शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Friday, 20 June 2014

श्री साईं लीलाएं - तात्या को बाबा का आशीर्वाद

ॐ सांई राम


परसों हमने पढ़ा था.. ब्रह्म ज्ञान को पाने का सच्चा अधिकारी

श्री साईं लीलाएं

तात्या को बाबा का आशीर्वाद

शिरडी में सबसे पहले साईं बाबा ने वाइजाबाई के घर से ही भिक्षा ली थीवाइजाबाई एक धर्मपरायण स्त्री थीउनकी एक ही संतान तात्या थाजो पहले ही दिन से साईं बाबा का परमभक्त बन गया था|



वाइजाबाई ने यह निर्णय कर लिया था कि वह रोजाना साईं बाबा के लिए खाना लेकर स्वयं ही द्वारिकामाई मस्जिद जाया करेगी और अपने हाथों से बाबा को खाना खिलाया करेगीअब वह रोजाना दोपहर को एक टोकरी में खाना लेकर द्वारिकामाई मस्जिद पहुंच जाती थीकभी साईं बाबा धूनी के पास अपने आसन पर बैठे हुए मिल जाया करते और कभी उनके इंतजार में वह घंटों तक बैठी रहती थीवह न जाने कहां चले जाते थे इस सबके बावजूद वाईजाबाई उनका बराबर इंतजार करती रहती थीकभी-कभार बहुत ज्यादा देर होने पर वह उन्हें ढूंढने के लिए निकल जाया करती थी|
कभी-कभी जंगलों में भी ढूंढने के लिए चली जाती थीकड़कड़ाती धूप हो या मूसलाधार बारिश अथवा हडि्डयों को कंपा देने वाली ठंड होवाइजाबाई साईं बाबा को ढूंढती फिरती और जब उसे कहीं ने मिलते तो वह निराश होकर फिर द्वारिकामाई मस्जिद लौट आती थी
|
एक दिन वाइजाबाई जब बाबा को खोजतीथकी-मांदी मस्जिद पहुंची तो उसने बाबा को धूनी के पास अपने आसन पर बैठे पाया|वाईजाबाई को देखकर बाबा बोले - "मांमैं तुम्हें बहुत ही कष्ट देता हूंजो बेटा अपनी माँ को दुःख देउससे अधिक अभागा और कोई नहीं हो सकता है|मैं अब तुम्हें बिल्कुल भी कष्ट नहीं दूंगाजब भी तुम खाना लेकर आया करोगीमैं तुम्हें मस्जिद में ही मिला करूंगा|" साईं बाबा ने वाइजाबाई से कहा
|
उस दिन के बाद बाबा खाने के समय कभी भी मस्जिद से बाहर न जाते थेवाइजाबाई खाना लेकर मस्जिद पहुंचती तो बाबा उसे वहां पर अवश्य मिलते
|

"
साईं बाबा... !" वाइजाबाई ने कहा
|

"
ठहरो मां... !" साईं बाबा खाना खाते-खाते रुक गए और बोले - "मैं तुम्हें माँ कहता ही नहींअपनी आत्मा से भी मानता हूं
|"

"
तू मेरा बेटा हैतू ही मेरा बेटा हैतूने माँ कहा है न|" वाइजाबाई प्रसन्नता से गद्गद् होकर बोली
|

"
तुम बिल्कुल ठीक कहती हो मां ! मुझ जैसे अनाथअनाश्रित और अभागे को अपना बेटा बनाकर तुमने बड़े पुण्य का काम किया है मां|" साईं बाबा ने कहा - "इन रोटियों में जो तुम्हारी ममता हैक्या पता मैं तुम्हारे इस ऋण से कभी मुक्त हो भी पाऊंगा या नहीं 
?"

"
यह कैसी बात कर रहा है तू बेटा ! मां-बेटे का कैसा ऋण यह तो मेरा कर्त्तव्य हैकर्त्तव्य में ऋण की बात कहा ?" वाइजाबाई ने कहा - "इस तरह की बातें आगे से बिल्कुल मत करना
|"

"
अच्छा-अच्छा नहीं कहूंगाफिर कभी नहीं कहूंगा|" साईं बाबा ने जल्दी से अपने दोनों कानों को हाथ लगाकर कहा - "तुम घर जाकर तात्या को भेज देना
|"

"
वो तो लकड़ी बेचने गया हैआते ही भेज दूंगी|" कहने के पश्चात् वाइजाबाई के चेहरे पर सहसा गहरी उदासी छा गयी
|
वाइजाबाई की आपबीती सुनकर साईं बाबा की आँखें भीग गयींवह कुछ देर तक मौन बैठे रहे और फिर बोले - "वाइजा मांभगवान् भला करेंगेफिक्र मत करोसुख और दुःख तो इस जिंदगी के जरूरी अंग हैंजब तक इंसान इस दुनिया में जिंदा रहता हैउसे यह सब तो भोगना ही पड़ता है
|"
वाइजाबाई की आँखें भर आयी थींउसने अपनी टोकरी उठाई और थके-हारे कदमों से वह अपने घर की ओर वापस चल पड़ी
|

तात्या अभी थोड़ी-सी ही लकड़ियां काट पाया था कि अचानक आकाश में काली-काली घटाएं उमड़ने लगींबिजली कड़कने और गरजने से जंगल का कोना-कोना गूंज उठातात्या के पसीने से भरे चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गयींवह सोचने लगाअब क्या होगाइन लकड़ियों के तो कोई चार पैसे भी नहीं देगा - और यदि यह भीग गई तो कोई मुफ्त में भी नहीं लेगाघर में एक मुट्ठी अनाज नहीं हैतो रोटी कैसे बनेगी तब रात को माँ साईं बाबा को क्या खिलायेगी इसी चिंता में डूबे तात्या ने जल्दी से लड़कियां समेटीं और गांव की ओर चल पड़ातभी बड़े जोर से मूसलाधार बारिश शुरू हो गईवह जल्दी-जल्दी पांव बढ़ाने लगा
|
अभी वह गांव से कुछ ही दूरी पर था कि अचानक एक तेज अवाज सुनाई दी - "ओ लकड़ी वाले !"


उसके बढ़ते हुए कदम थम गए|
उसने जोर से पुकारा - "कौन है भाई 
?"
और तभी एक आदमी उसके सामने आकर खड़ा हो गया
|

"
क्या बात है ?" तात्या ने पूछा
|

"
लकड़ियां बेचोगे ?" उस आदमी ने पूछा
|

"
हां-हांक्यों नहीं बेचूंगा भाई ! मैं बेचने के लिए ही तो रोजाना जंगल से लकड़ियां काटकर लाता हूं|" तात्या ने जल्दी से जवाब दिया
|

"
कितने पैसे लोगे इन लकड़ियों के 
?"

"
जो मर्जी होदे दोआज तो लकड़ियां बहुत कम हैं और वैसे भी भीग भी गई हैंजो भी दोगे ले लूंगा
|"

"
लोयह रुपया रख लो
|"
तात्या हैरानी से उस व्यक्ति को देखने लगा
|

"
कम है तो और ले लो|" उस आदमी ने जल्दी से जेब से एक रुपया और निकालकर तात्या की ओर बढ़ाया
|

नहीं-नहींकम नहीं हैज्यादा हैंलकड़ियां थोड़ी हैं|" तात्या ने जल्दी से कहा
|

"
तो क्या हुआआज से तुम रोजाना मुझे यहां पर लकड़ियां दे जाया करोमैं तुम्हें यहीं मिला करूंगायदि आज ये लकड़ियां कुछ कम हैंतो कल लकड़ियां ज्यादा ले आनातब हमारा-तुम्हारा हिसाब बराबर हो जाएगा|" उसने हँसते हुए कहा और रुपया जबरदस्ती उसके हाथ पर रख दिया
|
तात्या ने रुपये जल्दी से अपने अंगरखे की जेब में रखे और फिर तेजी से गांव की ओर चल दियाघर पहुंचकर उसने माँ के हाथ पर रुपये रखे तो माँ आश्चर्य से उसका मुंह देखने लगी
|

"
इतने रुपये कहां से ले आया तात्या ?" माँ ने आशंकित होकर पूछातात्या ने अपनी माँ को पूरी घटना बता दी
|

"
ये तूने ठीक नहीं किया बेटाकल उसे ज्यादा लकड़ियां दे आनाइंसान को अपनी ईमानदारी की कमाई पर ही संतोष करना चाहिएबेईमानी का जरा-सा भी विचार कभी अपने मन में नहीं लाना चाहिए|" वाइजाबाई ने तात्या को समझाते हुए कहा
|
अगले दिन जब तात्या जंगल में गया तो उस समय वर्षा रुक गयी थीआकाश एकदम साफ थातात्या ने जल्दी-जल्दी और दिन से ज्यादा लकड़ियां काटीं और गट्ठर बनाने लगागट्ठर भारी थारोजाना तो वह अकेले ही लकड़ियों का गट्ठर उठाकर सिर पर रख लिया करता थालेकिन आज लकड़ियां ज्यादा थींवह अकेला उस गट्ठर को उठा नहीं सकता थावह किसी मुसाफिर की राह देखने लगा ताकि उसकी सहायता से उस भारी गट्ठर को उठाकर सिर पर रख सके|अचानक उसे सामने से एक मुसाफिर आता हुई दिखाई दियाजब वह पास आ गया तो तात्या ने उससे कहा -"भाई ! जरा मेरा बोझा उठवा दो|" उस मुसाफिर ने तात्या के सिर पर गट्ठर उठवाकर रखवा दियाअब तात्या तेजी से चल पड़ा
|

"
अरे भाई तात्याक्या बात हैआज तुमने इतनी देर कैसे कर दी मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं|" पिछले दिन वाले आदमी ने मुस्कराते हुए कहा
|

"
आज लकड़ियां और दिन के मुकाबले ज्यादा हैंरोजाना लकड़ियां कम होती थींइसलिए मैं अकेला ही गट्ठर होने के कारण मैं उसे अकेला नहीं उठा पा रहा थाबहुत देर बाद जब एक आदमी आया मैं उसकी सहायता से गट्ठर उठवाकर सिर पर रख पायातो सीधा भागता हुआ चला आया हूं
|"
उस आदमी ने लकड़ी के गट्ठर पर एक नजर डाली और बोला - "आज तो तुम ढेरसारी लकड़ियां काट लाए
|"

"
तुम ठीक कर रहे होलेकिन कल तुम्हें बहुत कम लकड़ियां मिली थींपरतुमने पैसे पूरे दे दिए थेइसलिए तुम्हारा हिसाब भी तो बराबर करना थाकल तुमने रुपये दे दिये थेउसी के बदले सारी लकड़ियां ले जाओअब तक का हिसाब बराबर|" तात्या ने हँसते हुए कहा
|

"
कहां ठीक है तात्या भाई ! जिस तरह तुम ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ता चाहतेउसी तरह मैंने भी बेईमानी करना नहीं सीखा|" उस आदमी ने कहा और अपनी जेब से रुपया निकालकर तात्या की हथेली पर रख दिया - "लोइसे रखोहमारा आज तक का हिसाब-किताब बराबरआज लकड़ियां और दिनों से दोगुनी हैंइसलिए हिसाब भी दोगुना होना चाहिए
|"
तात्या ने रुपया लेने से बहुत इंकार कियापर उस आदमी ने समझा-बुझाकर वह रुपया तात्या को लेने पर विवश करतात्या ने वह रुपया जेब में रखाफिर वह गांव की ओर चल दिया
|
अभी वह थोड़ी ही दूर गया था कि अचानक उसे कुल्हाड़ी की याद आयीजल्दबाजी में वह कुल्हाड़ी जंगल में ही भूल आया थाअपनी भूल का अहसास होते ही वह तेजी से जंगल की ओर लौट पड़ाअब उसे वह आदमी और लड़कियों का गट्ठर कहीं भी दिखाई न दियाउसने बहुत दूर-दूर तक नजर दौड़ाईलेकिन उस आदमी का कहीं भी अता-पता न थातात्या की हैरानी की सीमा न रहीदोपहर का समय थाआखिर वह आदमी इतनी जल्दी इतना बोझ उठाकर कहां चला गया दूर-दूर तक उस आदमी का पता न थाआश्चर्य में डूबा तात्या वापस आ गयावह इस बात को किसी से कहे या न कहेइस बात का फैसला नहीं कर पा रहा था
|
घर आकर वह अपनी माँ के साथ द्वारिकामाई मस्जिद आयावाइजाबाई ने दोनों को खाना लगा दियाखाना खाते समय तात्या ने लकड़ी खरीदने वाले के बारे में साईं बाबा को बतायासाईं बाबा बोले -"तात्याइंसान को वही मिलता हैजो परमात्मा ने उसके भाग्य में लिखा हैइसमें कोई संदेह नहीं है कि बिना गेहनत किये धन नहीं मिलता हैफिर भी धन-प्राप्ति में मनुष्य के कर्मों का भी बहुत योगदान होता हैवैसे चोर-डाकू भी चोरी-डाका डालकर लाखों रुपये ले आते हैंलेकिन वे सदैव गरीब-के-गरीब ही बने रहते हैंन तो उन्हें समय पर भरपेट भोजन ही मिलता है और न चैन की नींद आती हैजबकि एक गरीब आदमी थोड़ी-सी मेहनत करके इतना पैसा पैदा कर लेता है कि जिससे बड़े आराम से उसका और उसके परिवार की गुजर-बसर हो सकेवह स्वयं भी इत्मीनान से रूखी-सूखी खाता है और चैन की नींद सोता है तथा मुझ जैसे फकीर की झोली में भी रोटी का एक-आध टुकड़ा डाल देता हैतुम्हें जो कुछ मिलता हैवह तुम्हारे भाग्य में लिखा है
|"

"
लेकिन वह आदमी और लकड़ियों का गट्ठर कहां गायब हो गए ?" तात्या ने हैरानी से पूछा
|

"
भगवान के खेल भी बड़े अजब-गजब हैंतात्या ! इंसान अपनी साधरण आँखों से उसे देख नहीं पाता|" साईं बाबा ने गंभीर होकर कहा - "तुम्हें बेवजह परेशान होने की कोई जरूरत नहीं हैयह तो देने वाला जानता है कि वह किस ढंग से और किस जरिये रोजी-रोटी देता हैभगवान जब किसी भी प्राणी को इस दुनिया में भेजता हैतो उसे भेजने से पहले उन सभी चीजों को भेज देता हैजिसकी उस जन्म लेने वाले को जरूरत पड़ती है|" साईं बाबा ने तात्या को बड़े ही प्यार से समझाया
|
तात्या साईं बाबा के चरणों में गिर गयाउसे साईं बाबा की बात पर सहसा विश्वास न हो पा रहा थावह कहना चाहता था कि बाबायह सब आपका ही करिश्मा हैइस प्रकार का खेल खेलकर आप ही उसकी रोटी का इंतजाम कर रहे हैंउसने बहुत चाहा कि वह इस बात को साईं बाबा से कहेपर कह नहीं पाया और केवल आँसू टपकाता रह गया
|
वास्तव में तात्या के मन में साईं बाबा के प्रति अपार श्रद्धा और अटूट विश्वास थाइसी कारण बाबा का भी उस पर विशेष स्नेह था
|
अचानक साईं बाबा उठकर खड़े हो गए और बोले - "चलो तात्याघर चलो|" कहकर मस्जिद की सीढ़ियों की ओर चल दिये
|
साईं बाबा सीधे वाइजाबाई की उस कोठरी में गएजहां पर वह सोया करती थीउस कोठरी में एक पलंग पड़ा था
|

"
तात्याएक फावड़ा ले आओ|" साईं बाबा ने कोठरी में चारों ओर निगाह घुमाते हुए कहा
|
तात्या फावड़ा ले आयाउसकी और वाइजाबाई की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि साईं बाबा ने फावड़ा क्यों मंगाया है
?

"
तात्याइस पलंग के सिरहाने वाले दायें ओर के पाएं के नीचे खोदो|" इतना कहकर साईं बाबा ने पलंग एक ओर को सरका दिया
|

"
यहां क्या है बाबा ?" तात्या ने पूछा
|

"
खोदो तो सही|" साईं बाबा ने कहा
|

तात्या ने अभी तीन-चार फावड़े ही मारे थे कि अचानक फावड़ा किसी धातु से टकराया
|

"
धीरे-धीरे मिट्टी हटाओतात्या|" साईं बाबा ने गड्ढे में झांकते हुए कहा
|
तात्या फावड़े से धीरे-धीरे मिट्टी हटाने लगाकुछ देर बाद उसने तांबे का एक कलश निकालकर साईं बाबा के सामने रख दिया
|

"
इसे खोलोतात्या !"


तात्या ने कलश पर रखा ढक्कन हटाकर उसे फर्श पर उलट दियादेखते-ही-देखते उस कलश में से सोने की अशर्फियांमूल्यवान जेवर और हीरे निकलकर बिखर गए|

"
यह तुम्हारे पूर्वजों की सम्पत्ति हैतुम्हारे भाग्य में ही मिलना लिखा थातुम्हारे पिता के भाग्य में यह सम्पत्ति नहीं थी|" साईं बाबा ने कहा - "इसे संभालकर रखो और समझदारी से खर्च करो
|"
वाइजा और तात्या के आश्चर्य का कोई ठिकाना न थावह उस अपार सम्पत्ति को देख रहे थे और सोच रहे थे कि यदि उन पर साईं बाबा की कृपा न होती तो सम्पत्ति उन्हें कभी भी प्राप्त न होतीतात्या ने अपना सिर साईं बाबा के चरणों पर रख दिया और फूट-फूटकर बच्चों की तरह रोने लगा
|
वाइजाबाई बोली - "साईं बाबा ! हम यह सब रखकर क्या करेंगेहमारे लिए तो रूखी-सूखी रोटी ही बहुत हैआप ही रखिये और मस्जिद के काम में लगा दीजिए
|"
साईं बाबा ने वाइजाबाई का हाथ पकड़कर कहा -"नहीं मां ! यह सब तुम्हारे भाग्य में थायह सारी सम्पत्ति केवल तुम्हारी हैमेरी बात मानोइसे अपने पास ही रखो
|"
साईं बाबा की बात को वाइजाबाई को मानना ही पड़ाउसने कलश रख लियातब साईं बाबा चुपचाप उठकर अपनी मस्जिद में वापस आ गये और धूनी के पास इस प्रकार लेट गयेजैसे कुछ हुआ ही नहीं है
|

तात्या ने इस सम्पत्ति से नया मकान बनवा लिया और बहुत ही ठाठ-बाट से रहने लगागांव वाले हैरान थे कि अचानक तात्या के पास इतना पैसा कहां से आया वे इस बात को तो जानते थे कि साईं बाबा तात्या की माँ वाइजाबाई को माँ कहकर पुकारते हैं और तात्या से अपने भक्त या शिष्य की तरह नहींबल्कि छोटे भाई के समान स्नेह करते हैंअत: सबको विश्वास हो गया कि तात्या पर साईं बाबा की ही कृपा हुई हैइसी कृपा से वह देखते-ही-देखते सम्पन्न हो गया है
|
तात्या को सम्पन्न देख धन के लोभीलालची लोग भी साईं बाबा के पास जाने लगेरात-दिन सेवा किया करते कि शायद साईं बाबा प्रसन्न हो जाएं और उन्हें भी धनवान बना देंसाईं बाबा उन लोगों की भावनाओं को अच्छी तरह से जानते थेवह न तो उन्हें मस्जिद में आने से रोकना चाहते थे और न ही उन्हें डांटना चाहते थेउनका विश्वास था कि यहां आते-आते या तो इनके विचार ही बदल जायेंगे या फिर निराश होकर स्वयं ही आना बंद कर देंगेवह किसी को कुछ न कहते थेचुपचाप अपनी धूनी के पास बैठे तमाशा देखा करते थेकुछ तो इतने बेशर्म लोग थे कि साईं बाबा ने एकदम स्वयं को धनवान बनाने के लिए कहते - "बाबाहमें भी तात्या का तरह धनवान बना दो
|"
उन लोगों की बातें सुनकर साईं बाबा हँस पड़ते और बोलते - "मैं कहां से कुछ कर सकता हूंमैं तो स्वयं कंगाल हूंभला मेरे पास कहां से कुछ आया
|"
साईं बाबा का ऐसा जवाब सुनकर सब चुप रह जातेफिर आगे कोई भी कुछ न कह पाता था


कल चर्चा करेंगे..तुम्हारी जेब में पैसा-ही-पैसा
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.