श्री साईं लीलाएं - बाबा का संकट के प्रति सचेत करना
ॐ सांई राम
कल हमने पढ़ा था.. लोग दक्षिणा भी देते थे और गालियाँ भी
श्री साईं लीलाएं
बाबा का संकट के प्रति सचेत करना
साईं बाबा रहते तो शिरडी में ही थे, पर उनकी नजरें सदैव अपने भक्तों पर लगी रहती थीं| बाबा अपने भक्तों पर आने वाले संकटों के प्रति उन्हें आगाह भी करते और संकटों से उनकी रक्षा भी किया करते थे| अहमदनगर गांव के रहने वाले काका साहब मिरीकर, जिन्हें उस समय की सरकार ने 'सरदार' के खिताब से नवाजा था| उनके बेटे वाला साहब मिरीकर भी अपने पिता की ही तरह प्रसिद्ध थे| वे कोपर गांव के तहसीलदार थे| एक बार वे अपने ऑफिस के किसी कार्य से दिल्ली जा रहे थे, तब जाते समय वे शिरडी आये|
मस्जिद में पहुंचकर उन्होंने बाबा के दर्शन कर, चरणवंदना की और कुशलक्षेम पूछने के बाद, कुछ इधर-उधर की बातें कीं| बातों के बीच में बाबा ने उनसे पूछा - "मिरीकर, क्या तुम हमारी द्वारिकामाई को जानते हो?" बाला साहब इस प्रश्न से हैरान रह गये| तब साईं बाबा बोले - "क्या समझे नहीं? यह द्वारिकामाई अपनी मस्जिद ही है| यह माई अपनी गोद में आकर बैठनेवाले बच्चों क अभय देती हैं| उनके कष्टों और परेशानियों को दूर कर देती हैं| यह बड़ी ममतामयी और दयालु हैं| यह सरल हृदय भक्तों की माँ हैं| यदि किसी पर कोई संकट आ जाता है तो यह अवश्य ही उसकी रक्षा करती हैं| जो इनकी गोद में आकर बैठा, उसका कल्याण हो गया| जो विश्वास के साथ इनकी छांव में बैठा, मानो वह सुख के सिंहासन पर बैठा| इसलिये इसे द्वारिका या द्वारावती भी कहते हैं|"
जब बाला साहब जाने लगे तो बाबा ने उनके सिर पर अपना वरदहस्त रखकर उन्हें आशीर्वाद के साथ ऊदी प्रसाद भी दिया| जब वे उठे तो बाबा ने पूछा - "क्या तुम लम्बे बाबा को जानते हो?" तो मिरीकर ने मना कर दिया| फिर बाबा ने अपने बायें हाथ की मुट्ठी बनाकर दाहिने हाथ की हथेली पर कोहनी के बल खड़ी की और सांप की भांति हिलाते हुए बोले - "वह ऐसा भयानक होता है| लेकिन वह द्वारिकामाई के पुत्रों का बिगाड़ ही क्या सकता है| इसकी करनी कोई नहीं जानता| हमें सिर्फ इसकी लीला देखने का ही काम है| जब द्वारिकामाई स्वयं रक्षा करने - वाली है तो वह लम्बा बाबा हमारा क्या बिगाड़ेगा?" सब लोग बैठे बाबा की बात सुन रहे थे| उन्हें समझ नहीं आया कि बाबा के संकेत किसकी ओर हैं| पर बाबा से पूछने का साहस किसी में नहीं था|
फिर बाबा ने शामा को अपने पास बुलाकर उसे मिरीकर के साथ चितली गांव जाने को कहा| फिर वे दोनों तांगे से रवाना हो गये| वहां पहुंचकर उन्हें मालूम हुआ कि बड़े अफसर जिन्हें उनसे मिलना था अब तक नहीं आये थे| कुछ देर तक उनका इंतजार करने के बाद वे दोनों हनुमान मंदिर में जाकर ठहर गए| खाना खाने के बाद, रात का एक पहर बीत जाने पर वे बिस्तर पर बैठे, दीये के उजाले में बैठे इधर-उधर की बातों में लगे रहे| कुछ देर बाद बाला साहब ने एक अखबार उठाया और उसे पढ़ने लगे| वह अखबार पढ़ने में तल्लीन थे| न जाने कहां से एक सांप आया और उनके अंगोछे पर बैठ गया| उस समय सांप को किसी ने नहीं देखा|
जब वह रेंगने लगा तो उसके रेंगने की आवाज सुनकर चपरासी के होश-हवास उड़ गये| वह बुरी तरह घबराकर 'सांप-सांप' कहता हुआ चीखने लगा| उसकी आवाज सुनकर बाला साहब की हालात ऐसी हो गयी कि काटो तो खून नहीं| शामा भी बौखला गया| वे बाबा को याद करने लगा|
फिर वहां उपस्थित सभी लोग संभल गये| जिसके जो हाथ लगा उसने वही उठाकर सांप का काम तमाम कर दिया| सब लोग बला टलने से बेफिक्र हो गये| मिरीकर को बाबा ने निकलते समय 'लम्बा बाबा' यानी सांप की भविष्यवाणी शिरडी में ही कर दी थी| इसलिए साथ में संकट टालने हेतु शामा को भेजा था| इस घटना के बाद मिरीकर की साईं बाबा के प्रति निष्ठा और भी दृढ़ हो गयी|
कल चर्चा करेंगे... बापू साहब बूटी को अभय दान
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।
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बाबा के 11 वचन
ॐ साईं राम
1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
Word Meaning of the Gayatri Mantra
ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe
these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation
धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"
dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God
भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।
Simply :
तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.