ॐ सांई राम
कल हमने पढ़ा था.. धर्मग्रंथ गुरु के बिना पढ़ना बेकार है
श्री साईं लीलाएं - घोड़े की लीद का रहस्य
अनंतराव पाटणकर पूना के रहनेवाले थे| उन्होंने वेद और उपनिषदों का अध्ययन कर लिया था| उनका तत्वज्ञान भी समझ लिया था| लेकिन इतना सब करने के बाद भी उनका मन शांत न था|
उनके मन में साईं बाबा के दर्शन करने की प्रबल इच्छा थी| बाद में उन्होंने शिरडी में जाकर साईं बाबा के दर्शन किये, तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई| बाबा की चरणवंदना करने के बाद वे बाबा से बोले - "बाबा ! मैंने वेद, पुराण, उपनिषद् आदि अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया है, सुना भी है लेकिन मेरे मन को शांति नहीं मिली| इसलिए मेरी सारी मेहनत करनी व्यर्थ हो रही है| यह मैं समझ भी गया हूं| इसीलिए मैं आपकी शरण में आया हूं, अब आप ही मुझे कोई रास्ता बताइये और मेरे मन को शांति मिले, ऐसा आप आशीर्वाद भी दीजिये|"
तब साईं बाबा ने उसे एक कथा सुनायी| जो इस प्रकार है - "एक बार एक सौदागर यहां आया था| उसकी घोड़ी ने उसके सामने ही लीद के नौ गोले डाल दिये| सौदागर बहुत जिज्ञासु प्रवृति था| उसने तुरंत दौड़कर अपनी धोती का एक छोर बिछाकर उसने लीद के वे नौ गोले रख लिए| इससे उसके मन को बड़ी शांति मिली|" इतना कहकर बाबा चुप हो गये|
पाटणकर ने इस पर बहुत सोच-विचार किया, परन्तु वह इस कथा का मर्म समझने में असफल ही रहे| उन्होंने दादा केलकर से इस कथा का अर्थ समझाने का निवेदन किया| इस पर दादा केलकर ने कहा, बाबा जो कुछ भी कहते हैं उसका अर्थ ठीक से मैं भी नहीं समझ पाता हूं| फिर भी बाबा ने जो कुछ कहा और जितना मैं समझ पाया हूं, वह मैं तुम्हें बताता हूं| वे बोले कि घोड़ी से अर्थ है - परमात्मा की कृपा| नौ गोलों का अर्थ है - नवद्या भक्ति| नवद्या भक्ति इस प्रकार से है - श्रवण, कीर्तन, नामस्मरण, पाद-सेवन, अर्चन, वंदन, सेवा, संयम व आत्म-निवेदन| यही भक्ति के नौ प्रकार हैं|
जब तक इनमें किस भी भक्ति के द्वारा स्वयं को परमात्मा से जोड़ा न जाए, तो वह कृपा नहीं करता| जब तक मन में ईश्वर के प्रति भक्ति और प्रेम-भाव नहीं रहेगा| तब तक जब, तप, व्रत, योग, वेद-पुराण आदि पढ़ना-पढ़ाना सब व्यर्थ है| देवता प्यार के भूखे होते हैं, बिना लगन से किया हुआ भजन देवता को आकर्षित नहीं कर सकता - और जो ईश्वर से प्रेम करता है, उसे फिर किसी साधन की आवश्यकता नहीं पड़ती| इन नौ साधनों में से किसी एक पर मन से किया गया प्रयास ही पर्याप्त है| ईश्वर उसी से संतुष्ट होता है| ईश्वरभक्ति ही सर्वोपरि है| सबके प्रति मन में प्रेमभाव रखोगे तो मन शांत होगा| स्वयं को सौदागर की उत्सुकतापूर्वक सत्य को खोजकर नवद्या भक्ति को पा जाओ| तभी मन स्थिर होकर मानसिक शांति मिलेगी| बाबा ने तुम्हें यही भक्ति का संदेश दिया है|" दादा से यह सब सुनकर पाटणकर खुश हो गये|
दूसरे दिन जब पाटणकर बाबा के दर्शन करने मस्जिद गये तो बाबा ने पूछा - "क्यों, क्या तुमने लीद के नौ गोले बांध लिये?" बाबा के इस प्रश्न का संकेत समझकर पाटणकर बोले - "बाबा ! आपकी कृपा के बिना यह कैसे संभव हो सकता है?" इस पर बाबा हँस पड़े और उसका कल्याण हो, इसके लिए बाबा ने आशीर्वाद दिया| पाटणकर ने बाबा के श्रीचरणों पर अपना सिर झुका दिया|
अनंतराव पाटणकर पूना के रहनेवाले थे| उन्होंने वेद और उपनिषदों का अध्ययन कर लिया था| उनका तत्वज्ञान भी समझ लिया था| लेकिन इतना सब करने के बाद भी उनका मन शांत न था|
उनके मन में साईं बाबा के दर्शन करने की प्रबल इच्छा थी| बाद में उन्होंने शिरडी में जाकर साईं बाबा के दर्शन किये, तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई| बाबा की चरणवंदना करने के बाद वे बाबा से बोले - "बाबा ! मैंने वेद, पुराण, उपनिषद् आदि अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया है, सुना भी है लेकिन मेरे मन को शांति नहीं मिली| इसलिए मेरी सारी मेहनत करनी व्यर्थ हो रही है| यह मैं समझ भी गया हूं| इसीलिए मैं आपकी शरण में आया हूं, अब आप ही मुझे कोई रास्ता बताइये और मेरे मन को शांति मिले, ऐसा आप आशीर्वाद भी दीजिये|"
तब साईं बाबा ने उसे एक कथा सुनायी| जो इस प्रकार है - "एक बार एक सौदागर यहां आया था| उसकी घोड़ी ने उसके सामने ही लीद के नौ गोले डाल दिये| सौदागर बहुत जिज्ञासु प्रवृति था| उसने तुरंत दौड़कर अपनी धोती का एक छोर बिछाकर उसने लीद के वे नौ गोले रख लिए| इससे उसके मन को बड़ी शांति मिली|" इतना कहकर बाबा चुप हो गये|
पाटणकर ने इस पर बहुत सोच-विचार किया, परन्तु वह इस कथा का मर्म समझने में असफल ही रहे| उन्होंने दादा केलकर से इस कथा का अर्थ समझाने का निवेदन किया| इस पर दादा केलकर ने कहा, बाबा जो कुछ भी कहते हैं उसका अर्थ ठीक से मैं भी नहीं समझ पाता हूं| फिर भी बाबा ने जो कुछ कहा और जितना मैं समझ पाया हूं, वह मैं तुम्हें बताता हूं| वे बोले कि घोड़ी से अर्थ है - परमात्मा की कृपा| नौ गोलों का अर्थ है - नवद्या भक्ति| नवद्या भक्ति इस प्रकार से है - श्रवण, कीर्तन, नामस्मरण, पाद-सेवन, अर्चन, वंदन, सेवा, संयम व आत्म-निवेदन| यही भक्ति के नौ प्रकार हैं|
जब तक इनमें किस भी भक्ति के द्वारा स्वयं को परमात्मा से जोड़ा न जाए, तो वह कृपा नहीं करता| जब तक मन में ईश्वर के प्रति भक्ति और प्रेम-भाव नहीं रहेगा| तब तक जब, तप, व्रत, योग, वेद-पुराण आदि पढ़ना-पढ़ाना सब व्यर्थ है| देवता प्यार के भूखे होते हैं, बिना लगन से किया हुआ भजन देवता को आकर्षित नहीं कर सकता - और जो ईश्वर से प्रेम करता है, उसे फिर किसी साधन की आवश्यकता नहीं पड़ती| इन नौ साधनों में से किसी एक पर मन से किया गया प्रयास ही पर्याप्त है| ईश्वर उसी से संतुष्ट होता है| ईश्वरभक्ति ही सर्वोपरि है| सबके प्रति मन में प्रेमभाव रखोगे तो मन शांत होगा| स्वयं को सौदागर की उत्सुकतापूर्वक सत्य को खोजकर नवद्या भक्ति को पा जाओ| तभी मन स्थिर होकर मानसिक शांति मिलेगी| बाबा ने तुम्हें यही भक्ति का संदेश दिया है|" दादा से यह सब सुनकर पाटणकर खुश हो गये|
दूसरे दिन जब पाटणकर बाबा के दर्शन करने मस्जिद गये तो बाबा ने पूछा - "क्यों, क्या तुमने लीद के नौ गोले बांध लिये?" बाबा के इस प्रश्न का संकेत समझकर पाटणकर बोले - "बाबा ! आपकी कृपा के बिना यह कैसे संभव हो सकता है?" इस पर बाबा हँस पड़े और उसका कल्याण हो, इसके लिए बाबा ने आशीर्वाद दिया| पाटणकर ने बाबा के श्रीचरणों पर अपना सिर झुका दिया|
कल चर्चा करेंगे... लोग दक्षिणा भी देते थे और गालियाँ भी
ॐ सांई राम
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।