शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Saturday, 12 October 2013

भक्त ध्रुव जी - जीवन परिचय

ॐ साँई राम जी

आप सभी को नव दुर्गा जी के नवरात्रों की हार्दिक शुभ कामनायें


भक्त ध्रुव जी 


भूमिका:

जो भक्ति करता है वह उत्तम पदवी, मोक्ष तथा प्रसिद्धि प्राप्त करता है| यह सब भगवान की लीला है| सतियुग में एक ऐसे ही भक्त हुए हैं जिनका नाम ध्रुव था|


परिचय:

भक्त ध्रुव जी का जन्म राजा उतानपाद के महल में हुआ| राजा की दो रानियाँ थी| भक्त ध्रुव की माता का नाम सुनीती था| वह बड़ी धार्मिक, नेक व पतिव्रता नारी थी| छोटी रानी सुरुचि जो की बहुत सुन्दर, चंचल व ईर्ष्यालु स्वभाव की थी| उसने राजा को अपने वश में किया हुआ था| वह उसे अपने महल में ही रखती थी तथा उसका भी एक पुत्र था, जिसे राजा प्यार करता था| परन्तु छोटी रानी बड़ी रानी के पुत्र ध्रुव को राजा की गोद में बैठकर पिता के प्रेम का आनन्द न लेने देती| ध्रुव हमेशा यह सोचता कि जिस बालक को पिता का प्यार नहीं मिलता उस बालक का जीवन अधूरा है|


भाई गुरदास जी ने भक्त ध्रुव की जीवन कथा इस प्रकार ब्यान की है:

ध्रुव एक दिन बालको के साथ खेलता हुआ राजमहल में पहुँचा| उसे हँसता देखकर राजा के मन में पुत्र मोह उत्पन हों गया और उसे गोद में बिठा लिया| जब राजा पुत्र से प्रेम भरी बातें कर रहा था तो छोटी रानी वहाँ आ गई| वह जलन करने लगी क्योंकि वह अपने पुत्र को राजा बनाना चाहती थी| उसके मन में बहुत क्रोध आया| उसने शीघ्र ही बालक को बाजू से पकड़कर राजा की गोद से उठाकर कहा, "तुम राजा की गोद में नहीं बैठ सकते, निकल जाओ! इस महल में दोबारा इस ओर कभी मत आना|"

राजा जो की रानी की सुंदरता का दास था वह रानी के सामने कुछ न बोल सका| वह उसे इतना तक नहीं कह सका कि उसे क्या अधिकार था, पिता की गोद से पुत्र को बाजू से पकड़कर उठाने का| दूसरी ओर ध्रुव दुःख अनुभव करता हुआ और आहें भरता हुआ अपने माता की ओर चला गया| वह मन में सोचने लगा, उसे अपने ही पिता की गोद से क्यों वंचित किया गया है? जैसे जैसे उसके कदम माँ की ओर बढ रहे थे उसका रुदन बढता जा रहा था| माँ के नजदीक पहुँचे ही उसकी सीखे निकाल गई जैसे किसी ने खूब पिटाई की हो|

माँ ने पुत्र से पूछा कि तुम्हें क्या हुआ है? क्या किसी ने तुम्हें मारा है? मुझे रोने का कारण बताओ| पुत्र ने रोते रोते सारी बात बता दी कि छोटी माँ ने उसके साथ कैसा सलूक किया है| माँ ने कहा तुम्हें अपने पिता की गोद में नहीं बिठना चाहिए तुम्हारा कोई अधिकार नहीं| कोई अधिकार नहीं मेरे लाल! रानी ने पुत्र को गले से लगा लिया और उसकी आँखों में आँसू आ गए|


माँ ....... ! मुझे सत्य बताओ तुम रानी हो या दासी? मुझे कुछ पता तो चले|

पुत्र! हूँ तो मैं रानी! पर ........! वह चुप कर गई|

फिर पिता की गोद में क्यों नहीं बैठ सकता?

माँ ने कहा तुमने भक्ति नहीं की| भक्ति न करने के कारण तुम्हारी यह दशा हो रही है| राज सुख भक्ति करने वालो को ही प्राप्त होता है|

माँ ! बताओ में क्या करू जिस से मुझे राज सुख मिले| मुझे कोई राज सिंघासन से न उठाए, कोई न डांटे|

सात वर्ष के पुत्र को माँ ने कहा बेटा! परमात्मा की आराधना करनी चाहिए| जिससे राज सुख प्राप्त होता है|

माँ का यह उत्तर सुनकर बालक ने कहा ठीक है माँ में भक्ति करने जा रहा हूँ|

तुम तो अभी बहुत छोटे हो और तुम्हारे जाने के बाद मैं क्या करूँगी| मुझे पहले ही कोई नहीं पूछता|

रात हो गई पर ध्रुव को नींद न आई| उसके आगे वही छोटी माँ के दृश्य घूमने लगे| वह बेचैन होकर उठकर बैठ गया| सोई हुई माँ को देखकर राजमहल त्याग देने का इरादा और भी दृढ़ हो गया| भयानक जंगल में वह निर्भयता से चलता गया| शेर और बघेल दहाड़ रहे थे| परन्तु वह तनिक भी न डरा| उसका मासूम ह्रदय पुकारने लगा हे ईश्वर! मैं आ रहा हूँ| मैं आपका नाम नहीं जानता| मैं नहीं जानता कि आप कहाँ है| वह थककर धरती पर बैठ गया और उसे नींद आ गई| आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी| उसने पानी पिया और कहना शुरू किया, "ईश्वर! ईश्वर! मैं आया हूँ|" आवाज़ सुनते ही नारद मुनि आ गए|

बालक ने पूछा क्या आप भगवान हैं?

नारद ने उत्तर दिया नहीं! मैं ईश्वर नहीं, ईश्वर तो बहुत दूर रहते हैं|

ध्रुव - मैं क्यों नहीं जा सकता?

नारद - तुम्हारी आयु छोटी है| तुम राजा के पुत्र हो| मार्ग में भयानक जंगल है| भूत प्रेत तुम्हें खा जाएगें| भूख, प्यास, बिजली, बारिश, शीत तथा गर्मी आदि तुम्हारा शरीर सहन नहीं कर सकता| आओ मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के पास ले चलूँ वह तुम्हें आधा राज दे देगा|

ध्रुव हँस पड़ा, "आधा राज!" अभी मैं परमात्मा के दर्शन करने जा रहा हूँ, अगर दर्शन कर लूँगा आधा राज तो क्या पूरा राज अवश्य मिल जाएगा| उसने नारद से कहा मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं| आप मुझे परमात्मा की भक्ति से रोक रहे हो तो आप मेरे दुश्मन हो| आपके लिए केवल येही अच्छा है कि आप यहाँ से चले जाओ| मुझे कोई भूत प्रेत खाये इससे आपको क्या|

बालक के दृढ़ विश्वक को देखकर नारद ने उपदेश दिया - ठीक है तुम कोई महान आत्मा हो| इसलिए यह मन्त्र याद कर लो कोई विघ्न नहीं पड़ेगा| तुम्हारे सारे कार्य पूरे होंगे|

"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" और आँखें बन्द कर "केशव कलेष हरि" हरि का ध्यान करते रहना|

दूसरी और माँ सुनीति जाग गई, महल मैं शोर मच गया| माँ की आँखों के आगे अँधेरा छा गया उसके सिर के बाल गले में अपने आप ही बिखर गए| राजा ने छोटी रानी ने यह कहकर रोक दिया कि उसने कोई चालाकी की होगी| यह सुनकर राजा रुक गया| उसी समय नारद जी आ गए| नारद जी ने बताया कि आपका पुत्र गुम नहीं हुआ| वह तो तपो वन में जाकर भक्ति करने लग गया है| हे राजन! उस मासूम का ह्रदय दुखाकर आपने बहुत बड़ी भूल की है| यह सुनकर राजा बहुत लजित हुआ| उसने नारद से कहा आप उसे वपिस ले आए मैं उसे आधा राज दे दूँगा| लेकिन मैं यह नहीं देख सकता कि मेरा पुत्र भूक प्यास से मरे| नारद ने उत्तर दिया वह आएगा नहीं अवश्य ही तपस्या करेगा|

इसके पश्चात नारद जी माँ सुनीति के पास गए और यह कहकर हौंसला दिया कि हे रानी आपकी गोद सफल हुई चिंता न करें| आपका पुत्र महान भक्त बनेगा| राजा भी जंगल में उसे लेने गया परन्तु वह निराश होकर वापिस आ गया| राजा के जाने से ध्रुव का विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि भक्ति करना उचित है|

इंद्र देवता ने माया के बड़े चमत्कार दिखाए और अंत में एक दानव को भी भेजा| उसने अँधेरी, बारिश, ओले, वृष गुराए और धरती को हिला दिया परन्तु ध्रुव अडिग बैठा रहा| उसने इंद्र को ही भयभीत कर दिया| इंद्र विष्णु भगवान के पास आया और कहने लगा - प्रभु! ध्रुव तपस्या कर रहा है कहीं.......! इंद्र की बात पूरी न हुई परन्तु विष्णु भगवान सारी बात समझ गए और कहने लगे उसकी इच्छा तुम्हारा राज लेने की नहीं है| वह तो अपने परमात्मा का ध्यान कर रहा है| उसे ऊँची पदवी व संसार में प्रसिद्धि प्राप्त होगी|

भगवान ने वैसा ही रूप धारण किया जैसा ध्रुव ने सोचा था| ध्रुव भगवान के दार्शन करके बहुत प्रसन्न हुआ| उसकी प्रसन्नता देखकर श्री हरि ने वचन किया - "घोर तपस्या द्वारा तुमने हमारा मन मोह लिया है जब तक सृष्टि है तब तक तुम्हारी भक्ति व नाम प्रसिद्ध रहेगा| जाओ राज सुख प्राप्त होगा और तुम्हारा नाम सदा अमर रहेगा|" यह वर देकर भक्त को घर भेजकर भगवान विष्णु अपने आसन की ओर चल पड़े|

राजा स्वम रथ लेकर अपने पुत्र का स्वागत करने के लिए खुशी से आया| प्रजा ने मंगलाचार व खुशी मनाई| राजा ने अपना सारा शासन उसे सौंप दिया| श्री हरि के वरदान से ध्रुव का नाम राज करने के बाद संसार में अमर हो गया| आज उसे ध्रुव तारे के नाम से याद किया जाता है| वह जीवन का एक अमिट और अडोल केन्द्र है|
 

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.