शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday, 23 October 2013

माई सरखाना जी - जीवन परिचय्

ॐ श्री साँई राम जी



माई सरखाना जी 

मान सरोवर हंसला खाई मानक मोती |
कोइल अंब परीत है मिठ बोल सरोती |
चंदन वास वणासपति हुइ पास खलोती |
लोहा पारस भेटिए हुइ कंचन जोती |
नदीआं नाले गंग मिल होन छोत अछोती |
पीर मुरीदां पिरहड़ी इह खेप सिओती |६|

आज की दुनिया में प्यार तथा श्रद्धा की बेअंत साखियां हैं| गुरु घर में तो अनगिनत सिक्ख हुए हैं, जिन्होंने गुरु चरणों से ऐसी प्रीति की है, जिस की मिसाल अन्य धर्मों में कम ही मिलती है| ऐसी प्रीति की व्याख्या करते हुए भाई गुरदास जि फरमाते हैं कि सिक्ख गुरु से ऐसी प्रीति करते हैं जैसे मान सरोवर के हंस मोतियों के साथ करते हैं, भाव मोती खाते है| कोयल का प्यार आमों के साथ है तथा उनके वैराग में मीठे गीत गाती रहती है| चंदन की सुगन्धि से सारी वनस्पति झूम उठती है| लोहा पारस के साथ मिल कर सोना हो जाता है| नदियां तथा नाले गंगा से मिल कर पवित्र हो जाते हैं| अंत में भाई साहिब कहते हैं, सिक्खों का प्यार ही उनकी पवित्र रास पूंजी है|

जब इतिहास को देखे तो माई सरखाना का नाम आदर से लिया जाता है| आप गुरु घर में बड़ा आदर प्राप्त कर चुकी थीं| उसके प्यार की कथा बड़ी श्रद्धा दर्शाने वाली है| वह प्यारी दीवानी श्रद्धालु तथा अमर आत्मा हुई| जिसका यश आज भी गाया जाता है|

किसी गुरु-सिक्ख से माई ने गुरु घर की शोभा सुनी| उस समय बुढ़ापा निकट था तथा जवानी ढल चुकी थी| बच्चों का विवाह हो गया था| जिम्मेवारियां सिर से उतर गई थीं| उसे अब जन्म-मरण के चक्र का ज्ञान हो गया था| पर यह पता नहीं था कि चौरासी का चक्र कैसे खत्म होता था|

गुरसिक्ख ने माई सरखाना को गुरसिक्खी का ज्ञान करवाते हुए यह शब्द पढ़ा-

मन मंदरु तनु वेस कलंदरु घट ही तीरथि नावा ||
एकु सबदु मेरै प्रानि थसतु है बाहुड़ि जनमि न आवा ||१||

यह शब्द जो हृदय में बसता है, वह शब्द सतिगुरु जी से प्राप्त होता है| सतिगुरु त्रिकालदर्शी थे| सतिगुरु नानक देव जी की गुरुगद्दी पर छठे पातशाह हैं मीरी-पीरी के मालिक! उनको याद कर उनके चरणों में सुरत लगा कर मन में श्रद्धा धारण करो|

अच्छा! मैं श्रद्धा करूंगी| मुझे बताओ सेवा के लिए भेंट क्या रखूंगी, जब दर्शन करूं| माई सरखाना ने पूछा था|

गुरसिक्ख-सतिगुरु जी प्रीत पर श्रद्धा चाहते हैं| कार भेंट जो भी हो| पहुंच से ऊपर कुछ नहीं मांगते| एक टके से भी प्रसन्न होते हैं| उनके दरबार में सेवक हाथी, घोड़े, दुशाले, रेशमी वस्त्र, सोना, चांदी बेअंत भेंट चढ़ाते हैं| नौ निधियां तथा बारह सिद्धियां हैं| सतिगुरु जी अवश्य आपका जन्म-मरन काटेंगे, वह कृपा के सागर हैं :-

|हरिगोविंद गुरु अरजनहुं गुरु गोबिंद नाउं सदवाया |
गुर मूरति गुर शबद है साध संगति विच प्रगटी आया |
पैरीं पाइ सभ जगत तराया |२५

इस तरह गुरु घर की शोभा सुन कर माई सरखाना गुरु घर की श्रद्धालु बन गई| उसने ध्यान कर लिया तथा गुरसिक्ख द्वारा सुने मूल मंत्र का जाप करने लगी| उसके मन में प्रेम जाग पड़ा| मन के साथ हाथ भी सेवा के लिए उत्साहित हुए| अपनी फसलों में से मोटे-मोटे गुल्लों वाली कपास चुनी| कपास चुन कर पेली तथा फिर रुई पिंजाई, रुई पिंजाई गई तो सतिगुरु जी का ध्यान धर कर कातती रही| रुई कात कर जुलाहे से श्रद्धा के साथ कपड़ा तैयार करवाया| बुढ़ापे में लम्बी आयु के तजुर्बे के साथ बारीक तथा सूत का कपड़ा रेशमी कपड़े जैसा था| उसने अपने हाथ से चादरा तैयार किया तथा मन में श्रद्धा धारण की, 'सतिगुरु जी के दर्शन हो|'

पर गुरसिक्खों से सुनती रही कि गुरु जी के दरबार में राजा, महाराजा तथा वजीर आते हैं| फिर वैराग के साथ मन में सोचती मैं तो एक गुरसिक्ख हूं, जिसके पास एक चादरा है वह भी खादी का| कैसे सतिगुरु जी स्वीकार करेंगे? इस तरह मन में वैराग आया तथा मन में उतार चढ़ाव रहा|

मीरी-पीरी के मालिक सतिगुरु हरिगोबिंद साहिब जी मालवे की धरती को पूजनीय बनाने तथा सिक्ख सेवकों का उद्धार करने गए थे| डरोली भाई दीवान लगा था, सिक्ख संगतें आतीं तथा दर्शन करके वापिस जातीं| घरों तथा नगरों में जा कर गुरु यश को सुगन्धि की तरह फैलातीं|


माई सरखाना को भी खबर मिल गई कि सतिगुरु जी निकट आ गए हैं| वह भी सतिगुरु जी के दर्शन के लिए तैयार हो गई| देशी चीनी में घी मिलाया| मक्खन के परांठे बनाए तथा चादरे को जोड़ कर सिर पर रखकर चल पड़ी| चार-पांच कोस का रास्ता तय करके गुरु दरबार के निकट पहुंची तो माई के पैर रुक गए| वह मन ही मन विचार करने लगी, मैं निर्धन हूं, मेरा खादी का चादरा, चीनी, घी तथा परांठे क्या कीमत रखते हैं? जहां राजाओं, महाराजाओं के कीमती दुशाले आए होंगे|.....छत्तीस प्रकार का भोजन खाने वाले दाता यह भारी परांठे क्या पता खाए कि न खाएं यह तो.....


वह दीवार के साथ जुड़ कर खड़ी हो गई| आंखें बंद कर लीं तथा अंतर-आत्मा में सतिगुरु जी को याद करने लगी| वह दुनिया को भूल गई, अटल ध्यान लग गया, सुरति जुड़ गई|

उधर सच्चे पातशाह सतिगुरु हरिगोबिंद साहिब जी महाराज, मीरी पीरी के मालिक, भवसागर से पार करने की समर्था रखने वाले दाता, दयावान, अन्तर्यामी जान गए| माता सरखाना ध्यान लगा कर खड़ी है| उसके आगे भ्रम की दीवार है| वह दीवार पीछे नहीं हट सकती, जितनी देर कृपा न हो|

अन्तर्यामी दाता ने हुक्म दिया - 'घोड़ा लाओ!' यह हुक्म दे कर पलंग से उठ गए| जूता पहना तथा शीघ्र ही दीवान में से बाहर हुए| सिक्ख संगत चोजी प्रीतम के चोज को देख कर हैरान हुई, जो उनका भेद जानते थे, वह समझ गए कि किसी जीव को पार उतारने के लिए महाराज चले हैं तथा जो नए थे वे हैरान ही थे| उनकी हैरानी को दूर करने वाला कोई नहीं था|

उधर माई सरखाना की आंखें बंद थीं तथा वह प्रार्थनाएं किए जा रही थीं| उसकी आत्मा कहती जा रही थी - 'हे सच्चे पातशाह! मैं निर्धन हूं| कैसे दरबार में आऊं, डर लगता है| अपनी कृपा करो, मैं दर्शन के लिए दूर खड़ी हूं| कोई रास्ता नहीं, डर आगे चलने नहीं देता, दाता जी कृपा करो! दया करो!'

इस तरह आंखें बंद करके सतिगुरु जी को याद किए जा रही थी| उधर सतिगुरु जी घोड़े पर सवार हुए, घोड़े को दौड़ाया तथा उसी जगह पहुंचे जहां माई सरखाना दीवार से सहारा लगा कर खड़ी थी| सतिगुरु जी ने आवाज दी -

'माता जी देखो! आंखें खोल कर देखो! सतिगुरु जी के यह शब्द सुन कर माई ने आंखें खोलीं, देखा दाता घोड़े पर सवार खड़े थे| माई शीघ्र ही आगे हुई, चरणों पर शीश झुका कर प्रणाम किया| खुशी में इतनी मग्न हो गई कि उसकी जुबान न खुली, वह कुछ बोल न सकी| बहती आंखों से सतिगुरु की तरफ देखती दर्शन करती गई|'

सच्चे पातशाह ने कहा-'अच्छा माता जी! रोटी दें हम खाएं, हमें बहुत भूख लगी है|.... परांठे.....| आपका हम इन्तजार करते रहे आप तो रास्ते में ही खड़े रहे|'

माई ने झोली में से घी, चीनी वाला डिब्बा तथा परांठे निकाल कर सतिगुरु को पकड़ा दिए| सतिगुरु ने प्रसन्न होकर भोजन किया| भोजन करने के बाद सतिगुरु जी ने चादरे की मांग की| माई ने चादरा गुरु जी को भेंट कर दिया| माई ने जी भर कर दर्शन कर लिये एवं मन की श्रद्धा पूरी हो गई| माई कृतार्थ हो गई| उसका जन्म मरन का चक्र खत्म हो गया| दाता ने अपनी कृपा से माई सरखाना को अमर कर दिया|

सतिगुरु जी माई सरखाना का उद्धार कर ही रहे थे कि पीछे सिक्ख आ गए| हजूरी सिक्ख को सतिगुरु जी ने हुक्म दिया - 'माता जी को दरबार में ले आओ| यह हुक्म करके आप दरबार की तरफ चले गए| माई सरखाना दो दिन दरबार में रह कर दर्शन करती रही| उसका कल्याण हो गया| उस माई के नाम पर आज उसका गांव सरखाना मालवे में प्रसिद्ध है|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.