एक दिन भाई जग्गा जुरू जी के दर्शन करने आया| उसने प्राथना कि सच्चे पादशाह जी मुझे एक दिन जोगी ने बताया कि कल्याण तभी हो सकता है अगर घर - बाहर, स्त्री - पुत्र आदि का त्याग किया जाये जो कि बन्धन हैं|
इसके बाद ही मेरे से उपदेश लेना, मगर मैं किसी भी वास्तु का त्याग नहीं कर पाया| अब आप ही मुझ पर कृपा करे और बताये कि मुक्ति किस तरह मिल सकती है? गुरु जी ने उसका श्रधा व प्रेम भाव देखा और कहा यदि घर - बाहर, स्त्री - पुत्र छोड़ने से ही मुक्ति मिलती तो फिर शहरो और नगरों में आकर क्यों मांगते? गुरुसिख गृहस्थ में ही रह कर मुक्ति प्राप्त कर लेता है| गृहस्थ धर्म ही सबसे अच्छा है क्योंकि इसमें वह खुद कमाई करके खाता है और दान करता है और जो साधु ग्रहस्थियो से मांगकर खाता है वह अपने जप तप की कमाई में कमी डाल देता है, ग्रहस्थी जो कि अन्न वस्त्र कि सेवा करता है उसकी कमाई से भी हिस्सा ले लेता है|
हे भाई जग्गा! शरीर के साथ सन्तों की सेवा और मन से हरि की भक्ति करो| इस तरह शीघ्र ही कल्याण हो जायेगा| इस प्रकार गुरु जी ने मुक्ति का मार्ग सभी बंधनों को तोड़ कर नहीं अपितु ग्रहस्थ आश्रम में रहते हुए ही मुक्ति को प्राप्त करना बताया|