शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

************************************

निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

************************************

Monday, 21 November 2022

श्री साईं लीलाएं - रतनजी शापुरजी की दक्षिणा

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था..ऊदी और आशीर्वाद का चमत्कार


श्री साईं लीलाएं - रतनजी शापुरजी की दक्षिणा

नांदेड में रहनेवाले रतनजी शापुरजी वाडिया एक फारसी सज्जन थे| उनका बहुत बड़ा व्यवसाय था| किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी| प्रकृति से वो बहुत धार्मिक थे| अपने दान-धर्म की वजह से वे बहुत प्रसिद्ध थे| ईश्वर की कृपा से उनके पास सब कुछ था| यदि उनके जीवन में किसी चीज की कमी थी तो वह एक संतान की| संतान के लिए तरसते थे| वह संतान पाने के लिए सदैव प्रभु से प्रार्थना करते थे| वे गरीबों और जरूरतमंदों की भोजन, वस्त्र आदि सब तरह से मदद भी किया करते थे| संतान-प्राप्ति की चिंता में वह दिन-रात व्यथित रहते| बिना बच्चों के सूना-सूना घर उनको मानो खाने को दौड़ता| वह अपने मन में सोचते कि क्या प्रभु मुझे संतान देने की कृपा करेंगे या मैं बिना संतान के ही रहूंगा| चिंतित रहने के कारण अब तो उन्हें भोजन करना भी अच्छा नहीं लगता था|

रतनजी की दासगणु के प्रति बहुत निष्ठा थी| इसलिए एक दिन उन्होंने दासगणु महाराज को अपने मन की बात कह डाली| दासगणु महाराज ने उन्हें शिरडी जाकर साईं बाबा की शरण में जाकर संतान-प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने को कहा| साईं बाबा तुम पर अवश्य मेहरबान हो जायेंगे और तुम्हारी इच्छा भी अवश्य पूर्ण होगी| दासगणु महाराज की बात सुनकर रतनजी के मन में आशा की एक किरण जाग उठी, उन्होंने शिरडी जाने का निर्णय कर लिया|

कुछ दिनों बाद रतनजी शिरडी पहुंचे और मस्जिद पहुंचकर साईं बाबा के दर्शन कर, उनके श्री चरणों में फूल-फल आदि की भेंट रख उन्हें गले में हार पहनाया, फिर बाबा के श्री चरणों के पास बैठकर प्रार्थना कि - "बाबा ! जो भी दु:खी आपकी चौखट पर अपने दुःख लेकर आया, वह सुखों से अपनी झोली भरकर ही गया| आपकी प्रसिद्धि सुनकर मैं आपकी शरण में आया हूं| मुझे पूरा विश्वास है कि आप मुझे खाली हाथ नहीं लौटयेंगे|"

रतनजी की प्रार्थना सुनकर बाबा ने मुस्कराते हुए दक्षिणा में पांच रुपये मांगे| रतनजी तुरंत देने को तैयार थे| पर बाबा तुरंत बोले - "अरे, मैं तुमसे तीन रुपये चौदह आने पहले ही ले चुका हूं इसलिए अब बाकी के पैसे दे दो|"

साईं बाबा के यह वचन सुनकर रतनजी सोचने लगे कि वह तो जीवन में पहली बार शिरडी आये हैं, फिर बाबा को तीन रुपये चौदह आने कब और कैसे मिले, यह बात उनकी जरा भी समझ में नहीं आयी| फिर उन्होंने मौन रहते हुए बाबा को बाकी की दक्षिणा दे दी और हाथ जोड़कर बाबा से प्रार्थना की - "बाबा ! मैं अज्ञानी आपकी पूजा करने का ढंग नहीं जानता हूं| बड़े भाग्य से आपके श्री चरणों के दर्शन करने का अवसर मिला है| आप सबके मन की बात जानते हैं, मेरा दुःख भी आपसे छिपा नहीं है| आपसे उसे दूर करने की प्रार्थना है|"

रतनजी की प्रार्थना सुनकर बाबा को उस पर दया आ गई और बाबा बोले - "तू बिल्कुल चिंता मत कर| तेरे बुरे दिन अब बीत गये| अल्लाह तेरी मुराद अवश्य पूर्ण करेगा|" फिर बाबा ने उसके सिर पर अपना वरदहस्त रखकर ऊदी प्रसाद स्वरूप दी| फिर बाबा में रतनजी बाबा से आज्ञा लेकर नांदेड लौट आये| वहां पर आकर वे दासगणु महाराज से मिले और उन्हें शिरडी में अपने साथ घटी सारी बात विस्तार से बता दी| फिर बोले - "महाराज ! मैंने इससे पहले बाबा को कभी न देखा और न ही मिला, फिर बाबा ने तीन रुपये और चौदह आने मिलने की बात क्यों कही? मैं कुछ समझा नहीं| अब आप ही रहस्य को समझाइये|" वे भी बहुत दिनों तक विचार करते रहे कि बाबा ने कहा है तो इसमें कुछ-न-कुछ सच्चाई अवश्य है|

सोचते-सोचते उन्हें अचानक एक दिन याद आया कि कुछ दिनों पहले रतनजी ने एक औलिया मौला साहब को अपने घर आमंत्रित किया था| इसके लिए कुछ धन भी खर्च किया था| मौला साहब नांदेड के प्रसिद्ध संत थे जो अपनी रोजी-रोटी के लिए मेहनत किया करते थे| शिरडी जाने से कुछ दिन पहले रतनजी ने उन्हें अपने घर बुलाकर खाना खिलाकर उनका सम्मान किया था|

दासगणु महाराज ने रतनजी से उस आतिथ्य खर्च की सूचि मांगी| जब उन्होंने खर्च की गयी राशि का जोड़ किया तो वे यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि उस दिन उनके आतिथ्य पर जो खर्च हुआ था उसका योग तीन रुपये चौदह आने थे| इससे यह बात सिद्ध होती है कि साईं बाबा अंतर्यामी थे| वे शिरडी में ही रहते थे| लेकिन उन्हें सब जगह क्या हो रहा है, इसका पहले से ही पता रहता था| यह जानकर रतनजी बाबा के भक्त बन गये| फिर यथासमय रतनजी की पत्नी गर्भवती हुई और समय होने पर उन्हें साईं बाबा की कृपा से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई तो उनकी खुशी का पारावार न रहा और वह साईं बाबा की जय-जयकार करने लगे|


कल चर्चा करेंगे... दासगणु की वेशभूषा


ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

For Donation

For donation of Fund/ Food/ Clothes (New/ Used), for needy people specially leprosy patients' society and for the marriage of orphan girls, as they are totally depended on us.

For Donations, Our bank Details are as follows :

A/c - Title -Shirdi Ke Sai Baba Group

A/c. No - 200003513754 / IFSC - INDB0000036

IndusInd Bank Ltd, N - 10 / 11, Sec - 18, Noida - 201301,

Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh. INDIA.

बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.