शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Friday, 30 May 2014

रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीभरत

ॐ श्री साँईं राम जी


श्रीभरतजीका चरित्र समुद्रकी भाँति अगाध है, बुद्धिकी सीमासे परे है| लोक-आदर्शका ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण अन्यत्र मिलना कठिन है| भ्रातृप्रेमकी तो ये सजीव मूर्ति थे|

ननिहालसे अयोध्या लौटनेपर जब इन्हें मातासे अपने पिताके सर्वगवासका समाचार मिलता है, तब ये शोकसे व्याकुल होकर कहते हैं - 'मैंने तो सोचा था कि पिताजी श्रीरामका अभिषेक करके यज्ञकी दीक्षा लेंगे, किन्तु मैं कितना बड़ा अभागा हूँ कि वे मुझे बड़े भइया श्रीरामको सौंपे बिना स्वर्ग सिधार गये| अब श्रीराम ही मेरे पिता और बड़े भाई हैं, जिनका मैं परम प्रिय दास हूँ| उन्हें मेरे आनेकी शीघ्र सुचना दें| मैं उनके चरणोंमें प्रणाम करूँगा| अब वे ही मेरे एकमात्र आश्रय हैं|'

जब कैकयीने श्रीभरतजीको श्रीराम-वनवासकी बात बतायी, तब वे महान् दुःखसे संतप्त हो गये| इन्होंने कैकेयीसे कहा - 'मैं समझता हूँ, लोभके वशीभूत होनेके कारण तू अबतक यह न जान सकी कि मेरा श्रीरामचन्द्रके साथ भाव कैसा है| इसी कारण तूने राज्यके लिये इतना बड़ा अनर्थ कर डाला| मुझे जन्म देनेसे अच्छा तो यह था कि तू बाँझ ही होती| कम-से-कम मेरे-जैसे कुलकलंकका तो जन्म नहीं होता| यह वर माँगनेसे पहले तेरी जीभ कटकर गिरी क्यों नहीं!'

इस प्रकार कैकेयीको नाना प्रकारसे बुरा-भला कहकर श्रीभरतजी कौसल्याजीके पास गये और उन्हें सान्त्वना दी| इन्होंने गुरु वसिष्ठकी आज्ञासे पिताकि अंत्येष्टि किया सम्पन्न की| सबके बार-बार आग्रहके बाद भी इन्होंने राज्य लेना अस्वीकार कर दिया और दल-बलके साथ श्रीरामको मनानेके लिये चित्रकूट चल दिये| श्रृंगवेरपुरमें पहुँचकर इन्होंने निषादराजको देखकर रथका परित्याग कर दिया और श्रीरामसखा गुहसे बड़े प्रेमसे मिले| प्रयागमें अपने आश्रमपर पहुँचनेपर श्रीभरद्वाज इनका स्वागत करते हुए कहते हैं - 'भरत! सभी साधनोंका परम फल श्रीसीतारामका दर्शन है और उसका भी विशेष फल तुम्हारा दर्शन है| आज तुम्हें अपने बीच उपस्थित पाकर हमारे साथ तीर्थराज प्रयाग भी धन्य हो गये|'

श्रीभरतजीको दल-बलके साथ चित्रकूटमें आता देखकर श्रीलक्ष्मणको इनकी नीयतपर शंका होती है| उस समय श्रीरामने उनका समाधान करते हुए कहा - 'लक्ष्मण! भरतपर सन्देह करना व्यर्थ है| भरतके समान शीलवान् भाई इस संसारमंे मिलना दुर्लभ है| अयोध्याके राज्यकी तो बात ही क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेशका भी पद प्राप्त करके श्रीभरतको मद नहीं हो सकता|' चित्रकुटमें भगवान् श्रीरामसे मिलकर पहले श्रीभरतजी उनसे अयोध्या लौटनेका आग्रह करते हैं, किन्तु जब देखते हैं कि उनकी रुचि कुछ और है तो भगवान् की चरण-पादुका लेकर अयोध्या लौट आते हैं| नन्दिग्राममें तपस्वी-जीवन बिताते हुए ये श्रीरामके आगमनकी चौदह वर्षतक प्रतीक्षा करते हैं| भगवान् को इनकी दशाका अनुमान है| वे वनवासकी अवधि समाप्त होते ही एक क्षण भी विलम्ब किये बिना अयोध्या पहुँचकर इनके विरहको शान्त करते हैं| श्रीरामभक्ति और आदर्श भ्रातप्रेमके अनुपम उदाहरण श्रीभरतजी धन्य हैं|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.