कल हमने पढ़ा था.. पानी से दीप जले
श्री साईं लीलाएं
पंडितजी साईं बाबा को गांव से भगाने के विषय में सोच-विचार कर रहे थे कि तभी एक पुलिस कोंस्टेबिल आता दिखाई दिया| पंडितजी ने उसे दूर से ही पहचान लिया था| उसका नाम गणेश था| वह पंडितजी के पास आता-जाता रहता था|
थाने में जितने भी पुलिस कर्मचारी थे, गणेश उन सबमें ज्यादा चालबाज था| लोगों को किसी भी फर्जी केस में फंसा देना तो उसके बायें हाथ का खेल था| रिश्वत लेने में उसका कोई सानी नहीं था| जो भी नया थानेदार आता वह अपनी लच्छेदार बातों, हथकंडों से उसे अपनी और मिला लेता था| फिर सीधे-सादे गांववासियों को सताना शुरू कर देता था| पंडितजी भी इस काम में उसकी भरपूर सहायता करते थे|
उस आया देखकर पंडितजी के मन को थोड़ी-सी शांति मिली|
"आओ, आओ गणेश !" पंडितजी बोले, फिर हाथ पकड़कर अपने पास चौकी पर बैठा लिया|
"कैसे हालचाल हैं पंडितजी ?" - गणेश ने पूछा|
"बहुत बुरा हाल है|" पंडितजी दु:खभरे स्वर में बोले - "कुछ न पूछो| जब से साईं बाबा गांव में आया है, मेरा तो सारा धंधा ही चौपट होकर रह गया है| उनकी भभूती ने मेरा औषधालयबंद कर दिया| लोगों ने मंदिर में आना भी छोड़ दिया है| दुकानदार सुबह-शाम मंदिर आ जाते थे, उनसे थोड़ी-बहुत आमदनी हो जाती थी, पर दीपावली से वह भी बंद हो गयी|"
"वो कैसे ?"
पंडितजी दीपावली की सारी घटना सुनाने के बाद कहा - "गणेश भाई ! यदि यहीं तक होता तो चिंता की कोई बात न थी| मेरे पास खेत हैं| उन खेतों से इतनी आमदनी हो जाती थी कि बड़े मजे से दिन गुजर जाते| लेकिन खेतों में काम करने वाले मजदूरों ने खेतों में काम करने से मना कर दिया है| फसल का समय आ रहा है, यदि खेतों में समय पर फसल न बोयी तो साल भर खाऊंगा क्या ? मैं तो इस साईं से बहुत ही दु:खी हूं|
"जब से साईं इस गांव में आया है आमदनी तो हम लोगों की भी कम हो गयी है| न तो गांव में लड़ाई-झगड़ा होता है और न चोरी-डकैती| साईं के आने से पहले गांव से खूब आमदनी होती थी| अब तो फूटी कौड़ी भी हाथ नहीं लग रहा है|" -गणेश ने भी अपना दु:खड़ा सुनाया|
"तो कोई ऐसा उपाय सोचो जिससे यह ढोंगी गांव छोड़कर भाग जाए|" -पंडितजी ने कहा|
गणेश सोच में पड़ गया|
पंडितजी नाश्ता लेने अंदर चले गए|
नाश्ता करने के बाद एक लम्बी डकार लेते हुए गणेश ने रहस्यपूर्ण स्वर में कहा - "पंडितजी, पुलिस के जितने भी बड़े-बड़े अफसर हैं, वह सब इस साईं के चेले बन गए हैं| यदि उनसे इसके विरुद्ध कोई शिकायत की जाएगी तो वे सुनेंगे ही नहीं| दो-चार बार कभी साईं के विरुद्ध कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन अभी अपनामुंह भी नहीं खोल पाया था कि अफसरों ने फटकारते हुए कहा - "खबरदार, जो साईं के विरुद्ध एक शब्द भी कहा| वह इंसान नहीं भगवान का अवतार हैं|" उनकी डांट खाकर चुप रह जाना पड़ा| इसलिए उनसे तो उम्मीद करना ही बेकार है| यदि साईं को गांव से कोई निकाल सकता है तो वह सिर्फ गांववाले|"
"भला गांव वाले उसे क्यों गांव से निकालने लगे ?" -पंडितजी बोले|
"देखो, पंडितजी ! गांव वाले बहुत सीधे-सादे होते हैं| उन्हें झूठ और धोखे से बहुत घृणा होती है| उनका चाल-चलन एकदम साफ-सुथरा होता है| वह उस आदमी को कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते, जिसका चाल-चलन ठीक नहीं होता और उस आदमी को तो किसी भी कीमत पर नहीं, जिसे वे साधु-महात्मा, सिद्ध या अपना गुरु मानते हैं| साईं कुंवारा है और पंडितजी आप तो जानते ही हैं कि इस दुनिया में ऐसा कोई भी पुरुष नहीं है, जो औरत से बच सके| यदि किसी तरह किसी औरत के साथ साईं बाबा का सम्बंध बनाया जा सके, कोई औरत उसे अपने जाल में फंसा ले तो फिर साईं का पत्ता साफ|"
"साईं का तो किसी औरत से सम्बंध नहीं है| वह तो प्रत्येक स्त्री को माँ कहता है| उसके चाल-चलन के बारे में तो आज तक कोई ऐसी-वैसी बात सुनी ही नहीं गई है|" -पंडितजी ने कहा|
"नहीं है तो क्या हुआ, इस दुनिया में कौन-सा ऐसा काम है, जिसे न किया जा सके|" गणेश ने एक आँख दबाते हुए मुस्कराकर कहा - "बस पैसों की जरूरत है| यदि मेरे पास थोड़े-से रुपये होते तो मैं इस साईं को कल ही गांव से भगा दूं|"
"तुम रुपयों की चिंता बिल्कुल मत करो| ये बताओ कि साईं को भगाओगे कैसे ?" -पंडितजी ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए पूछा|
गणेश ने पंडितजी की ओर मुस्कराकर देखते हुए कहा- "जरा अपना कान इधर लाइए|"
पंडितजी अपना कान गणेश के मुंह के पास ले गये| गणेश धीरे-धीरे फुसफुसाकर उन्हें अपनी योजना समझाने लगा| पंडितजी के चेहरे से ऐसा प्रकट हो रहा था|कि जैसे वह उसकी योजना से पूरी तरह सहमत हैं|
वह उठकर अंदर चले गये और जब वापस लौटे, तो उनके हाथ में कपड़े की एक थैली थी, जो रुपयों से भरी हुई थी|
"लो गणेश !" -पंडितजी ने रुपयों की थैली गणेश की ओर बढ़ाते हुए कहा- "पूरे पांच सौ हैं|"
गणेश ने थैली झपटकर अपने झोले में रख ली और उठकर बोला- "अच्छा पंडितजी, अब आज्ञा दीजिए| चार-पांच दिन तो लग ही जायेंगें, तब आपसे मुलाकत होगी|"
"ठीक है|" पंडितजी ने कहा- "तुम रुपयों की चिंता बिल्कुल मत करना| इस साईं को गांव से निकलवाने के लिए तो मैं अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता हूं|"
गणेश मुस्कराया और फिर चल दिया|