शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Sunday, 31 January 2016

बाबाजी कर दो कुछ ऐसा चरणों में आपके में रहूँ.......

ॐ सांई राम




बिन साईं के में ऐसी, जैसे अंनाथ हो कोई,
बिन बाबा के में ऐसी, जैसे पत्थर हो राह का कोई,
बिन बाबा के में ऐसी, जैसे बिन मांझी के नाव,
बिन साईं के में ऐसी, जैसे हो न किसी के पाँव,
बिन बाबा के में ऐसी, जैसे कटी हुई पतंग,
बिन साईं के में ऐसी जैसे जीवन हो एक जंग.
बाबाजी कर दो कुछ ऐसा चरणों में आपके में रहूँ,
न रहूँ अनाथ, न पत्थर राह का बनू,
मांझी आप बन जाओ बाबाजी, नाव में में बेठी रहूँ,
पैर मेरे जाए सिर्फ आपके द्वार, पतंग हवा में उडती रहे,
जीवन मेरा बीते आपके चरणों में, स्वर्ग से सुंदर बना रहे,
बाबाजी कर दो कुछ ऐसा चरणों में आपके में रहूँ!
साईं की बेटी
आँचल साईं चावला

Saturday, 30 January 2016

बस, सहारा तेरा मेरे सांई

ॐ सांई राम



ज़िन्दगी से मुझे बहुत कुछ सीखना है,
तभी तो मैं इस दौर से गुजर रही हूँ।
मैं बहुत ही झूठी ज़िन्दगी जी रहीथी,सच्चाई तो अब देख रही हूँ,
जो बहुत कङवी है,दुख भरी है,सही शब्दों है किअसहनीय है...
ये समय भी बीत जाएगा
पर मुझे विश्वास है कि बाबा आप हर पलमेरे साथ है....
जैसे हमेशा आप से अपना हाथ हमारे सिर पर रखा है,
वैसे ही आज और हमेशा भी रखेगें
सांई जी सब पर कृपा करो
मैं क्या जानूं मेरे सांई,
तूं जाने मेरी किसमे भलाई
बस, सहारा तेरा मेरे सांई

सांई राम तूं आप है,
प्रभु संकट मोचन हार
क्षमा करो अपराध मम
दे कर अपना प्यार

बाबा *** क्षमा करो सांई... मेरेअपराध... मेरे पाप....
जानती हूँ इस काबिल मैं नहीं पर जैसी भी हूँ ,हूँ तो बेटी आप की ही...

बाबा मुझसे जो भी गलतियाँ हुई है उसे क्षमा करो बाबा
दया, कृपा, क्षमा, मेहर सांई
 Source : Shree Anil Gupta Ji

Friday, 29 January 2016

साईं नाम ह्रदय में धारो

ॐ सांई राम


निज मन में साईं बसा लेना

तूजब शिर्डी को जाये

तू जब शिर्डी को जाये

बाबा की नगरी को जाये


ज़रा साईं साईं ध्या लेना

तू जब शिर्डी को जाये


मुख सेसाईं कानाम जो बोले

जन्म जन्म के कर्मों को धो ले

श्रद्धा से सीसनवा लेना

तू जब शिर्डी को जाये


साईं नाम की जप ले माला

साईं ही तेरा तारने वाला

सबुरी को मन में बसा लेना

तू जब शिर्डी को जाये


साईं नाम की महिमा न्यारी

साईं नाम है पर उपकारी

साईं नाम ह्रदय में बसा लेना

तू जब शिर्डी को जाये


साईं नाम ह्रदय में धारो

जन्म चक्र से खुद को उबारो

सब अहम् समर्पित कर देना

तू जब शिर्डी को जाये
यह सौगात आप सब की नज़र
साईं की बेटी - रविंदर जी

Thursday, 28 January 2016

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 20

ॐ सांई राम



आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है|

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 20
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विलक्षण समाधान . श्री काकासाहेब की नौकरानी द्घारा श्री दासगणू की समस्या का समाधान ।
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श्री. काकासाहेब की नौकरानी द्घारा श्री. दासगणू की समस्या किस प्रकार हल हुई, इसका वर्णन हेमाडपंत ने इस अध्याय में किया है ।

प्रारम्भ
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श्री साई मूलतः निराकार थे, परन्तु भक्तों के प्रेमवश ही वे साककार रुप में प्रगट हुए । माया रुपी अभिनेत्री की सहायता से इस विश्व की वृहत् नाट्यशाला में उन्होंने एक महान् अभिनेता के सदृश अभिनय किया । आओ, श्री साईबाबा का ध्यान व स्मरण करें और फिर शिरडी चलकर ध्यानपूर्वक मध्याहृ की आरती के पश्चात का कार्यक्रम देखें । जब आरती समाप्त हो गई, तब श्री साईबाबा ने मसजिद से बाहर आकर एक किनारे खड़े होकर बड़ी करुणा तथा प्रेमपूर्वक भक्तों को उदी वितरण की । भक्त गण भी उनके समक्ष खड़े होकर उनकी ओर निहारकर चरण छूते और उदी वृष्टि का आनंद लेते थे । बाबा दोनों हाथों से भक्तों को उदी देते और अपने हाथ से उनके मस्तक पर उदी का टीका लगाते थे । बाबा के हृदय में भक्तों के प्रति असीम प्रेम था । वे भक्तों को प्रेम से सम्बोधित करते, ओ भाऊ । अब जाओ, भोजन करो । इसी प्रकार वे प्रत्येक भक्त से सम्भाषण करते और उन्हें घर लौटाया करते थे । आह । क्या थे वे दिन, जो अस्त हुए तो ऐसे हुए कि फिर इस जीवन में कभी न मिलें । यदि तुम कल्पना करो तो अभी भी उस आनन्द का अनुभव कर सकते हो । अब हम साई की आनन्दमयी मूर्ति का ध्यान कर नम्रता, प्रेम और आदरपूर्वक उनकी चरणवन्दना कर इस अध्याय की कथा आरम्भ करते है ।


ईशोपनिषद्
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एक समय श्री दासगणू ने ईशोपनिषद् पर टीका (ईशावास्य-भावार्थबोधिनी) लिखना प्रारम्भ किया । वर्णन करने से पूर्व इस उपनिषद का संक्षिप्त परिचय भी देना आवश्यक है । इसमें बैदिक संहिता के मंत्रों का समावेश होने के कारण इसे मन्त्रोपनिषद् भी कहते है और साथ ही इसमें यजुर्वेद के अंतिम (40वें) अध्याय का अंश सम्मलित होने के कारण यह वाजसनेयी (यदुः) संहितोशनिषद् के नाम से भी प्रसिदृ है । वैदिक संहिता का समावेश होने के कारण इसे उन अन्य उपनिषदों की अपेक्षा श्रेष्ठकर माना जाता है, जो कि ब्राहमण और आरण्यक (अर्थात् मन्त्र और धर्म) इन विषयों के विवरणात्मक ग्रंथ की कोटि में आते है । इतना ही नही, अन्य उपनिषद् तो केवन ईशोपनिषद् में वर्णित गूढ़ तत्वों पर ही आधारित टीकायें है । पण्डित सातवलेकर द्घारा रचित वृहदारण्यक उपनिषद् एवं ईशोपनिषद् की टीका प्रचलित टीकाओं में सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है । प्रोफेसर आर. डी. रानाडे का कथन है कि ईशोपनिषद् एक लघु उपनिषद् होते हुए भी, उसमें अनेक विषयों का समावेश हे, जो एक असाधारण अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है । इसमें केवल 18 श्लोकों में ही आत्मतत्ववर्णन, एक आदर्श संत की जीवनी, जो आकर्षण और कष्टों के संसर्ग में भी अचल रहता है, कर्मयोग के सिद्घान्तों का प्रतिबिम्ब, जिसका बाद में सूत्रीकरण किया गया, तथा ज्ञान और कर्त्व्य के पोषक तत्वों का वर्णन है, जिसके अन्त में आदर्श, चामत्कारिक और आत्मासंबंधी गूढ़ तत्वों का संग्रह है । इस उपनिषद् के संबंध में संक्षिप्त परिचय से स्पष्ट है कि इसका प्राकृत भाषा में वास्तविक अर्थ सहित अनुवाद करना कितना दुष्कर कार्य है । श्री. दासगणू ने ओवी छन्दों में अनुवाद तो किया, परन्तु उसके सार त्तत्व को ग्रतहण न कर सकने के कारण उन्हें अपने कार्य से सन्तोष न हुआ । इस प्रकार असंतुष्ट होकर उन्होंने कई अन्य विद्घानों से शंका-निवारणार्थ परामर्श और वादविवाद भी अधिक किया, परन्तु समस्या पूर्ववत् जटिल ही बनी रही और सन्तोषजनक अर्थ करने में कोई भी सफल न हो सका । इसी कारण श्री. दासगणू बहुत ही असंतुष्ट हुए ।


केवल सदगुरु ही अर्थ समझाने में समर्थ
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यह उपनिषद वेदों का महान् विवरणात्मक सार है । इस अस्त्र के प्रयोग से जन्म-मरण का बन्धन छिन्न भिन्न हो जाता है और मुक्ति की प्राप्ति होती है । अतः श्री. दासगणू को विचार आया कि जिसे आत्मसाक्षात्कार हो चुका हो, केवल वही इस उपनिषद् का वास्तविक अर्थ कर सकता है । जब कोई भी उनकी शंका का निवारण न कर सका तो उन्होंने शिरडी जाकर बाबा के दर्शन करने का निश्चय किया । जब उन्हें शिरडी जाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ तो उन्होंने बाबा से भेंट की और चरण-वन्दना करने के पश्चात् उपनिषद् में आई हुई कठिनाइयाँ उलके समक्ष रखकर उनसे हल करने की प्रार्थना की । श्री साईबाबा ने आर्शीवाद देकर कहा कि चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं । उसमें कठिनाई ही क्या है । जब तुम लौटोगे तो विलेपार्ला में काका दीक्षित की नौकरानी तुम्हारी शंका का निवारण कर देगी । उपस्थित लोगों ने जब ये वचन सुने तो वे सोचने लगे कि बाबा केवल विनोद ही कर रहे है और कहने लगे कि क्या एक अशिक्षित नौकरानी भी ऐसी जटिल समस्या हल कर सकती है । परन्तु दासगणू को तो पूर्ण विश्वास था कि बाबा के वचन कभी असत्य नहीं हो सकते, क्योंकि बाबा के वचन तो साक्षात् ब्रहमवाक्य ही है ।



काका की नौकरानी
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बाबा के वचनों में पूर्ण विश्वास कर वे शिरडी से विलेपार्ला (बम्बई के उपनगर) में पहुँचकर काका दीक्षित के यहाँ ठहरे । दूसरे दिन दासगणू सुबह मीठी नींद का आनन्द ले रहे थे, तभी उन्हें एक निर्धन बालिका के सुन्दर गीत का स्पष्ट और मधुर स्वर सुनाई पड़ा । गीत का मुख्य विषय था – एक लाल रंग की साड़ी । वह कितनी सुन्दर थी, उसका जरी का आँचल कितना बढ़िया था, उसके छोर और किनारे कितनी सुन्दर थी, इत्यादि । उन्हें वह गीत अति रुचिकर प्रतीत हुआ । इस कारण उन्हो्ने बाहर आकर देखा कि यह गीत एक बालिका - नाम्या की बहन - जो काकासाहेब दीक्षित की नौकरानी है – गा रही है । बालिका बर्तन माँज रही थी और केवल एक फटे कपड़े से तन ढँकें हुए थी । इतनी दरिद्री-परिस्थिति में भी उसकी प्रसन्न-मुद्रा देखकर श्री. दासगणू को दया आ गई और दूसरे दिन श्री. दासगणू ने श्री. एम्. व्ही. प्रधान से उस निर्धन बालिका को एक उत्म साड़ी देने की प्रार्थना की । जब रावबहादुर एम. व्ही. प्रधान ने उस बालिका को एक धोती का जोड़ा दिया, तब एक क्षुधापीड़ित व्यक्ति को जैसे भाग्यवश मधुर भोजन प्राप्त होने पर प्रसन्नता होती है, वैसे ही उसकी प्रसन्नता होती है, वैसे ही उसकी प्रसन्नता का पारावार न रहा । दूसरे दिन उसने नई साड़ी पहनी और अत्यन्त हर्षित होकर सानन्द नाचने-कूदने लगी एवं अन्य बालिकाओं के साथ वह फुगड़ी खेलने में मग्न रही । अगले दिन उसने नई साड़ी सँभाल कर सन्दूक में रख दी और पूर्ववत् फटे पुराने कपड़े पहनकर आई, परन्तु फिर भी पिछले दिन के समान ही प्रसन्न दिखाई दी । यह देखकर श्री. दासगणू की दया आश्चर्य में परिणत हो गई । उनकी ऐसी धारणा थी कि निर्धन होने के ही कारण उसे फटे चिथड़े कपड़े पहनने पड़ते है, परन्तु अब तो उसके पास नई साड़ी थी, जिसे उसने सँभाल कर रख लिया और फटे कपडे पहनकर भी उसी गर्व और आनन्द का अनुभव करती रही । उसके मुखपर दुःख या निराशा का कोई निशान भी नही रहा । इस प्रकार उन्हें अनुभव हुआ कि दुःख और सुख का अनुभव केवल मानसिक स्थिति पर निर्भर है । इस घटना पर गूढ़ विचार करने के पश्चात् वे इस निष्कर्ष पर पहुँचें कि भगवान ने जो कुछ ददिया है, उसी में समाधान वृत्ति रखननी चाहिये और यह निश्चयपूर्वक समझना चाहिये कि वह सब चराचर मेंव्याप्त है और जो कुछ भी स्थिति उसकी दया से अपने को प्राप्त है, वह अपने लिये अवश्य ही लाभप्रद होगी । इस विशिष्ट घटना में बालिका की निर्धनावस्था, उसके पटे पुराने कपड़े और नई साड़ी देने वाला तथा उसकी स्वीकृति देने वाला यह सब ईश्वर दद्घारा ही प्रेरित कार्य था । श्री. दासगणू को उपनिषद् के पाठ की प्रत्यक्ष शिक्षा मिल गई अर्थात् जो कुछ अपने पास है, उसी में समाधानवृत्ति माननी चाहिए । सार यह है कि जो कुछ होता है, सब उसी की इच्छा से नियंत्रित है, अतः उसी में संतुष्ट रहने में हमारा कल्याण है ।


अद्घितीय शिक्षापद्घति
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उपयुक्त घटना से पाठकों को विदित होगा कि बाबा की पदृति अद्घितीय और अपूर्व थी । बाबा शिरडी के बाहर कभी नहीं गये, परन्तु फिर भी उन्होंने किसी को मच्छिन्द्रगढ़, किसी को कोल्हापुर या सोलापुर साधनाओं के लिये भेजा । किसी को दिन में ौर किसी को रात्रि में दर्शन दिये । किसी को काम करते हुए, तो किसी को निद्रावस्था में दर्शन दिये ओर उनकी इच्छाएँ पूर्ण की । भक्तों को शिक्षा देने के लिये उन्होंने कौन कौन-सी युक्तियाँ काम में लाई, इसका वर्णन करना असम्भव है । इस विशिष्ट घटना में उन्होंने श्री. दासगणू को विलेपार्ला भेज कर वहाँ उनकी नौकरानी द्घारा समस्या हल कराई । जिनका ऐसा विचार हो कि श्री. दासगणू को बाहर भेजने की आवश्यकता ही क्या थी, क्या वे स्वयं नही समझा सकते थे । उनसे मेरा कहना है कि बाबा ने उचित मार्ग ही अपनाया । अन्यथा श्री. दासगणू किस प्रकार एक अमूल्य शिक्षा उस निर्धन नौकरानी और उसकी साड़ी द्घारा प्राप्त करते, जिसकी रचना स्वयं साई ने की थी ।

ईशोपनिषद् की शिक्षा
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ईशोपनिषद् की मुख्य देन नीति-शास्त्र सम्बन्धी उपदेश है । हर्ष की बात है कि इस उपनिषद् की नीति निश्चित रुप से आध्यात्मिक विषयों पर आधारित है, जिसका इसमें बृहत् रुप से वर्णन किया गया है । उपनिषद् का प्रारम्भ ही यहीं से होता है कि समस्त वस्तुएँ ईश्वर से ओत-प्रोत है । यह आत्मविषयक स्थिति का भी एक उपसिद्घान्त है और जो नीतिसंबंधी उपदेश उससे ग्रहण करने योग्य है, वह यह है कि जो कुछ ईशकृपा से प्राप्त है, उसमें ही आनन्द मानना चाहिये और दृढ़ भावना रखनी चाहिये कि ईश्वर ही सर्वशक्तिमान् है और इसलिए जो कुछ उसने दिया है, वही हमारे लिये उपयुक्त है । यह भी उसमें प्राकृतिक रुप से वर्णित है कि पराये धन की तृष्णा की प्रवृत्ति को रोकना चाहिये । सारांश यह है कि अपने पास जो कुछ है, उसी में सन्तुष्ट रहना, क्योंकि यही ईश्वरेच्छा है । चरित्र सम्बन्धी द्घितीय उपदेश यह है कि कर्तव्य को ईश्वरेच्छा समझते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिये, विशेषतः उन कर्मोंको जिनको शास्त्र में वर्णित किया गया है । इस विषय में उपनिषद् का कहना है कि आलस्य से आत्मा का पतन हो जाता है और इस प्रकार निरपेक्ष कर्म करते हुए जीवन व्यतीत करने वाला ही अकर्मणमयता के आदर्श को प्राप्त कर सकता है । अन्त में कहा है कि जो सब प्राषियों को अपना ही आत्मस्वरुप समझता है तथा जिसे समस्त प्राणी और पदार्थ आत्मस्वरुप हो चुके है, उसे मोह कैसे उत्पन्न हो सकता है । ऐसे व्यक्ति को दुःख का कोई कारण नहीं हो सकता । सर्व भूतों में आत्मदर्शन न कर सकने के काण भिन्न-भिन्न प्रकार के शोक, मोह और दुःखों की वृद्घि होती है । जिसके लिये सब वस्तुएँ आत्मस्वरुप बन गई हो, वह अन्य सामान्य मनुष्यों का छिद्रान्वेषण क्यों करने लगता है ।


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday, 27 January 2016

साईं नैनों में बस जाना

ॐ सांई राम


मेरे साईं बाबा

मुझको दरस दिखाना


सबके पालन हार तुम्ही हो

साईं विष्णु भगवान तुम्ही हो

तुन्ही राम बन बाण चलाओ

तुम्ही मुरली बजाना

मेरे साईं बाबा

मुझको दरस दिखाना



साईं कभी जब मन ये भटके

दुनिया की चौन्धक पर अटके

मुझको झूठे जग से खींचकर

तुम्ही आन बचाना

मेरे साईं बाबा

मुझको दरस दिखाना


नैनों से बहती है धारा

हर आंसू ने साईं पुकारा

उनको अपना दरस दिखाकर

अल्लाह मालिक कह जाना

मेरे साईं बाबा

मुझको दरस दिखाना

एक बार जो रूप दिखाना

साईं नैनों में बस जाना

जग के सारे बंधन छूटें

तुम बंधन तोड़ न जाना

मेरे साईं बाबा

मुझको दरस दिखाना
 यह सौगात आप सब की नज़र 
 साईं की बेटी -  रविंदर जी 

Tuesday, 26 January 2016

साँई भक्त दिल टूरिज्म के सौजन्य से

बहुत उदास है दिल आज मेरा
दिल वही जहाँ साँई वास हैं तेरा
क्यो देर लगाते हो बाबा मिलने में
कुछ दिन तो गुजारों दास के दिल में

दिल के हर कौने में साँई तस्वीर लगाई हैं
प्यार के बाज़ार में बड़ी सस्ती बोली लगाई हैं
एक झलक तेरी पा जाने को मेरे साँई जी
हमने अपनी सारी उम्र गुलामी कबूल पाई हैं

बहुत मुश्किल कर दिये आपके दर्शन बाबा
हर तरफ पहरा शिर्डी साँई संस्थान का हैं
एक छोटा रिचार्ज इस दास का भी कर दो
सवाल मेरे जीवन के उद्धार का भी हैं

अब तो बस हाईटेक दर्शन कर पाते हैं
शिर्डी जा कर भी लाईन में खड़े रह जाते हैं
दर्शन तो बाबा जी आपके बस धनी ही पाते हैं
तेरी एक झलक पाने को हम आहे भर रह जाते हैं

ऐसा वो सोचते है तो बस उन्हे सोचने दो
अपनी कृपा अपने भक्तो तक पहुंचने दो
दर्शन तो उनको भी नसीब हो जाते हैं
जो बदनसीब शिर्डी जा भी नही पाते हैं

बंद आँखों से भी दर्शन दे जाते हैं
हर भक्त की पीड़ा हर ले जाते हैं
मालिक तीन लोको के हैं फिर भी
अपने भक्तो के लिए कुछ भी बन आते हैं

जो मात्र वी आई पी पास से साँई दर्शन पाते
नासमझ हैं जो श्रध्दा सबूरी को ना जान पाते
दर्शनों की मिठास थोड़ी तड़प के बाद ही आती हैं
जैसे मर्ज़ के बढ़ने पर दवा असर कर जाती हैं

चिट्ठीये नी चिट्ठीये बाबा दे द्वारे जा...

ॐ सांई राम

आप सभी को गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर
हार्दिक शुभ कामनायें


 चिट्ठीये नी चिट्ठीये दुखां नाल लिखिये, 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं ,
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं 


रो रो के वक्त लंगावां मैं, एहना गमां तों न मर जावां मैं
मैं मर चल्ली सरकार, आखीं मेरे बाबा नूं 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
ओ करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं 

सीधी बाबा दे कोल जावीं तूं, ओथे मेरी अर्ज़ पुचावीं तूं 
तेरे करम दी मैं हक़दार, आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं

तेरे जेहा न कोई होर मैनू, बाबा तेरे करम दी लोड़ मैनु
तेरा मिल जावे बस प्यार, आखीं मेरे बाबा नूं 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं 
मैं तां सदका अली दा मंगेया ऐ, तुसी बाबा सब नु रंगेया ऐ
रंगों मैनु वी सरकार, आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं
मैनु मेरी किस्मत मार गई, जग जीत गया मैं हार गई
मेरा उजड़ गया घर-बार, आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं

आखीं जो जो मेरे नाल बीती ऐ, किसे चंगी न मेरे नाल कीती ऐ
इक तूं मेरा ग़मखार आखी मेरे बाबा नूं 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं

आखी जाके दुःख नीमाणी दा, पता लै लै हुण मरजाणी दा
जिन्द कल्ली दुःख हज़ार, आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं

दुखां दी भरी ए चिट्ठी ए, अरदास तेरे वाल लिखी ए 
पावीं जिंदगी विच बहार, आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं

चिट्ठीये नी चिट्ठीये दुखां नाल लिखिये, 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं
करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं 



 एक चिठ्ठी मेरे साईं जी के नाम 
 श्री साईं जी की बेटी 
 आँचल साईं चावला  

Monday, 25 January 2016

हे साईं दीन दयाल

ॐ सांई राम




साईं सुन लो रेमेरी पुकार

मेरे घर  जाओ

हे साईं दीन दयाल

मेरे घर आ जाओ


साईं तुम्ही हो मन की धड़कन

रग रग में तेरा ही जीवन

दर्शन भर से मिटती उलझन

मेरे साईं दया निधान

मेरे घर आ जाओ

हे साईं दीन दयाल

मेरे घर आ जाओ

साईं सुन लो रेमेरी पुकार

मेरे घर  जाओ



मै तो दासी साईं तुम्हारी

पल पल तुमरी राह निहारी

मस्तक पर है चरण रज धारी

मेरा कुछ तो करो ख़याल

हे साईं दीन दयाल

मेरे घर आ जाओ

साईं सुन लो रेमेरी पुकार

मेरे घर  जाओ



नैनों में तुम रहो समाये

जिह्वा तुमरे ही गुण गाये

मन हर पल तुमको ही मनाये

मान जाओ किरपा धार

मेरे घर आ जाओ

हे साईं दीन दयाल

मेरे घर आ जाओ

साईं सुन लो रे, मेरी पुकार

मेरे घर  जाओ

यह सौगात आप सब की  नज़र
साईं की बेटी -  रविंदर जी