शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday, 7 January 2015

श्री गुरु तेग बहादर जी की शहीदी

श्री गुरु तेग बहादर जी




श्री गुरु तेग बहादर जी की शहीदी


औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था| जो कि अपनी राजनीतिक व धार्मिक उन्नति चाहता था| इसके किए उसने हिंदुओं पर अधिक से अधिक अत्याचार किए| कई प्रकार के लालच व भय देकर हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया| उसने अपने जरनैलो को भी आज्ञा दे दी हिंदुओं को किसी तरह भी मुसलमान बनाओ| जो इस बात के लिए इंकार करे उनका क़त्ल कर दिया जाए| 

औरंगजेब के हुकम के अनुसार कश्मीर के जरनैल अफगान खां ने कश्मीर के पंडितो और हिंदुओं को कहा कि आप मुसलमान हो जाओ| अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो क़त्ल कर दिया जायेगा| कश्मीरी पंडित भयभीत हो गए| उन्होंने अपना अन्न जल त्याग दिया और प्रार्थना करने लगे| कुछ दिन के बाद उन्हें आकाशवाणी के द्वारा अनुभव हुआ कि इस समय धर्म की रक्षा करने वाले श्री गुरु तेग बहादर जी (Shri Guru Tek Bahadar Ji) हैं| आप पंजाब जाकर अपनी व्यथा बताओ| वह आपकी सहायता करने में समर्थ हैं| 

आकाशवाणी के अनुसार पंडित पूछते-पूछते श्री गुरु तेग बहादर जी के पास आनंदपुर आ गए और प्रार्थना की कि महाराज! हमारा धर्म खतरे में है हमे बचाएं| 

उनकी पूरी बात सुनकर गुरु जी सोच ही रहे थे कि श्री गोबिंद सिंह जी (Shri Guru Gobind Singh Ji) वहाँ आ गए| गुरु जी कहने लगे बेटा! इन पंडितो के धर्म की रक्षा के लिए कोई ऐसा महापुरुष चाहिए, जो इस समय अपना बलिदान दे सके| 

पिता गुरु का वह वचन सुनकर श्री गोबिंद जी ने कहा कि पिता जी! इस समय आप से बड़ा और कौन महापुरुष है, जो इनके धर्म कि रक्षा कर सकता है? आप ही इस योग्य हो| 

अपने नौ साल के पुत्र की यह बात सुनकर गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए| आपने पंडितो को कहा कि जाओ अफगान खां से कह दो कि अगर हमारे आनंदपुर वासी गुरु जी मुसलमान हो जाएगें तो हम भी मुसलमान बन जाएगें|

यह बात सुनकर औरंगजेब ने गुरु जी को दिल्ली बुला लिया| गुरु जी ने सन्देश वाहक को कहा कि तुम चले जाओ हम अपने आप बादशाह के पास पहुँच जाएगें| गुरु जी ने घर बाहर का प्रबंध मामा कृपाल चंद को सौंप कर तथा हर बात अपने साहिबजादे को समझा दी और आप पांच सिक्खों को साथ लेकर दिल्ली की और चल दिए| 

आगरे पहुँच कर गुरु जी ने एक गडड़ीए के द्वारा कौतक रच के अपने आप को बंदी बना लिया| औरंगजेब ने आपको बंदीखाने में बंद करके काजी को गुरु जी के पास भेजा और प्रार्थना की कि आप मुसलमान हो जाओ| गुरु जी ने वचन किया तुम सारे देश में एक धर्म करना चाहते हो परन्तु यदि परमात्मा चाहे तो दो धर्मो के तीन हो जायेगें| इस बात को सिद्ध करने के लिए गुरु जी ने एक मण मिर्च मंगाई और उन्हें जलाया| आगे से गुरु जी कहने लगे यदि राख में से एक मिर्च साबुत निकली तो परमात्मा को एक धर्म कबूल होगा यदि दो निकली तो दो धर्म और अगर तीन मिर्चे साबुत निकली तो समझ लेना कि परमात्मा को तीसरा धर्म कबूल होगा| 

इस तरह जब मिर्चो का ढेर जलाकर औरंगजेब ने राख को बिखेर कर देखा तो उसमे से तीन मिर्चे साबुत निकली| यह निर्णय देखकर बादशाह हैरान हो गया| 

इसके पश्चात जब गुरु जी किसी तरह भी मुसलमान होना ना माने तो उन्हें करामात दिखाने के लिए कहा गया| गुरु जी ने करामात को कहर का नाम दिया और करामात दिखने से मना कर दिया| औरंगजेब ने कहा ना आप इस्लाम धर्म कबूल करना चाहतें हैं और ना ही कोई करामात दिखाना चाहतें हैं तो फिर कत्ल के लिए तैयार हो जाइए| गुरु जी ने कहा हमें आप की दोनों बाते स्वीकार नहीं परन्तु तुम्हारी तीसरी बात कत्ल होना हमे स्वीकार है| 

इस समय गुरु जी के साथ पांच सेवादार सिख भी कैद थे-

· भाई मति दास

· भाई दिआला जी

· भाई गुरदित्ता जी

· भाई ऊदो जी

· भाई चीमा जी



जब गुरु साहिब जी किसी भी तरह ना माने तो औरंगजेब ने गुरु जी को डराने के लिए भाई मति दास को आरे से सिरवा दिया और भाई दिआले जी को पानी की उबलती हुई देग में डालकर आलू की तरह उबाल दिया| दोनों सिखों ने अपने आप को हँस-हँस कर पेश किया| जपुजी साहिब का पाठ तथा वाहि गुरु का उच्चारण करते हुए सच खंड जा विराजे| बाकी तीन सिख गुरु जी के पास रह गए| 

गुरु जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक जानकर बाकी तीन सिखों को वचन किया कि तुम अपने घरों को चले जाओ अब यहाँ रहने का कोई लाभ नहीं है| उन्होंने प्रार्थना की कि महाराज! हमारे हाथ पैरों को बेडियाँ लगी हुई हैं, दरवाजों पर ताले लगे हुए हैं हम यहाँ से किस तरह से निकले| गुरु जी ने वचन किया कि आप इस शब्द का "कटी बेडी पगहु ते गुरकीनी बन्द खलास" का पाठ करो| आपकी बेडियाँ टूट जाएगीं और दरवाजों के ताले खुल जाएगे और तुम्हें कोई नहीं देखेगा|

गुरु जी का वचन मानकर दो सिख आज़ाद हो कर चले गए| बाद में भाई गुरु दित्ता ही गुरु जी से पास रह गए| गुरु जी ने अपनी मस्ती में यह शलोक पड़ा|

शलोक महला ९

संग सखा सब तजि गए कोऊ न निबहिओ साथ||
कहु नानक इिह बिपत मै टेक एक रघुनाथ||५५||




इसके पश्चात गुरु जी ने अपनी माता जी व परिवार को धैर्य देने वह प्रभु की आज्ञा को मानने के लिए शलोक लिखकर भेजे - 

गुन गोबिंद गाइिओ नही जनमु अकारथ कीन||
कहु नानक हरि भजु मना जिहि विधि जल कौ मीन||१||




यहाँ से आरम्भ करके अंत में लिखा -

राम नामु उरि मै गहियो जाकै सम नही कोइि||
जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुहारो होइि||५७||

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब पन्ना १४२६-१४२९)




इन शालोको के साथ ही गुरु जी ने पांच पैसे और नारियल एक सिख के हाथ आनंदपुर भेज के गुरु गद्दी अपने सुपुत्र श्री गोबिंद राय को दे दी|

अंत में जब 13 माघ (सुदी 5) संवत 1732 विक्रमी का अभाग्यशाली दिन वीरवर आ गया| आप जी को चाँदनी चौक कोतवाली के पास सूर्य अस्त के समय बादशाह के हुक्म से जल्लाद ने तलवार के एक वार से शहीद कर दिया| इस निर्दय सके का वर्णन गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस तरह किया-

तेग बहादर के चलत भयो जगत को शोक||
है है है सब जग भयो जै जै जै सुर लोक||१६||

(दशम ग्रंथ: बिचित्र नाटक, ५ अध्याय)




इस अत्याचार के समय इतिहासकार लिखते हैं कि बहुत भयानक काली आंधी चली| जिसके अंधकार मैं आपजी का पवित्र शीश भाई जैता (जीऊन सिंह) अपने कपड़ो में लपेटकर जल्दी-जल्दी चलकर आनंदपुर ले आया| यहाँ आप जी के शीश को बड़े सत्कार, वैराग्य तथा शोक सहित अग्नि भेंट किया गया| इस स्थान गुरुद्वारा "शीश गंज" सुशोभित है|

इसके पश्चात इस आंधी के गुबार में ही आप जी का पवित्र धड़ एक लुबाणा सिख अपनी बैल गाड़ी के माल में ले गया और अपनी कुटीर में रख दिया| फिर उसने आग लगाकर धड़ को वहीं अग्नि भेंट कर दिया| इस स्थान पर "गुरुद्वारा रकाबगंज" सुशोभित है|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.