श्री गुरु अंगद देव जी के पास आकर जब कुछ दिन बीत गए तो आप ने भाई बुड्डा जी से आज्ञा लेकर और सिक्खों की तरह गुरुघर की सेवा में लग गए| आप सुबह उठकर गुरु जी के लिए जल की गागरे लाकर स्नान कराते| फिर कपड़े धोकर एकांत में बैठकर गुरु जी का ध्यान करते| स्मरण से उठकर लंगर के लिए पानी लाते| फिर वहाँ झाडू देते और बर्तन साफ करते| आप सेवा में इतने तल्लीन रहते कि आपको खाने पीने व पहनने की लालसा ही न रही| रात-दिन आप अनथक सेवा के कारण शरीर कमजोर हो गया| पहनने वाले कपड़े भी फटे पुराने से रहते थे|
श्री गुरु अंगद देव जी आपकी सेवा से बहुत खुश हुए| उन्होंने खुश होकर आपको एक अंगोछा दिया| आपने गुरु जी का इसे प्रसाद समझकर अपने सिर पर बांध लिया| आप तन करके गुरु जी की सेवा करते और मन करके गुरु जी का ध्यान करते| गुरु जी आपकी सेवा पर खुश होते रहे और हर साल अंगोछा बक्शते रहे और आप पहले की तरह सिर पर बांधते रहे| इस प्रकार जब ग्यारह साल बीत गए तो इन अंगोछो का बोझ सा बन गया| आपजी का शरीर पतला और छोटे कद का था जो वृद्ध अवस्था के कारण निर्बल हो चुका था|
एक दिन अमरदास जी गुरु जी के स्नान के लिए पानी की गागर सिर पर उठाकर प्रातःकाल आ रहे थे कि रास्ते में एक जुलाहे कि खड्डी के खूंटे से आपको चोट लगी जिससे आप खड्डी में गिर गये| गिरने कि आवाज़ सुनकर जुलाहे ने जुलाही से पुछा कि बाहर कौन है? जुलाही ने कहा इस समय और कौन हो सकता है, अमरू घरहीन ही होगा, जो रातदिन समधियों का पानी ढ़ोता फिरता है| जुलाही की यह बात सुनकर अमरदास जी ने कहा कमलीये! में घरहीन नहीं, मैं गुरु वाला हूँ| तू पागल है जो इस तरह कह रही हो|
उधर इनके वचनों से जुलाही पागलों की तरह बुख्लाने लगी| गुरु अंगद देव जी ने दोनों को अपने पास बुलाया और पूछा प्रातःकाल क्या बात हुई थी, सच सच बताना| जुलाहे ने सारी बात सच सच गुरु जी के आगे रख दी कि अमरदास जी के वचन से ही मेरी पत्नी पागल हुई है| आप किरपा करके हमें क्षमा करें और इसे अरोग कर दे नही तो मेरा घर बर्बाद हो जायेगा|
जुलाहे की बात सुनकर गुरु जी ने कहा श्री अमर दास जी बेघरों के लिए घर, निमाणियों का माण हैं| निओटिओं की ओट हैं, निधरिओं की धिर हैं| निर आश्रितों का आश्रय हैं आदि बारह वरदान देकर गुरु जी ने आपको अपने गले से लगा लिया और वचन किया कि आप मेरा ही रूप हो गये हो| इसके पश्चात गुरु अंगद देव जी ने अपनी कृपा दृष्टि से जुलाही की तरफ देखा और उसे अरोग कर दिया| इस प्रकार वे दोनों गुरु जी की उपमा गाते हुए घर की ओर चल दिए|
इसके पश्चात गुरु जी ने आपके सिर से ग्यारह सालों के ऊपर नीचे बंधे हुए अंगोछो की गठरी उतारकर और सिक्खों को आज्ञा की कि इनको अच्छी तरह से स्नान कराकर नए कपड़े पहनाओ| आज से यह हमारा रूप ही हैं| हमारे बाद गुरु नानक देव जी की गद्दी पर यही सुशोभित होंगे|
गुरु जी ने अपना अन्तिम समय जानकर संगत को प्रगट कर दिया कि अब अपना शरीर त्यागना चाहते हैं| आपके यह वचन सुनकर आस पास की संगत इक्कठी हो गई और खडूर साहिब अन्तिम दर्शनों के लिए पहुँच गई| श्री गुरु अंगद देव जी ने इसके पश्चात एक सेवादार को भेजकर श्री अमर दास जी को खडूर साहिब बुला लिया|
श्री अमर दास जी के आने पर गुरु जी ने सेवादारो को आज्ञा दी कि इनक्को स्नान कराओ और नए वस्त्र पहनाकर हमरे पास ले आओ| हमारे दोनों सुपुत्रो और संगत को भी बुला लाओ| इस तरह जब दीवान सज गया तो गुरु जी ने श्री अमर दास जी को सम्बोधित करके कहा - हे प्यारे पुरुष श्री अमर दास जी! हमे अकालपुरुख का बुलावा आ गया है| हमने अपना शरीर त्याग कर बाबा जी के चरणों में जल्दी ही जा विराजना है| आपने गुरु नानक जी की चलाई हुई मर्यादा को कायम रखना है| यह वचन कहकर आप जी ने चेत्र सुदी 4 संवत 1608 वाले दिन पांच पैसे और नारियल श्री अमर दास जी के आगे रखकर माथा टेक दिया और बाबा बुड्डा जी की आज्ञा अनुसार आप जी के मस्तक पर गुरुगद्दी का तिलक लगा दिया| इसके पश्चात गुरु जी ने तीन परिक्रमा की और श्री अमर दास जी को अपने सिंघासन पर सुशोभित करके पहले अपने नमस्कार किया फिर सब सिक्खों और साहिबजादो को भी ऐसा करने को कहा| अब यह मेरा रूप हैं| मेरे और इनमे कोई भेद नहीं है| गुरु जी का वचन मानकर सारी संगत ने माथा टेका परन्तु पुत्रों ने नहीं क्योंकि वह अपने ही सवेक को माथा टेकना नहीं चाहते थे|
शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)
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