शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Tuesday, 25 June 2024

need 3 units of blood grouo B+


Very humble request to all

Tomorrow my wife need 3 units of blood grouo B+ as it will be donated in blood bank. 


So I request if any volunteer wants to donate please contact us at below mentioned details:-

Max Hospital - Saket, New DELHI 

3 units need

Contact number- 9818281777

Sudhanshu Arora

Tuesday, 11 June 2024

हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है

हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है

एक राजा था। उसने आज्ञा दी कि संसार में इस बात की खोज की जाय कि कौन से जीव-जंतु निरुपयोगी हैं। बहुत दिनों तक खोज बीन करने के बाद उसे जानकारी मिली कि संसार में दो जीव जंगली मक्खी और मकड़ी बिल्कुल बेकार हैं। राजा ने सोचा, क्यों न जंगली मक्खियों और मकड़ियों को ख़त्म कर दिया जाए।

इसी बीच उस राजा पर एक अन्य शक्तिशाली राजा ने आक्रमण कर दिया, जिसमें राजा हार गया और जान बचाने के लिए राजपाट छोड़ कर जंगल में चला गया। शत्रु के सैनिक उसका पीछा करने लगे। काफ़ी दौड़-भाग के बाद राजा ने अपनी जान बचाई और थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मारा जिससे राजा की नींद खुल गई। उसे ख़याल आया कि खुले में ऐसे सोना सुरक्षित नहीं और वह एक गुफ़ा में जा छिपा। राजा के गुफ़ा में जाने के बाद मकड़ियों ने गुफ़ा के द्वार पर जाला बुन दिया।

शत्रु के सैनिक उसे ढूँढ ही रहे थे। जब वे गुफ़ा के पास पहुँचे तो द्वार पर घना जाला देख कर आपस में कहने लगे, "अरे! चलो आगे। इस गुफ़ा में वह आया होता तो द्वार पर बना यह जाला क्या नष्ट न हो जाता।"

गुफ़ा में छिपा बैठा राजा ये बातें सुन रहा था। शत्रु के सैनिक आगे निकल गए। उस समय राजा की समझ में यह बात आई कि संसार में कोई भी प्राणी या चीज़ बेकार नहीं। अगर जंगली मक्खी और मकड़ी न होतीं तो उसकी जान न बच पाती। 


इस संसार में कोई भी चीज़ या प्राणी बेकार नहीं। हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।

Monday, 10 June 2024

बुद्ध की अन्तिम शिक्षा....

बुद्ध की अन्तिम शिक्षा.... 


भगवान् बुद्ध अपने शरीर की आखिरी साँसे गिन रहे थे। उनके सारे शिष्य और अनुयायी उनके चारों ओर एकत्रित थे। ऐसे में उन्होनें भगवान् से अपना आखिरी संदेश देने का अनुरोध किया।

बुद्ध अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य की तरफ़ मुख करके बोले: "मेरे मुख में देखो, क्या दिख रहा है"?

बुद्ध के खुले मुख की तरफ़ देख कर वह बोला: "भगवन, इसमें एक जीभ दिखाई दे रही है"

बुद्ध बोले: "बहुत अच्छा, लेकिन कोई दांत भी हैं क्या?"

शिष्य ने बुद्ध के मुख के और पास जाकर देखा, और बोला: "नहीं भगवन, एक भी दांत नहीं है"

बुद्ध बोले: "दांत कठोर होते हैं, इसलिए टूट जाते हैं। जीभ नरम होती है, इसलिए बनी रहती है। अपने शब्द और आचरण नरम रखो, तुम भी बने रहोगे"

यह कहकर बुद्ध ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।

नरमी में ही शान्ति और विकास है। इसी में सबकी भलाई है। 

Sunday, 9 June 2024

वास्तविक सुख

वास्तविक सुख 

एक बार एक सेठ की राह चलते एक साधु से मुलाकात हो गई। चलते-चलते सफर को आसान बनाने के लिए दोनों सुख और अध्यात्म पर चर्चा करने लगे। सेठ ने कहा, 'मेरे पास जीवन में उपभोग के सभी साधन हैं पर सुख नहीं है।'

साधु ने मुस्कराकर पूछा, 'कैसा सुख चाहते हो।'

सेठ ने कहा, 'वास्तविक सुख। यदि कोई मुझे वह सुख प्रदान कर दे तो मैं इसकी कीमत भी दे सकता हूं।' साधु ने फिर पूछा, 'क्या कीमत दोगे? सेठ ने कहा, 'मेरे पास बहुत धन है। मैं उसका एक बड़ा हिस्सा इसके बदले में दे सकता हूं। लेकिन मुझे वास्तविक सुख चाहिए।'

साधु ने देखा कि सेठ के हाथों में एक पोटली है जिसे वह बार-बार अपने और नजदीक समेटता जाता था। अचानक साधु ने पोटली पर झपट्टा मारा और भाग खड़ा हुआ। सेठ के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। पोटली में कीमती रत्न थे। सेठ चिल्लाता हुआ साधु के पीछे लपका लेकिन हट्टे-कट्टे साधु का मुकाबला वह थुलथुल सेठ कैसे करता। कुछ देर दौड़ने के बाद वह थककर बैठ गया।

वह अपने बहुमूल्य रत्नों के ऐसे अचानक हाथ से निकल जाने से बेहद दुखी था। तभी अचानक उसके हाथों पर रत्नों की वही पोटली गिरी। सेठ ने तुरंत उसे खोलकर देखा तो सारे रत्नों को सुरक्षित पाया। उसने पोटली को हृदय से लगा लिया। तभी उसे साधु की आवाज सुनाई दी जो उसके पीछे खड़ा था। साधु ने कहा, 'सेठ, सुख मिला क्या?' सेठ ने कहा, 'हां महाराज, बहुत सुख मिला। इस पोटली के यूं अचानक चले जाने से मैं बहुत दुखी था मगर अब मुझे बहुत सुख है।'

साधु ने कहा, 'सेठ, ये रत्न तो तुम्हारे पास पहले भी थे पर तब भी तुम सुख की तलाश में थे। बस, इनके जरा दूर होने से ही तुम दुखी हो गए यानी तुम्हारा सुख इस धन से जुड़ा है। यह फिर अलग होगा तो तुम फिर दुखी हो जाओगे। यह सुख नकली है। अगर वास्तविक सुख की तलाश है तो तुम्हें उसकी वास्तविक कीमत भी देनी होगी। जो यह नकली धन नहीं है बल्कि वह है सेवा और त्याग।'

Saturday, 8 June 2024

सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम

सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम

जिस प्रकार गन्ने को धरती से उगाकर उससे रस निकालकर मीठा तैयार किया जाता है और सूर्य के उदय होने से अंधकार मिट जाता है उसी प्रकार सत्संग में आने से मनुष्य को प्रभु मिलन का रास्ता दिख जाता है और उसके जीवन का अंधकार मिट जाता है। सत्संग में आने से मानव का मन साफ हो जाता है और मानव पुण्य करने को प्रेरित होता है जिससे उसे प्रभु प्राप्ति का मार्ग सुगमता से प्राप्त होता है।

मानव द्वारा किए गए पुण्य कर्म ही उसे जीवन की दुश्वारियों से बचाते हैं और जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने में सहायक होते हैं। जीवन में असावधानी की हालत में व विपरीत परिस्थितियों में यही पुण्य कर्म मनुष्य की सहायता करते हैं। अगर मनुष्य का जीवन में कोई सच्चा साथी है तो वह है मनुष्य का अर्जित ज्ञान और उसके द्वारा किए गए पुण्य कर्म। मगर इसके लिए मनुष्य को अपनी बुद्धि व विवेक के द्वारा ही उचित अनुचित का फैसला करना होता है। कोई भी मानव अपनी बुद्धि व विवेक अनुसार ही जीवन में अच्छे-बुरे व सार्थक-निरर्थक कार्यो में अंतर को समझता है। सत्संग वह मार्ग है जिस पर चलकर मानव अपना जीवन सफल बना सकता है। जिस प्रकार का शास्त्रों के श्रवण से ही सुशोभित होता है न कि कानों में कुण्डल पहनने से। इसी प्रकार हाथ की शोभा सत्पात्र को दान देने से होती है न कि हाथों में कंगन पहनने से। करुणा, प्रायण, दयाशील मनुष्यों का शरीर परोपकार से ही सुशोभित होता है न कि चंदन लगाने से।

शरीर का श्रृंगार कुण्डल आदि लगाकर या चंदन आदि के लेप करना ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह सब तो नष्ट हो सकता है परन्तु मनुष्य का शास्त्र ज्ञान सदा उसके साथ रहता है। मनुष्यों द्वारा किए गए दान व परोपकार उसके सदा काम आते हैं और परमार्थ मार्ग पर चलने वाला मनुष्य ही मानव जाति का सच्चा शुभ चिंतक होता है। प्रेम से सुनना समझना व प्रेम पूर्वक उसका मनन कर उसका अनुसरण करना ही मनुष्य को फल की प्राप्ति कराता है। लेकिन मनुष्य की चित्त वृत्ति सांसारिक पदार्थो में अटकी होने के कारण वह असत्य को ही सत्य मानता है। इसी कारण वह दुखों को भोगता है। शरीर को चलाने वाली शक्ति आत्मा अविनाशी सत्य है और वही कल्याणकारी है। 

Friday, 7 June 2024

प्यार ना सीखा, नफरत करना सीख लिया.....

प्यार ना सीखा, नफरत करना सीख लिया.....

 हमने जीवन यापन करना सीखा, ज़िन्दगी जीना नहीं | अपने जीवन में हम साल-दर-साल जोड़ते गए, पर इस दौरान ज़िन्दगी कही खो गयी | हम चाँद पर टहलकदमी कर के वापस आ गए लेकिन सामने वाले घर में आये नए पडौसी से मिलने कि फुर्सत हमें नहीं मिली | हम सौरमंडल के पार जाने कि सोंच रहे है, पर आभामंडल का हमें कुछ पता नहीं | हम बड़ी बातें करते है, बेहतर बातें नहीं | हम वायु को स्वच्छ करना चाहते है, पर आत्मा को मलिन कर रहे है | हमने परमाणु तो जीत लिया, पूर्वग्रह से हार गए | हमने लिखा बहुत, सीखा कम | योजनाये बनायी बड़ी-बड़ी, काम कुच्छ किया नहीं | आपाधापी में लगे रहे, सब्र करना भूल गए | कंप्यूटर बनाए ऐसे जो काम करे हमारे लिए, लेकिन उन्होंने हमसे हमारे दोस्त छीन लिए |

क्या ज़माना आ गया है | आप इसे एक क्लिक से पढ़ सकते है, दूसरी क्लिक से किसी ओर को पढ़ा सकते है, तीसरी क्लिक से डिलीट भी कर सकते है|

मेरी बात माने :-
*  उनके साथ वक़्त गुज़ारे जिन्हें आप प्यार करते है, क्योंकि कोई भी किसी के साथ हमेशा नहीं रहता | याद रखे,
* उस बच्चे से भी बहुत मिठास से बोले जो अभी आप कि बात नहीं समझता - एक न एक दिन तो उसे बड़े हो कर  आपसे बात करनी ही है |
* दुसरो को प्रेम से गले लगाये, आखिर इसमें भी कोई पैसा लगता है क्या?
* 'मैं तुमसे प्यार करता हूँ' यह सिर्फ कहे नहीं, साबित भी करें |
* प्यार के दो मीठे बोल पुरानी कडवाहट ओर रिसते ज़ख्मो पर भी मरहम का काम करते है |
* हाथ थामें रखे - उस वक़्त को जी ले| याद रखे, गया वक़्त लौटकर नहीं आता |
* स्वयं को समय दे - भक्ति ओर पूजा - पाठ को समय दे |
* ज़िन्दगी को साँसों से नहीं नापिए बल्कि उन लम्हों को कैद करिए जो हमारी साँसों को चुरा ले जाते है |  

Thursday, 6 June 2024

The Difference

The Difference

I got up early one morning
And rushed right into the day;
I had so much to accomplish
That I didn't have time to pray.
Problems just tumbled about me,
And heavier came each task;
"Why doesn't God help me?"
I wondered.
He answered, "You didn't ask."
I wanted to see joy and beauty,
But the day toiled on gray and bleak;
I wondered why God didn't show me.
He said, "But you didn't seek."
I tried to come into God's presence;
I used all my keys in the lock.
God gently and lovingly chided,
"My child, you didn't knok."
I woke up early this morning,
And paused before entering the day;
I had so much to accomplish
That I had to take time to pray

The Peace Prayer For World Peace

Adorable Presence!
Thou Who art within and without, above and below and all around, Thou Who art interpenetrating the very cells of our beings, Thou Who art the Eye of our eyes, the Ear of our ears, the Heart of our hearts, the Mind of our minds, the Breath of our breaths, the Life of our lives and the Soul of our souls, Bless us, Dear God, to be aware of Thy Presence, now and here. This is all that we ask of Thee.
May all of us be aware of Thy Presence in the East and the West, in the North and the South! May Peace and Goodwill abide among individuals as well as communities and nations! This is our earnest Prayer.

A Winner's Creed

If you think you are beaten, you are;
If you think you dare not, you don't
If you'd like to win, but think you can't,
It's almost a cinch you won't.
If you think you'll lose, you're lost,
For out in the world we find
Success begins with a person's faith;
It's all in the state of mind.
Life's battles don't always go
to the stronger or faster hand;
They go to the one who trusts in God
And always thinks "I can."
If wealth is lost,
nothing is lost;
If health is lost,
something is lost;
If character is lost,
everything is lost.

Wednesday, 5 June 2024

True Nobility

True Nobility

Who does his task from day to day
And meets whatever comes his way,
Believing God has willed it so,
Has found real greatness here below.
Who guards his post, no matter where,
Believing God must need him there,
Although but lowly toil it be,
Has risen to nobility.
For great and low there's but one test
'Tis that each man shall do his best.
Who works with all the strength he can
Shall never die in debt to man.

The Oyster

There once was an Oyster whose story I tell,
Who found that some sand was inside his shell
Just one little grain, but it gave him great pain!
For oysters have feelings, though they all seem so plain.
Now did he berate the working so fate.
Which had led him to such a deplorable state?
Did he curse out the government - call for an election,
And cry that the sea "should have given protection?"
No! He said to himself as he lay on the shelf,
"Since I cannot remove it, I'll try to improve it."
The years rolled along, as the years always do,
And he came to his ultimate destiny - stew!
And the small grain of sand that had bothered him so,
Was a beautiful pearl, all richly aglow!
The tale has a moral, for isn't it grand.
What an oyster can do with a morsel of sand?
What couldn't I do if I'd only begin,
With all those things that "get under my skin!"

At Day's End

"Is anybody happier because you passed his way?
The day is almost over and its toiling is through;
Is there anyone to utter now a kindly word to you?
Does anyone remember that you spoke to him today?
Can you say tonight, in parting with the day that's slipping fast.
That you helped a single brother of the many that you passed?
Did you waste the day, or lose it?
Was it well or sorely spent?
Is a single heart rejoicing over what you did or said?
Does, the man whose hopes were fading now with courage look ahead?
Did you leave a trail of kindness, or a scar of discontent?
As you close your eyes in slumber, do you think that God will say, you have earned one more tomorrow by the work you did today?'

Tuesday, 4 June 2024

A Simple Prayer

A Simple Prayer

Prayer
Lord, make me an instrument of Thy Peace,
Where there is hatred, let me sow love;
Where there is injury, let me sow pardon;
Where there is doubt, let me sow faith;
Where there is despair, let me sow hope;
Where there is discord, let me sow unity;
Where there is darkness, let me sow light and
Where there is sadness, let me sow joy.

O Divine Master

Grant that I may not seek so much
To be consoled as to console;
To be understood as to understand;
To be loved as to love;
For it is in giving that we receive
It is in pardoning that we are pardoned;
And it is in dying to the little self
That we are born to eternal life.
-St Francis of Assisi

Strength

This is my prayer to thee, my Lord-
strike, strike at the root of penury in my heart.
Give me the strength lightly to bear my joys and sorrows.
Give me the strength to make my love fruitful in service.
Give me the strength never to disown the poor or bend my knees before insolent might.
Give me the strength to raise my mind high above daily trifles.
And give me the strength to surrender my strength to
Thy will with love.
-Tagore

For all that God, in mercy, sends;
For health and children, home and friends:
For comfort in the time of need
For every kindly word and deed
For happy thoughts and holy talk,
For Guidance in our daily walk-
For everything GIVE THANKS!

Monday, 3 June 2024

Love And Live Together

Life's Lessons : Love And Live Together

After a while you learn the difference between holding a hand and chaining a soul.
You learn that love isn't leaning but lending support.
You begin to accept your defeats with the grace of an adult, not the grief of a child.
You decide to build your roads on today, for tomorrow's ground is too uncertain.
You help someone plant a garden instead of waiting for someone to bring you flowers.
You learn that God has given you the strength to endure and that you really do have worth.

Let us learn
To walk together,
Talk together,
Work together,
Love together,
And live together.

What They Live

If a child lives with criticism,
He learns to condemn.
If a child lives with hostility,
He learns to fight.
If a child lives with ridicule,
He learns to be shy.
If a child lives with shame,
He learns to feel guilty.
If a child lives with tolerance,
He learns to be patient.
If a child lives with encouragement,
He learns confidence.
If a child lives with praise,
He learns to appreciate.
If a child lives with fairness,
He learns justice.
If a child lives with security,
He learns to have faith.
If a child lives with approval,
He learns to like himself.
If a child lives with acceptance
and friendship, he learns
to find love in the world.

Sunday, 2 June 2024

"जो तुझ भावे सोई भली कर"

"जो तुझ भावे सोई भली कर"

जो तू चाहे, जो तू करे वो ही अच्छा है,जो तू मुझे दे वो भी अच्छा, जो तू मुझे न दे, वो भी अच्छा! 
मै नासमझ क्या कर सकता हु, मै ना समझ तो नासमझिया ही तो कर सकता हु, मै नासमझ क्या मांग सकता हु? एक बच्चा मांगेंगा भी तो क्या? खिलौना या चौकलेट इससे ज्यादा क्या मांगेंगा? मै क्या मांगता हु इसपे ध्यान मत देना हे परमपिता, जो तू दे वो भी अच्छा,जो तू ना दे वो भी अच्छा 
समुद्र की सतह पे एक लहर है उसकी इच्छा ही क्या हो सकती है?वो इच्छा करे भी तो क्या फ़ायदा? क्युकी थोडी देर बाद वो लहर भी मिट जाएँगी! जो सागर की इच्छा, वो लहर की इच्छा हो जाये, और जो तेरी इच्छा है परमपिता वो मेरी इच्छा हो जाये!


"हुकुम रजाई चलना नानक लिखिया नाल"

तेरे ही हुकुम पे चलू, एसा हो जाये कुछ, तू जानता है की सही क्या है, क्युकी तू कल भी था तेरे को कल का भी पता है, तू आज भी है तेरे को आज का भी पता है, तू कल भी होंगा, की कल क्या चाहिए वो भी तुझे पता है, मुझे क्या मालूम कुछ? इसलिए तू जो करेंगा वो ही सही होंगा! 
तू सदा सलामत निरंकार, तू आद् सच है जुगात सच है तू कल भी सच होंगा तू ही तू होंगा, तेरी ही मर्जी

Saturday, 1 June 2024

कर्मों का फल

कर्मों का फल

माँ एक शब्द नहीं हैं
माँ एक एहसास है
बहुत खुशनसीब हैं वो
माँ जिनके पास है ।
मैं वो खुशनसीब नहीं हूँ 
पर बदनसीब भी नहीं हूँ 
मेरे पास जगदंबे माँ जो हैं ।

हमारे कर्मों का फल ही है, जो हमें परेशानियों में धकेलता है, अन्यथा हम सब ईश्वर की संतान हैं और कोई भी माता या पिता अपनी संतान को किसी भी स्थिति में परेशान नहीं देख सकते हैं ।

हम भाग्य को कोसने से बेहतर है कि अपने कर्मों को ही उजला करें, ताकि हमारा भविष्य ठीक उसी प्रकार से हमारा वर्तमान बन कर हमारे समक्ष खड़ा हो जैसा उस परम पिता परमेश्वर ने निर्धारित किया था ।