शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Thursday, 5 May 2016

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 34

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा

किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...



श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 34

उदी की महत्ता (2), डाँक्टर का भतीजा, डाँक्टर पिल्ले, शामा की भयाहू, ईरानी कन्या, हरदा के महानुभाव, बम्बई की महिला की प्रसव पीड़ा
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इस अध्याय में भी उदी की ही महत्ता क्रमबद्घ है तथा उन घएटनाओं का भी उल्लेख किया गया है, जिनमें उसका उपयोग बहुत ही प्रभावकारी सिकदृ हुआ ।
डाँक्टर का भतीजा
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नासिक जिले के मालेगाँव में एक डाँक्टर रहते थे । उनका भतीजा एक असाध्य रोग Tubercuar bone abscess (एक तरह का तपेदिक) से पीड़ित था । उन्होंने तथा उनके सभी डाँक्टर मित्रों ने समस्त उपचार किये । यहाँ तक कि उसकी शल्य-चिकित्सा भी कराई, फिर भी बालक को कोई लाभ न पहुँचा । उसके कष्टों का पारावार न था । मित्र और सम्बन्धियों ने बालक के माता-पिता को दैविक उपचार करने का परामर्श देकर श्री साईबाबा की सरण में जाने को कहा, जो अपनी दृष्टि मात्र से असाध्य रोग साध्य करने के लिये प्रसिदृ है । अतः माता-पिता बालक को साथ लेकर शिरडी आये । उन्होंने बाबा को साष्टांग प्रणाम कर श्री-चरणों में बालक को डाल दिया और बड़ी नम्रता तथा आदरपूर्वक विनती की कि प्रभु, हम लोगों पर दया करो । आपका संकट-मोचन नाम सुनकर ही हम लोग यहाँ आये है । दया कर इस बालक की रक्षा कीजिये । प्रभु हमें तो ककेवल आपका ही भरोसा है । प्रार्थना सुनकर बाबा को दया आ गई और उन्होंने सान्त्वना देकर कहा कि जो इस मसजिद की सीढ़ी चढ़ता है, उसे जीवनपर्यन्त कोई दुःख नहीं होता । चिंता न करो, यतह उदी ले उस रोग ग्रसित स्थान पर लगाओ । ईश्वर पर विश्वास रखो, वह सप्ताह के अंत में ही पूर्ण स्वस्थ हो जायेगा । यह मसजिद नहीं, यह तो द्घारकावती है और जो इसकी सीढ़ी चढ़ेगा, उसे स्वा्थ्य और सुख की प्राप्ति होगी तथा उसके कष्टों का अंत हो जायेगा । बालक को बाबा के सामने बिठलाया गया । वे उस रोगग्रस्त स्थान पर अपना हाथफेरते हुये दयापूर्ण दृष्टि से बालक की ओर निहाने लगे । रोगी अब प्रसन्न रहने लगा और उदी के लेप से बालक थोड़े समय में ही स्वस्थ हो गया । माता-पिता अपने को बाबा का ऋणी और कृतज्ञ मानकर बालक को लेकर शिरडी से चले गये ।
यह लीला देखकर बालक के काका को, जो डाँक्टर थे, महान् आश्चर्य हुआ तथा उन्हें भी बाबा के दर्शनों की तीव्र उत्कंठा हुई । इसी समय जब वे कार्यवश बम्बई जा रहे थे, तभी मालेगाँव और मनमाड के निकट किसी ने बाबा के विरुदृ उनके कान भर दिये, इस कारण वे शिरडी जाने का विचार त्याग कर सीधे बम्बई चले गये । वे अपनी शेष छुट्टियाँ अलीबाग में व्यतीत करना चाहते थे, परन्तु बम्बी में उन्हें लगातार तीन रात्रियों तक एक ही ध्वनि सुनाई पड़ी कि क्या अब भी तुम मुझपर अविश्वास कर रहे हो । तब डाँक्टर ने अपना विचार परिवर्तित कर शिरड को प्रस्थान करने का निश्यय किया । बम्बई में उनके एक रोगी को सांसर्गिक ज्वर आ रहा था, जिसका तापक्रम कम होने का कोई चिन्ह दिखाई न देने के कारण उन्हें ऐसा लग रहा था कि कहीं शिरडी की यात्रा स्थगित न करनी पड़े । उन्होंने अपने मन ही मन एक परीक्षा करने का विचार किया कि यदि रोगी आज अच्छा हो जाये तो कल ही मैं शिरडी के लिये प्रस्थान कर दूँगा । आश्चर्य है कि जिस समय उन्होंने यह निश्चय किया, ठीक उसी समय से ज्वर में उतार होने लगा और ताप क्रमशः साधारण स्थिति पतर पहुँच गया । तब वे अपने निश्चयानुसार शिरडी पहुँचे और बाबा का दर्शन करके उन्हें प्रणाम किया । बाबा ने उन्हें कुछ ऐसे अनुभव दिये कि वे सदा के लिये उनके भक्त हो गये । डाँक्टर वहाँ चार दिन ठहरे और उदी तथा आर्शीवाद प्राप्त कर घर वापस आ गये । एक पखवारे में ही पदोन्नति पाकर उनका स्थानान्तरण वीजापुर को हो गया । भतीजे की रोग-मुक्ता ने उन्हें बाबा के दर्शनों का सौभाग्य दिया तथा शिरडी की यात्रा ने उनकी श्री साई के चरणों में प्रगाढ़ प्रीति उत्पन्न कर दी ।
डाँक्टर पिल्ले
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डाँक्टर पिल्ले बाब के एक निष्ठ भक्त थे । इसी कारण वे उन पर अधिक स्नेह रखते थे और उन्हें सदा भाऊ कहकर पुकारते तथा हर समय उनसे वार्तालाप करके प्रत्येक विषय में परामर्श भी लिया करते थे । उनकी सदैव यही इच्छा रहती कि वे बाबा के समीप ही बने रहें । एक बार डाँक्टर पिल्ले को नासूर हो गया । वे काकासाहेब दीक्षित से बोले कि मुझे असहृ पीड़ा हो रही है और मैं अब इस जीवन से मृत्यु को अधिक क्षेयस्कर समझता हूँ । मुझे ज्ञात है कि इसका मुख्य कराण मेरे पूर्व जन्मों के कर्म ही है । जाकर बाबा से कहो कि वे मेरी यह पीड़ा अब दूर करें । मैं अपने पिछले जन्म के कर्मों को अगले दस जन्मों में भोगने को तैयार हूँ । तब काका दीक्षित ने बाबा के पास जाकर उनकी प्रार्थना सुनाई । साई तो दया के अवतार ही है । वे अपने भक्तों के कष्ट कैसे देख सकते थे । उनकी प्रार्थना सुनकर उन्हें भी दया आ गई और उन्होंने दीक्षित से कहा कि पिल्ले से जाकर कहो कि घबड़ाने की ऐसी कोई बात नहीं । कर्मों का फल दस जन्मों में क्यों भुगतना पड़ेगा । केवल दस रदिनों में ही गत जन्मों के कर्मफल समाप्त हो जायेंगे । मैं तो यहाँ तुम्हें धार्मिक और आध्यात्मिक कल्याण देने के लिये ही बैठा हूँ । प्राण त्यागने की इच्छा कदापि न करनी चाहिये । जाओ, किसी की पीठ पर लादकर उन्हें यहाँ ले आओ, मैं सदा के लिये उनका कष्टों से छुटाकारा कर दूँगा ।
तब उसी स्थिति में पिल्ले को वहाँ लाया गया । बाबाने अपने दाहिनी ओर उनके सिरहाने अपनी गादी देकर सुख से लिटाकर कहा कि इसकी मुख्य औषधि तो यह है कि पिछले जन्मों के कर्मफल को अवश्य ही भोग लेना चाहिये, ताकि उनसे सदैव के लिये छुटकारा हो जाये । हमारे कर्म ही सुखःदुख के कारण होते है, इसलिये जैसी भी परिस्थित आये, उसी में सन्तोष करना चाहिये । अल्ला ही सब को फल देने वाला है और वही सबका रक्षण करता है । ऐसा विचार कर सदैव उनका ही स्मरण करो । वे ही तुम्हारी चिन्ता दूर करेंगे । तन-मन-धन और वचन द्घारा उनकी अनन्य शरण में जाओ, फिर देखो कि वे क्या करते है । डाँक्टर पिल्ले ने कहा कि नानासाहेब ने मेरे पैर में एक पट्टी बाँधी है, परन्तु मुझे उससे कोई लाभ नहीं पहुँचा । नाना तो मूर्ख है बाबा ने कहा, वह पट्टी हटाओ, नहीं तो मर जाओगे । थोड़ी देर में ही एक कौआ आयेगा और वह अपनी चोंच इसमें मारेगा । तभी तुम शीघ्र अच्छे हो जाओगे ।
जब यह वार्तालाप हो ही रहा ता कि उसी समय अब्दुल, जो मसजिद में झाडू लगाने तथा दिया-बत्ती आदि स्वच्छ करने का कार्य करता था, वहाँ आया । जब वह दिया-बत्ती स्वच्छ कर रहा था तो अचानकर ही उसका पैर डाँक्टर पिल्ले के नासूर वाले पर पर पड़ा । पैर तो सूजा हुआ था ही और फिर अब्दुल के पैर से दबा तो उसमें से नासूर के सात कीड़े बाहर निकल पड़े । कष्ट असहनीय हो गया और डाँक्टर पिल्ले उच्च स्वर में चिल्ला पड़े । किन्तु कुछ काल के ही पश्चात् वे शांत हो कर गीत गाने लगे । तब बाबा ने कहा, देखा, भाऊ अब अच्छा हो गया है और गाना गा रहा है । गाने के बोल थे :-
करम कर मेरे हाल पर तू करीम ।
तेरा नाम रहमान है और रहीम ।
तू ही दोनों आलम का सुलतान है ।
जहाँ में नुमायाँ तेरी शान है ।
फना होने वाला है सब कारोबार ।
रहे नूर तेरा सदा आशकार ।
तू आशिक का हरदम मददगार है ।
फिर डाँक्टर पिल्ले ने पूछा कि वह कौआ कब आयेगा और चोंच मारेगा । बाबा ने कहा अरे, क्या तुमने कौए को नहीं देखा । अब वह नहीं आयेगा । अब्दुल, जिसने तुम्हारा पैर दबाया, वही कौआ था । उसने चोंच मारकर नासूर को हटा दिया । वह अब पुनः क्यों आयेगा । अब जाकर वाड़े में विश्राम करो । तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे । उदी लगाने और पानी के संग पीने से बिना किसी औषधि या चिकित्सा के वे दस दोनों में ही नीरोग हो गये, जैसा कि बाबा ने उनसे कहा था ।
शामा के छोटे भाई की पत्नी (भयाहू)
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सावली विहीर के समीप शामा के छोटे भाई बापाजी रहते थे । एक बार उनकी पत्नी को गिल्टियों बाला प्लेग हो गया । उसे ज्वर हो आया और उसकी जाँच में प्लेग की दो गिल्टियाँ निकल आई । बापाजी दौड़कर शामा के पास आये और सहायता के लिये चलने को कहा । शामा भयभीत हो उठे । उन्होंने सदैव की भाँति बाबा के पास जाकर उन्हें नमस्कार किया और सहायाता के लिये उनसे प्रार्थना की तथा भ्राता के घर प्रस्थान करने की अनुमति माँगी । बाबा ने कहा कि इतनी रात्रि व्यतीत हो चुकी है । अब इस समय तुम कहाँ जाओगे । केवल उदी ही भेज दो । ज्वर और गिल्टी की चिन्ता क्यों करते हो । भगवान् तो अपने पिता और स्वामी है । वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जायेगी । अभी मत जाओ । प्रातःकाल जाना और शीघ्र ही लौट आना ।
शामा को तो उस मृत-संजीवनी उदी पर पूर्ण विश्वास था । उसे ले जाकर उसके भ्राता ने थोड़ी सी गिल्टी और माथे पर लगाई और कुछ जल में घोलकर रोगी को पिला दी । जैसे ही उसका सेवन किया गया, वैसे ही पसीन वेग से प्रवाहित होने लगा, ज्वर मन्द पड़ गया और रोगी प्रगाढ़ निद्रा में निमग्न हो गया । दूसरे दिन बापाजी ने अपनी पत्नी को स्वस्थ देखकर बड़ा आश्चर्य किया कि न तो ज्वर ही है और न गिल्टी का कोई चिन्ह ही । दूसरे दिन जब शामा बाबा की अनुज्ञा प्राप्त कर वहाँ पहुँचे तो अपने भाई की स्त्री को चाय बनाते देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ । अपने भाई से पूछताछ करने पर उन्हें पता चला कि बाबा की उदी ने एक रात्रि में ही रोग को समूल नष्ट कर दिया है । तब शामा को बाबा के शब्दों का मर्म समझ में आया कि प्रातःकाल जाओ और शीघ्र लौटकर आओ ।
चाय पीकर शामा लौट आया और बाबा को प्रणाम करने के पश्चात् कहने लगा कि देवा । यह तुम्हारा क्या नाटक है । पहले बवंडर उठा कर हमें अशांत कर देते हो, फिर हमारी शीघ्र सहायता कर सब ठीकठाक कर देते हो । बाबा ने उत्तर दिया कि, तुम्हें ज्ञात होगा कि कर्म पथ अति रहस्यपूर्ण है । यघपि मैं कुछ भी नहीं करता, फिर भी लोग मुझे ही कर्मों के लिये दोषी ठहराते है । मैं तो एक दर्शक मात्र ही हूँ । केवल ईश्वर ही एक सत्ताधारी और प्रेरणा देने वाले है । वे ही परम दयालु है । मैं न तो ईश्वर हूँ और न मालिक, केवल उनका एक आज्ञाकारी सेवक ही हूँ और सदैव उनका स्मरणकिया करता हूँ । जो निरभिमान होकर अपने को कृतज्ञ समझ कर उन पर पूर्ण विश्वास करेगा, उसके कष्ट दूर हो जायेंगे और उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी ।
ईरानी कन्या
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अब एक ईरानी भद्र पुरुष का अनुभव पढ़ये । उनकी छोटी कन्या घंटे-घंटे पर मूर्चिछत हो जाया करती थी । जब दौरा पड़ता, तब उसमें बोलने की भी सक्ति शेष न रह जाती थी । उसके दाँत बैठ जाते थे । उसके हाथ-पैर ऐंठ जाते और वह बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़ती थी । जब नाना प्रकार के उपचारों से भी उसे कोई लाभ न हुआ, तब कुछ लोगों ने उस ईरानी से बाबा की उदी की बहुत प्रशंसा की और कहा कि वह वलेपार्ला (बम्बई) में काकासाहेब दीक्षित के पास से ही प्राप्त हो सकती है । तब ईरानी महाशय ने वहाँ से उदी लाकर जल में घोलकर अपनी बेटी को पिलाया । प्रारम्भ में जो दौरे एक घंटे के अन्तर से आया करते थे, बाद में वे सात घंटे के अन्तर से आये और कुछ दिनों के पश्चात् तो वह पूर्ण स्वस्थ हो गई ।
हरदा के महानुभाव
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हरदा के एक महानुभाव पथरी रोग से ग्रस्त थे । यह पथरी केवल शल्यचिकित्सा द्घारा ही निकाली जा सकती थी । लोगों ने भी उन्हें ऐसा करने का परामर्श दिया । वे बहुत ही वृदृ तथा दुर्बल थे और अपनी दुर्बलता देखकर उन्हें शल्यचिकित्सा कराने का साहस न हो रहा था । इस हालत में उनकी व्याधि का और इलाज ही क्या था । इसी समय नगर के इनामदार भी वहाँ आये हुए थे, जो बाबा के परम भक्त थे तथा उनके पास उदी भी थी । कुछ मित्रों के परामर्श देने पर उनके पुत्र ने उनसे कुछ उदी प्राप्त कर अपने वृदृ पिता को जल में मिलाकर पीने को दी । केवल पाँच मिनट मे ही उदी के पेट में जाते ही पथरी मल-मूत्रेन्द्रय के द्घार से बाहर निकल गई और वह वृदृ शीघ्र ही स्वस्थ हो गया ।
बम्बई की महिला की प्रसव-पीड़ा
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बम्बई की कायस्थ प्रभु जाति की एक महिला को प्रसव-काल में असहनीय वेदना हुआ करती थी । जब वह गर्भवती हो रजाती तो बहुत घबराती और किंकर्तव्यमूढ़ हो जाया करती थी । इसके उपचारार्थए उनके एक मित्र श्रीराम मारुति ने उसके पति को सुझाव दिया कि यदि इस पीड़ा से मुक्ति चाहते हो तो अपनी पत्नी को शिरडी ले जाओ । दुबारा जब उनकी स्त्री गर्भवती हुई तो वे दोनों पति-पत्नी शिरडी आये और वहाँ कुछ मास ठहरे । वे बाबा की नित्य सेवा करने लगे । उन्हें बाबा के सत्संग का भी बहुत कुछ लाभ हुआ । कुछ दिनों के पश्चात जब प्रसव-काल समीप आया, तब सदैव की भाँति गर्भाशय के द्घार में रुकावट के साथ अधिक वेदना होने लगी । उनकी समझ में नहीं आता था कि अब क्या करना चाहिये । थोड़ी ही देर में एक पड़ोसिन आई और उसने मन ही मन बाबा से सहायता की प्रार्थना कर जल में उदी मिल उसे पीने को दी । तब केवल पाँच मिनिट में ही बिना किसी कष्ट के प्रसव हो गया । बालक तो अपने भाग्यानुसार ही उत्पन्न हुआ, परन्तु उसकी माँ की पीड़ा और कष्ट सदा के लिये दूर हो गये । वे अपने को बाबा का बड़ा कृतज्ञ समझने लगे और जीवनपर्यन्त उनके आभारी बने रहे ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.