शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Saturday, 16 November 2013

अजामल जी

ॐ साँई राम जी


अजामल जी 

अजामल उधरिआ कहि ऐक बार ||
हे भक्त जनो! अजामल की कथा श्रवण करो| इस कथा के श्रवण करने वाले को यम भी तंग नहीं करता| वह ऊंचे चाल-चलन वाला बनता है| सुनने वाले के पाप मिटते हैं| उसका कल्याण होता है, उसे मोक्ष मिलता है|

अजामल उस समय का बहुत बड़ा पापी माना गया है| वह पापी किसलिए था? उसने क्या कसूर किया था? इसकी कथा इस प्रकार है :-

अजामल एक राज-ब्राह्मण का पुत्र था| उसका पिता राजा के पास पुरोहित भी था और वजीर भी| वह बहुत अक्लमंद था| उसके सूझवान होने की चर्चा चारों ओर थी|

अजामल की आयु जब पांच साल की हुई तो उसके माता-पिता ने उसको विद्यालय में दाखिल करवा दिया| वह जिस गुरु से पढ़ता था वह बहुत ही सूझवान था| सूझवान गुरु को जब सूझवान शिष्य मिल जाता है तो वह बहुत खुश हो जाता है ऐसी ही हालत अजामल के गुरु की भी थी| उसने देखा कि अजामल की जुबान पर सरस्वती बैठी है वह जो भी शब्द पढ़ता या सुनता वही कंठस्थ कर लेता| उसका कंठ भी रसीला था| जब वह वेद मंत्र पढ़ता तो एक अनोखा ही रंग दिखाई देता था| वह बहुत ही बुद्धिमान निकला| उसने केवल दस साल में ही बीस साल की विद्या प्राप्त कर ली| उसकी विद्वता की चहुं ओर प्रसिद्धि हो गई| ऐसी प्रसिद्धि कि बड़े-बड़े विद्वान भी उसके दर्शन करने आते थे|

एक दिन अजामल के गुरु ने कहा - 'अजामल! अभी तुम शिष्य हो!'

'हां, गुरुदेव मैं शिष्य हूं - पर कितनी देर शिष्य रहूंगा?' 'कोई चार साल और लगेंगे| चारों वेद और उपनिषद पूरे हो जाएंगे|'

'जो आज्ञा गुरुदेव|'

उसके गुरु ने उसकी ओर ध्यान से देख कर कहा - अजामल जब मेरे पास आओ या अपने घर को जाओ तो नगर से बाहर-बाहर आया-जाया करो| नगर में कभी नहीं जाना, क्योंकि अभी तुम्हारे वस्त्र विद्यार्थी के हैं| गुरु कि आज्ञा का पालन करना होगा| आज्ञा का पालन न किया तो दुःख उठाओगे| सुखी वही रहता है जो गुरु की आज्ञा का पालन करता है, क्योंकि गुरु को हर प्रकार के ज्ञान और कर्म का बोध होता है|'

हे गुरुदेव! क्या मैं पूछ सकता हूं कि आप मुझे नगर में आने से क्यों रोकते हो? अजामल ने उत्तर दिया| उसका उत्तर सुनकर गुरु चुप कर गया| केवल इतना ही कहा-नगर से बाहर-बाहर आया-जाया करो, ऐसा ही कर्म है|

अजामल ने गुरु की आज्ञा का पालन किया| वह नगर के बाहर बाहर ही आया-जाया करता था| न ही वह इस बारे किसी से बात किया करता था कि उसके गुरु ने उसको नगर में जाने से मना किया है| इस तरह कई साल बीत गए| वह विद्या पढ़ता रहा| उसकी आयु अब बीस साल की हो गई| वह बहुत सुन्दर दर्शनी जवान निकला| नेत्रों में डोरे आए उसकी विद्या पूरी होने वाली थी| उसके पश्चात उसने गुरु दक्षिणा दे कर आज़ाद हो जाना था|

एक दिन उसका अपने मन से झगड़ा हो गया| उसने कहा, गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करके नगर में से जाना ही ठीक है| आखिर यह तो देखा जाए, गुरु जी रोकते क्यों हैं?

उसके एक मन का यह भी कहना था कि अजामल! गुरु की आज्ञा का पालन नहीं करेगा तो नरक का भागी होगा, बहुत दुःख भोगेगा|

देखा जाएगा, अजामल ने मन सुदृढ़ किया और वह अपने गुरु के पास से उठ कर उस मार्ग को छोड़ कर जिससे वह रोज़ आया-जाया करता था, अनदेखे रास्ते से नगर में से चल पड़ा|

अजामल के गुरु ने उसको इसलिए नगर में जाने से रोका था क्योंकि नगर में माया का विस्तार था| धन के रूप के चमत्कार ऐसे थे कि नौजवान का मन उस ओर शीघ्र आकर्षित हो जाता था| नवयुवक को पूर्ण ज्ञान नहीं होता था| गुरु के आश्रम के वेश्याओं का बाजार था, सारी ही वेश्या नगरी थी| उस मुहल्ले में वेश्याएं बैठती थीं| वह युवा-पुरुषों को अपने वश में करती थी| ऐसी हवा से बचाने के लिए ही गुरु ने अजामल को रोका था| गुरु चाहता था कि अजामल राजपुरोहित बन जाए| जब विवाह हो जाएगा तो फिर इस ओर ध्यान नहीं जाएगा| ऐसा ही विचार गुरु का था, क्योंकि गुरु के लिए शिष्य ही उसका पुत्र होता है, उसका ध्यान रखना गुरु का कर्त्तव्य और धर्म होता है| शिष्य का भी धर्म है कि वह गुरु की सेवा करे, उसकी आज्ञा का पालन करे| अजामल जब जाने लगा तो गुरु ने स्मरण करवाया कि अजामल! शहर के अन्दर मत जाना|

'बहुत अच्छा गुरुदेव' कह कर अजामल चल पड़ा| पर वह आश्रम में से निकल कर नगर के अंदर ही अंदर द्वार की ओर चल पड़ा| वह जैसे ही द्वार के भीतर गया, वैसे ही उसे नगर की महिमा बड़ी अनोखी-सी लगी| बहुत चहल-पहल थी| सबसे बड़ी बात यह थी कि सुन्दर नारियां हाव-भाव करती इधर-उधर घूमती दिखाई दीं| वह पुरुषों से मधुर बातें करती थीं| उनके रूप बहुत सुन्दर थे| नरगिस के फूल जैसे नयन थे| उनके अर्द्ध-नग्न तन तुलाब की पत्तियों की तरह चमकते थे| वह शोभा वाली थी|

उन सुन्दर नारियों को देखता हुआ अजामल अपने घर को चला गया| घर जाकर उसका मन पढ़ने और पाठ याद करने में न लगा| उसका मन बेचैन हो गया तथा जो कुछ देखा था वहीं सामने घूमने लगा| जब रात को नींद आई तो वही सपने आते रहे जो उसने नगर में देखा था| सुबह उठ कर स्नान किया| जब गुरु के पास गया तो गुरु ने उसकी आंखों में लाली देखी और पूछा-अजामल! रात सोए नहीं, क्या बात है?

'सोया था गुरुदेव!''
आंखें लाल और मन उखड़ा-सा क्यों है?''
पता नहीं गुरुदेव?''
नगर से बाहर-बाहर गया था, बाहर-बाहर आया था|'

अजामल ने पहले तो गुरु की आज्ञा का उल्लंघन किया और बाद में दूसरी महान भूल यह की कि गुरु से झूठ बोल दिया| उसने झूठ बोलते हुए कहा - गुरुदेव बाहर-बाहर गया था| वह झूठ बोला| इसलिए उसकी आत्मा कांपी, पर वह झूठ बोल चुका था|

उस दिन पढ़ने में मन न लगा| दो दोष हो गए| अजामल के मन पर बहुत भार रहा| दूसरा उसकी आंखों के सामने नगर के नजारे थे वह पाठ को पढ़ने नहीं देते थे| जैसे तैसे उसने समय व्यतीत किया| जब छुट्टी मिली तो फिर उस नगर के रास्ते ही चल पड़ा| उस नगर की वासना भरी महिमा को देखता रहा| देखता-देखता वह घर चला गया|

इस प्रकार दस-बारह दिन व्यतीत हो गए| वह नगर आता-जाता रहा| नारी रूप लीला ने उसके युवा मन को प्रभावित कर दिया| जादू जैसा असर और उसका मन डगमगाने लगा| जब मन डगमगा जाए तो मनुष्य शीघ्र शिकार हो जाता है| एक दिन एक रूपवती नवयौवना अभी खिलती जवानी 16-17 वर्ष की आयु वाली वेश्या ने उसका बाजू पकड़ लिया| उसे जाल में फंसा कर पाप कर्म की तरफ लगा लिया| वह अधिकतर समय उसके पास बैठा रहा| वह भोग-विलास में डूब गया और फिर घर चला गया| घर उसे पराया-सा लगा| उसकी आंखों में नींद न आई| सुबह पढ़ने के लिए गुरु आश्रम में समय पर न पहुंच सका|

पहले ही अजामल ने मंदे कर्म-दोष किए थे| एक गुरु की आज्ञा की अवज्ञा तथा दूसरा झूठ बोलना| उसने अब दो पाप और कर दिए| एक जूठन खाई और पराई नारी का गमन करना| वह वासना की ओर बढ़ गया| वेश्या का जूठा भोजन भी खा लिया| इन चारों ही महां-दोषों ने उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर दी| वह गुरु के पास जाता लेकिन मन भटकने से पाठ न कर पाता|

उसका सूझवान गुरु यह सब कुछ जान गया था लेकिन अपने मन की तसल्ली करने के लिए एक दिन अपने शिष्य अजामल के पीछे-पीछे चल पड़ा| उसने अपनी आंखों से देख लिया कि उसका बुद्धिमान शिष्य अजामल एक वेश्या के दर पर चला गया है| वह वापिस लौट आया और बहुत बैचेन रहा| अगले दिन जब अजामल आया तो गुरु ने उसे कहा-अजामल इस आश्रम से चले जाओ, तुमने जो कुछ पढ़ना था वह पढ़ लिया है| यह कह कर गुरु ने अजामल को भेज दिया| तदुपरांत गुरु ने अजामल के पिता को बुलाकर कर कहा -

'आप अजामल का विवाह कर दें| इसका अब कुंवारा रहना योग्य नहीं|'

अजामल का पिता राजपुरोहित था| राजपुरोहित होने के कारण उसके लिए अजामल का विवाह करना कोई मुश्किल कार्य न था| उसने शीघ्र ही अजामल के लिए योग्य कन्या देखकर उसे परिणय सूत्र में बांध दिया|

अजामल का विवाह हो गया| उसके घर एक सुन्दर, सुशील, गुणवंती तथा तेजवान दुल्हन आ गई| लेकिन अजामल का मन अब भी चंचल ही रहा| वह अपनी पत्नी से तृप्त न हुआ| वह वेश्या के द्वार पर फिर जाने लग गया| परन्तु उसका वेश्या के पास जाना छिपा न रह सका| इसका सब को पता चल गया| उसकी धर्मपत्नी ने काफी यत्न किए कि वह उसके पास ही रहे| सोलह श्रृंगार भी किए, नृत्य तथा संगीत से उसे प्रसन्न करने का प्रयास किया लेकिन अजामल का मन पापी ही रहा| वेश्या की जूठन और शराब ने उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया था| उसकी सत्यवंती पत्नी अनेक प्रयास करके हार गई|

एक दिन अजामल का पिता परलोक गमन कर गया| उसके पश्चात राजा ने अजामल को राजपुरोहित बना दिया| राजपुरोहित बनने पर उसकी जिम्मेदारी और बढ़ गई| वह धर्म, समाज और राज्य का अध्यक्ष बन गया| धन-दौलत काफी बढ़ गई| किसी बात की कमी न रही, तब भी उसने न सोचा| वह सोचता भी कैसे? पांच दोष उसके ऊपर लग गए थे| गुरु की आज्ञा की अवज्ञा| झूठ बोलना| जूठन खानी और मदिरापान| पांचवा महान दोष-वेश्या का गमन करना था|

उसने उच्च पदवी मिलने पर भी वेश्या के पास जाना न छोड़ा| शहर में आम चर्चा होने लगी| जो बात छिपी थी, वह दुनिया में जाहिर हो गई, जाहिर भी सूर्य की तरह हुई| उसका नया प्यार एक कलावंती वेश्या से हो गया| वह पापों की पुतली माया रूप धारण कर बैठी थी|

एक दिन अजामल को राजा ने अपने पास बुलाया और पूछा-अजामल! 'आप राजपुरोहित हैं|'

हां, महाराज! अजामल ने कहा|

आपके विरुद्ध एक आरोप लगा है|

'क्या आरोप है?'

'आप कलावंती वेश्या के पास जाते हैं| मदिरा पान करके रंगरलियां मनाते हैं|'

'सत्य है महाराज, इसमें झूठ नहीं| मैं कलावंती के पास जाता हूं, क्योंकि मैं उससे प्रेम करता हूं|'

'क्या यह नहीं मालूम कि कोई भी पंडित कभी ऐसा कर्म नहीं कर सकता, जिससे राज्य में बदनामी का कारण बने और जिसका देश की प्रजा पर बुरा असर पड़े?'

'यह भी पता है महाराज|'

'फिर कलावंती के पास क्यों जाते हो? क्या तुम ने अपनी ही बदनामी स्वयं नहीं सुनी?'

'सुनी है! लेकिन मैं विवश हूं| मैं कलावंती को छोड़ नहीं सकता| उसके रूप ने मुझे मोह लिया है|'

अजामल और आगे बढ़ गया| वह 'निर्लज्ज' भी हो गया, क्योंकि जिसके पास निर्लज्जता आ गए उसके पास कुछ भी नहीं रहता| निर्लज्जता सबसे महान दोष या पाप है|

राजा बुद्धिमान था| उसकी आयु अजामल के पिता जितनी थी| वह जान गया कि उसका राजपुरोहित पापों का भागीदार बन गया है| पाप इसको अच्छे लग रहे हैं| उसने अजामल से कहा - 'यदि आप की बात सही है कि वह आपको अपना पति स्वीकार कर चुकी है तो उसे अपने घर ले आओ, घर रहेगी तो लोगों को पता नहीं चलेगा| जितनी देर वहां रहेगी उतनी देर वेश्या है| कर्म करना भी स्थान की जांच करता है| जगह पर ही हर चीज़ की शोभा होती है| आप भी राज पुरोहित है| राज पुरोहित को शोभा नहीं देता कि वह वेश्या के बाजार में जाए|'

'मैं उसको घर नहीं ला सकता, न ही मैं उसको छोड़ सकता हूं| अजामल ने अपना फैसला दे दिया|'

'यह पक्का फैसला है?' राजा ने पूछा|

'जी हां पक्का फैसला!'

'सोच लो!'

'जी सोच लिया है!'

'देखो अजामल! आज तो नहीं, अभी से तुम राज पुरोहित नहीं! खामियां यह हैं! गुरु की आज्ञा को भंग करना, झूठ बोलना| जूठ खानी, वेश्या गमन, शराब पीनी और निर्लज्जता से मंद कर्मों से रुकने से मना करना| ऐसे दोषों के रहते हुए आप राज पुरोहित रहने के अधिकारी नही| आपको अब शहर से बाहर रहना पड़ेगा| सारी जायदाद और राज महल जो है वह अब आपकी पत्नी और उसके बच्चे को दे दिया जाएगा| आज के बाद इस शहर में मत आना| कलावंती को भी इस शहर से बाहर निकाल दिया जाता है| यह हुक्म है, कोई अपील नहीं न कोई साधन जाओ!'

राजा के हुक्म को सुन कर राज दरबारी और अहलकार सब घबरा गए, लेकिन अजामल पर कोई असर न हुआ| उस समय राजदूतों ने अजामल को धक्के मार कर बाहर निकाल दिया| उसको शहर से बाहर निकालने का हुक्म हो गया|

अजामल की पत्नी ने जब यह हुक्म सुना तो वह बहुत दुखी हुई| पर राजा ने हुक्म को टालना भी कठिन था| नगर वासी भी हैरान हुए| पर अजामल को कोई रोक नस सका|

अजामल ने कलावंती को साथ लेकर शहर से बाहर झोंपड़ी बना ली| कलावंती का सारा सामान वहां गया! गरीबों और अछूतों में रहने लगे| रात दिन भोग-विलास में लगे रहे तो चार बच्चे हो गए| उन बच्चों के लिए अन्न वस्त्र की जरूरत थी| राजा का हुक्म था कि कोई मदद न करें| सभी उसको 'अजामल-पापी' कहने लग पड़े थे और वे चिड़िया-पक्षी मार कर खाने लगे! नंगे रहने लगे| दुर्दशा इतनी बुरी हो गई कि वह पागलों की तरह खीझ कर बात करने लग गया| शरीर रोगी हो गया| ऐसा रोगी की जीवन की उम्मीद कम हो गई| जब शरीर ऐसा हुआ उससे पहले सात पुत्र हो गए| सातवें पुत्र का नाम नारायण रखा| जैसे भाई गुरदास जी फरमाते हैं : -

पतित अजामल पाप करि जाइ कलावतनी दे रहिआ |
गुर ते बेमुख होइ कै पाप कमावै दुरमति दहिआ |
बिरथा जनमु गवाइअनु भवजल अंदर फिरदा वहिआ |
छिअ पुत जाऐ वेसना पापां दे फल इछे लहिआ |
पुत उपंना सतवां नाऊं धरन नो चिति उमहिआ |
गुरु दुआरै जाइ कै गुरमुखि नाउं नराइण कहिआ |

उसने सातवें पुत्र का नाम नारायण रख लिया| दुखी होने लगा| वह पापों और दुखों का एक पुतला बन गया| वह सुबह जंगल को चला जाता और शाम को शिकार करके वापस आ जाता| कलावंती अब एक भारी गृहिणी थी| सात बच्चों की मां थी, और रूप भी अब ढल गया था| वह दुखी होने लगी|

स्त्री-पुरुष का यह स्वभाव है, जब दुःख-कष्ट तन को आए तो भगवान या नेकी याद आती है| कलावंती को अब पछतावा होने लगा कि उसने एक उच्च ब्राह्मण का जीवन नष्ट किया और अपना भी| पापिन बनी| अगर राजा से क्षमा मांग लेती तो इतना कष्ट न पाती| झौंपड़ी के पास से कोई साधू-संतों की तरफ देखती रहती|

एक दिन देवनेत के साथ समय बन गया कि दो साधू उसकी झौंपड़ी के पास ठहर गए| वह महापुरुष बहुत सूझवान थे| भगवान रूप! मगर कलावंती के पास कुछ नहीं था, जो उनको खाने को देती| वह वैष्णव साधू थे| अजामल शाम को घर आया| वह चिड़िया, बटेर और कबूतर आदि मार कर लाया तो कलावंती ने उस दिन उसको बनाने न दिए| उसने कहा-हे पति देव! पहले ही पता नहीं किस कुकर्म के बदले यह दशा हुई है| हमें आज मांस नहीं बनाना चाहिए| साधू वैष्णव हैं| हो सकता है कि कोई अच्छा वचन कर जाएं तो हमारे जीवन में कोई सुख का समय आ जाए| सुना है साधू भगवान के भक्त होते हैं|

अजामल-'हे प्रियतमा! बात तो आपकी ठीक है, पर हम क्या खाएं और इनको क्या दें| मेहमान हैं| घर आए अतिथि को भोजन न देना भी तो घोर पाप है|

कलावंती-यह बात तो ठीक है| इनको खाने के लिए क्या दें| हां, कुछ दाने हैं भूने हुए और गुड़ भी है| वह ही दें दे| आप भी मुठ्ठी-मुठ्ठी चबाकर संतोष से रात बिता लें! सुबह जो होगा देखा जाएगा|

अजामल-बात ठीक है| ऐसा ही करो|

दम्पति ने भूने हुए दाने और गुड़ साधुओं को खाने के लिए दिए| अनुरोध किया, 'महाराज! हमारे पास तो यही कुछ है| हम गरीब और पापी हैं| कृपा करो! दया करो! हे महाराज! हमारे लिए भगवान से प्रार्थना करो!

भगवान रूप साधू ने वचन किया-'हे अजामल! त्रिकाल दृष्टि द्वारा हम सब जान गए हैं| आप ब्राह्मण के पुत्र थे, वासना की अग्नि ने आप की बुद्धि सब भस्म कर दी, ठीक है पर जल्दी ही आपका कल्याण होगा| जो आपने अपने पुत्र का नाम 'नारायण' रखा है यह भगवान की प्रेरणा है| इसके साथ प्यार किया करो| नारायण! नारायण! पुकारो| एक दिन अवश्य नारायण आप की पुकार सुन लेंगे|'

ये वचन करके सुबह वह वहां से चले गए| अजामल ने अपने पुत्र को उठा लिया और उससे प्यार करता हुआ कहने लगा-'पुत्र नारायण! आओ बेटा नारायण| रोटी खाओ नारायण! दूध पीओ नारायण!' ऐसी बातें करने लगा| उसकी बातें उसके मन को शांति देने लगी|

कुछ ऐसी प्रभु की लीला हुई, वह जो शिकार मार कर लाता वही बिक जाता| जिससे उसको पैसे मिल जाते इस तरह उसे अन्न खाने को मिलने लगा| उसके दिन अब अच्छे व्यतीत होने लगे| वह झौंपड़ी में रह कर भी सुख महसूस करने लगा|

काल महाबली है| काल की मार से कोई नहीं बचता जो दिखाई देता है, सब नाशवान है सब के काम अधूरे रह जाते हैं जब काल आता है| काल का भारी हाथ सब के सिर के ऊपर रखा जाता है| अजामल का भी काल आ गया| वह बीमार पड़ गया और बिमारी भी उसको कष्ट देने वाली| वह कष्टदायक बीमारी से दुखी होने लगा| एक दिन ऐसा आया जब आंखें बन्द करते ही यमदूत भी नजर आने लगे| नरक की आग जलती हुई दिखाई देने लगी, वह बहुत भयानक रूप में थी, उसकी दशा बहुत डरावनी थी! नरक की झांकी व अंतकाल नजदीक नज़र आया देखकर उसने बहुत ऊंची-ऊंची पुकारा-'नारायण आओ! नारायण आओ!

अजामल पापी ने आवाज़ तो अपने पुत्र को दी परन्तु पुत्र शब्द का इस्तेमाल न किया! सत्य ही उसका कल्याण हो गया जैसे ही उसने 'नारायण' कहा वैसे ही धर्मराज के यमदूत भी पीछे हट गए| अचानक रोशनी हुई| नाद शंख बजे| इधर आत्मा ने शरीर छोड़ा, उधर से फूलों की वर्षा हुई| अजामल की आत्मा स्वर्ग में चली गई| नारायण कहने से पापी का कल्याण हो गया| इस संबंध में चौथे पातशाह का वचन है :-

अजामल प्रीति पुत्र प्रति कीनी करि नाराइण बोलारे ||
मेरे ठाकुर कै मनि भाइ भावणी जम कंकर मारि बिदारे ||

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.