ॐ सांई राम
संकटहरण श्री साईं
शाम का समय था| उस समय रावजी के दरवाजे पर धूमधाम थी| सारा घर तोरन और बंदनवारों से खूब अच्छी तरह से सजा हुआ था| बारात का स्वागत करने के लिए उनके दरवाजे पर सगे-संबंधी और गांव के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित थे| आज रावजी की बेटी का विवाह था| बारात आने ही वाली थी|
कुछ देर बाद ढोल-बाजों की आवाज सुनायी देने लगी, जो बारात के आगमन की सूचक थी|
"बारात आ गई|" भीड़ में शोर मचा|
थोड़ी देर बाद बारात रावजी के दरवाजे पर आ गयी| रावजी ने सगे-सम्बंधियों और सहयोगियों के साथ बारात का गर्मजोशी से स्वागत किया| बारातियों का पान, फूल, इत्र, मालाओं आदि से स्वागत-सत्कार किया गया| फिर बारातियों को भोजन कराया गया| सभी ने रावजी के स्वागत और भोजन की प्रशंसा की| फेरे पड़ने का समय हो गया|
"वर को भांवरों के लिए भेजिये|" वर के पिता से रावजी ने निवेदन किया|
"वर भेज दूं ! पहले, दहेज दिखाओ| भाँवरें तो दहेज के बाद ही पड़ेंगी|" वर के पिता ने कहा|
रावजी बोले - " तो फिर चलिये| पहले दहेज देख लीजिए|" रावजी के सगे-सम्बंधियों ने वर के पिता की बात को मान लिया| वर का पिता अपने सगे-सम्बंधियों के साथ रावजी के आँगन में आया| आँगन में एक ओर चारपाइयों पर दहेज में दी जाने वाली समस्त चीजें रखी हुई थीं|
वर के पिता ने एक-एक करके दहेज की सारी चीजें देखीं| फिर नाक-भौंह सिकोड़कर बोला - "बस, यही है दहेज| ऐसा दहेज तो हमारे यहां नाई, कहारों जैसी छोटी जाति वालों की लड़कों की शादी में आता है|रावजी, आप दहेज दे रहे हैं या मेरे और अपने रिश्तेदारों तथा गांव वालों के बीच मेरी बेइज्जती कर रहे हो| मैं यह शादी कभी नहीं रोने दूंगा|"
रावजी के पैरों तले से धरती खिसक गयी| उन्हें ऐसा लगा जैसे आकाश टूटकर उनके सिर पर आ गिरा हो| यदि लड़की की शादी नहीं हुई और बारात दरवाजे से लौट गयी तो वह समाज में किसी को भी मुंह न दिखा सकेंगे| लड़की के लिए दूसरा दूल्हा मिलना असंभव हो जाएगा| कोई भी इस बात को मानने के लिए तैयार न होगा कि दहेज का लालची दूल्हे का पिता दहेज के लालच में बारात वापस ले गया| सब यही कहेंगे कि लड़की में ही कोई कमी थी, तभी तो बारात आकर दरवाजे से लौट गयी|
रावजी ने वर के पिता के पैर पकड़ लिये और अपनी पगड़ी उतारकर उसके पैरों पर डालकर गिड़गिड़ाते हुए बोले - "मुझ पर दया कीजिए समधी जी ! यदि आप बारात वापस ले गए तो मैं जीते-जी मर जाऊंगा| मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो जायेगी| वह जीते-जी मर जायेगी| मैं बहुत गरीब आदमी हूं| जो कुछ भी दहेज अपनी हैसियत के मुताबिक जुटा सकता था, वह मैंने जुटाया है| यदि कुछ कमी रह गयी है तो मैं उसे पूरा कर दूंगा| पर, इसके लिए मुझे थोड़ा-सा समय दीजिए|"
वर के पिता ने गुस्से में भरकर कहा - "यदि दहेज देने की हैसियत नहीं थी तो अपनी बेटी की शादी किसी भिखमंगे के साथ कर देते| मेरा ही लड़का मिला था बेवकूफ बनाने को| अभी बिगड़ा ही क्या है| बेटी अभी अपने बाप के घर है| मिल ही जायेगा कोई न कोई भिखमंगा|"
उस अहंकारी और दहेज के लोभी ने रावजी की पगड़ी उछाल दी और बारातियों से बोला - "चलो, मुझे नहीं करनी अपने बेटे की शादी ऐसी लड़की से जिसका बाप दहेज तक भी न जुटा सके|"
रावजी ने उसकी बड़ी मिन्नतें कीं, पर वह दुष्ट न माना और बारात वापस चली गयी|
बारात के वापस जाने से रावजी बड़ी बुरी तरह से टूट गये| वह दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर रह गये| उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया| अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोच-सोचकर वह बुरी तरह से परेशान हो गये| वह गांव शिरडी से थोड़ी ही दूर था|
रावजी की आँखों से आँसू रुकने का नाम ही न ले रहे थे| सारे गांव की सहानुभूति उनके साथ थी, पर रावजी का मन बड़ा व्याकुल था| बारात वापस लौट जाने के कारण वह पूरी तरह से टूट गये थे| वह खोये-खोये उदास-से रहने लगे थे|
बारात को वापस लौटे कई दिन बीत गए थे|
उन्होंने घर से निकलना बिल्कुल बंद कर दिया था| वह सारे दिन घर में ही पड़े रहते और अपनी बेवसी पर आँसू बहाते रहते थे| इस घटना का समाचार साईं बाबा तक नहीं पहुंचा था| उनका गांव शिरडी से थोड़ी ही दूरी पर था| रोजाना ही उस गांव के लोग शिरडी आते-जाते थे| बारात का बिना दुल्हन के वापस लौट जाना कोई मामूली बात न थी| यह घटना सर्वत्र चर्चा का विषय बन गयी थी|
आखिर एक दिन यह बात साईं बाबा तक भी पहुंच ही गयी|
"रावजी इस अपमान से बहुत दु:खी हैं| कहीं आत्महत्या न कर बैठें|" साईं बाबा को समाचार सुनाने के बाद रावजी का पड़ोसी चिंतित हो उठा|
एकाएक साईं बाबा के शांत चेहने पर तनाव पैदा हो गया| उनकी करुणामयी आँखें दहकते अंगारों में परिवर्तित हो गयी| क्रोध की अधिकता से उनका शरीर कांपने लगा| उनका यह शारीरिक परिवर्तन देखकर वहां उपस्थित शिष्य वह भक्तजन किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गए| साईं बाबा के शिष्य और भक्त उनका यह रूप पहली बार देख रहे थे|
अगले दिन रावजी के समधी के गांव का एक व्यक्ति रावजी के पास आया| वह साईं बाबा का भक्त था|
"रावजी, भगवान के घर देर तो है, पर अंधेर नहीं| तुम्हारे समधी ने जिस पैर से तुम्हारी पगड़ी को ठोकर मारकर उछाला था, उसके उसी पैर को लकवा मार गया है| उसके शरीर का दायां भाग लकवाग्रस्त हो गया है|"
यह सुनकर रावजी ने दु:खी स्वर में कहा -
"कितना कड़ा दंड मिला है उन्हें| मौका मिलते ही उन्हें एक-दो दिन में देखने जाऊंगा|"
रावजी को मिला यह समाचार एकदम ठीक था| रावजी के समधी की हालात बहुत खराब थी| उनके आधे शरीर को लकवा मार गया था| वह मरणासन्न-सा हो गया| उसका जीना-न-जीना एक बराबर हो गया| लाला का आधा दायां शरीर लकवे से बेकार हो गया था| वह अपने बिस्तर पर पड़े आँसू बहाते रहते| उनके इलाज पर रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा था, पर रोग कम होने की जगह दिन-प्रतिदिन बिगड़ता ही जा रहा था|
उनके एक रिश्तेदार ने कहा - "लालाजी ! आप साईं बाबा के पास जाकर उनकी धूनी की भभूति क्यों नहीं मांग लेते, बैलगाड़ी में लेटे-लेटे चले जाइए| बाबा की धूनी की भभूति से तो असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं|"
लाला इस बात को पहले भी कई व्यक्तियों से सुन चुके थे कि बाबा कि भभूति से हजारों रोगियों को नया जीवन मिल चुका है| भभूति लगाते ही रोग छूमंतर हो जाते हैं|
अगले दिन लाला के लड़के ने बैलगाड़ी जुतवाई और उसमें मोटे-मोटे गद्दे बिछाकर उन्हें आराम से लिटा दिया| लाला की बैलगाड़ी शिरडी में द्वारिकामाई मस्जिद के सामने आकर रुक गयी|
लड़के ने अपने साथ आये आदमियों की सहायता से लाला को बैलगाड़ी से नीचे उतारा और गोदी में उठाकर मस्जिद की ओर चल दिया|
साईं बाबा सामने ही चबूतरे पर बैठे हुए थे| लाला को देखते ही वे एकदम से आगबबूला हो उठे और अत्यंत क्रोध से कांपते स्वर में बोले - "खबरदार लाला ! जो मस्जिद के अंदर पैर रखा| तेरे जैसे पापियों का यहां कोई काम नहीं है| तुरंत चला जा, वरना सर्वनाश कर दूंगा|"
दहशत के मारे लाला थर-थर कांपने लगा| उनकी आँखों से आँसू बहने लगे| बेटे ने उन्हें वापस लाकर बैलगाड़ी में लिटा दिया|
"पता नहीं साईं बाबा आपसे क्यों इस तरह से नाराज हैं पिताजी !"वकील और फिर कुछ सोचकर बोला - "पिताजी साईं बाबा ने आपको मस्जिद में आने से रोका है| मुझे तो नहीं रोका, मैं चला जाता हूं|"
"ठीक है| तुम चले जाओ बेटा|" लाला ने दोनों हाथों से अपने आँसू पोंछते हुए कहा, लेकिन उसे आशा न थी|
लाला का बेटा मस्जिद के अंदर पहुंचा| साईं बाबा के चरण स्पर्श करके एक और बैठ गया|
साईं बाबा बोले - "तुम्हारे बाप के रोग का कारण दुष्कर्मों का फल है| उसने अपने जीवन भर उचित-अनुचित तरीके और बेईमानी करके पैसा इकट्ठा किया है| वह पैसे के लिए कुछ भी कर सकता है| ऐसे लोभी, लालची और बेईमानों के लिए मेरे यहां कोई जगह नहीं है - और बेटे, एक बात और याद रखो, जो संतान चोरी और बेईमानी का अन्न खाती है, अपने पिता की चोरी और बेईमानी का विरोध नहीं करती है, उसे भी अपने पिता के बुरे-कर्मों, पापों दण्ड भोगना पड़ता है|"
लाला का बेटा चुपचाप सिर झुकाये अपने पिता के कर्मों के बारे में सुनता रहा|
"तुम मेरे पास आए हो, इसलिए मैं तुम्हें भभूति दिए देता हूं| इसे अपने लोभी-लालची पिता को खिला देना| यदि वह ठीक हो जाए तो उसे लेकर चले आना|"
बेटे ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और फिर दर्शन करने का वायदा करके चला गया|
साईं बाबा की भभूति ने अपना चमत्कारी प्रभाव कर दिखाया| चार-पांच दिन में लाला बिल्कुल ठीक हो गया| उसके लकवा पीड़ित अंग पहले की ही तरह काम करने लगे|
"साईं बाबा ने कहा था कि यदि आप ठीक हो जाएं तो आप उनके पास अवश्य जायें|" लाला ने बेटे ने अपने पिता ने कहा|
"मैं वहां जाकर क्या करूंगा बेटे ! अब तो बीमारी का नामो-निशान भी बाकी न रहा| फिर बेकार में ही इतनी दूर क्यों जाऊं?"
"लेकिन साईं बाबा ने कहा था कि यदि आप उनके पास नहीं गये तो आपका रोग फिर बढ़ जाएगा और आपकी दशा और ज्यादा खराब हो जाएगी|" बेटे ने समझाते हुए कहा|
वह शिरडी जाना नहीं चाहता था| उसका मतलब निकल गया था| फिर भी बेटे के समझाते पर वह तैयार हो गया| बृहस्पतिवार का दिन था| शिरडी में प्रत्येक बृहस्पतिवार उत्सव के रूप में मनाया जाता था| जब लाला शिरडी पहुंच तो आस-पास सैंकड़ों आदमियों की भीड़ जमा थी| भीड़ को देखकर लाला देखकर लाला परेशान हो गया| उस भीड़ में ज्यादातर दीन-दु:खी लोग थे| उन लोगों के साथ जुलूम में शामिल होना लाला को अच्छा न लगा|वह अपनी बैलगाड़ी में ही बैठा रहा| केवल बेटे ने ही शोभायात्रा में हिस्सा लिया और पूरी श्रद्धा के साथ प्रसाद भी ग्रहण किया|
जब भीड़ कुछ छंट गयी तो, उसने साईं बाबा के चरण स्पर्श किये|
बाबा ने उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरकर उसे आशीर्वाद दिया| फिर एक चुटकी भभूति देकर बोले - "अपने पिता को तीन दिन दे देगा| बचा-खुचा रोग भी नष्ट हो जाएगा|"
बेटे ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और चला गया|
साईं बाबा की भभूति के प्रभाव से तीन दिन के अंदर ही लाला को ऐसा अनुभव होने लगा, जैसे उसे नया जीवन प्राप्त हो गया हो| पिता की बीमारी के कारण बेटा उनका व्यापार देखने लगा था| लाला के बेटे को व्यापार का कोई अनुभव न था, फिर भी बराबर लाभ हो रहा था| लाला यह देखकर बहुत हैरान थे| उन्हें यह सब कुछ एक चमत्कार जैसा लगा रहा था|
एक दिन लाला ने अपने बेटे से कहा - "एक बात समझ में नहीं आ रही बेटे ! तुम्हें व्यापर का कोई अनुभव नहीं था| डर लगता था कि तुम जैसे अनुभवहीन को व्यापार सौंपकर मैंने कोई गलती तो नहीं की है| लेकिन में देख रहा हूं कि तुम जो भी सौदा करते हो, उसमें बहुत लाभ होता है|"
"यह सब साईं बाबा के आशीर्वाद का ही फल है पिताजी ! उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया| साईं बाबा तो साक्षात् भगवान के अवतार हैं|" बेटे ने कहा|
"तुम बिल्कुल ठीक कहते हो बेटा ! मुझे व्यापार करते हुए तीस वर्ष बीत चुके हैं| मुझे आज तक व्यापार में कभी इतना ज्यादा लाभ नहीं हुआ, जितना आजकल हो रहा है| वास्तव में साईं बाबा भगवान के अवतार हैं|" अब लाला के मन में भी साईं बाबा के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो रही थी|
दूसरे दिन साईं बाबा की तस्वीरें लेकर एक फेरीवाला गली में आया| लाला ने उसे बुलाकर पूछा - "ये कैसी तस्वीरें बेच रहे हो?"
"लालाजी, मेरे पास तो केवल शिरडी के साईं बाबा की ही तस्वीरें हैं| मैं उनके अलावा किसी और की तस्वीरें नहीं बेचता हूं|" तस्वीर बेचने वाले ने कहा|
कुछ देर तक तो लाला सोचते रहे| उन्होंने सोचा, साईं बाबा की भभूति से ही मेरा रोग दूर हुआ है| उन्हीं के आशीर्वाद से मेरा बेटा व्यापार में बहुत लाभ कमा रहा है| यदि एक तस्वीर ले लूं, तो कोई नुकसान नहीं होगा| लाला ने एक तस्वीर पसंद करके ले ली|
कुछ देर पहले ही दुकान का मुनीम पिछले दिन की रोकड़ लाला को दे गया था| वह अपने पलंग पर रुपये फैलाए उन्हें गिन रहे थे| लाला ने उन ढेरियों की ओर संकेत करके कहा - "लो भई, तुम्हारी तस्वीर के जो भी दाम हों, इनमें से उठा लो|" पर तस्वीर बेचने वाले ने चांदी का केवल एक छोटा-सा सिक्का उठाया|
"बस इतने ही पैसे ! ये तो बहुत कम हैं और ले लो|" लाला ने बड़ी उदारता के साथ कहा|
तस्वीर बेचने वाले ने कहा - "नहीं सेठ ! बाबा कहते हैं कि लालच इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है| मैं लालची नहीं हूं| मैंने तो उचित दाम ले लिए| यह लालच तो आप जैसे सेठ लोगों को ही शोभा देता है|"
उसकी बात सुनकर लाला को ऐसा लगा कि जैसे उस तस्वीर बेचने वाले ने उनके मुंह पर एक करारा थप्पड़ जड़ दिया हो| उन्होंने अपनी झेंप मिटाने के लिए कहा - "बहुत दूर से आ रहे हो| कम-से-कम पानी तो पी ही लो|"
"नहीं, मुझे प्यास नहीं है सेठजी !"
ठीक तभी लाला का बेटा वहां आ गया| उसने साईं बाबा की तस्वीर देखी, उसे बहुत प्रसन्नता हुई| उसने तस्वीर बेचने वाले की ओर देखकर कहा - "भाई, हमारे घर में साईं बाबा की कोई तस्वीर नहीं थी| मैं बहुत दिनों से उनकी तस्वीर खरीदने की सोच रहा था| यहां किसी भी दुकानदार के पास बाबा की तस्वीर नहीं थी|"
"चलिए, आज आपकी इच्छा पूरी हो गयी|" तस्वीर बेचने वाला हँसकर बोला|
"इस खुशी में आप जलपान कीजिए|" लाला ने बेटे ने प्रसन्नताभरे स्वर में कहा - "साईं बाबा की कृपा से ही मेरे पिताजी का रोग समाप्त हुआ है| व्यापार में भी दिन दूना-रात चौगुना लाभ हो रहा है|"
"यदि आपकी ऐसी इच्छा है तो मैं जलपान अवश्य करूंगा|" तस्वीर बेचने वाले ने कहा|
लाला अपने मन में सोचने लगा कि तस्वीर बेचने वाला भी बड़ा अजीब आदमी है| पहले लालच की बात कहकर मेरा अपमान किया| फिर जब मैंने पानी पीने के लिये कहा, तो पानी पीने से इंकार कर फिर से मेरा अपमान किया| मेरे बेटे के कहने पर पानी तो क्या जलपान करने के लिए तुरंत तैयार हो गया|
तस्वीर वाले ने जलपान किया और अपनी गठरी उठाकर चला गया|
उधर कई दिन के बाद रावजी ने सोचा कि शिरडी जाकर साईं बाबा के दर्शन कर आएं| उनके दर्शन से मन का दुःख कुछ कम हो जाएगा| यही सोचकर वह अगले दिन पौ फटके ही शिरडी के लिए चल दिया|
शिरडी पास ही था| राव आधे घंटे में ही शिरडी पहुंच गया| अपमान की पीड़ा, चिंता से राव की हालात ऐसी हो गयी थी, जैसे वह महीनों से बीमार है| उनका चेहरा पीला पड़ गया था| मन की पीड़ा चेहरे पर स्पष्ट नजर आती थी|
"मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं राव !" साईं बाबा ने अपने चरणों पर झुके हुए राव को उठाकर बड़े प्यार से उसके आँसू पोंछते हुए कहा - "तुम तो ज्ञानी पुरुष हो| यह क्यों भूल गए कि दुःख-सुख, मान-अपमान का सामना मनुष्य को कब करना पड़ जाए, यह कोई नहीं जानता|"
राव ने कोई उत्तर नहीं दिया| वह बड़बड़ायी आँखों से बस साईं बाबा की ओर देखता रहा|
"जो ज्ञानी होते हैं वे दुःख आने पर न तो आँसू बहाते हैं और न सुख आने पर खुशी से पागल होते हैं|" - साईं बाबा ने कहा - "यदि हम किसी को दुःख देंगे, तो भगवान हमें अवश्य दुःख देगा| यदि हम किसी का अपमान करेंगे तो हमें भी अपमान सहन करना पड़ेगा, यही भगवान का नियम है| इसी नियम से ही यह संसार चल रहा है|"
"नहीं, मुझे भगवान के न्याय से कोई शिकायत नहीं है|" रावजी ने आँसू पोंछते हुए कहा|
"सुनो राव, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमें अपने पूर्वजन्म के किसी अपराध का दण्ड इस जन्म में भी भोगना पड़ता है| कभी-कभी पिछले जन्मों का पुण्य हमारे इस जन्म में भी काम आ जाता है और हम संकट में पड़ जाने से बच जाते हैं| जो दुःख तुम्हें मिला है, वह शायद तुम्हें तुम्हारे पूर्वजन्म के किसी अपराध के कारण मिला हो|"
"हां ! ऐसा हो सकता है बाबा !"
"और राव, यह भी तो हो सकता है कि इस अपमान के पीछे कोई अच्छी बात छिपी हुई हो| बिना सोचे-विचारे भाग्य को दोष देने से क्या लाभ !"
"मुझसे भूल हो गयी बाबा ! दुःख और अपमान की पीड़ा ने मेरा ज्ञान मुझसे छीन लिया था| आपने मुझे मेरा खोया हुआ ज्ञान लौटा दिया है|" राव ने प्रसन्नताभरे स्वर में कहा|
"तुम किसी बात की चिंता मत करो रावजी ! भगवान पर भरोसा रखो| वह जो कुछ भी करते हैं, हमारे भले के लिए ही करते हैं| तुम अगले बृहस्पतिवार को बिटिया को लेकर मेरे पास आना| भगवान चाहेंगे तो तुम्हारा भला ही होगा|" साईं बाबा ने कहा|
रावजी ने साईं बाबा के चरण हुए और उनका आशीर्वाद लेकर वापस अपने गांव लौट गया|
राव जब अपने गांव की ओर लौट रहा था, उसे तो अपना मन फूल की भांति हल्का महसूस हो रहा था| उसके मन का सारा बोझ हल्का हो चुका था|उधर तस्वीर वाले के चले जाने के बाद लाला बहुत देर तक किसी सोच में डूबा रहा| उसके चेहरे पर अनेक तरह के भाव आ-जा रहे थे| उसके मन में विचारों की आँधी चल रही थी| उसने अपना स्वभाव बदल दिया था| अब वह सुबह उठकर भगवान की पूजा करने लगा था| उसके पास जो कोई भी साधु-संन्यासी, अतिथि आता तो वह उसका यथासंभव स्वागत-सत्कार करता| वह जिस चीज की मांग करता, वह उसे पूरी करता| उसने साधारण कपड़े पहनना शुरू कर दिये थे| अकारण क्रोध करना भी छोड़ दिया था|
लाला अक्सर अपने बेटे को समझता - "बेटा, जिस व्यापार में ईमानदारी और सच्चाई होती है, उसी में सुख और शांति रहती है| झूठ और बेईमानी मनुष्य का चरित्र पतन कर देती है| उसे फल भी अवश्य ही भोगना पड़ता है, इसमें कोई संदेह नहीं है|"
"आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगा पिताजी !" - बेटे का जवाब था|
"हमें शिरडी चलना है|" - लालाजी ने एक दिन अपने बेटे को याद दिलाया|
"हां, मुझे याद है| हम साईं बाबा के दर्शन करने अवश्य चलेंगे|"
अचानक लाला का चेहरा उदास और फीका पड़ गया| वह बड़े दु:खभरे स्वर में बोला, मानो जैसे पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहा हो उसने कहा - "मैंने रावजी कि बेटी का तेरे साथ विवाह न करके बहुत बड़ा पाप किया है| रावजी बड़े ही नेक और सीधे-सादे आदमी हैं| वह भी साईं बाबा के भक्त हैं| बारात लौटाकर मैंने उनका बहुत बड़ा अपमान किया है|"
"जो कुछ बीत गया, अब उसके पीछे पश्चात्ताप करने से क्या लाभ पिताजी !" लड़के ने दु:खभरे स्वर में कहा - "अब आप यह सब भूल जाइए|"
"कैसे भूलूं बेटा ! मैं अब इस अपराध का प्रायश्चित करना चाहता हूं|"
लालाजी ने मन-ही-मन निश्चय कर लिया था कि राव की बेटी का विवाह अपने बेटे से कर, अपने पाप का प्रायश्चित अवश्य करेंगे| वह सबसे अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए भी क्षमा मांगने के बारे में सोच रहे थे| दिन बीतते गये|
बृहस्पतिवार का दिन आ गया|
लाला अपने बेटे के साथ मस्जिद के आँगन में पहुंचे, तो उनकी नजर राव पर पड़ी| राव भी उनकी ओर देखने लगे| अचानक लाला ने लपककर राव के पैर पकड़ लिये|
"अरे, अरे आप यह क्या कर रहे हैं सेठजी ! मेरे पांव छूकर मुझे पाप का भागी मत बनाइए|" - राव लाला के इस व्यवहार पर हैरान रह गये थे|
"नहीं रावजी, जब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे, मैं आपके पैर नहीं छोड़ूंगा|" लाला ने रुंधे गले से कहा - "जब से मैंने आपका अपमान किया है, तब से मेरा मन रात-दिन पश्चात्ताप की अग्नि में जलता रहता है| जब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे, मैं पैर नहीं छोड़ूंगा|"
तभी एक व्यक्ति बोला - "साईं बाबा आपको याद कर रहे हैं|"
वह दोनों साईं बाबा के पास गये| लाला ने साईं बाबा से अपने मन की बात कही|
लाला का हृदय परिवर्तन देखकर साईं बाबा प्रसन्न हो गये| फिर उन्होंने पूछा - "सेठजी, आप का रोग तो दूर हो गया है न?"
"हां बाबा ! आपकी कृपा से मेरा रोग दूर हो गया, लेकिन मुझे सेठजी मत कहिये|"
"तुम्हारे विचार सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई| एक मामूली-सी बीमारी ने तुम्हारे विचार बदल दिए| किसी भी पाप का दंड यही है, अपने पाप को स्वीकार कर प्रायश्चित्त करना| यह धन-दौलत तो बेकार की चीज है| आज है कल नहीं| इससे मोह करना बुद्धिमानी नहीं है|"
फिर तभी बाबा ने अपना हाथ हवा में लहराया| वहां उपस्थित सभी लोगों ने देखा, उनके हाथ में दो सुंदर व मूल्यवान हार आ गये थे|
"उठो सेठ, एक हार अपने बेटे को और दूसरा हार लक्ष्मी बेटी को दे दो| ये एक-दूसरे को पहना दें|" बाबा ने कहा|
लाला ने एक हार अपने बेटे को और दूसरा रावजी की बेटी का दे दिया| दोनों ने हार एक-दूसरे को पहनाये और फिर साईं बाबा के चरणों में झुक गये|
"तुम दोनों का कल्याण हो| जीवनभर सुखी रहो|" - साईं बाबा न आशीर्वाद दिया|
राव और लाला की आँखें छलक उठीं| उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा, फिर दोनों ने एक-दूसरे को बांहों में भर लिया| सब लोग यह दृश्य देखकर खुशी से साईं बाबा की जय-जयकार करने लगे|
शाम का समय था| उस समय रावजी के दरवाजे पर धूमधाम थी| सारा घर तोरन और बंदनवारों से खूब अच्छी तरह से सजा हुआ था| बारात का स्वागत करने के लिए उनके दरवाजे पर सगे-संबंधी और गांव के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित थे| आज रावजी की बेटी का विवाह था| बारात आने ही वाली थी|
कुछ देर बाद ढोल-बाजों की आवाज सुनायी देने लगी, जो बारात के आगमन की सूचक थी|
"बारात आ गई|" भीड़ में शोर मचा|
थोड़ी देर बाद बारात रावजी के दरवाजे पर आ गयी| रावजी ने सगे-सम्बंधियों और सहयोगियों के साथ बारात का गर्मजोशी से स्वागत किया| बारातियों का पान, फूल, इत्र, मालाओं आदि से स्वागत-सत्कार किया गया| फिर बारातियों को भोजन कराया गया| सभी ने रावजी के स्वागत और भोजन की प्रशंसा की| फेरे पड़ने का समय हो गया|
"वर को भांवरों के लिए भेजिये|" वर के पिता से रावजी ने निवेदन किया|
"वर भेज दूं ! पहले, दहेज दिखाओ| भाँवरें तो दहेज के बाद ही पड़ेंगी|" वर के पिता ने कहा|
रावजी बोले - " तो फिर चलिये| पहले दहेज देख लीजिए|" रावजी के सगे-सम्बंधियों ने वर के पिता की बात को मान लिया| वर का पिता अपने सगे-सम्बंधियों के साथ रावजी के आँगन में आया| आँगन में एक ओर चारपाइयों पर दहेज में दी जाने वाली समस्त चीजें रखी हुई थीं|
वर के पिता ने एक-एक करके दहेज की सारी चीजें देखीं| फिर नाक-भौंह सिकोड़कर बोला - "बस, यही है दहेज| ऐसा दहेज तो हमारे यहां नाई, कहारों जैसी छोटी जाति वालों की लड़कों की शादी में आता है|रावजी, आप दहेज दे रहे हैं या मेरे और अपने रिश्तेदारों तथा गांव वालों के बीच मेरी बेइज्जती कर रहे हो| मैं यह शादी कभी नहीं रोने दूंगा|"
रावजी के पैरों तले से धरती खिसक गयी| उन्हें ऐसा लगा जैसे आकाश टूटकर उनके सिर पर आ गिरा हो| यदि लड़की की शादी नहीं हुई और बारात दरवाजे से लौट गयी तो वह समाज में किसी को भी मुंह न दिखा सकेंगे| लड़की के लिए दूसरा दूल्हा मिलना असंभव हो जाएगा| कोई भी इस बात को मानने के लिए तैयार न होगा कि दहेज का लालची दूल्हे का पिता दहेज के लालच में बारात वापस ले गया| सब यही कहेंगे कि लड़की में ही कोई कमी थी, तभी तो बारात आकर दरवाजे से लौट गयी|
रावजी ने वर के पिता के पैर पकड़ लिये और अपनी पगड़ी उतारकर उसके पैरों पर डालकर गिड़गिड़ाते हुए बोले - "मुझ पर दया कीजिए समधी जी ! यदि आप बारात वापस ले गए तो मैं जीते-जी मर जाऊंगा| मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो जायेगी| वह जीते-जी मर जायेगी| मैं बहुत गरीब आदमी हूं| जो कुछ भी दहेज अपनी हैसियत के मुताबिक जुटा सकता था, वह मैंने जुटाया है| यदि कुछ कमी रह गयी है तो मैं उसे पूरा कर दूंगा| पर, इसके लिए मुझे थोड़ा-सा समय दीजिए|"
वर के पिता ने गुस्से में भरकर कहा - "यदि दहेज देने की हैसियत नहीं थी तो अपनी बेटी की शादी किसी भिखमंगे के साथ कर देते| मेरा ही लड़का मिला था बेवकूफ बनाने को| अभी बिगड़ा ही क्या है| बेटी अभी अपने बाप के घर है| मिल ही जायेगा कोई न कोई भिखमंगा|"
उस अहंकारी और दहेज के लोभी ने रावजी की पगड़ी उछाल दी और बारातियों से बोला - "चलो, मुझे नहीं करनी अपने बेटे की शादी ऐसी लड़की से जिसका बाप दहेज तक भी न जुटा सके|"
रावजी ने उसकी बड़ी मिन्नतें कीं, पर वह दुष्ट न माना और बारात वापस चली गयी|
बारात के वापस जाने से रावजी बड़ी बुरी तरह से टूट गये| वह दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर रह गये| उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया| अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोच-सोचकर वह बुरी तरह से परेशान हो गये| वह गांव शिरडी से थोड़ी ही दूर था|
रावजी की आँखों से आँसू रुकने का नाम ही न ले रहे थे| सारे गांव की सहानुभूति उनके साथ थी, पर रावजी का मन बड़ा व्याकुल था| बारात वापस लौट जाने के कारण वह पूरी तरह से टूट गये थे| वह खोये-खोये उदास-से रहने लगे थे|
बारात को वापस लौटे कई दिन बीत गए थे|
उन्होंने घर से निकलना बिल्कुल बंद कर दिया था| वह सारे दिन घर में ही पड़े रहते और अपनी बेवसी पर आँसू बहाते रहते थे| इस घटना का समाचार साईं बाबा तक नहीं पहुंचा था| उनका गांव शिरडी से थोड़ी ही दूरी पर था| रोजाना ही उस गांव के लोग शिरडी आते-जाते थे| बारात का बिना दुल्हन के वापस लौट जाना कोई मामूली बात न थी| यह घटना सर्वत्र चर्चा का विषय बन गयी थी|
आखिर एक दिन यह बात साईं बाबा तक भी पहुंच ही गयी|
"रावजी इस अपमान से बहुत दु:खी हैं| कहीं आत्महत्या न कर बैठें|" साईं बाबा को समाचार सुनाने के बाद रावजी का पड़ोसी चिंतित हो उठा|
एकाएक साईं बाबा के शांत चेहने पर तनाव पैदा हो गया| उनकी करुणामयी आँखें दहकते अंगारों में परिवर्तित हो गयी| क्रोध की अधिकता से उनका शरीर कांपने लगा| उनका यह शारीरिक परिवर्तन देखकर वहां उपस्थित शिष्य वह भक्तजन किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गए| साईं बाबा के शिष्य और भक्त उनका यह रूप पहली बार देख रहे थे|
अगले दिन रावजी के समधी के गांव का एक व्यक्ति रावजी के पास आया| वह साईं बाबा का भक्त था|
"रावजी, भगवान के घर देर तो है, पर अंधेर नहीं| तुम्हारे समधी ने जिस पैर से तुम्हारी पगड़ी को ठोकर मारकर उछाला था, उसके उसी पैर को लकवा मार गया है| उसके शरीर का दायां भाग लकवाग्रस्त हो गया है|"
यह सुनकर रावजी ने दु:खी स्वर में कहा -
"कितना कड़ा दंड मिला है उन्हें| मौका मिलते ही उन्हें एक-दो दिन में देखने जाऊंगा|"
रावजी को मिला यह समाचार एकदम ठीक था| रावजी के समधी की हालात बहुत खराब थी| उनके आधे शरीर को लकवा मार गया था| वह मरणासन्न-सा हो गया| उसका जीना-न-जीना एक बराबर हो गया| लाला का आधा दायां शरीर लकवे से बेकार हो गया था| वह अपने बिस्तर पर पड़े आँसू बहाते रहते| उनके इलाज पर रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा था, पर रोग कम होने की जगह दिन-प्रतिदिन बिगड़ता ही जा रहा था|
उनके एक रिश्तेदार ने कहा - "लालाजी ! आप साईं बाबा के पास जाकर उनकी धूनी की भभूति क्यों नहीं मांग लेते, बैलगाड़ी में लेटे-लेटे चले जाइए| बाबा की धूनी की भभूति से तो असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं|"
लाला इस बात को पहले भी कई व्यक्तियों से सुन चुके थे कि बाबा कि भभूति से हजारों रोगियों को नया जीवन मिल चुका है| भभूति लगाते ही रोग छूमंतर हो जाते हैं|
अगले दिन लाला के लड़के ने बैलगाड़ी जुतवाई और उसमें मोटे-मोटे गद्दे बिछाकर उन्हें आराम से लिटा दिया| लाला की बैलगाड़ी शिरडी में द्वारिकामाई मस्जिद के सामने आकर रुक गयी|
लड़के ने अपने साथ आये आदमियों की सहायता से लाला को बैलगाड़ी से नीचे उतारा और गोदी में उठाकर मस्जिद की ओर चल दिया|
साईं बाबा सामने ही चबूतरे पर बैठे हुए थे| लाला को देखते ही वे एकदम से आगबबूला हो उठे और अत्यंत क्रोध से कांपते स्वर में बोले - "खबरदार लाला ! जो मस्जिद के अंदर पैर रखा| तेरे जैसे पापियों का यहां कोई काम नहीं है| तुरंत चला जा, वरना सर्वनाश कर दूंगा|"
दहशत के मारे लाला थर-थर कांपने लगा| उनकी आँखों से आँसू बहने लगे| बेटे ने उन्हें वापस लाकर बैलगाड़ी में लिटा दिया|
"पता नहीं साईं बाबा आपसे क्यों इस तरह से नाराज हैं पिताजी !"वकील और फिर कुछ सोचकर बोला - "पिताजी साईं बाबा ने आपको मस्जिद में आने से रोका है| मुझे तो नहीं रोका, मैं चला जाता हूं|"
"ठीक है| तुम चले जाओ बेटा|" लाला ने दोनों हाथों से अपने आँसू पोंछते हुए कहा, लेकिन उसे आशा न थी|
लाला का बेटा मस्जिद के अंदर पहुंचा| साईं बाबा के चरण स्पर्श करके एक और बैठ गया|
साईं बाबा बोले - "तुम्हारे बाप के रोग का कारण दुष्कर्मों का फल है| उसने अपने जीवन भर उचित-अनुचित तरीके और बेईमानी करके पैसा इकट्ठा किया है| वह पैसे के लिए कुछ भी कर सकता है| ऐसे लोभी, लालची और बेईमानों के लिए मेरे यहां कोई जगह नहीं है - और बेटे, एक बात और याद रखो, जो संतान चोरी और बेईमानी का अन्न खाती है, अपने पिता की चोरी और बेईमानी का विरोध नहीं करती है, उसे भी अपने पिता के बुरे-कर्मों, पापों दण्ड भोगना पड़ता है|"
लाला का बेटा चुपचाप सिर झुकाये अपने पिता के कर्मों के बारे में सुनता रहा|
"तुम मेरे पास आए हो, इसलिए मैं तुम्हें भभूति दिए देता हूं| इसे अपने लोभी-लालची पिता को खिला देना| यदि वह ठीक हो जाए तो उसे लेकर चले आना|"
बेटे ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और फिर दर्शन करने का वायदा करके चला गया|
साईं बाबा की भभूति ने अपना चमत्कारी प्रभाव कर दिखाया| चार-पांच दिन में लाला बिल्कुल ठीक हो गया| उसके लकवा पीड़ित अंग पहले की ही तरह काम करने लगे|
"साईं बाबा ने कहा था कि यदि आप ठीक हो जाएं तो आप उनके पास अवश्य जायें|" लाला ने बेटे ने अपने पिता ने कहा|
"मैं वहां जाकर क्या करूंगा बेटे ! अब तो बीमारी का नामो-निशान भी बाकी न रहा| फिर बेकार में ही इतनी दूर क्यों जाऊं?"
"लेकिन साईं बाबा ने कहा था कि यदि आप उनके पास नहीं गये तो आपका रोग फिर बढ़ जाएगा और आपकी दशा और ज्यादा खराब हो जाएगी|" बेटे ने समझाते हुए कहा|
वह शिरडी जाना नहीं चाहता था| उसका मतलब निकल गया था| फिर भी बेटे के समझाते पर वह तैयार हो गया| बृहस्पतिवार का दिन था| शिरडी में प्रत्येक बृहस्पतिवार उत्सव के रूप में मनाया जाता था| जब लाला शिरडी पहुंच तो आस-पास सैंकड़ों आदमियों की भीड़ जमा थी| भीड़ को देखकर लाला देखकर लाला परेशान हो गया| उस भीड़ में ज्यादातर दीन-दु:खी लोग थे| उन लोगों के साथ जुलूम में शामिल होना लाला को अच्छा न लगा|वह अपनी बैलगाड़ी में ही बैठा रहा| केवल बेटे ने ही शोभायात्रा में हिस्सा लिया और पूरी श्रद्धा के साथ प्रसाद भी ग्रहण किया|
जब भीड़ कुछ छंट गयी तो, उसने साईं बाबा के चरण स्पर्श किये|
बाबा ने उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरकर उसे आशीर्वाद दिया| फिर एक चुटकी भभूति देकर बोले - "अपने पिता को तीन दिन दे देगा| बचा-खुचा रोग भी नष्ट हो जाएगा|"
बेटे ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और चला गया|
साईं बाबा की भभूति के प्रभाव से तीन दिन के अंदर ही लाला को ऐसा अनुभव होने लगा, जैसे उसे नया जीवन प्राप्त हो गया हो| पिता की बीमारी के कारण बेटा उनका व्यापार देखने लगा था| लाला के बेटे को व्यापार का कोई अनुभव न था, फिर भी बराबर लाभ हो रहा था| लाला यह देखकर बहुत हैरान थे| उन्हें यह सब कुछ एक चमत्कार जैसा लगा रहा था|
एक दिन लाला ने अपने बेटे से कहा - "एक बात समझ में नहीं आ रही बेटे ! तुम्हें व्यापर का कोई अनुभव नहीं था| डर लगता था कि तुम जैसे अनुभवहीन को व्यापार सौंपकर मैंने कोई गलती तो नहीं की है| लेकिन में देख रहा हूं कि तुम जो भी सौदा करते हो, उसमें बहुत लाभ होता है|"
"यह सब साईं बाबा के आशीर्वाद का ही फल है पिताजी ! उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया| साईं बाबा तो साक्षात् भगवान के अवतार हैं|" बेटे ने कहा|
"तुम बिल्कुल ठीक कहते हो बेटा ! मुझे व्यापार करते हुए तीस वर्ष बीत चुके हैं| मुझे आज तक व्यापार में कभी इतना ज्यादा लाभ नहीं हुआ, जितना आजकल हो रहा है| वास्तव में साईं बाबा भगवान के अवतार हैं|" अब लाला के मन में भी साईं बाबा के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो रही थी|
दूसरे दिन साईं बाबा की तस्वीरें लेकर एक फेरीवाला गली में आया| लाला ने उसे बुलाकर पूछा - "ये कैसी तस्वीरें बेच रहे हो?"
"लालाजी, मेरे पास तो केवल शिरडी के साईं बाबा की ही तस्वीरें हैं| मैं उनके अलावा किसी और की तस्वीरें नहीं बेचता हूं|" तस्वीर बेचने वाले ने कहा|
कुछ देर तक तो लाला सोचते रहे| उन्होंने सोचा, साईं बाबा की भभूति से ही मेरा रोग दूर हुआ है| उन्हीं के आशीर्वाद से मेरा बेटा व्यापार में बहुत लाभ कमा रहा है| यदि एक तस्वीर ले लूं, तो कोई नुकसान नहीं होगा| लाला ने एक तस्वीर पसंद करके ले ली|
कुछ देर पहले ही दुकान का मुनीम पिछले दिन की रोकड़ लाला को दे गया था| वह अपने पलंग पर रुपये फैलाए उन्हें गिन रहे थे| लाला ने उन ढेरियों की ओर संकेत करके कहा - "लो भई, तुम्हारी तस्वीर के जो भी दाम हों, इनमें से उठा लो|" पर तस्वीर बेचने वाले ने चांदी का केवल एक छोटा-सा सिक्का उठाया|
"बस इतने ही पैसे ! ये तो बहुत कम हैं और ले लो|" लाला ने बड़ी उदारता के साथ कहा|
तस्वीर बेचने वाले ने कहा - "नहीं सेठ ! बाबा कहते हैं कि लालच इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है| मैं लालची नहीं हूं| मैंने तो उचित दाम ले लिए| यह लालच तो आप जैसे सेठ लोगों को ही शोभा देता है|"
उसकी बात सुनकर लाला को ऐसा लगा कि जैसे उस तस्वीर बेचने वाले ने उनके मुंह पर एक करारा थप्पड़ जड़ दिया हो| उन्होंने अपनी झेंप मिटाने के लिए कहा - "बहुत दूर से आ रहे हो| कम-से-कम पानी तो पी ही लो|"
"नहीं, मुझे प्यास नहीं है सेठजी !"
ठीक तभी लाला का बेटा वहां आ गया| उसने साईं बाबा की तस्वीर देखी, उसे बहुत प्रसन्नता हुई| उसने तस्वीर बेचने वाले की ओर देखकर कहा - "भाई, हमारे घर में साईं बाबा की कोई तस्वीर नहीं थी| मैं बहुत दिनों से उनकी तस्वीर खरीदने की सोच रहा था| यहां किसी भी दुकानदार के पास बाबा की तस्वीर नहीं थी|"
"चलिए, आज आपकी इच्छा पूरी हो गयी|" तस्वीर बेचने वाला हँसकर बोला|
"इस खुशी में आप जलपान कीजिए|" लाला ने बेटे ने प्रसन्नताभरे स्वर में कहा - "साईं बाबा की कृपा से ही मेरे पिताजी का रोग समाप्त हुआ है| व्यापार में भी दिन दूना-रात चौगुना लाभ हो रहा है|"
"यदि आपकी ऐसी इच्छा है तो मैं जलपान अवश्य करूंगा|" तस्वीर बेचने वाले ने कहा|
लाला अपने मन में सोचने लगा कि तस्वीर बेचने वाला भी बड़ा अजीब आदमी है| पहले लालच की बात कहकर मेरा अपमान किया| फिर जब मैंने पानी पीने के लिये कहा, तो पानी पीने से इंकार कर फिर से मेरा अपमान किया| मेरे बेटे के कहने पर पानी तो क्या जलपान करने के लिए तुरंत तैयार हो गया|
तस्वीर वाले ने जलपान किया और अपनी गठरी उठाकर चला गया|
उधर कई दिन के बाद रावजी ने सोचा कि शिरडी जाकर साईं बाबा के दर्शन कर आएं| उनके दर्शन से मन का दुःख कुछ कम हो जाएगा| यही सोचकर वह अगले दिन पौ फटके ही शिरडी के लिए चल दिया|
शिरडी पास ही था| राव आधे घंटे में ही शिरडी पहुंच गया| अपमान की पीड़ा, चिंता से राव की हालात ऐसी हो गयी थी, जैसे वह महीनों से बीमार है| उनका चेहरा पीला पड़ गया था| मन की पीड़ा चेहरे पर स्पष्ट नजर आती थी|
"मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं राव !" साईं बाबा ने अपने चरणों पर झुके हुए राव को उठाकर बड़े प्यार से उसके आँसू पोंछते हुए कहा - "तुम तो ज्ञानी पुरुष हो| यह क्यों भूल गए कि दुःख-सुख, मान-अपमान का सामना मनुष्य को कब करना पड़ जाए, यह कोई नहीं जानता|"
राव ने कोई उत्तर नहीं दिया| वह बड़बड़ायी आँखों से बस साईं बाबा की ओर देखता रहा|
"जो ज्ञानी होते हैं वे दुःख आने पर न तो आँसू बहाते हैं और न सुख आने पर खुशी से पागल होते हैं|" - साईं बाबा ने कहा - "यदि हम किसी को दुःख देंगे, तो भगवान हमें अवश्य दुःख देगा| यदि हम किसी का अपमान करेंगे तो हमें भी अपमान सहन करना पड़ेगा, यही भगवान का नियम है| इसी नियम से ही यह संसार चल रहा है|"
"नहीं, मुझे भगवान के न्याय से कोई शिकायत नहीं है|" रावजी ने आँसू पोंछते हुए कहा|
"सुनो राव, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमें अपने पूर्वजन्म के किसी अपराध का दण्ड इस जन्म में भी भोगना पड़ता है| कभी-कभी पिछले जन्मों का पुण्य हमारे इस जन्म में भी काम आ जाता है और हम संकट में पड़ जाने से बच जाते हैं| जो दुःख तुम्हें मिला है, वह शायद तुम्हें तुम्हारे पूर्वजन्म के किसी अपराध के कारण मिला हो|"
"हां ! ऐसा हो सकता है बाबा !"
"और राव, यह भी तो हो सकता है कि इस अपमान के पीछे कोई अच्छी बात छिपी हुई हो| बिना सोचे-विचारे भाग्य को दोष देने से क्या लाभ !"
"मुझसे भूल हो गयी बाबा ! दुःख और अपमान की पीड़ा ने मेरा ज्ञान मुझसे छीन लिया था| आपने मुझे मेरा खोया हुआ ज्ञान लौटा दिया है|" राव ने प्रसन्नताभरे स्वर में कहा|
"तुम किसी बात की चिंता मत करो रावजी ! भगवान पर भरोसा रखो| वह जो कुछ भी करते हैं, हमारे भले के लिए ही करते हैं| तुम अगले बृहस्पतिवार को बिटिया को लेकर मेरे पास आना| भगवान चाहेंगे तो तुम्हारा भला ही होगा|" साईं बाबा ने कहा|
रावजी ने साईं बाबा के चरण हुए और उनका आशीर्वाद लेकर वापस अपने गांव लौट गया|
राव जब अपने गांव की ओर लौट रहा था, उसे तो अपना मन फूल की भांति हल्का महसूस हो रहा था| उसके मन का सारा बोझ हल्का हो चुका था|उधर तस्वीर वाले के चले जाने के बाद लाला बहुत देर तक किसी सोच में डूबा रहा| उसके चेहरे पर अनेक तरह के भाव आ-जा रहे थे| उसके मन में विचारों की आँधी चल रही थी| उसने अपना स्वभाव बदल दिया था| अब वह सुबह उठकर भगवान की पूजा करने लगा था| उसके पास जो कोई भी साधु-संन्यासी, अतिथि आता तो वह उसका यथासंभव स्वागत-सत्कार करता| वह जिस चीज की मांग करता, वह उसे पूरी करता| उसने साधारण कपड़े पहनना शुरू कर दिये थे| अकारण क्रोध करना भी छोड़ दिया था|
लाला अक्सर अपने बेटे को समझता - "बेटा, जिस व्यापार में ईमानदारी और सच्चाई होती है, उसी में सुख और शांति रहती है| झूठ और बेईमानी मनुष्य का चरित्र पतन कर देती है| उसे फल भी अवश्य ही भोगना पड़ता है, इसमें कोई संदेह नहीं है|"
"आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगा पिताजी !" - बेटे का जवाब था|
"हमें शिरडी चलना है|" - लालाजी ने एक दिन अपने बेटे को याद दिलाया|
"हां, मुझे याद है| हम साईं बाबा के दर्शन करने अवश्य चलेंगे|"
अचानक लाला का चेहरा उदास और फीका पड़ गया| वह बड़े दु:खभरे स्वर में बोला, मानो जैसे पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहा हो उसने कहा - "मैंने रावजी कि बेटी का तेरे साथ विवाह न करके बहुत बड़ा पाप किया है| रावजी बड़े ही नेक और सीधे-सादे आदमी हैं| वह भी साईं बाबा के भक्त हैं| बारात लौटाकर मैंने उनका बहुत बड़ा अपमान किया है|"
"जो कुछ बीत गया, अब उसके पीछे पश्चात्ताप करने से क्या लाभ पिताजी !" लड़के ने दु:खभरे स्वर में कहा - "अब आप यह सब भूल जाइए|"
"कैसे भूलूं बेटा ! मैं अब इस अपराध का प्रायश्चित करना चाहता हूं|"
लालाजी ने मन-ही-मन निश्चय कर लिया था कि राव की बेटी का विवाह अपने बेटे से कर, अपने पाप का प्रायश्चित अवश्य करेंगे| वह सबसे अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए भी क्षमा मांगने के बारे में सोच रहे थे| दिन बीतते गये|
बृहस्पतिवार का दिन आ गया|
लाला अपने बेटे के साथ मस्जिद के आँगन में पहुंचे, तो उनकी नजर राव पर पड़ी| राव भी उनकी ओर देखने लगे| अचानक लाला ने लपककर राव के पैर पकड़ लिये|
"अरे, अरे आप यह क्या कर रहे हैं सेठजी ! मेरे पांव छूकर मुझे पाप का भागी मत बनाइए|" - राव लाला के इस व्यवहार पर हैरान रह गये थे|
"नहीं रावजी, जब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे, मैं आपके पैर नहीं छोड़ूंगा|" लाला ने रुंधे गले से कहा - "जब से मैंने आपका अपमान किया है, तब से मेरा मन रात-दिन पश्चात्ताप की अग्नि में जलता रहता है| जब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे, मैं पैर नहीं छोड़ूंगा|"
तभी एक व्यक्ति बोला - "साईं बाबा आपको याद कर रहे हैं|"
वह दोनों साईं बाबा के पास गये| लाला ने साईं बाबा से अपने मन की बात कही|
लाला का हृदय परिवर्तन देखकर साईं बाबा प्रसन्न हो गये| फिर उन्होंने पूछा - "सेठजी, आप का रोग तो दूर हो गया है न?"
"हां बाबा ! आपकी कृपा से मेरा रोग दूर हो गया, लेकिन मुझे सेठजी मत कहिये|"
"तुम्हारे विचार सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई| एक मामूली-सी बीमारी ने तुम्हारे विचार बदल दिए| किसी भी पाप का दंड यही है, अपने पाप को स्वीकार कर प्रायश्चित्त करना| यह धन-दौलत तो बेकार की चीज है| आज है कल नहीं| इससे मोह करना बुद्धिमानी नहीं है|"
फिर तभी बाबा ने अपना हाथ हवा में लहराया| वहां उपस्थित सभी लोगों ने देखा, उनके हाथ में दो सुंदर व मूल्यवान हार आ गये थे|
"उठो सेठ, एक हार अपने बेटे को और दूसरा हार लक्ष्मी बेटी को दे दो| ये एक-दूसरे को पहना दें|" बाबा ने कहा|
लाला ने एक हार अपने बेटे को और दूसरा रावजी की बेटी का दे दिया| दोनों ने हार एक-दूसरे को पहनाये और फिर साईं बाबा के चरणों में झुक गये|
"तुम दोनों का कल्याण हो| जीवनभर सुखी रहो|" - साईं बाबा न आशीर्वाद दिया|
राव और लाला की आँखें छलक उठीं| उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा, फिर दोनों ने एक-दूसरे को बांहों में भर लिया| सब लोग यह दृश्य देखकर खुशी से साईं बाबा की जय-जयकार करने लगे|
कल चर्चा करेंगे... कुश्ती के बाद बाबा जी में बदलाव
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।