श्री गुरु राम दास जी – साखियाँ - एक तपस्वी का भ्रम दूर करना
श्री गुरु राम दास जी – साखियाँ - एक तपस्वी का भ्रम दूर करना
श्री गुरु रामदास जी प्रभु प्यार में सदैव मगन रहते| अनेकों ही सिख आप जी से नामदान लेकर गुरु-२ जपते थे|गुरु सिखी कि ऐसी रीति देख कर एक इर्शालु तपस्वी आपके पास आया| गुरु जी ने उसे सत्कार देकर अपने पास बिठाया और पूछा! आओ तपस्वी जी किस तरह आए हो? तपस्वी ने कहा मैंने सारे धर्मों के भक्तों को देखा है, तीर्थों कि यात्रा करते हुए भी बहुत लोग देखे हैं परन्तु आपके सिखो जैसा मैंने कोई अभिमानी नहीं देखा| क्योंकि यह ओर किसी मत के साधु सन्त को नहीं मानते और ना ही यह वेद शास्त्रों की शुभ रीति को ग्रहण करते हैं| आपके सिख तो केवल आपको और आपकी बाणी को ही मानते हैं और पूजा भी करते हैं| इस प्रकार वेद बाणी का त्याग करके इनका उद्धार किस तरह होगा?
गुरु जी ने पूछा तपस्वी जी! तीर्थ स्नान व वेद बाणी के पाठ का क्या फल होता है? तपस्वी ने कहा इनका फल बहुत बड़ा है| तीर्थ स्नान से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्तिम समय स्वर्ग की प्राप्ति होती है| अगर बात करे वेदों की तो वेदों के पाठ से आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है| गुरु जी ने कहा तपस्वी जी! हमारे सिख संगतो की सेवा करके जो सुख प्राप्त करते हैं वह आपको भी प्राप्त नहीं होता| आपने मूल तत्व की पहचान नहीं की और अपनी सारी आयु तीर्थ स्नान और वेद पाठ के झूठे अहंकार में लगा दी| यह अहंकार गुरु के मिलने से ही दूर होता है| तपस्वी ने आगे से फिर कहा जब तीर्थ स्नान की महिमा को सब ऋषि मुनियों ने उत्तम माना है और आप इसको तुच्छ और साधु संगत की महिमा को बड़ा किस तरह कहते हो?
इस प्रथाए गुरु रामदास जी ने इस शब्द का उच्चारण किया:
मलारू महला ४||
गंगा जमुना गोदावरी सरसुती ते करहि उदमु धुरि साधु की ताई ||
किलविख मैलु भरे परे हमरै विचि हमरी मैलु साधू की धूरि गवाई ||१||
तीरथि अठसठि मजनु नाई ||
सति संगति की धूरि परी उडि नेत्री सभ दुरमति मैलु गवाई ||१|| रहाउ ||
जा हरनवी तपै भागीरथि आणी केदारु थापिओ महसाई ||
कांसी क्रीसनु चरावत् गाऊ मिलि हरि जन सोभा पाई||२||
जितने तीरथ देवी थापे सभि तितने लोचहि धूरि साधू की ताई||
हरि का संतु मिलै गुर साधू लै तिसकी धूरि मुखि लाई ||३||
जितनी सृसटि तुमरी मेरे सुआमी सभ तितनी लोचै धूरि साधू को ताई||
नानक लिलाटि होवै जिसु लिखिआ साधू धूरि दे पारि लंघाई ||४||२||
इस शब्द के भाव समझकर तपस्वी ने कहा मेरा सौभाग्य है जो मैंने आपके वचन सुने हैं मेरा भ्रम दूर हो गया है| इसके उपरांत गुरु जी के वचनों पर श्रद्धा धारण करके तपस्वी ने सिखी धारण कर ली और सदा सत्संग करता रहा|
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बाबा के 11 वचन
ॐ साईं राम
1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
Word Meaning of the Gayatri Mantra
ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe
these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation
धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"
dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God
भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।
Simply :
तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.