शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday, 25 March 2013

श्री साईं लीलाएं- बाबा की आज्ञा का पालन अवश्य हो

ॐ सांई राम

कल हमने पढ़ा था.. बाबा को खुशहालचंद की चिंता   

श्री साईं लीलाएं



बाबा की आज्ञा का पालन अवश्य हो

रहाता शिरडी की दक्षिण दिशा और नीम गांव उत्तर दिशा में बसा हुआ था| इन दोनों गांवों के मध्य में बसा था शिरडी| पर साईं बाबा अपने पूरे जीवनकाल में इन दोनों गांव के बाहर कभी नहीं गए| न ही बाबा न रेलगाड़ी देखी थी और न ही उसमें कभी सफर ही किया था| फिर भी साईं बाबा को शिरडी से जाने वाली रेलगाड़ी के सही समय की जानकारी रहती थी|

बाबा शिरडी आने वाले प्रत्येक भक्त को सही मार्ग बड़े प्यार से दिखाते, उसके संकट से उसे मुक्ति दिलाते| जो बाबा का कहना मानता वह हर समय सुरक्षित रहता और जा बाबा के कहने को नहीं मानता वह स्वयं ही संकटों में घिर जाता| शिरडी की एक विशेषता यह थी, कि जो भी शिरडी आता, वह बाबा की मर्जी से ही आता और लौटता भी बाबा की मर्जी से ही| यदि कोई बाबा से वापस जाने की आज्ञा मांगता तो बाबा बड़े सहज भाव से कहते - 'अरे ! ठहर जरा! दाल-रोटी खाकर जाना|' यदि बाबा की आज्ञा को न मानकर जल्दबाजी में ऐसे ही निकलता तो गाड़ी भी छूटती और खाना भी नसीब न होता तथा बाबा की आज्ञा की अवहेलना करने पर कोई दुर्घटना का शिकार हो जाता|

एक बार की बात है तात्या कोते पाटिल बाजार जाने के लिए घर से चला और मस्जिद के पास तांगा रोककर बाबा के चरण स्पर्श किये और फिर बाबा से निवेदन किया कि - "बाबा मैं कोपर गांव के बाजार जा रहा हूं, आज्ञा दें|"बाबा ने कहा - "तात्या ! आज गांव मत छोड़ो, बाजार रहने दो|" लेकिन तात्या नहीं माना| फिर उसकी जिद्द को देखते हुए बाबा बोले - "अच्छा ! अगर जा ही रहा है तो अपने साथ शामा को भी ले जा|"

पर तात्या कोते ने बाबा की बात सुनी-अनसुनी कर तांगे पर सवार होकर अकेला ही चल दिया| उस तांगे में एक तेज दौड़ने वाला घोड़ा भी था जो बड़ा चंचल था| शिरडी से तीन मील आगे सांवली विहार गांव के पास पहुंचते ही वह घोड़ा बड़ी तेजी के साथ उल्टी-सीधी दौड़ लगाने लगा| परिणाम यह हुआ कि घोड़े की कमर में मोच आ जाने से घोड़ा जमीन पर गिर पड़ा तथा तांगे का नुकसान भी बहुत हो गया| तात्या कोते को चोट तो नहीं लगी, पर साईं बाबा द्वारा आज्ञा ने देने की बात उसे अवश्य याद आ गयी|

तात्या कोते ने एक बार पहले भी साईं बाबा की आज्ञा का उल्लंघन किया था| जब वह तांगे से कोल्हर गांव जा रहा था और घोड़ा बेकाबू होकर बबूल के पेड़ से जा टकराया था| तांगा टूट गया था| घटना जानलेवा थी पर बाबा की कृपा से ही वह बाल-बाल बच गया था| इसके बाद तात्या ने फिर कभी भी बाबा की बात नहीं टाली|

कुछ इस तरह का अनुभव साईं सच्चरित्र लिखने वाले गोविन्द रघुनाथ दामोलकर का रहा है| एक बार वह शिरडी अपने परिवार के साथ गये थे| वे वापस जाने के लिए जब साईं बाबा से आज्ञा मांगी तो बाबा ने कहा, खाना खाकर जाना, जल्दबाजी में बाबा की आज्ञा ने मानते हुए शिरडी छोड़ी| रेलगाड़ी पकड़ने के लिए उन्होंने रास्ते में बैलगाड़ी वाले से गाड़ी तेज चलाने को कहा| जिसका नतीजा यह हुआ कि बैलगाड़ी का पहिया टूटकर नाले में जा गिरा| बाबा के आशीर्वाद से किसी को कुछ नहीं हुआ, पर गाड़ी को ठीक-ठाक करके जाने तक रेलगाड़ी निकल चुकी थी| जिस कारण, उन्हें एक दिन कोपर गांव में रहकर दूसरे दिन गाड़ी से मुम्बई जाना पड़ा|



यूरोप के रहनेवाले एक अंग्रेज जो मुम्बई में रहा करते थे| वह अपने मन में कुछ इच्छा लेकर बाबा के दर्शन करने को आया था| उसे बाबा के भक्तों ने एक शानदार तम्बू में ठहरा दिया| उसके मन में यह इच्छा थी कि वह बाबा को सिर झुकाकर उनके कर-कमलों को चुम्बन करे| अपनी इस इच्छा को पूरी करने के लिए वह तीन बार मस्जिद की सीढ़ियों पर चढ़ना चाहा, पर हर बार बाबा ने उसे सीढ़ियों पर चढ़ने से मना कर दिया| उसे आँगन में रहकर ही दर्शन कर लेने को कहा गया| इससे वह निराश हो गया| उसने शीघ्र ही शिरडी से वापस जाने का मन बना लिया|

लौटते समय जब वह बाबा के पास आज्ञा लेने आया तो बाबा ने कहा - "इतनी भी जल्दी क्या है, कल चले जाना|" लेकिन वह मानने को तैयार नहीं हुआ| वहां उपस्थित बाबा के भक्तों ने उसे बाबा की आज्ञा मान लेने को कहा, लेकिन वह नहीं माना| वह तांगे में बैठकर चल दिया| तांगा अभी सांवली विहार गांव तक ही पहुंचा था कि अचानक सामने से एक साइकिलसवार आ गया जिससे घोड़े बिदक गये और अत्यन्त तेजी से दौड़ने लगे| परिणामत: तांगा पलट गया और वह गिरकर घायल हो गये| वहां मौजूद लोगों की मदद से तांगेवाले ने उन्हें उठाकर कोपर गांव के अस्पताल में भर्ती कराया| जहां उन्हें कई दिनों तक रहना पड़ा|



मुम्बई निवासी रघुवीर भास्कर पुरंदरे एक बार अपने परिवार के साथ शिरडी गये थे| लौटते समय अपनी माँ की इच्छानुसार उन्होंने नासिक होकर जाने के लिए साईं बाबा की अनुमति मांगी, तो बाबा बोले, - "ठीक है, पर नासिक में दो दिन रुकना, फिर आगे जाना|" पुरंदरे जब शिरडी से नासिक आये तो उसी दिन उनके छोटे भाई को तेज बुखार हो गया| यह देखते परिवार के सब लोग मुम्बई जाने के लिए जिद्द करने लगे| तब बाबा ने उन्हें बाबा के वचन याद दिलाये और अपना फैसला सुना दिया, कि चाहे कुछ भी हो जाये, मैं दो दिन बाद ही यहां से जाऊंगा|" फिर उन्हें मजबूरी में वहां रहना पड़ा| दूसरे दिन बुखार किसी जादू की तरह अपने आप गायब हो गया और फिर तीसरे दिन सभी प्रसन्नता से मुम्बई लौट आये|



एक बार नाना साहब चाँदोरकर और दो अन्य साथी तथा एक कीर्तनकार मिलकर साईं बाबा के दर्शन करने के लिए शिरडी आये| बाबा के दर्शन कर लेने के बाद वापस लौटने के लिए कीर्तनकार जल्दी करने लगे| उनका कीर्तन अहमदनगर में पहले से निश्चित था| यह जानकर चाँदोरकर से लौटने के लिए बाबा से अनुमति मांगी तो बाबा ने उन्हें भोजन, प्रसाद खाकर जाने के लिए कहा, लेकिन वे कीर्तनकार नहीं माने और चाँदोरकर के साथ वाले एक सज्जन के साथ रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़े| चाँदोरकर और एक सज्जन वहीं पर रुक गये| दोपहर को भोजन, प्रसाद खाकर जब वे बाबा से मिलने गये तो साईं बाबा बोले - "आराम से जाओ| अभी गाड़ी के लिए देर है|"

जब दोनों स्टेशन पर पहुंचे तो गाड़ी देर से आने वाली थी और कीर्तनकार और उनके साथी गाड़ी के लिए बैठे थे| इनको देखकर वे बोले - "आपने बाबा का कहना मानकर अच्छा ही किया| हम बाबा की बात न मानकर अभागे निकले, तभी तो हमें यहां भूखा-प्यासा तड़पने बैठने की नौबत आयी|" फिर गाड़ी आने के बाद सब चले गये|


एक बार तात्या साहब नूलकर और भाऊ साहब दीक्षित अपने कुछ साथियों के साथ शिरडी साईं बाबा के दर्शन करने के लिये आये थे| जब वह वापस लौटने लगे तब उन्होंने साईं बाबा से अनुमति मांगी, तो साईं बाबा बोले - "कल चले जाओ और जाते-जाते कोपर गांव के भोजनालय में खाना भी खा लेना|" उन्होंने वैसा ही किया और कोपर गांव भोजनालय में संदेशा भी भिजवा दिया| लेकिन जब दूसरे दिन कोपर गांव पहुंचे तो खाना बनने में अभी कुछ समय लगना था| यह देखते ही गाड़ी पकड़ने के लिए वह बिना खाने खाये, वैसे ही स्टेशन चले गये, तो वहां पता चला कि अभी रेलगाड़ी दो घंटे देरी से आयेगी| फिर उन्होंने तांगा भेजकर भोजनालय से भोजन मंगाया और वहीं स्टेशन पर खाया| दस मिनट बाद रेलगाड़ी आयी और फिर सब लोग आगे रवाना हो गए|

कल चर्चा करेंगे..बांद्रा गया भूखा ही रहा 

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.