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Wednesday, 22 May 2024

रामायण के प्रमुख पात्र - भगवती श्रीसीता

रामायण के प्रमुख पात्र - भगवती श्रीसीता

भगवती श्रीसीता जी की महिमा अपार है| वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास तथा धर्मशास्त्रोंमें इनकी अनन्त महिमाका वर्णन है| ये भगवान् श्रीराम की प्राण प्रिया आद्याशक्ति हैं| ये सर्व सर्वमङ्गलदायिनी, त्रिभुवन की जननी तथा भक्ति और मुक्ति का दान करने वाली हैं| महाराज सीर ध्वज जनक की यज्ञ भूमि से कन्या रूप में प्रकट हुई भगवती सीता ही संसार का उद्भव, स्थिति और संहार करने वाली पराशक्ति हैं| ये पतिव्रताओं में शिरोमणि तथा भारतीय आदर्शों की अनुपम शिक्षिका हैं|

अपनी ससुराल अयोध्या में आने के बाद अनेक सेविकाओं के होने पर भी भगवती सीता अपने हाथों से सारा गृहकार्य स्वयं करती थीं और पति के संकेत मात्र से उनकी आज्ञा का तत्काल पालन करती थीं| अपने पतिदेव भगवान् श्रीराम को वनगमन के लिये प्रस्तुत देखकर इन्होंने तत्काल अपने कर्तव्य कर्म का निर्णय कर लिया और श्रीराम से कहा - 'हे आर्यपुत्र! माता - पिता, भाई, पुत्र तथा पुत्रवधू - ये सब अपने-अपने कर्म के अनुसार सुख-दुःख का भोग करते हैं| एकमात्र पत्नी ही पति के कर्मफलों की भागिनी होती है| आपके लिये जो वनवास की आज्ञा हुई है, वह मेरे लिये भी हुई है| इसलिये वनवास में आपके साथ में मैं भी चलूँगी| आप में ही मेरा हृदय अनन्यभाव से अनुरक्त है| आपके वियोग में मेरी मृत्यु निश्चित है| इसलिये आप मुझे अपने साथ वन में अवश्य ले चलिये| मुझे ले चलने से आप पर कोई भार नहीं होगा| मैं वन में नियमपूर्वक ब्रह्मचारिणी रहकर आपकी सेवा करुँगी|'

अपने पति श्रीराम से वन में ले चलने का निवेदन करती हुई सीता प्रेम-विह्वल हो गयीं| उनकी आँखों से आँसू बहने लगे| वे संज्ञाहीन-सी होने लगीं| अन्त में श्रीराम को उन्हें साथ चलने कि आज्ञा देनी पड़ी| माता सीता अपने सतीत्व के परम तेज से लंकेश को भी भस्म कर सकती थीं| पापात्मा रावण के कुत्सिक मनोवृत्ति की धज्जियाँ उड़ाती हुई पतिव्रता सीता कहती हैं - 'हे रावण! तुम्हें जलाकर भस्म कर देने की शक्ति रखती हुई भी मैं श्रीरामचन्द्र का आदेश न होने के कारण एवं तपोभग्ङ होने के कारण तुम्हें जलाकर भस्म नहीं कर रही हूँ|'

महासती सीता ने हनुमान जी की पूँछ में आग लगने के समय अग्निदेव से प्रार्थना की - 'हे अग्निदेव! यदि मैंने अपने पति की सच्चे मन से सेवा की है| यदि मैंने श्रीराम के अतिरिक्त किसी का चिन्तन न किया हो तो तुम हनुमान के लिये शीतल हो जाओ|' महासती सीता की प्रार्थना से अग्निदेव हनुमान के लिये सुख और शीतल हो गये और लंका के लिये दाहक बन गये| सीता के पातिव्रत्य की गवाही अग्निपरीक्षा के पश्चात् स्वयं अग्निदेव ने दी थी| महासती सीता के सतीत्व की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती| भगवती सीता का चरित्र समस्त नारियों के लिये वन्दनीय तथा अनुकरणीय है|