शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Friday, 17 May 2024

रामायण के प्रमुख पात्र - महर्षि विश्वामित्र

रामायण के प्रमुख पात्र - महर्षि विश्वामित्र

महर्षि विश्वामित्र महाराज गाधिके पुत्र थे| कुश्वंश में पैदा होने के कारण इन्हें कौशिक भी कहते हैं| ये बड़े ही प्रजा पालक तथा धर्मात्मा राजा थे| एक बार ये सेना को साथ लेकर जंगल में शिकार खेलने के लिये गये| वहाँ पर वे महर्षि वसिष्ठ के आश्रम पर पहुँचे|महर्षि वसिष्ठ ने इनसे इनकी तथा राज्य की कुशल-श्रेम पूछी और सेना सहित आतिथ्य-सत्कार स्वीकार करने की प्रार्थना की|

विश्वामित्र ने कहा - 'भगवन्! हमारे साथ लाखों सैनिक हैं| आपने जो फल-फूल दिये, उसी से हमारा सत्कार हो गया| अब हमें जाने की आज्ञा दें|'

महर्षि वसिष्ठ ने उनसे बार-बार पुन: आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया| उनके विनय को देखकर विश्वामित्र ने अपनी स्वीकृति दे दी| महर्षि वसिष्ठ ने अपने योग बल और कामधेनु की सहायता से विश्वामित्र को सैनिकों सहित भली-भांति तृप्त कर दिया| कामधेनु के विलक्षण प्रभाव से विश्वामित्र चकित हो गये| उन्होंने कामधेनु को देने के लिये महर्षि वसिष्ठ से प्रार्थना की| वसिष्ठजी के इन्कार करनेपर वे जबरन कामधेनु को अपने साथ ले जाने लगे| कामधेनु ने अपने प्रभाव से लाखों सैनिक पैदा किये| विश्वामित्र की सेना भाग गयी और वे पराजित हो गये| इससे विश्वामित्र को बड़ी ग्लानी हुई| उन्होंने अपना राज-पाट छोड़ दिया| वे जंगल में जाकर ब्रह्मर्षि होने के लिये कठोर तपस्या करने लगे|

तपस्या करते हुए सबसे पहले मेनका अप्सरा के माध्यम से विश्वामित्र के जीवन में काम का विघ्न आया| ये सब कुछ छोड़कर मेनका के प्रेममें डूब गये| जब इन्हें होश आया तो इनके मन में पश्चात्ताप का उदय हुआ| ये पुन: कठोर तपस्या में लगे और सिद्ध हो गये| काम के बाद क्रोध ने भी विश्वामित्र को पराजित किया| राजा त्रिशुंक सदेह स्वर्ग जाना चाहते थे| यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध होने के कारण वसिष्ठजी ने उनका कामनात्मक यज्ञ कराना स्वीकार नहीं किया| विश्वामित्र के तप का तेज उस समय सर्वाधिक था| त्रिशुंक विश्वामित्र के पास गये| वसिष्ठ से पुराने वैर को स्मरण करके विश्वामित्र ने उनका यज्ञ कराना स्वीकार कर लिया| सभी ऋषि इस यज्ञ में आये, किन्तु वसिष्ठ के सौ पुत्र नहीं आये| इस पर क्रोध के वशीभूत होकर विश्वामित्र ने उन्हें मार डाला| अपनी भयङ्कर भूलका ज्ञान होने पर विश्वामित्र ने पुन: तप किया और क्रोध पर विजय करके ब्रह्मर्षि हुए| सच्ची लगन और सतत उद्योग से सब कुछ सम्भव है, विश्वामित्र ने इसे सिद्ध कर दिया|

श्री विश्वामित्रजी को भगवान् श्रीराम का दूसरा गुरु होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| ये दण्डकारण्य में यज्ञ कर रहे थे| रावण के द्वारा वहाँ नियुक्त ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे राक्षस इनके यज्ञ में बार-बार विघ्न उपस्थित कर देते थे| विश्वामित्र जी ने अपने तपोबल से जान लिया कि त्रैलोक्य को भय से त्राण दिलाने वाले परब्रह्म श्रीराम का अवतार अयोध्या में हो गया है| फिर ये अपनी यज्ञ रक्षा के लिये श्रीराम को महाराज दशरथ से माँग ले आये| विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हुई| इन्होंने भगवान् श्रीराम को अपनी विद्याएँ प्रदान कीं और उनका मिथिला में श्रीसीताजी से विवाह सम्पन्न कराया| महर्षि विश्वमित्र आजीवन पुरुषार्थ और तपस्या के मूर्तिमान् प्रतीक रहे| सप्तऋषि मण्डल में ये आज भी विद्यमान हैं|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.