शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday 16 October 2013

भक्त बेनी जी - जीवन परिचय


ॐ साँई राम जी
 


भक्त बेनी जी


भक्तों की दुनिया बड़ी निराली है| प्रभु भक्ति करने वालों की गिनती नहीं हो सकती| इस जगत में अनेकों महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने प्रभु के नाम के सहारे जीवन व्यतीत किया तथा वह इस जगत में अमर हुए, जबकि अन्य लोग जो मायाधारी थे, मारे गए तथा उनका कुछ न बना| ऐसे पुरुषों में ही भक्त बेणी जी हुए हैं| आपका वास्तविक नाम ब्रह्म भट्ट बेणी था| आपका जन्म सम्वत १६७० विक्रमी में 'असनी' गांव में हुआ| आप जाति के ब्राह्मण थे और इतने निर्धन थे कि जीवन से उदास हो गए थे| रात-दिन यही विचार करते रहते थे कि मानव जीवन का अन्त कर लें, अगला जीवन क्या पता कैसे हो| हो सकता है कि यदि इस जन्म दुखी हैं तो अगले जन्म में सुखी हो जाएंगे| ऐसी ही दलीलें किया करते थे, क्योंकि भूखे बच्चों का रोना उनसे न देखा जाता| हर रोज़ पत्नी झगड़ा करती| वह इसी माया की कमी के दुखों से तंग आ गया तथा हर रोज़ मन ही मन क्लेश करने लगे|bhagat-beni-ji-an-introduction

वह उदास हो कर घर से चल पड़े| अचानक रास्ते में उनको एक महांपुरुष मिला| उनके साथ वचन-विलास हुए तो उन्होंने पूछा, 'हे बेणी! किधर चले हो?'

बेणी-'महाराज क्या बताऊं, घर में बहुत गरीबी है| इस भूखमरी की दशा ने दुखी किया है| समझ नहीं आता क्या करूं-यही मन करता है कि आत्मघात कर लूं| पत्नी तथा बच्चे अपने-आप भूख से मर जाएंगे| ऐसा सोच कर बाहर को चला हूं|

महांपुरुष-'मरने से दुःख दूर नहीं होते| आत्महत्या करेगा तो आत्मा दुखी होगी, नरकों का भागी बनेगा| मेहनत करो, यदि कोई और मेहनत नहीं करनी तो प्रभु भक्ति की ही मेहनत किया करो| जो भक्ति करता है, परमात्मा उसकी सारी कामनाएं पूरी करता है| जीवों की चिंता परमात्मा को है| कर्म गति है, कर्मों का फल भोगना पड़ता है| किसी जन्म में ऐसा कर्म हुआ है, जो यह दुःख के दिन देखने पड़े| अब तो प्रभु की भक्ति करो तो ज़रूर भला होगा|

उस महांपुरुष का उपदेश बेणी को अच्छा लगा| मन पर प्रभाव पड़ा तो जंगल की ओर चला गया| वह जा का कर भक्ति करने लगा| इस तरह कुछ दिन बीत गए| भाई गुरदास जी ने यह शब्द उच्चारा -


गुरमुख बेणी भगति करि जाई इकांत बहै लिव लावै |
करमकरै अधिआतमी होरसु किसै न अलख लखावै |
घर आइआजां पूछिअै राज दुआरि गइआ आलावै|
घर सभ वथू मंगीअनिवल छल करिकै झत लंघावै |
वडा साग वरतदा ओहु इक मन परमेसर धिआवै ||
पैज सवारै भगत दी राजा होइकै घरि चलिआवै |
देइ दिलासा तुसि कै अनगिनती खरची पहुंचावै |
ओथहुंआइआ भगत पासि होइ दिआल हेत उपजावै |
भगत जनां जैकारकरावै |

जिसका परमार्थ है - महांपुरुष के कथन अनुसार बेणी बाहर एकांत में समाधि लगा कर भक्ति करने के लिए मन एकाग्र कर लेता पर भक्त गुप्त रखने लग पड़ा| किसी को उसने नहीं बताया था, जब वह घर आता तो पत्नी पूछती कहां से आए हो?'

राज दरबार में कथा करता हूं| जब कथा समाप्त होती भोग पड़ेगा तो अवश्य ही राजा दक्षिणा देगा| वह धन पदार्थ बहुत होगा, सारी जरूरतें पूरी हो जाएंगी|

यह सुन कर बेणी जी की पत्नी क्रोधित होकर आपे से बाहर हो गई| उसने कहा-'चूल्हे में पड़े तुम्हारा राजा!' कथा का क्या पता कब भोग पड़ेगा| आप मुझे भोजन सामग्री ला दो नहीं तो घर मत लौटना|

अपनी पत्नी के इस तरह के कटु वचन सुनकर बेणी चुपचाप जंगल को चला गया| भक्ति में जा लगा| ऐसी सुरति प्रभु से जुड़ी कि सब कुछ भूल गया| पत्नी का रोना याद न आया| भूखमरी तथा अपनी भूख याद न रही केवल परमात्मा को याद करता गया|

उधर अन्तर्यामी प्रभु ने सत्य ही भक्त की भक्ति सुन ली| अपने सेवक की लाज रखने के लिए, अपने नाम की महिमा व्यक्त करने के लिए उन्होंने राजा का रूप धारण किया तथा भोजन सामग्री की गाड़ियां भर लीं| धन ढोया तथा जा कर बेणी की पत्नी को पूछा - 'ब्रह्म भट्ट बेणी का घर यही है?'

बेणी की पत्नी-'जी, यही है| पता नहीं कहां उजड़ा है? परमात्मा ने राजा के अहलकार के रूप में कहा, 'वह राज दरबार में कथा करते हैं| भोजन सामग्री भेजी है| अन्न है, वस्त्र, मीठा, घी, संभाल लो| कथा पूरी होने पर बहुत कुछ मिलेगा|' बेणी की पत्नी को लाज आई कि वह झूठ नहीं कहते थे, सत्यता ही राजा के दरबार में जाते थे, यूं ही क्रोध किया| उसने सारा सामान रख लिया तथा खुश हो कर बेणी जी को याद करने लगी, यह भी कह दिया, 'जी! सुबह कुछ नाराज होकर गए हैं, उनको शीघ्र भेज देना|'

प्रभु यह लीला देखकर प्रसन्न हो गए तथा सीधे बेणी जी के पास पहुंचे, उनको जा कर होश में लाया तथा कहा-'होश करो तुम्हारी भक्ति स्वीकार हुई! जाओ, तुम्हारी सारी आवश्यकताएं पूरी हुईं| किसी बात की कमी नहीं रह गई|' बेणी जी ने साक्षात् दर्शन किए| वचन सुने पर जब आगे बढ़ कर नमस्कार करने लगे तो प्रभु अपनी माया शक्ति से अदृश्य हो गए|

सारा कौतुक देखकर भक्त बेणी भक्ति करने से उठे तथा खुशी से गद्गद् हो कर वापिस घर को चल दिए| जब घर आए तो उनकी पत्नी उनको प्रसन्नचित्त हो कर मिली| चरणों में माथा टेका, 'मुझे क्षमा करना नाथ! मैं तो भूल गई भूख ने तंग किया था| अयोग्य बातें मुंह से निकल गईं| मुझे क्षमा कीजिए, आप तो सब कुछ जानते हो| राजा का अहलकार सब कुछ दे गया| अब किसी बात की कमी नहीं| प्रभु ने बात सुन ली|'

बेणी सुन कर प्रसन्न हो गया कि यह सब कुछ प्रभु भक्ति का फल है, जो माया आई तथा साथ ही घर की माया (स्त्री) भी खुश हो गई|

बेणी जी ने भक्ति करते रहने का मन बना लिया तथा प्रसिद्ध भक्त बना| उनकी बाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में भी विद्यमान है| आप की बाणी का शब्द है-

तनि चंदनु मसतकि पाती || रिद अंतरि कर तल काती ||
ठग दिसटि बगा लिव लागा || देखि बैसनो प्रान मुख भागा ||१||
कलि भगवत बंद चिरांमं || क्रूर दिसटि रता निसि बादं ||१||रहाउ ||
नितप्रति इसनानु सरीरं || दुइ धोती करम मुखि खीरं ||
रिदै छुरी संधिआनी || पर दरबु हिरन की बानी ||२||
सिलपूजसि चक्र गनेसं || निसि जागसि भगति प्रवेसं ||
पग नाचसि चितु अकरमं || ए लंपट नाच अधरमं ||३||
म्रिग आसणु तुलसी माला || कर ऊजल तिलकु कपाला ||
रिदै कूडु कंठि रुद्रांख || रे लंपट क्रिसनु अभाखं ||४||
जिनि आतम ततु न चीन्हिआ || सभ फोकट धरम अबीनिआ ||
कहु बेणी गुरमुखि धिआवै ||बिनु सतिगुर बाट न पावै ||५||१||

जिसका परमार्थ - उपदेश देते हैं, पंडित को कहते हैं, हे पंडित! जरा सुनो तो तुम्हारे हृदय में प्रभु भक्ति भी है| ...तभी तो ब्राह्मण भूखे मरते हैं, भक्ति नहीं करते अपितु आडम्बर करते हैं| आप फरमाते हैं - हे पंडित! तन को चंदन से तथा माथे को चंदन के पत्ते लगा कर शीतल रखते हो, पर कभी सोचा है तुम्हारे हृदय में तो कटार है| भाव खोट है| हरेक से धोखा करने तथा बगुले की तरह बेईमानी की समाधि लगा कर बैठते हो की कोई संदेह न करे जब मौका मिले तो खा पी जाए| उपर से तो विष्णु भक्त लगता है, जैसे ज्ञान नहीं होती तथा रात को सूरत कुत्ते की तरह हो जाती है| पाप कर्म की तरफ भागा फिरता हुआ काम क्रोध की तरफ जाता है| स्त्री का गुलाम बनता है| चोरी करके खाता है| दो धोती रखता, स्नान करता, जुबान से मीठे बोल बोलता है| मन में बेईमानी, पराया माल लूटने तथा उठाने की आदत है| आप का जीवन कैसा है?

वाह रे पंडित! द्वारिका, काशी आदि जा कर तन पर कष्ट उठाता, पत्थर की पूजा करता हुआ पत्थर रूप बन गया है| लाभ कुछ नहीं| लोगों से माया लेने तथा धोखा करने के लिए नाचता है, गाता है तथा कई प्रकार की लीला करता है| वाह! तेरे ढ़ोंग कभी मृगछाला बिछा कर बैठ गया, कभी तुलसी की माला, चंदन का तिलक, जुबान से जाप, पर कभी यह नहीं सोचा कि हृदय किधर दौड़ता है| ख्याल तो नारी भोग की तरफ दौड़ते हैं| हे पंडित! यह दिखावा हैं| ज्ञान की आवश्यकता है| आवश्यकता है प्रभु को युद्ध हृदय से याद किया जाए| मन की वासनाएं रोकी जाए तो प्रभु परमात्मा से मेल होता है|

ऐसा उपदेश देने लग पड़े| परमात्मा ने ऐसा भाग्य बनाया कि उनके घर में कोई भी कमी न रही| वह भजन बंदगी करते रहे| आज उनके नगर असनी में उनकी याद मनाई जाती है| प्रभु को जो स्मरण करते हैं, लोग उनको स्मरण करते हैं| ऐसी नाम की महिमा है| हे जिज्ञासु जनो! भक्ति एवं नाम का सिमरन करो ताकि कलयुग में कल्याण हो|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.