शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Saturday, 23 August 2014

श्री साईं लीलाएं - दासगणु को ईशोपनिषद का रहस्य नौकरानी द्वारा सिखाना

ॐ सांई राम




कल हमने पढ़ा था.. किसी से बुरा मत बोलो 

श्री साईं लीलाएं

दासगणु को ईशोपनिषद का रहस्य नौकरानी द्वारा सिखाना

एक बार दासगणु जी महाराज ने ईशोपनिषद् पर 'ईश्वास्य-भावार्थ-बोधिनी टीका' लिखनी शुरू की| इस ग्रंथ पर टीका लिखना वास्तव में बहुत ही कठिन कार्य है| दासगणु ने ओवी छंदों में इसकी टीका तो की, पर सारतत्व उनकी समझ में नहीं आया| टीका लिखने के बाद भी उन्हें आत्मसंतुष्टि नहीं हुई| अपनी शंका के समाधान के लिए उन्होंने अनेक विद्वानों से परामर्श किया, परन्तु उसका कोई समाधान नहीं हो सका|

जब दासगणु को किसी भी तरह से संतुष्टि न हुई हो उन्होंने अपने मन में विचार किया कि इस समस्या का समाधान वही कर सकता है, जिसने आत्म-साक्षात्कार कर लिया हो, क्योंकि उपनिषद् एक ऐसा शास्त्र है जिसका रहस्य जानने से जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है| इसलिए उन्होंने शिरडी जाने का निर्णय का लिया| फिर अवसर पाते ही वह शिरडी जा पहुंचे - और साईं बाबा के दर्शन करके चरणवंदना की| फिर उपनिषद् पर टीका लिखने पर आयी समस्या और अपनी शंका के लिए बाबा से प्रार्थना की - "बाबा आप यदि मेरी समस्या का समाधान कर दें तो मेरे सारे परिश्रम पूर्णता होंगे| आप तो सब कुछ जानने वाले हैं| अप आप ही कुछ करें|"

सब कुछ सुनने के बाद साईं बाबा ने उन्हें अपना आशीर्वाद देते हुए आश्वासन दिया - "इसमें फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है| इसमें कठिनाई ही क्या है, जब तुम वापस लौटोगे तो बिलपार्ले में रहने वाले काका साहब दीक्षित की नौकरानी तुम्हारी समस्या का समाधान कर देगी|"

बाबा के श्रीमुख से ऐसे वचन सुनकर दासगणु हैरान रह गये| उन्होंने अपने मन में सोचा, 'कहीं बाबा मजाक तो नहीं कर रहे| क्या एक साधारण अनपढ़ नौकरानी, उपनिषद् का रहस्य सुलझा देगी? जो मैं न जान सका, जहां विद्वानों की बुद्धि हार गयी, वह यह कैसे करेगी?' लेकिन बाबा की बात तो ब्रह्म वाक्य होते हैं| अत: वे कभी असत्य नहीं हो सकते| उन्हें बाबा का पूर्ण विश्वास था|

बाबा के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा रखकर दासगणु शिरडी से मुम्बई के विलेपार्ले में काका साहब दीक्षित के घर पहुंचे| अगले दिन जब वे सुबह के समय उठे तो उन्हें किसी बालिका द्वारा गीत गाने की आवाज सुनाई दी| गीत का भाव यह था कि वह लाल साड़ी कितनी सुंदर थी, उसका जरी वाला आंचल कितना सुंदर था, उसके किनारे कितने सुंदर थे| दासगणु को यह गीत बड़ा अच्छा लगा और वे धीरे-धीरे गीत के बोल पर झूमने लगे| मन को अद्भुत आनंद प्राप्त हुआ| जब उन्होंने बाहर आकर देखा तो वह गीत काका साहब दीक्षित की नाम्या नाम की नौकर की बहन बर्तन मांजते हुए गा रही थी| वह मात्र आठ वर्ष की थी और अपने तन को एक फटी-पुरानी साड़ी से ढके हुए थी| दरिद्रता की ऐसी अवस्था में भी वह कितनी खुश थी| उसको खुश देखकर दासगणु का मन दया से भर गया| अगले दिन दासगणु ने भोरेश्वर विश्वनाथ प्रधान से एक अच्छी-सी साड़ी मंगवाकर उस लड़की को दे दी| जब उस बालिका को साड़ी दी तो वह इतनी खुश हुई जितनी खुशी भूखे को भोजन मिलने पर होती है| दूसरे दिन उसने वह नई साड़ी पहनी और नाचने-कूदने लगी, गाती रही|

फिर अगले दिन उसने नई साड़ी को संभालकर रख दिया और पहले की तरह फटी-पुरानी उसी साड़ी को पहनकर काम पर आयी| लेकिन नई साड़ी पाने से जो खुशी कल उसके चेहरे पर झलक रही थी, वह आज भी विद्यमान थी| उसे देखकर दासगणु की दया आश्चर्य में बदल गयी|

दासगणु विचारने लगे कि गरीबी के कारण उसे फटे-पुराने वस्त्र पहनने पड़ते थे| लेकिन अब तो उसके पास नयी साड़ी थी, फिर भी उसने नई साड़ी को संभालकर रख दिया था और फटे-पुराने कपड़े पहनकर भी उसके आनंद में कोई कमी नहीं आई थी| उसके चेहरे पर दुःख या निराशा का भाव जरा-सा भी नहीं था| उसे दोनों स्थितियों में खुश देखकर दासगणु समझ गये कि सुख और दुःख केवल अपनी मनोस्थिति पर निर्भर हैं| फिर ईशावास्य का रहस्य उनकी समझ में आ गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि परमात्मा ने जो कुछ दिया है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए और जो भी जैसी भी स्थिति है, उसी परमात्मा का कृपा-प्रसाद है| वह स्थिति निश्चित ही सुखद रहेगी| फिर वे विचार करने लगे, बालिका की निर्धन अवस्था, उसके फटे-पुराने कपड़े, नई साड़ी देने वाला और उसकी स्वीकृति देने वाला आदि ये सब उस परमात्मास द्वारा निर्देशित था|

दासगणु को उस नौकरानी द्वारा प्रत्यक्ष में यह शिक्षा मिली कि जो कुछ स्वयं के पास है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए, उसी में कल्याण है| साईं बाबा उसको स्वयं इसका अर्थ बता सकते थे| चाहे वे कितने शब्दों का उपयोग करते तो भी तत्वज्ञान उनकी समझ में नहीं आता, जितना एक अनुभव से आ गया| इसलिए उन्होंने दासगणु को काका साहब की नौकरानी के पास भेजा था| परमात्मा कण-कण में मौजूद है| यह सारा संसार उस परमात्मा के द्वारा ही संचालित हो रहा है और वही सबके अंतर्मन में समाकर यह खेल खेलता है| बाबा और उस नौकरानी में कोई अंतर नहीं है - यही समझाने के लिए दासगणु को बाबा ने वहां भेजा था|


कल चर्चा करेंगे..धर्मग्रंथ गुरु बिना पढ़ना बेकार       

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.