शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Thursday 13 January 2011

ॐ सांई राम - Aaj Ka Sai Sandesh - Happy Lohri


ॐ सांई राम



 
  काका की नोकरानी  द्वारा दासगणु की शंका का निवारण        बाबा के वचनों में पूर्ण विश्वास कर वे शिर्डी से विलेपार्ला (बम्बई के उपनगर) में पहुँच कर काका दीक्षित के यहाँ ठहरे|दुसरे दिन दासगणु सुबह की मीठी नींद का आनंद ले रहे थे,तभी उन्हें एक निर्धन बालिका के सुंदर गीत का स्पष्ट और मधुर स्वर सुनाई पड़ा|गीत का मुख्या विषय था-एक लाल रंग की साड़ी वह कितनी सुन्दर थी,उसका जरी का आँचल कितना बढ़िया था,उसके छोर और किनारे कितने सुन्दर थे,इत्यादि|उन्हें वह गीत अति रुचिकर प्रतीत हुआ|इसी कारण उहोने बहार आकर देखा यह गीत एक बालिका -नाम्या की बहन-जो काका दीक्षित की नोकरानी है-गा रही है|बालिका बर्तन माँज रही थी और केवल एक फटे कपड़े से तन ढंके हुए थी|इतनी दरिद्र परिस्थिति में भी उसकी प्रसन्न- मुद्रा देखकर श्री दासगणु को दया आ गयी  और श्री दासगणु ने श्री ऍम.व्ही. प्रधान से उस निर्धन बालिका को एक उत्तम  साड़ी देने की प्रार्थना की|जब रावबहादुर ऍम.व्ही.प्रधान ने उस निर्धन बालिका को एक उत्तम धोती का जोड़ा दिया,तब एक शुद्धापीड़ित व्यक्ति को जैसे भाग्यवश मधुर भोजन प्राप्त होने पर प्रसन्नता होती है,वैसे ही उसकी प्रसन्नता का पारवार ना रहा|दुसरे दिन उसने नयी साड़ी पहनी और अत्यंत हर्षित होकर नाचने-कूदने लगी और अन्य बालिकाओं के साथ वह फुगड़ी खेलने में मग्न रही|अगले दिन उसने नयी साड़ी सँभाल कर संदूक में रख दी और पूर्ववत फटे-पुराने कपड़े पहन कर आई,फिर पिछले दिन के समान ही प्रसन्न दिखाई दी|यह देखकर श्री दासगणु की दया आश्चर्य में परिणित हो गयी|उनकी ऐसे धारणा थी की निर्धन होने के ही कारण उसे फटे चीथड़े कपड़े पहनने पड़ते हैं,परन्तु आज अब तो उसके पास नयी साड़ी थी,जिसे उसने सम्भाल कर रख लिया,और फटे कपड़े पहन कर भी उसी गर्व और आनंद का अनुभव करती रही|उसके मुख पर दुःख या निराशा का कोई निशान भी नहीं रहा|इस प्रकार उन्हें अनुभव हुआ की दुःख और सुख का अनुभव मानसिक स्थिति पर निर्भर है|इस घटना पर गूढ़ विचार करने के पश्चात वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे की भगवान् ने जो कुछ दिया है,उसी में समाधान वृति रखनी चाहिए और यह निश्चयपूर्वक समझना चाहिए वह चराचर में व्याप्त है|आर जो भी स्थिति उसकी दया से प्राप्त है,वह अपने अवश्य ही लाभप्रद होगी|इस वशिष्ट घटना में बालिका की निर्धना अवस्था, उसके फटे पुराने कपड़े और नयी साड़ी देने वाला तथा उसकी स्वीकृति देने वाला,ये सब इश्वर द्वारा ही प्रेरित था |श्री दासगणु को उपनिषद के पाठ की प्रत्यक्ष शिक्षा मिल गयी अर्थात जो कुछ अपने पास है,उसी में समाधानवृति माननी चाहिए|सार यही है कि जो कुछ होता है,सब उसकी इच्छा से नियंत्रित है,अत: उसी में संतुष्ट रहने में हमारा कल्याण है|
                                            *जय साईं राम *                         साईं की कृपा हम सब पर बनी रहे |



ॐ सांई राम

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सुख के आने की उम्मीद पे सांई,
दुःख क्यों द्वार खटखटाता है,
यह तो मेरे कर्म है सांई,
मेरा मन क्यों तुझ को दोष लगाता है!!

तूँ तो सब का सहारा है सांई,
हर कोई तुझ को प्यारा है सांई,
तूँ तो अपने बंदों में फर्क न करता,
मेरा मन क्यों मुझको भटकाता है सांई,
ये तो मेरे कर्म है सांई....

तूँ तो दयावान है सांई,
तुझसे मिलता समाधान है सांई,
मैं यह जानूँ, देकर मुझको
दुःख तूँ आज़माता है!!!

तेरी कृपा सब पर होती सांई,
आँखें फिर क्यों दामन को भिगोती सांई,
तुझ को देकर दोष स्वयम् का,
मन ही मन वो पछताता है,
ये तो मेरे कर्म है सांई....
मैं ना चाहूँ इतना सुख सांई,
जिसमे हो तुझे भुलाने का दुःख सांई,
कभी-कभी ही लेकिन फिर भी
मुझ पे तूँ अपना हक तो जमाता है,
ये तो मेरे कर्म है सांई..

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.