शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday, 1 October 2014

श्री गुरु अंगद देव जी - गुरु गद्दी मिलना

श्री गुरु अंगद देव जी - गुरु गद्दी मिलना



सिखों को श्री लहिणा जी की योग्यता दिखाने के लिए तथा दोनों साहिबजादो, भाई बुड्डा जी आदि और सिख प्रेमियों की परीक्षा के लिए आप ने कई कौतक रचे, जिनमे से कुछ का वर्णन इस प्रकार है:-

गुरु जी ने एक दिन रात के समय अपने सिखों व सपुत्रो को बारी-२ से यह कहा कि हमारे वस्त्र नदी पर धो कर सुखा लाओ| पुत्रो ने कहा,"अब रात आराम करो दिन निकले धो लायेंगे|" सिखों ने भी आज्ञा ना मानी| पर लहिणा जी उसी समय आपके वस्त्र उठाकर धोने चले गए और सुखा कर वापिस लाए|

एक दिन गुरु जी के निवास स्थान पर चूहिया मरी पड़ी थी| गुरु जी ने लखमी दास व श्री चंद के साथ और सिखों को भी कहा कि बेटा! यह मृत चूहिया बाहर फेंक दो| बदबू के कारण किसी ने भी गुरु जी कि बात कि परवाह नहीं कि| फिर गुरु जी ने कहा, पुरुष! यह मृत चूहिया फेंक कर फर्श साफ कर दो| तब भाई लहिणा जी शीघ्रता से चूहिया पकडकर बाहर फेंक दी और फर्श धोकर साफ कर दिया|

एक दिन गुरु जी ने कंसी का एक कटर कीचड वाले पानी में फेंक कर कहा कि हमारा कीचड़ में गिरा कटोरा साफ करके लाओ| वस्त्र खराब होने के डर से बेटों व सिखों ने इंकार कर दिया| पर लहिणा जी उसी समय कीचड़ वाले गड्डे में चले गए और कटोरा साफ करके गुरु जी के समक्ष आये|

एक बार लगातार बारिश के कारण लंगर का प्रबंध ना हो सका| गुरु जी जी ने सबको कहा कि इसी सामने वाले किकर के वृक्ष पर चढ़कर उसे हिलाकर मिठाई झाड़ो| सब ने कहा, महाराज! कीकरों पर भी मिठाई होती है, जो हिलाने पर नीचे गिरेगी? संगत के सामने हमे शर्मिंदा क्यों करवाते हो? तब गुरु जी ने भाई लहिणा को कहा, पुरुष! तुम ही किकर को हिलाकर संगत को मिठाई खिलाओ| संगत भूखी है| गुरु जी का आदेश मान कर भाई जी ने वैसा ही किया| वृक्ष के हिलते ही बहुत सारी मिठाई नीचे गिरी, जिसे खाकर संगत तृप्त हो गई|

एक दिन गुरु जी ने मैले कुचैले वस्त्र पहनकर, हाथ में कट्टार व डंडा पकड़कर, कमर पर रस्से बांध लिए व चार पांच कुत्ते पीछे लगा लिए| काटने के भय से कोई भी गुरु जी के नजदीक ना आये| तत्पश्चात जब गुरु जी जंगल पहुँचे तो केवल पांच सिख, बाबा बुड्डा जी व लहिणा जी साथ रह गए| गुरु जी ने अपनी माया के साथ चादर में लपेटा हुआ मुर्दा दिखाया व सिखों को खाने के लिए कहा| यह बात सुनकर दूसरे सिख वृक्ष के पीछे जा खड़े हुए,पर भाई लहिणा जी वहीं खड़े रहे| गुरु जी ने उनसे ना जाने का कारण पूछा तो भाई कहने लगे, मेरे तो तुम ही तुम हो, में कहा जाऊँ? तब गुरु जी ने कहा अगर नहीं जाना तो इस मुर्दे को खाओ| भाई जी ने गुरु जी से पूछा, महाराज! किस तरफ से खाऊँ, सिर या पाँव कि तरफ से? गुरु जी ने उत्तर दिया पाँव कि तरफ से| जब लहिणा जी गुरु जी का वचन मानकर पाँव वाला कपडा उठाया तो वहाँ मुर्दे कि जगह कड़ाह का परसाद प्रतीत हुआ| जब भाई जी खाने को तैयार हुए तो गुरु जी ने उन्हें अपनी बाहों में लेकर कहा कि हमारे अंग के साथ लगकर आप अंगद हो गए|


इस तरह आपको अपनी गद्दी का योग्य अधिकारी जानकर १७ आषाढ संवत १५१६ को पांच पैसे व नारियल आप जी के आगे रखकर तीन परिक्रमा कि और पहले खुद माथा टेका,फिर संगत से टिकवाया| उसके पश्चात् वचन किया कि आज से इन्ही को मेरा ही रूप समझना, जो इनको नहीं मानेगा वो हमारा सिख नहीं है| गुरु जी कि आज्ञा मानकर सभी ने गुरु अंगद देव जी को माथा टेक दिया मगर दोनों साहिबजादों ने यह कहकर माथा टेकने से इंकार कर दिया कि हम अपने एक सेवक को माथा टेकते अछे नहीं लगते|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.