कर्म हो पिछले जन्म के, या इस जन्म कमायें |
लेखा झोखा कर्मों का, हर प्राणी पूर्ण निभाये |
कष्ट लिखे जो भाग्य में, उसको सहता जाये |
प्राणी वो ही सफल है, जो पूर्ण जीवन बिताये |
अपना जीवन अपने हाथो, कभी ना स्वयं गवायें |
आत्महत्या महापाप है, साँई जी ये बतलाये |
कष्टों से हो के परेशान, गर जीवन तू गवाँये |
वही कष्ट फिर पुनर्जन्म, तेरे पीछे पीछे आये |
बाबा जी का नित्य ही, मन में स्मरण लाये |
इस मामूली परिश्रम से, आनन्दी फल पाये |
सात समुद्र पार के भी, भक्तों को खींचे जाये |
पाँव बंधे चिड़िया के जैसे, और खींची चली आये |
प्रति तीजे दिन साँई जी, मस्जिद से दूरी पर जाये |
आँतें उदर से बाहर कर, धौने में लग जाये |
आँतों को कर साफ फिर, बरगद पर रहे सुखाये |
इस क्रिया के साक्षी कई, शिर्डी मे आज भी पाये |
एक रोज एक महाशय, जब द्वारिकामाई आये |
बाबा जी के अंगो को, पृथक पृथक वह पाये |
साँई का हो गया कत्ल, सोचा ये शोर मचाये |
पर सूचना देने वाला ही, पहले पकड़ा जाये |
ये सोच कर महाशय जी, बस चुप्पी साधे जाये |
अगले दिन मस्जिद गये, बाबा को स्वस्थ वह पाये |
बाबा को भक्तों के संग, देख के वह चकराये |
जो देखा आँखो से कल, कहीं स्वपन तो नही आये |