हजार महफिले है लाख मेले है,
पर "तू" जहाँ नहीं हम अकेले ही अकेले है !!
एक कदम भी चलता हूँ तन्हा तो
साँई तेरे होने का एहसास होता हैं
और जब तुम साथ में चलते हो तो
मीलों लंबा सफर पल में पार होता हैं
सिर पर हाथ दया का रख दो मेरे साँई
तो एक पल में सौ जीवन जी जाता हूँ
खजाने भरे हुए हो तो भिखारी लगता हूँ
तेरी उदी से ही बादशाहत पा जाता हूँ
महफिल की रंगत कैसी होनी चाहिए
वो तेरे दरबार की शान ब्यान करती हैं
कशिश तुमको देख भर लेने की बाबा
रग रग में इक नया जोश सा भरती हैं
शहंशाह भी आ कर दर पर तेरे झुकते हैं
सूरज-चाँद-तारे भी तेरे इशारे पर चलते हैं
जाने क्यों बेताब रहते हैं हर पल मन में
आँखे बंद कर के भी तेरा दीदार करते हैं