शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday, 5 February 2013

श्री साईं लीलाएं - साईं बाबा की जय-जयकार

ॐ सांई राम
  
कल हमने पढ़ा था.. और विष उतर गया
श्री साईं लीलाएं
साईं बाबा की जय-जयकार



दामोदर को सांप के काटने और साईं बाबा द्वारा बिना किसी मंत्र-तंत्र अथवा दवा-दारू के उसके शरीर से जहर का बूंद-बूंद करके टपक जाना, सारे गांव में इसी की ही सब जगह पर चर्चा हो रही थी|गांव के कुछ नवयुवकों ने द्वारिकामाई मस्जिद में आकर साईं बाबा के अपने कंधों पर बैठा लिया और उनकी जय-जयकार करने लगे| सभी छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष साईं बाबा की जय-जयकार के नारे पूरे जोर-शोर से लगा रहे थे|

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हम तो साईं बाबा को इसी तरह से सारे गांव में घुमायेंगे|" नयी मस्जिद के मौलवी ने कहा - "मैंने तो पहले ही कह दिया था कि यह कोई साधारण पुरुष नहीं हैं| यह इंसान नहीं फरिश्ते हैं| यह तो शिरडी का अहोभाग्य है कि जो यह यहां पर आ गए हैं|"

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हां, हां, हम साईं बाबा का जुलूस निकालेंगे|" अभी उपस्थित व्यक्ति एक स्वर में बोले|फिर उसके बाद सब जुलूस निकालने की तैयारी करने में लग गये|यह सब देख-सुनकर पंडितजी को बहुत ज्यादा दुःख हुआ| पूरे गांव में केवल वे ही एक ऐसे व्यक्ति थे जो नये मंदिर के पुजारी के साथ-साथ पुरोहिताई और वैद्य का भी कार्य किया करते थे| यह बात उनकी समझ में जरा-सी भी नहीं आयी कि साईं बाबा के हाथ फेरने से ही जहर कैसे उतर सकता है? इस बात को वह ढोंग मान रहे थे| इसमें उनको साईं बाबा की कुछ चाल नजर आ रही थी| वह गांव के लोगों का इलाज भी किया करते थे| साईं बाबा के प्रति उनके मन में ईर्ष्या पैदा हो गयी थी|साईं बाबा एक चमत्कारी पुरुष हैं, पंडितजी इस बात को मानने के लिए बिल्कुल भी तैयार न थे| वह ईर्ष्या में भरकर साईं बाबा के विरुद्ध उल्टी-सीधी बातें बोलने लगे|सब जगह केवल साईं बाबा की ही चर्चा थी| पर, पंडितजी की ईर्ष्या का कोई ठिकाना न था|

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जरूर कोई महात्मा हैं|"

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सिद्धपुरुष हैं|"

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देखो न ! कैसे-कैसे चमत्कार करता है !"
अब आस-पास के लोग जिन्होंने साईं बाबा के चमत्कार के बारे में सुना, उनके दर्शन करने के लिए आ रहे थे| उधर पंडितजी न नाग के जहर को शरीर से बूंद-बूंद कर टपक जाने की बात सुनी तो आगबबूला हो गये-और गांव के चौपाल पर बैठे लोगों से बोले-

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यह गांव ही मूर्खों से भरा पड़ा है|" पंडित ने क्रोध से कांपते हुए कहा - "वह कल का मामूली छोकरा भला सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है ? कई-कई जन्म बीत जाते हैं साधना करते हुए, तब कहीं जाकर सिद्धि प्राप्त होती है| नाग का जहर तो संपेरे भी उतार देते हैं| मुझे तो पहले ही दिन पता चल गया था कि वह कोई संपेरा हैं| एक संपेरों की ही ऐसी कौम होती है, जिनका कोई दीन-धर्म नहीं होता| वह भला सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है?"

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आप बिल्कुल ठीक कहते हैं पंडितजी!"-एक व्यक्ति ने कहा - "पन्द्रह-सोलह वर्ष का छोकरा है और गांव वालों ने उसका नाम रख दिया है 'साईं बाबा'| यह साईं बाबा का क्या अर्थ होता है, पंडितजी ! जरा हमें भी समझाइये?"

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इसका अर्थ तो तुम उन्हीं लोगों से जाकर पूछो, जिन्होंने उसका यह नाम रखा है|" पंडितजी ने ईर्ष्या में भरकर कहा| फिर रहस्यपूर्ण स्वर में बोले-"जाओ, पुरानी मस्जिद में देखकर आओ, वहां पर क्या हो रहा है?"तभी अचानक झांझ, मदृंग, ढोल और अन्य वाद्यों की आवाज तथा लोगों का कोलाहल सुनकर पंडितजी चौंक गये| बाजों की आवाज के साथ-साथ जय-जयकार के नारे भी सुनायी दे रहे थे|उन्होंने देखा, सामने से एक जुलूस आ रहा था|

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पंडितजी! बाहर आइए|साईं बाबा की शोभायात्रा आ रही है|" एक व्यक्ति ने बड़े जोर से चिल्लाकर कहा|पंडितजी उस नजारे को देखकर बड़े हैरान थे| पालकी के आगे-आगे कुछ गांववासी झांझ, मंजीरे और ढोल बजाते हुए चल रहे थे| उनके पीछे एक पालकी में साईं बाबा बैठे थे| दामोदर और उसके साथियों ने पालकी अपने कंधों पर उठा रखी थी| उनके साथ गांव के पटेल भी थे और नई मस्जिद के इमाम भी| साथ ही प्रतिष्ठित लोगों की भीड़ भी चल रही थी| इन सबके साथ गांव की बहुत सारी महिलाएं भी थीं| ऐसा लगता था कि जैसे सारा गांव ही उमड़ पड़ा हो| सभी साईं बाबा की जय-जयकार कर रहे थे|साई बाबा का ऐसा स्वागत-सत्कार देखकर पंडितजी के होश उड़ गये, मारे क्रोध के बुरा हाल हो गया| वह गला फाड़कर चिल्लाकर बोले-"सत्यानाश! ये ब्राह्मण के लड़के इस संपेरे के बहकावे में आ गए हैं| यह बहुत बड़ा जादूगर है| नौजवानों को इसने अपने वश में कर रखा है| यह बहुत बड़ा जादूगर है| नौजवानों को इसने अपने वश में कर रखा है| देख लेना, एक दिन यह सब भी इसी की तरह शैतान बन जायेंगे| हे भगवान! क्या मेरे भाग्य में यह दिन भी देखना बाकी था?"जैसे-जैसे शोभायात्रा आगे बढ़ती जा रही थी और उसमें शामिल होने वाले लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा रही रही, साईं बाबा कि पालकी के आगे-आगे नवयुवक नाचते, गाते और जय-जयकार से वातावरण को गूंजा रहे थे|अपने-अपने घरों के दरवाजों पर खड़ी स्त्रियां फूल बरसाकर शोभायात्रा का स्वागत कर रही थीं|पंडितजी से साईं बाबा का यह स्वागत देखा न गया| वह गुस्से में पैर पटकते हुए घर के अंदर चले गए और दरवाजा बंद करके, कमरे मैं जाकर पलंग पर लेट गए और मन-ही-मन साईं बाबा को कोसने लगे| कैसा जमाना आ गया है, इस कल के छोकरे ने तो सारे गांव को बिगाड़कर रख दिया है| पंडितजी को साईं बाबा अपना सबसे बड़ा दुश्मन दिखाई दे रहे थे| जुलूस गांवभर में घूमता रहा और हर जबान पर साईं बाबा की चर्चा होती रही|शोभायात्रा घूमकर वापस लौट आयी|साईं बाबा के पास कुछ ही व्यक्ति रह गए| वह चुपचाप आँखें बंद किये बैठे थे|

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बाबा, जब आप पहले-पहल गांव में आए थे और लोगों ने आपसे पूछा था कि आप कौन हैं, तो आपने कहा था, मैं साईं बाबा हूं| साईं बाबा का क्या अर्थ होता है?" दामोलकर ने पूछा| उसके इस प्रश्न पर साईं बाबा मुस्करा दिए|

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देखो, दो अक्षर का शब्द है-सा और ईं| सा का अर्थ है देवी और ईं का अर्थ होता है मां| बाबा का अर्थ होता है पिता| इस प्रकार साईं बाबा का अर्थ हुआ-देवी,माता और पिता|"

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जन्म देने वाले माता-पिता के प्रेम में स्वार्थ की भावना निहित होती है| जबकि देवी माता-पिता के स्नेह में जरा-सा भी स्वार्थ नहीं होता है| वह तुम्हारा मार्गदर्शन करते हैं और तुम्हें प्रेरणा देते हैं| आत्मदर्शन, आत्मज्ञान की सीधी और सच्ची राह दिखाते हैं|" साईं बाबा ने समझाते हुए कहा - "वैसे साईं बाबा को प्रयोग परमपिता परमात्मा, ईश्वर, अल्लाताला और मालिक के लिए भी किया जाता है|"

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आप वास्तव में ही साईं बाबा हैं|" सभी उपस्थित लोगों ने एक स्वर में कहा - "आपने हम सभी को सही रास्ता दिखाया है| सबको आपने ईश्वर की भक्ति के मार्ग पर लगाया है|"

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यह मनुष्य शरीर न जाने कितने पिछले जन्मों के पुण्य कर्मों को करने के पश्चात् प्राप्त होता है| इस संसार में जितने भी शरीरधारी हैं, उन सबमें केवल मनुष्य ही सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी है| वह इस जन्म में और भी अधिक पुण्य कर्म कर सकता है| उसके पास बुद्धि है, ज्ञान है और इसके बावजूद भी वह मानव शरीर पाकर मोह-माया और वासना के दलदल में फंस जाता है| इससे छुटकारा पाना असंभव हो जाता है| उसका मन रात-दिन वासना और स्वार्थ में लिप्त रहता है| धन-सम्पत्ति पाने के लिए वह कैसे-कैसे कार्य नहीं करता है| मनुष्य को इस दलदल से यदि कोई मुक्ति दिला सकता है, तो वह है गुरु... केवल सद्गुरु|लेकिन आज के समय में सच्चा गुरु कहा मिलता है| सच्चे इंसान ही बड़ी मुश्किल से मिलते हैं| फिर सच्चे गुरु का मिलना तो और भी अधिक कठिन है|"

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सच्चे गुरु कि पहचान क्या है साईं बाबा?" एक व्यक्ति ने पूछा|

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सच्चा गुरु वही है, जो शिष्य को अच्छाई-बुराई का भेद बता सके| उचित-अनुचित का अंतर बता सके| आत्मप्रकाश, आत्मज्ञान दे सके| जिसके मन में रत्तीभर भी स्वार्थ की भावना न हो, जो शिष्य को अपना ही अंश मानता हो| वही सच्चा सद्गुरु है|" साईं बाबा ने बताया और फिर अचानक उन्हें जैसे कुछ याद आया, तो वह बोले - " आज तात्या नहीं आया क्या?"

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बाबा, मैं आपको बताना ही भूल गया| तात्या को आज बहुत तेज बुखार आया है|"

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तो आओ चलो, तात्या को देख आयें|" साईं बाबा ने अपने आसन से उठते हुए कहा| साथ ही अपनी धूनी में से चुटकी भभूति अपने सिर के दुपट्टे में बांधकर चल पड़े
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कल चर्चा करेंगे.. ऊदी का चमत्कार
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh. INDIA.

बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.