शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday 11 October 2010

खापर्डे डायरी - शिरडी

29 दिसम्बर , 1911

मुझे उठने में थोड़ी देर हुई और फिर श्री नाटेकर , जिन्हें हम 'हंस ' और स्वामी कहते हैं , के साथ मैं बात चीत करने के लिए बैठ गया | मैं पूजा वगैरह समय पर समाप्त नहीं कर पाया और साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन भी नहीं कर पाया | जब वे मस्जिद लौटे तब मैंने उनके दर्शन किए| हंस मेरे साथ थे | साईं महाराज बहुत अच्छे भाव में थे और उन्होंने एक कहानी शुरू की जो कि बहुत बहुत प्रेरक थी लेकिन दुर्भाग्य वश त्रिम्बक राव जिसे हम मारुति कहते है , ने अत्यंत मुर्खता वश बीच में ही टोक दिया और साईं महाराज ने उसके बाद विषय बदल दिया | उन्होंने कहा कि एक नौजवान था , जो भूखा था और वह लगभग हर लिहाज से जरूरतमंद था | वह नौजवान आदमी इधर- उधर घुमने के बाद साईं साहेब के पिता के घर गया और जहां उसका बहुत अच्छी तरह सत्कार हुआ और उसे जो भी चाहिए था वह दिया गया | लड़के ने वहां कुछ समय बिताया , मोटा हो गया , कुछ चीजे जमा कर ली , गहने चुराए , और इन सब का एक बंडल बना कर जहां से आया था वहीं लौट जाना चाहा | वास्तव में वः साईं साहेब के पिता के घर में ही पैदा हुआ था और वही का था लेकिन इस बात को नहीं जानता था | इस लड़के ने बंडल गली के एक कोने में डाल दिया लेकिन इससे पहले कि वे बाहर निकले , देख लिया गया | इसी लिए उसे देर करनी पडी | इस बीच में चोर उसके बंडल से गहने ले गए | ठीक निकलने से पहले उसने उन्हें गायब पाया इसी किए वह घर में ही रुक गया और कुछ और गहने इकठ्ठे किए और फिर चल पडा , लेकिन रास्ते में लोगो ने उसे उन चीज़ों को चुराने के संदेह में कैद कर लिया | इस मोड़ पर आकर कहानी का विषय बदल गया और वह अचानक ही रुक गयी |

मध्यान्ह आरती से लौटने के बाद मैंने हंस से मेरे साथ भोजन लेने का आग्रह किया और उसने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया | वह सीधा साधा बहुत ही भला आदमी हैं , और खाना खाने के बाद उसने हमें हिमालय में अपने भ्रमण के बारे में बता या , वह किस तरह मानसरोवर पहुचाँ , किस तरह उसने वहां एक उपनिषद का गायन सुना , किस तरह वहपद चिन्हों के पीछे गया , किस तरह वह एक गुफा में पहुचाँ , एक महात्मा को देखा , किस तरह उस महात्मा ने उसी दिन बंबई में हुई तिलक ही सना के बारे में बात की , किस पतः उस महात्मा ने उसे अपने भाई { बड़े सहपाठी } से मिलवाया , किस तरह आखिरकार वह अपने गुरु से मिला और ' क्रतार्थ ' हुआ | बाद में हम साईं बाबा के पास गए और मस्जिद में उनके दर्शन किए | उन्होंने आज दोपहर मेरे पास सन्देश भेजा कि मुझे यहाँ और दो महीने रुकना पडेगा | दोपहर में उन्होंने अपने सन्देश की पुष्टि की और फिर कहाँ कि उनकी ' उदी ' में महत अध्यात्मिक गुण है | उन्होंने मेरी पत्नी से कहाँ कि गवर्नर एक सरकारी नौकर के साथ आया और साईं महाराज की उससे अनबन हुई और उसे उन्होंने बाहर निकाल दिया और आखिरकार गवर्नर के साथ समझोता कर लिया| भाषा अत्यंत संकेतात्मक है इसीलिए उसकी व्याख्या करना कठिन है| शाम को हम शेज आरती में उपस्थित हुए और उसके बाद भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई |


!! जय साईं राम !!

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.