शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Tuesday, 11 October 2022

श्री साईं लीलाएं - जब जौहर अली बाबा जी के चेले बने

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. कुश्ती के बाद बाबा में बदलाव 

श्री साईं लीलाएं
जब जौहर अली बाबा जी के चेले बने

साईं बाबा और मोहिद्दीन की कुश्ती के कुछ वर्षों के बाद जौहर अली नाम का एक मुस्लिम फकीर रहाता में अपने शिष्यों के साथ रहने आयावह हनुमान मंदिर के पास एक मकान में डेरा जमाकर रहने लगावह अहमदनगर का रहने वाला थाजौहर अली बड़ा विद्वान थाकुरान शरीफ की आयातें उसे मुंहजुबानी याद थींमीठी बोली उसकी अन्य विशेषता थीधीरे-धीरे रहाता के श्रद्धालु जन उससे प्रभावित होकर उसके पास आने लगेउसके पास आने वाला व्यक्ति उसका बड़ा सम्मान करता थापूरे रहाता में उसकी वाहवाही होने लगी थीधीरे-धीरे उसने रहाता के लोगों का विश्वास प्राप्त कर बहुत सारी आर्थिक मदद भी हासिल कर ली थी|


इसके बाद उसने हनुमान मंदिर के पास में ही ईदगाह बनाने का निर्णय लियालेकिन इस विषय को लेकर वहां के लोगों के साथ उसका विवाद हो गयाविवाद बढ़ जाने पर उसे रहाता छोड़कर शिरडी में शरण लेनी पड़ीशिरडी में वह साईं बाबा के साथ मस्जिद में रहने लगावहां पर भी उसने अपनी मीठी बोली के बल पर लोगों का दिल जीत लिया|साईं बाबा उसे पूरी तरह से पहचानते थेमगर उसे टोकते न थेसाईं बाबा के कुछ न कहने पर बाद में उस फकीर की इतनी हिम्मत बढ़ गयी कि वह लोगों को यह बताने लगा कि साईं बाबा उसके शिष्य हैंएक दिन उसने साईं बाबा से कहा - "तू मेरा चेला बन जा|" साईं बाबा ने कोई ऐतराज नहीं किया और उसी पल 'हांकर दीवह फकीर उन्हें लेकर रहाता चला गयागुरु (जौहर अली) अपने शिष्य ( साईं बाबा) की योग्यता को नहीं जानता थालेकिन शिष्य (साईं बाबा) गुरु (जौहर अली) के अवगुणों को भली-भाँति जानते थेइतना सब कुछ जानते हुए भी साईं बाबा ने कभी भी जौहर अली का अपमान नहीं किया और पूरी निष्ठा भाव से अपने गुरु के प्रति कर्त्तव्य का निर्वाह करते हुएगुरु की तरह सेवा कीउसकी प्रत्येक बात सर-आँखों पर रखी और तो और साईं बाबा ने उसके यहां पानी तक भी भरा|लेकिन जब कभी साईं बाबा की इच्छा होती तो वह अपने गुरु जौहर अली के साथ शिरडी में भी आया करते थेपर उनका रहना-सहना रहाता में ही थालेकिन बाबा के भक्तों को उनका रहाता में रहना अच्छा नहीं लगता थाउन्हें अपने साईं बाबा वापस चाहिये थेइसलिये सारे भक्त मिलकर बाबा को रहाता से वापस शिरडी लाने के लिए गएवहां पर भक्तों की साईं बाबा से ईदगाह के पास मुलाकात हुईबाबा के भक्तों ने उन्हें अपने रहाता आने का कारण बताया तो बाबा ने उन्हें फकीर के गुस्से के बारे में समझाते हुए वापस भेजना चाहापरंतु उन लोगों ने वापस जाने से इंकार कर दियाउनके बीच अभी बातचीत चल ही रही थी कि तभी वह फकीर वहां आ पहुंचा और जब उसे यह पता चला कि वह लोग उसके शिष्य (साईं बाबा) को लेने आये हैं तो वह गुस्से में लाल-पीला हो गया|वह फकीर बोला - "तुम इस बच्चे को ले जाना चाहते होयह नहीं जायेगा|" फिर दोनों पक्षों में काफी वाद-विवाद होने लगाअंत में लोगों की जिद्द के आगे फकीर सोच में पड़ गया और अंत में यह निर्णय हुआ कि गुरु-शिष्य दोनों ही शिरडी में रहेंआखिर दोनों शिरडी वापस आकर रहने लगे|इस तरह उन्हें बहुत दिन शिरडी में रहते हुए बीत गएतब एक दिन शिरडी के एक महात्मा देवीदास और जौहर अली दोनों में धर्म-चर्चा होने लगीतो उसमें अनेक दोष पाए गयेमहात्मा देवीदास साईं बाबा के चाँद पाटिल के साले के लड़के की बारात में शिरडी आने से 12 वर्ष पूर्व शिरडी आये थेउस समय उनकी उम्र लगभग 10-12 वर्ष की रही होगी और वह हनुमान मंदिर में रहते थेवे सुंदर और बुद्धिमान थेयानी वे ज्ञान और त्याग की साक्षात् मूर्ति थेतात्यापाटिलकाशीनाथ तथा अन्य कई लोग उन्हें गुरु की तरह मानते और उनका सम्मान करते थेतब हारने के डर से जौहर अली रात में ही भागकर बैजापुर गांव में चला गयाफिर कई वर्षों के बाद एक दिन वह शिरडी आया और साईं बाबा के चरणों में गिरकर रोकर माफी मांगने लगाउसने साईं बाबा की महत्ता को दिल से स्वीकार कर लियाउसका भ्रम मिट चुका था कि वह स्वयं गुरु है और साईं बाबा उसके शिष्य|उसकी सच्ची भावना जानकर साईं बाबा ने उसे समझाया और फिर आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग बताया|

कल चर्चा करेंगे..रोहिला के प्रति प्रेम 

==ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ==
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।