शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday, 8 March 2017

श्री साईं लीलाएं - महामारी से अनूठा बचाव

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. ऊदी का एक और चमत्कार

श्री साईं लीलाएं


महामारी से अनूठा बचाव

एक समय साईं बाबा ने लगभग दो सप्ताह से खाना-पीना छोड़ दिया था| लोग उनसे कारण पूछते तो वह केवल अपनी दायें हाथ की तर्जनी अंगुली उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें फैलाकर आकाश की ओर देखने लगते थे| लोग उनके इस संकेत का अर्थ समझने की कोशिश करते लेकिन इसका अर्थ उनकी समझ में नहीं आता था|
बस कभी-कभी उनके कांपते होठों से इतना ही निकलता - "महाकाल का मुख अब खुल चुका है| सब कुछ उसके मुख में समा जायेगा| कोई भी नहीं बचेगा| एक-एक करके सब चले जायेंगे|"

साईं बाबा के मुख से निकलते इन शब्दों को सुनकर लोग मारे भय के बुरी तरह से कांप उठते
| वे बाबा से पूछते, लेकिन वह मौन हो जाते| उनकी कांपती हुई अंगुली आकाश की ओर उठती और वह लंबी सांस लेकर फटी-फटी आँखों से आकाश की ओर बस देखते रह जाया करते थे| गांव का वातावरण सहमासहमा-सा रहने लगा था| प्रत्येक बृहस्पतिवार को साईं बाबा की शोभायात्रा बड़ी धूमधाम से निकलती थी, लेकिन न जाने क्यों लोगों के मन किसी अनिष्ट की आशंका से आशंकित हो उठे थे|

बाबा की इन बातों को सुनकर यदि किसी को सबसे ज्यादा खुशी हुई तो वह पंडितजी थे
| वह इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि साईं बाबा जो कुछ भी कहते हैं, वह सच ही होता है|

उनकी भविष्यवाणी झूठी नहीं हो सकती
| भविष्य में होने वाली घटनाओं को वे शायद पहले ही जान लेते थे| अकाल, बाढ़, महामारी ऐसी दैवी आपदाएं हैं, जो गांव-के गांव पूरी तरह से बर्बाद करके रख देती है|

इनका कोई इलाज नहीं है
| गांव के सब लोग गांव छोड़कर चले जाते हैं| शायद ऐसा ही कोई संकट शिरडी में आने वाला है| पंडितजी यह सोच-सोचकर मन में बहुत खुश थे कि यदि महामारी फैली तो लोग उनके पास ही अपना इलाज कराने के लिए आयेंगे, जिससे उनको अच्छी-खासी कमाई होगी, जबकि सारा गांव अनिष्ठ की आशंका चिंताग्रस्त था|

वर्षा ऋतु समाप्त हो चुकी थी
| बाढ़ आने की कोई संभावना न थी| अच्छी बारिश होने के कारण खेतों में फसलें भी अच्छी हुई थीं| अकाल पड़ने की भी संभावना नहीं थी| यदि कोई आपदा आ सकती थी, तो वह थी महामारी| यदि महामारी फैली तो पंडितजी का भाग्य खुल जाएगा| जब से साईं बाबा शिरडी में आए थे, पंडितजी की आमदनी तो खत्म-सी ही हो गयी थी| साईं बाबा की धूनी की भभूती असाध्य से असाध्य रोगों का समूल ही नाश कर देती थी| इसी वजह से पंडितजी के पास रोगियों ने आना बिल्कुल ही बंद-सा कर दिया था|

फिर मंदिर में भी पूजा करने वालों की संख्या भी दिन-प्रतिदिन कम होती चली जा रही थी
| केवल पांच-सात ही लोग ही ऐसे बचे थे, जो पूजा करने के लिए सुबह-शाम मंदिर आया करते थे| इसके अलावा शाम के समय प्रसाद के लालच में कुछ बच्चे भी मंदिर में इकट्ठे हो जाया करते थे| इस तरह मंदिर से होने वाली आमदनी भी नाममात्र की ही रह गयी थी| पुरोहिताई का धंधा भी बस ले-देकर ही चल रहा था|

साईं बाबा के प्रवचनों को सुनकर लोगों में कथा सुनने की रुचि भी जाती रही
| वर्षा भी समय पर होती थी| इसलिए समय पर वर्षा कराने के बहाने से प्रत्येक वर्ष होने वाला यज्ञ भी होना अब बंद हो गया था| भूत-प्रेत, ब्रह्मराक्षस तो जैसे बाबा के गांव में कदम रखते ही गांव से पलायन कर गये था| गांव में अब किसी भी तरह का उत्पात नहीं होता था| प्रत्येक घर में सुख-शांति बा बसेरा था ! आपस के लड़ाई-झगड़े भी अब होने बंद हो चुके थे| पंडितजी को जैसे कुछ काम ही नहीं मिल रहा था| वह सारे दिन अपने घर में बेकार ही पड़े रहते थे|

घर में पड़े-पड़े पंडितजी बहुत दु:खी हो गये थे
| उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी होने लगी थी|

साईं बाबा बराबर चिंता में डूबे रहते थे
| एकटक आकाश की ओर देखते रहते थे, किसी से कुछ भी न बोलते थे| तभी आस-पास के बीस कोस के इलाके में हैजे की महामारी फैलने की खबर से शिरडी गांव में कोहराम मच गया| हैजे की महामारी से लोग मरने लगे|

पहले कुछ उल्टियां होतीं
, दस्त होते और लोग मौत के मुंह में समा जाते|जब तक लोग रोग को समझ पाते, रोगी बिना दवा-दारू के ही भगवान के पास पहुंच जाता था|

पंडितजी की सारी भाग-दौड़ व्यर्थ चली जाती थी
|

आस-पास के गांवों में हैजा फैलने की खबर सुनकर शिरडी के लोग भी अत्यंत चिंतित हो उठे
|

वह सब इकट्ठा होकर साईं बाबा के पास पहुंचे
|

"बाबा...बाबा ! आस-पास के गांवों में हैजा तेजी से पैर पसारता जा रहा है
| अब तो वह हमारे गांव की सीमा की ओर भी बढ़ता आ रहा है| कहीं ऐसा न हो कि हमारा गांव भी इस महामारी की लपेट में आ जाए|" शिष्यों ने डरते-डरते साईं बाबा से कहा|

साईं बाबा कई सप्ताह से मौन थे
| उन्होंने खाना-पीना छोड़ रखा था| सारे शिष्य और वाईजा माँ उनसे मिन्नतें करके हार गये थे, लेकिन न तो बाबा ने खाना ही खाया और न ही किसी से कोई बातचीत ही की थी|

लोगों की इस पुकार को सुनकर साईं बाबा ने एक गहरी ठंडी सांस छोड़ी और फिर आकाश की ओर पूर्ववत् की भांति देखने लगे
| मस्जिद में उपस्थित लोग भी उन लोगों के साथ साईं बाबा के चेहरे को देखने लगे कि शायद बाबा इस महामारी से बचने का कोई उपाय बतायेंगे|

साईं बाबा का चेहरा एकदम गंभीर पड़ गया
| चिंता की लकीर उनके सलोने मुख पर स्पष्ट रूप से नजर आ रही थीं| ऐसा लगता था कि जैसे बाबा स्वयं किसी गहरी चिंता में हैं| कुछ कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं| अचानक साईं बाबा ने अपनी आँखें मूंद लीं और बोले - "तुम लोग कल सुबह आना| मैं सब बताऊंगा|" कहकर बाबा शांत हो गये| सब लोग बाबा की बात सुनकर चुपचाप उठकर अपने-अपने घरों को चले गए|

अगले दिन पौ फटते ही सब लोग द्वारिकामाई मस्जिद जा पहुंचे
| देखा मस्जिद के दालान में बैठे हुए साईं बाबा चक्की में जौ पीस रहे थे और जौ का आटा चक्की के चोरों तरफ फैला हुआ था|

सब लोग चुपचाप खड़े साईं बाबा को जौ पिसते हुए देखते रहे
| लेकिन साईं बाबा पूरी लगन के साथ जौ पीसे जा रहे थे| किसी की हिम्मत न हो रही थी कि वह उनसे कुछ पूछने का साहस जुटा सकें|

कुछ देर बाद एक भक्त से साहस जुटाया और आगे बढ़कर पूछा - "बाबा! आप यह क्या कर रहे हैं 
?"

"महामारी को भगाने की दवा बना रहा हूं
|"

"यह दवा है 
?"

बाबा ने कहा - "हां
, यह दवा ही है| इस आटे को एक कपड़े में भरकर ले जाओ और गांव की सीमा में चारों ओर जहां-जहां तक महामारी फैली हो इस दवा को छिड़क आओ| परमात्मा ने चाहा तो इस गांव की सीमा में हैजे की महामारी प्रवेश न कर पायेगी|"

तब शिष्यों ने एक झोली में सारा आटा भर लिया और साईं बाबा की जय-जयकार करते हुए गांव की सीमा की ओर चल पड़े
| दोपहर तक गांव के चारों ओर सीमा पर आटे से लकीर-सी बना दी गयी| इस प्रकार साईं बाबा द्वारा पीसे गये आटे से सारा गांव बांध दिया गया|

साईं बाबा की इस बात पर पंडितजी को विश्वास न हो पा रहा था कि हैजे जैसी महामारी का प्रकोप इस तरह से रुक सकता है
| हैजे का प्रकोप आस-पास के गांवों में बड़ी तेजी के साथ बढ़ता जा रहा था| दस-पांच आदमी रोजाना मौत के मुंह के समाते चले जा रहे थे| चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था|साईं बाबा की इस अनोखी दवा का समाचार आस-पास के गांवों तक भी पहुंच गया| लोग दवा मांगने के लिए द्वारिकामाई मस्जिद आने लगे|

"बाबा
, हमारे गांव में भी हैजा फैला है| हमारे ऊपर दया करके हमें भी दवा देने की कृपा करें|"

और भी लोग साईं बाबा के पास पहुंचकर बड़े ही दयनीय स्वर में कहने लगे - "हमें भी दवा दे दो बाबा ! हम पर भी अपनी दया करो
| हमारा तो सारा गांव श्मशान बन गया है|"

"अरे
, तुम लोग इतना परेशान क्यों हो रहे हो ? जितनी दवा है, आपस में बांटकर ले जाओ और गांव के प्रत्येक घर में छिड़क दो| जो बीमार होगा ठीक हो जाएगा और यह महामारी तुम्हारे गांव से भी भाग जायेगी|" बाबा ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा|

आस-पास के गांवों के लोग बाकी बची हुई दवा को बांटकर ले गए
| साईं बाबा की चक्की की घर्र-घर्र की आवाज फिर मस्जिद के गुम्बदों और मीनारों को गुंजायमान करने लगी| दूर-दूर के गांवों में पहुंच जाती, वहां हैजे की बीमारी का नामोनिशान ही मिट जाता| बीमार इस तरह से उठकर खड़े हो जाते, मानो वह बीमार पड़े ही नहीं हों| दवा एकदम रामबाण के समान अपना काम कर रही थी| महामारी गधे के सींग की तरह गायब होती जा रही थी|

साईं बाबा की दवा की कृपा से सैंकड़ों घर उजड़ने से बच गये
| हर तरफ बस साईं बाबा की जय-जयकार के स्वर ही सुनाई पड़ रहे थे|

साईं बाबा की कृपा से सबसे अधिक नुकसान यदि किसी का हुआ तो वह थे पंडितजी ! उनको कोई भी नहीं पूछ रहा था
| महामारी फैली पर उनके दवाखाने में एक भी आदमी दवा लेने तक न आया| पंडितजी साईं बाबा से बड़ी बुरी तरह से जले-भुने बैठे थे| साईं बाबा उन्हें गांव में ऐसे खटक रहे थे जैसे आँख में तिनका|

पंडितजी दिन-रात इसी चिंता में घुले जा रहे थे कि किस तरह से साईं बाबा को नीचा दिखाकर
, यहां शिरडी से निकाल भगाया जाये| वह अपने मन में बराबर उनके लिए नयी-नयी योजनाएं बना रहे थे, पर उनकी सारी योजनाएं अमल में लाने पर असफल होकर रह जाती थीं|

परसों चर्चा करेंगे... मिस्टर थॉमस नतमस्तक हुए

ॐ सांई राम

===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.