शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday, 19 November 2014

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी जीवन – परिचय

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - जीवन परिचय






Parkash Ustav (Birth date): June 19, 1595; at Wadali village near Amritsar (Punjab). 
प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): 19 जून 1595, अमृतसर (पंजाब) के पास वडाली गांव में.

Father: Guru Arjan Dev ji 
पिता जी : गुरू अर्जन देव जी

Mother: Mata Ganga ji 
माता जी: माता गंगा जी 

Mahal (spouse): Mata Nanaki ji , Mata Damodari ji , Mata Marvahi ji 
सहोदर: - महल (पति या पत्नी): माता नानकी जी, माता दामोदरी जी, माता मरवाही जी 

Sahibzaday (offspring): Baba Gurditta, Baba Viro, Baba Suraj Mal, Baba Ani Rai, Baba Atal Rai,
Baba Tegh Bahadur and a daughter.

साहिबज़ादे (वंश): बाबा गुरदित्ता जी, बाबा वीरो जी, बाबा सूरजमल, बाबा अनी राय, बाबा अटल राय,
बाबा तेग बहादुर और एक बेटी.

Joti Jyot (ascension to heaven): March 3, 1644
ज्योति  ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): 3 मार्च, 1644

पंज पिआले पंज पीर छठम पीर बैठा गुर भारी|| 

अर्जन काइआ पलटिकै मूरति हरि गोबिंद सवारी|| 



(वार १|| ४८ भाई गुरदास जी)



बाबा बुड्डा जी के वचनों के कारण जब माता गंगा जी गर्भवती हो गए, तो घर में बाबा पृथीचंद के नित्य विरोध के कारण समय को विचार करके श्री गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर से पश्चिम दिशा वडाली गाँव जाकर निवास किया| तब वहाँ श्री हरिगोबिंद जी का जन्म 21 आषाढ़ संवत 1652 को रविवार श्री गुरु अर्जन देव जी के घर माता गंगा जी की पवित्र कोख से वडाली गाँव में हुआ|

तब दाई ने बालक के विषय में कहा कि बधाई हो आप के घर में पुत्र ने जन्म लिया है| श्री गुरु अर्जन देव जी ने बालक के जन्म के समय इस शब्द का उच्चारण किया|


सोरठि महला ५ ||



परमेसरि दिता बंना || 

दुख रोग का डेरा भंना || 
अनद करहि नर नारी || 
हरि हरि प्रभि किरपा धारी || १ || 

संतहु सुखु होआ सभ थाई || 
पारब्रहमु पूरन परमेसरू रवि रहिआ सभनी जाई || रहाउ || 

धुर की बाणी आई || 
तिनि सगली चिंत मिटाई || 
दइिआल पुरख मिहरवाना || 
हरि नानक साचु वखाना || २ || १३ || ७७ || 

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब, पन्ना ६२८)



श्री गुरु अर्जन देव जी ने बधाई की खबर अकालपुरख का धन्यवाद इस शब्द से किया-
आसा महला ५|| 



सतिगुरु साचै दीआ भेजि || 

चिरु जीवनु उपजिआ संजोगि || 
उदरै माहि आइि कीआ निवासु || 
माता कै मनि बहुतु बिगासु || १ || 

जंमिआ पूतु भगतु गोविंद का || 
प्रगटिआ सभ महि लिखिआ धुर का || रहाउ || 

दसी मासी हुकमी बालक जन्मु लीआ मिटिआ सोगु महा अनंदु थीआ || 
गुरबाणी सखी अनंदु गावै || 
साचे साहिब कै मनि भावै || १ || 

वधी वेलि बहु पीड़ी चाली || 
धरम कला हरि बंधि बहाली || 
मन चिंदिआ सतिगुरु दिवाइिआ || 
भए अचिंत एक लिव लाइिआ || ३ || 

जिउ बालकु पिता ऊपरि करे बहु माणु || 
बुलाइिआ बोलै गुर कै भाणि || 
गुझी छंनी नाही बात || 
गुरु नानकु तुठा कीनी दाति || ४ || ७ || १०१ || 

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब: पन्ना ३९६)

साहिबजादे की जन्म की खुशी में श्री गुरु अर्जन देव जी ने वडाली गाँव के पास उत्तर दिशा में एक बड़ा कुआँ लगवाया, जिस पर छहरटा चाल सकती थी| गुरु जी ने छहरटे कुएँ को वरदान दिया कि जिस स्त्री के घर संतान नहीं होती या जिसकी संतान मर जाती हो, वह स्त्री अगर नियम से बारह पंचमी इसके पानी से स्नान करे और नीचे लीखे दो शब्दों के 41 पाठ करे तो उसकी संतान चिरंजीवी होगी| 

पहला शब्द-

सतिगुरु साचै दीआ भेजि||






दूसरा शब्द- 

बिलावलु महला ५||

सगल अनंदु कीआ परमेसरि अपणा बिरदु सम्हारिआ || 
साध जना होए क्रिपाला बिगसे सभि परवारिआ || १ || 

कारजु सतिगुरु आपि सवारिआ || 
वडी आरजा हरि गोबिंद की सुख मंगल कलियाण बीचारिआ || १ || रहाउ || 

वण त्रिण त्रिभवण हरिआ होए सगले जीअ साधारिआ || 
मन इिछे नानक फल पाए पूरन इछ पुजारिआ || २ || ५ || २३ || 

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब: पन्ना ८०६-०७)




कुछ समय के बाद एक दिन श्री हरि गोबिंद जी को बुखार हो गया| जिससे उनको सीतला निकाल आई| सारे शरीर और चेहरे पर छाले हो गए| इससे माता और सिख सेवकों को चिंता हुई| श्री गुरु अर्जन देव जी ने सबको कहा कि बालक का रक्षक गुरु नानक आप हैं| चिंता ना करो बालक स्वस्थ हो जाएगा|

जब कुछ दिनों के पश्चात सीतला का प्रकोप धीमा पड गया और बालक ने आंखे खोल ली| गुरु जी ने परमात्मा का धन्यवाद इस शब्द के उच्चारण के साथ किया-




राग गउड़ी महला ५|| 



नेत्र प्रगास कीआ गुरदेव || 

भरम गए पूरन भई सेव || १ || रहाउ || 

सीतला ने राखिआ बिहारी || 
पारब्रहम प्रभ किरपा धारी || १ || 

नानक नामु जपै सो जीवै || 
साध संगि हरि अंमृतु पीवै || २ || १०३ || १७२ || 

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब: पन्ना २००)

श्री गुरु हरि गोबिंद जी के तीन विवाह हुए| 

पहला विवाह - 
12 भाद्रव संवत 1661 में (डल्ले गाँव में) नारायण दास क्षत्री की सपुत्री श्री दमोदरी जी से हुआ|

संतान - 
बीबी वीरो, बाबा गुरु दित्ता जी और अणी राय|


दूसरा विवाह - 
8 वैशाख संवत 1670 को बकाला निवासी हरीचंद की सुपुत्री नानकी जी से हुआ|

संतान - 
श्री गुरु तेग बहादर जी|


तीसरा विवाह -
11 श्रावण संवत 1672 को मंडिआला निवासी दया राम जी मरवाह की सुपुत्री महादेवी से हुआ|

संतान - 
बाबा सूरज मल जी और अटल राय जी|
 

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.