शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Friday 24 August 2012

श्रद्घा और सबुरी/ FAITH and PATIENCE

ॐ साईं राम!!!
FAITH and PATIENCE
श्रद्घा और सबुरी
  ॐ साईं, श्री साईं, जय जय साईं
निष्ठा और धैर्य दो जुड़वाँ बहिनों के समान ही है, जिनमें परस्पर प्रगाढ़ प्रेम है ।
मेरे गुरु मुझसे किसी वस्तु की आकांक्षा न रखते थे । उन्होंने कभी मेरी उपेक्षा न की, वरन् सदैव रक्षा करते रहे । यघपि मैं सदैव उनके चरणों के समीप ही रहता था, फिर भी कभी किन्हीं अन्य स्थानों पर यदि चला जाता तो भी मेरे प्रेम में कभी कमी न हुई । वे सदा मुझ पर कृपा दृष्टि रखते थे । जिस प्रकार कछुवी प्रेमदृष्टि से अपने बच्चों का पालन करती है, चाहे वे उसके समीप हों अथवा नदी के उस पार । सो हे माँ । मेरे गुरु ने तो मुझे कोई मंत्र सिखाया ही नही, तब मैं तुम्हारे कान में कैसे कोई मंत्र फूँकूँ । केवल इतना ही ध्यान रखो कि गुरु की भी कछुवी के समान ही प्रेम-दृष्टि से हमें संतोष प्राप्त होता है । इस कारण व्यर्थ में किसी से उपदेश प्राप्त करने का प्रयत्न न करो । मुझे ही अपने विचारों तथा कर्मों का मुख्य ध्येय बना लो और तब तुम्हें निस्संदेह ही परमार्थ की प्रप्ति हो जायेगी । मेरी और अनन्य भाव से देखो तो मैं भी तुम्हारी ओर वैसे ही देखूँगा । इस मसजिद में बैठकर मैं सत्य ही बोलूँगा कि किन्हीं साधनाओं या शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता नही, वरन् केवल गुरु में विश्वास ही पर्याप्त है । पूर्ण विश्वास रखो कि गुरु की कर्ता है और वह धन्य है, जो गुरु की महानता से परिचित हो उसे हरि, हर और ब्रहृ (त्रिमूर्ति) का अवतार समझता है ।
इस प्रकार समझाने से वृदृ महिला को सान्तवना मिली और उसने बाबा को नमन कर अपना उपवास त्याग दिया । यह कथा ध्यानपूर्वक एकाग्रता से श्रवण कर तथा उसके उपयुक्त अर्थ पर विचार कर हेमाडपंत को बड़ा आश्चर्य हुआ । उनका कंठ रुँध गया और वे मुख से एक शब्द भी न बोल सके । उनकी ऐसी स्थति देख शामा ने पूछा कि आप ऐसे स्तब्ध क्यों हो गये । बात क्या है । बाबा की तो इस प्रकार की लीलायें अगणित है, जिनका वर्णन मैं किस मुख से करुँ ।
हेमाडपंत ने कहा कि वार्ता अति सुखदायी थी, विशेषकर उस वृदृ महिला की कथा तो ऐसी अदभुत थी कि जिसे श्रवण कर मुझे तुरन्त ही विचार आया कि आपकी लीलाएँ अगाध है और इस कथा की ही ओट में आपने मुझ पर विशेष कृपा की है । तब बाबा ने कहा, वह तो बहुत ही आश्चर्यपूर्ण है । अब मेरी तुम पर कृपा कैसे हुई, इसका पूर्ण विवरण सुनाओ । कुछ काल पूर्व सुना वार्तालाप जो उनके हृदय पटल पर अंकित हो चुका था, वह सब उन्होने बाबा को सुना दिया । वार्ता सुनकर बाबा अति प्रसन्न हो कहने लगे कि क्या कथा से प्रभावित होकर उसका अर्थ भी तुम्हारी समझ में आया है । तब हेमाडपंत ने उत्तर दिया कि हाँ, बाबा, आया तो है । उससे मेरे चित्त की चंचलता नष्ट हो गई है । अब यथा्रथ में मैं वास्तविक शांति और सुख का अनुभव कर रहा हूँ तथा मुझे सत्य मार्ग का पता चल गया है । तब बाबा बोले, सुनो, मेरी पद्घति भी अद्घितीय है । यदि इस कथा का स्मरण रखोगे तो यह बहुत ही उपयोगी सिदृ होगी । आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिये ध्यान अत्यंत आवश्यक है और यदि तुम इसका निरन्तर अभ्यास करते रहोगे तो कुप्रवृत्तियाँ शांत हो जायेंगी । तुम्हें आसक्ति रहित होकर सदैव ईश्वर का ध्यान करना चाहहिये, जो सर्व प्राणियों में व्याप्त है और जब इस प्रकार मन एकाग्र हो जायेगा तो तुम्हें ध्येय की प्राप्ति हो जायेगी । मेरे निराकार सच्चिदानन्द स्वरुप का ध्यान करो । यदि तुम ऐसा करने में अपने को असमर्थ मानो तो मेरे साकार रुप का ही ध्यान करो, जैसा कि तुम मुझे दिन-रात यहाँ देखते हो । इस प्रकार तुम्हारी वृत्तियाँ केन्द्रित हो जायेंगी तथा ध्याता, ध्यान और ध्येय का पृथकत्व नष्ट होकर, ध्याता चैतन्य से एकत्व को प्राप्त कर ब्रहृ के साथ अभिन्न हो जायेगा । कछुवी नदी के इस किनारे पर रहती है और उसके बच्चे दूसरे किनारे पर । न वह उन्हें दूध पिलाती है और न हृदय से ही लगाकर लेती है, वरन् केवल उसकी प्रेम-दृष्टि से ही उनका भरण-पोषण हो जाता है । छोटे बच्चे भी कुछ न करके केवल अपनी माँ का ही स्मरण करते रहते है । उन छोटे-छोटे बच्चों पर कछुवी की केवल दृष्टि ही उन्हें अमृततुल्य आहार और आनन्द प्रदान करती है । ऐसी ही गुरु और शिष्य का भी सम्बन्ध है । बाबा ने ये अंतिम शब्द कहे ही थे कि आरती समाप्त हो गई और सबने उचच स्वर से – श्री सच्चिदानन्द सदगुरु साईनाथ महाराज की जय बोली । आरती समाप्त होने पर प्रसाद वितरण हुआ । बापूसाहेब जोग हमेशा की तरह आगे बढ़े और बाबा को नमस्कार कर कुछ मिश्री का प्रसाद दिया । यह मिश्री हेमाडपंत को देकर वे बोले कि यदि तुम इस कथा को अच्छी तरह से सदैव स्मरण रखोगे तो तुम्हारी भी स्थिति इस मिश्री के समान मधुर होकर समस्त इच्छायें पूर्ण हो जायेंगी और तुम सुखी हो जाओगे । हेमाडपंत ने बाबा को साष्टांग प्रणाम किया और स्तुति की कि प्रभो ! इसी प्रकार दया कर सदैव मेरी रक्षा करते रहो । तब बाबा ने आर्शीवाद देकर कहा कि इन कथाओं को श्रवण कर, नित्य मनन तथा निदिध्यासन कर, सारे तत्व को ग्रहण करो, तब तुम्हें ईश्वर का सदा स्मरण तथा ध्यान बना रहेगा और वह स्वयं तुम्हारे समक्ष अपने स्वरुप को प्रकट कर देगा । प्यारे पाठको । हेमाडपंत को उस समया मिश्री का प्रसाद भली भाँति मिला, जो आज हमें इस कथामृत के पान करने का अवसर प्राप्त हुआ । आओ, हम भी उस कथा का मनन करें तथा उसका सारग्रहण कर बाबा की कृपा से स्वस्थ और सुखी हो जाये ।
जय साईं राम!!!

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.