श्री गुरु राम दास जी – साखियाँ - पिंगले और रजनी का प्रसंग
श्री गुरु राम दास जी – साखियाँ - पिंगले और रजनी का प्रसंग
दुनीचंद क्षत्री जो कि पट्टी नगर में रहता था उसकी पांच बेटियां थी| सबसे छोटी प्रभु पर भरोसा करने वाली थी| एक दिन दुनीचंद ने अपनी बेटियों से पूछा कि आप किसका दिया हुआ खाती व पहनती हो| रजनी के बिना सबने यही कहा कि पिताजी हम आपका दिया ही खाती व पहनती हैं| पर रजनी ने कहा, पिताजी! मुझे भी और सबको देने वाला ही परमात्मा है| दुनीचंद ने कहा मैं देखता हूँ कि तेरा परमात्मा तुझे कैसे देता है| कुछ दिन रुक कर दुनीचंद ने रजनी का विवाह कुष्ट पिंगले के साथ कर दिया|
रजनी ने परमात्मा का हुकम मानकर और पति को परमेश्वर समझकर एक टोकरे में डालकर सिर पर उठा लिया और माँग कर अपने और पति का पेट पालने लगी| इस तरह मांगती हुई गुरु के चक आगई और दुःख भंजन बेरी के नीचे कच्चे सरोवर के पास अपने पति का टोकरा रखकर लंगर लेने चली गई| पिंगले ने देखा उस सरोवर में कौए नहाकर सफेद हो गए हैं| यह चमत्कार देखकर पिंगला भी अपने टोकरे से निकलकर रींग-रींग कर पानी में चला गया और लेट गया| अच्छी तरह लेटने के बाद उसका शरीर सुन्दर और आरोग हो गया| वह उठकर टोकरे के पास बैठ गया|
इतनी देर में उसकी पत्नी भी आ गई| उसने उस पुरुष से अपने पति के बारे में पूछा जिसे वह वहाँ छोड़ कर गई थी| उस पुरुष ने कहा कि मैं ही तुम्हारा पति हूँ जिसे तुम यहाँ छोड़ कर गई थी| उसने सारी बात अपनी पत्नी को बताई कि किस तरह कौए नहाकर सफेद हो गए और मैंने भी कौए के देखकर ऐसा ही किया और आरोग हो गया|
परन्तु रजनी को उसकी बात पर यकीन ना हुआ और वह दोनों ही गुरु रामदास जी के पास चले गए| गुरु जी ने पिंगले कि बात सुनकर कहा - येही तेरा पति है तुम भ्रम मत करो| यह तुम्हारे विश्वास, पतिव्रता और तीर्थ यात्रा की शक्ति का ही परिणाम है कि वह आरोग हो गया है| गुरु साहिब के वचनों पर यकीन करके वह दोनों पति-पत्नी सेवको के साथ मिलकर सेवा करने लगे| तभी उसे अपने पिता कि बात याद आई कि वह पिता को ठीक ही कहती थी कि परमात्मा ही सब कुछ देने और करने वाला है| इंसान के हाथ कुछ नहीं है| अपने सतगुरु की ऐसी मेहर देखकर दोनों ने अपना जीवन गुरु को अर्पण कर दिया|
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बाबा के 11 वचन
ॐ साईं राम
1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
Word Meaning of the Gayatri Mantra
ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe
these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation
धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"
dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God
भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।
Simply :
तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.