शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday, 16 August 2010

Aaj Ka Sai Sandesh

ॐ सांई राम

Today we are Celebrating
our 1st Anniversary

We have started our group last year on 16th August 2009
And
By the grace of lord Sai and support of all group members
we have turned now a year old group.


Thanking all of our group members from the bottoms of my heart for their supportive and encouraging relastionship with us.


May Baba bless us all....

आज बाबा जी की कृपा से हम अपनी पहली वर्षगाँठ मना रहे है, जैसा की हमने अपने इस ग्रुप की शुरुआत पिछले वर्ष १६ अगस्त २००९ में की थी


आप सभी के भरपूर सहयोग एवं आशीर्वाद से ही हम आज सफलता की पहली पायदान तक हाथ से हाथ मिला कर पहुंचे है...

हम तहे दिल से आप सभी का शुक्रिया अदा करते है और आशा करते है की आगे भी आप का सहयोग प्राप्त होता रहेगा.....


बाबा जी से प्रार्थना है की वह अपनी कृपा दृष्टि हम सभी पर बनाये रखे ..


ॐ साईं राम

दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है, क्योंकि दृष्टि का परिवर्तन


मौलिक परिवर्तन है। अतः दृष्टि को बदलें सृष्टि को नहीं, दृष्टि का


परिवर्तन संभव है, सृष्टि का नहीं। दृष्टि को बदला जा सकता है, सृष्टि को


नहीं। हाँ, इतना जरूर है कि दृष्टि के परिवर्तन में सृष्टिभी बदल जाती


है। इसलिए तो सम्यकदृष्टि की दृष्टि में सभी कुछ सत्य होता है और मिथ्या


दृष्टि बुराइयों को देखता है। अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हमारी दृष्टि पर


आधारित हैं।


दृष्टि दो प्रकार की होती है। एक गुणग्राही और दूसरी छिन्द्रान्वेषी


दृष्टि। गुणग्राही व्यक्ति खूबियों को और छिन्द्रान्वेषी खामियों को


देखता है। गुणग्राही कोयल को देखता है तो कहता है कि कितना प्यारा बोलती


है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी बदसूरत दिखती है।


गुणग्राही मोर को देखता है तो कहता है कि कितना सुंदर है और


छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी भद्दी आवाज है, कितने रुखे


पैर हैं। गुणग्राही गुलाब के पौधे को देखता है तो कहता है कि कैसा अद्भुत


सौंदर्य है। कितने सुंदर फूल खिले हैं और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो


कहता है कि कितने तीखे काँटे हैं। इस पौधे में मात्र दृष्टि का फर्क है।


जो गुणों को देखता है वह बुराइयों को नहीं देखता है।






कबीर ने बहुत कोशिश की बुरे आदमी को खोजने की। गली-गली, गाँव-गाँव खोजते


रहे परंतु उन्हें कोई बुरा आदमी न मिला। मालूम है क्यों? क्योंकि कबीर


भले आदमी थे। भले आदमी को बुरा आदमी कैसे मिल सकता है?





कबीर ने कहा-


बुरा जो खोजन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई,


जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।






कबीर अपने आपको बुरा कह रहे हैं। यह एक अच्छे आदमी का परिचय है, क्योंकि


अच्छा आदमी स्वयं को बुरा और दूसरों को अच्छा कह सकता है। बुरे आदमी में


यह सामर्थ्य नहीं होती। वह तो आत्म प्रशंसक और परनिंदक होता है। वह कहता
है






भला जो खोजन मैं चला भला न मिला कोय,


जो दिल खोजा आपना मुझसे भला न कोय।






ध्यान रखना जिसकी निंदा-आलोचना करने की आदत हो गई है, दोष ढूँढने की आदत


पड़ गई, वे हजारों गुण होने पर भी दोष ढूँढ निकाल लेते हैं और जिनकी गुण


ग्रहण की प्रकृति है, वे हजार अवगुण होने पर भी गुण देख ही लेते हैं,


क्योंकि दुनिया में ऐसी कोई भीचीज नहीं है जो पूरी तरह से गुणसंपन्ना हो


या पूरी तरह से गुणहीन हो। एक न एक गुण या अवगुण सभी में होते हैं। मात्र


ग्रहणता की बात है कि आप क्या ग्रहण करते हैं गुण या अवगुण।






तुलसीदासजी ने कहा है -






जाकी रही भावना जैसी,


प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।






अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है उसे वैसी ही मूरत नजर आती है।
Om Sai Ram


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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.