये हाथ पर लिखने लगे तो नीचे से घोड़े के पाँव हिलने से एक की जगह सात अंक लिखा गयागुरु जी ने हँस कर कहा माई तुम एक लेने आई थी परन्तु स्वाभाविक ही सात लिखे गए हैंअब तुम्हारे घर सात पुत्र ही होंगेमाई देसो गुरु जी की उपमा करती हुई खुशी खुशी अपने घर आ गई|एक दिन झंगर नाथ गुरु हरिगोबिंद जी से कहने लगे कि आप जैसे गृहस्थियों का हमारे साथ ,जिन्होंने संसार के सभ पदार्थों का त्याग कर रखा है उनके साथ  झगड़ा करना अच्छा नहीं हैइस लिए आप हमारे स्थान गोरख मते को छोड़ कर चले जायेगुरु जी हँस कर कहने लगेआपका मान ममता में फँसा हुआ हैकिसे स्थान व पदार्थ में अपनत्व रक्खना योगियों का काम नहीं हैआप अपने आप को त्यागी कहते हुए भी मोह माया में फँसे हुए है|गुरु जी की यह बात सुनकर योगी अपनी अजमत दिखाने के लिए आकाश में उड़ कर पथरो कि वर्षा और आग कि चिंगारियां उड़ाने लगेमिट्टी कंकरो कि जोरदार आंधी चल पड़ीबड़े-बड़े भयानक रूप धारण करके मुँह से मार लो मार लो कि आवाजें करके सिखों को डराने लगेसाथ ही साथ शेर और सांप के भयंकर रूप धारण करके फुंकारे मारने लगेगुरु जी ने सिखों को चुपचाप तमाशा देखने को कहाइनकी सारी शक्ति अभी नष्ट हो जायेगी|गुरु जी ने ऐसे वचन करके जब ऊपर देखा तो सिद्ध जो जिस आकार में थावहाँ ही उसको आग जलाने लगीइस अग्नि से व्याकुल होकर सिद्ध भाग कर गोरख नाथ के पास चले गए और रख लो रख लो कि दुहाई देकर उसकी शरण पड़ गएगोरख ने कहा कि हमने आपको पहले ही समझाया था कि गुरु नानक कि गद्दी से झगड़ा करना ठीक नहींपरन्तु आपने हमारी बात नहीं मानीअब मान गँवा कर भागे आये होइस तरह गोरख ने  उनको लज्जित किया|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.