ॐ सांई राम
श्री साईं सच्चरित्र संदेश,
जो स्वयं को कफनी से ढंकता हो, जिस पर सौ पेबंद लगे हों, जिसकी गद्दी और बिस्तर बोरे का बना हो; और जिसका ह्रदय सभी प्रकार की भावनाओं से मुक्त हो, उसके लिये चाँदी के सिंहासन की क्या कीमत ?, इस प्रकार का कोई भी सिंहासन तो उनके लिये रुकावट ही होगा I फिर भी अगर भक्तगण पीछे से चुपचाप सरका कर उसे निचे लगा देते थे, तो बाबा उनकी प्रेम और भक्ति देखते हुए, उनकी इच्छा की आदरपूर्ति के लिए मना नहीं करते थे I
"Whose clothing is a patched up kafni; whose seat is sack cloth; whose mind is free of desires. what is a silver throne for him ?, Seeing the devotion of the devotees, he ignored the fact that they. after their difficulties were resolved turned their back on him. "
बुरा संग सदैव हानिकारक होता है; वह दुखों और कष्टों का घर होता है, जो बिना बताये तुम्हे कुमार्ग पर लाकर खड़ा कर देता है Iवह सभी सुखों का हरण कर लेता हैं I एसी बुरीसंगति के कारण होने वाली बर्बादी और पाप से साईनाथ या सदगुरु के अलवा और कौन रक्षा कर सकता हैं ?
"Bad company is absolutely harmful. It is the adobe of severe miseries. Unknowingly it would take you to the by-lanes, by-passing the highway of happiness. Without the one and only Sainath or without a Sadguru who else can purify the ill-effects of the bad company."
(श्री मद भागवत गीता सार)
* क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
* क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
* जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
* तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
* खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
* परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
* न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
* तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
* जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।