शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Thursday, 31 March 2022

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 50

 ॐ सांई राम



आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साँँईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम  घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 50

काकासाहेब दीक्षित, श्री. टेंबे स्वामी और बालाराम धुरन्धर की कथाएँ ।
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मूल सच्चिरत्र के अध्याय 39 और 40 को हमने एक साथ सम्मिलित कर लिखा है, क्योंकि इन दोनों अध्यायों का विषय प्रायः एक-सा ही है ।

प्रस्तावना
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उन श्री साई महाराज की जय हो, जो बक्तों के जीवनाधार एवं सदगुरु है । वे गीताधर्म का उपदेश देकर हमें शक्ति प्रदान कर रहे है । हे साई, कृपादृष्टि से देखकर हमें आशीष दो । जैसे मलयगिरि में होनेवाला चन्दनवृक्ष समस्त तापों का हरण कर लेता है अथवा जिस प्रकार बादल जलवृष्टि कर लोगों को शीतलता और आनन्द पहुँचाते है या जैसे वसन्त में खिले फूल ईश्वरपूजन के काम आते है, इसी प्रकार श्री साईबाबा की कथाएँ पाठकों तथा श्रोताओं को धैर्य एवं सान्त्वना देती है । जो कथा कहते या श्रवण करते है, वे दोनों ही धन्य है, क्योंकि उनके कहने से मुख तथा श्रवण से कान पवित्र हो जाते है ।
यह तो सर्वमान्य है कि चाहे हम सैकड़ों प्रकार की साधनाएँ क्यों न करे, जब तक सदगुरु की कृपा नहीं होती, तब तक हमेंअपने आध्यात्मिक ध्येय की प्राप्ति नहीं हो सकती । इसी विषय में यह निम्नलिखित कथा सुनिये :-


काकासाहेब दीक्षित (1864-1926)
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श्री हरि सीताराम उपनाम काकासाहेब दीक्षित सन् 1864 में वड़नगर के नागर ब्राहमण कुल में खणडवा में पैदा हुए थे । उनकी प्राथमिक शिक्षा खण्डवा और हिंगणघाट में हुई । माध्यमिक सिक्षा नागुर में उच्च श्रेणी में प्राप्त कने के बाद उन्होंने पहले विल्सन तथा बाद में एलफिन्स्टन काँलेज में अध्ययन किया । सन् 1883 में उन्होंने ग्रेज्युएट की डिग्री लेकर कानूनी (L. L. B.) और कानूनी सलाहकार (Solicitor) की परीक्षाएँ पास की और फिर वे सरकारी सालिसिटर फर्म-मेसर्स लिटिल एण्ड कम्पनी में कार्य करने लगे । इसके पश्चात उन्होंने स्वतः की एक साँलिसिटर फर्म चालू कर दी ।

सन् 1909 के पहले तो बाबा की कीर्ति उनके कानों तक नहीं पहुँची थी, परन्तु इसके पश्चात् वे शीघ्र ही बाबा के परम भक्त बन गये । जब वे लोनावला में निवास कर रहे थे तो उनकी अचानक भेंट अपने पुराने मित्र नानासाहेब चाँदोरकर से हुई । दोनों ही इधर-उधर की चर्चाओं में समय बिताते थे । काकासाहेब ने उन्हें बताया कि जब वे लन्दन में थे तो रेलगाड़ी पर चढ़ते समय कैसे उनका पैर फिसला तथा कैसे उसमें चोट आई, इसका पूर्ण विवरण सुनाया । काकासाहेब ने आगे कहा कि मैंने सैकड़ो उपचार किये, परन्तु कोई लाभ न हुआ । नानासाहेब ने उनसे कहा कि यदि तुम इस लँगड़ेपन तथा कष्ट से मुक्त होना चाहते हो तो मेरे सदगुरु श्री साईबाबा की शरण में जाओ । उन्होंने बाबा का पूरा पता बताकर उनके कथन को दोहराया कि मैं अपने भक्त को सात समुद्रों के पास से भी उसी प्रकार खींच लूँगा, जिस प्रकार कि एक चिड़िया को जिसका पैर रस्सी से बँधा हो, खींच कर अपने पास लाया जाता है । उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि तुम बाबा के निजी जन न होगे तो तुम्हें उनके प्रति आकर्षण भी न होगा और न ही उनके दर्शन प्राप्त होंगे । काकासाहेब को ये बातें सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने कहा, वे शिरडी जाकर बाबा से प्रार्थना करेंगे कि शारीरिक लँगड़ेपन के बदले उनके चंचल मन को अपंग बनाकर परमानन्द की प्राप्त करा दे ।

कुछ दिनों के पश्चात् ही बम्बई विधान सभा (Legislative Assembly) के चुनाव में मत प्राप्त करने के सम्बन्ध में काकासाहेब दीक्षित अहमदनगर गये और सरदार काकासाहेब मिरीकर के यहां ठहरे । श्री. बालासाहेब मिरीकर जो कि कोपरगाँव के मामलतदार तथा काकासाहेब मिरीकर के सुपत्र थे, वे भी इसी समय अश्वप्रदर्शनी देखने के हेतु अहमदनगर पधारे थे । चुनाव का कार्य समाप्त होने के पश्चात काकासाहेब दीक्षित शिरडी जाना चाहते थे । यहाँ पिता और पुत्र दोनों ही घर में विचार कर रहे थे कि काकासाहेब के साथ भेजने के लिये कौन सा व्यक्ति उपयुक्त होगा और दूसरी ओर बाबा अलग ही ढंग से उन्हें अपने पास बुलाने का प्रबन्ध कर रहे थे । शामा के पास एक तार आया कि उनकी सास की हालत अधिक शोचनीय है और उन्हें देखने को वे शीघ्र ही अहमदनगर को आये । बाबा से अनुमति प्राप्त कर शामा ने वहां जाकर अपनी सास को देखा, जिनकी स्थिति में अब पर्याप्त सुधार हो चुका था । प्रदर्शनी को जाते समय नानासाहेब पानसे तथा अप्पासाहेब दीक्षित से भेंट करने तथा उन्हें अपने साथ शिरडी ले जाने को कहा । उन्होंने शामा के आगमन की सूचना काकासाहेब दीक्षित और मिरीकर को भी दे दी । सन्ध्या समय शामा मिरीकर के घर आये । मिरीकर ने शामा का काकासाहेब दीक्षित से परिचय कर दिया और फिर ऐसा निश्चित हुआ कि काकासाहेब दीक्षित उनके साथ रात 10 बजे वाली गाड़ी से कोपरगाँव को रवाना हो जाये । इस निश्चय के बाद ही एक विचित्र घटना घटी । बालासाहेब मिरीकर ने बाबा के एक बड़े चित्र पर से परदा हटाकर काकासाहेब दीक्षित को उनके दर्शन कराये तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जिनके दर्शनार्थ मैं शिरडी जाने वाला हूँ, वे ही इस चित्र के रुप में मेरे स्वागत हेतु यहाँ विराजमान है । तब अत्यन्त द्रवित होकर वे बाबा की वन्दना करने लगे । यह चित्र मेघा का था और काँच लगाने के लिये मिरीकर के पास आया था । दूसरा काँच लगवा कर उसे काकासाहेब दीक्षित तथा शामा के हाथ वापस शिरडी भेजने का प्रबन्ध किया गया । 10 बजे से पहले ही स्टेशन पर पहुँचकर उन्होंने द्घितीय श्रेणी का टिकट ले लिया । जब गाड़ी स्टेशन पर आई तो द्घितीय श्रेणी का डिब्बा खचाखच भरा हुआ था । उसमें बैठने को तिलमात्र भी स्थान न था । भाग्यवश गार्डसाहेब काकासाहेब दीक्षित की पहिचान के निकल आये और उन्होंने इन दोनों को प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठा दिया । इस प्रकार सुविधापू4वक यात्रा करते हुए वे कोपरगाँव स्टेशन पर उतरे । स्टेशन पर ही शिरडी को जाने वाले नानासाहेब चाँदोरकर को देखकर उनके हर्ष का पारावार न रहा । शिरडी पहुँचकर उन्होंने मसजिद में जाकर बाबा के दर्शन किये । तब बाबा कहने लगे कि मैं बड़ी देर से तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर राह था । शामा को मैंने ही तुम्हें लाने के लिये भेज दिया था । इसके पश्चात् काकासाहेब ने अनेक वर्ष बाबा की संगति में व्यतीत किये । उन्होंने शिरडी में एक वाड़ा (दीक्षित वाडा) बनवाया, जो उनका प्रायः स्थायी घर हो गया । उन्हें बाबा से जो अनुभव प्राप्त हुए, वे सब स्थानाभाव के कारण यहाँ नहीं दिये जा रहे है । पाठकों से प्रार्थना है कि वे श्री साईलीला पत्रिका के विशेषांक (काकासाहेब दीक्षित) भाग 12 के अंक 6-9 तक देखे । उनके केवल एक दो अनुभव लिखकर हम यह कथा समाप्त करेंगे । बाबा ने उन्हें आश्वासन दिया था कि अनत समय आने पर बाबा उन्हें विमान में ले जायेंगे, जो सत्य निकला । तारीख 5 जुलाई, 1926 को वे हेमाडपंत के साथ रेल से यात्रा कर रहे थे । दोनों में साईबाबा के विषय में बाते हो रही थी । वे श्री साईबाबा के ध्यान में अधिक तल्लीन हो गये, तभी अचानक उनकी गर्दन हेमाडपंत के कन्धे से जा लगी । और उन्होंने बिना किसी कष्ट तथा घबराहट के अपनी अंतिम श्वास छो़ड़ दी ।


श्री. टेंबे स्वामी
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अब हम द्घितीय कथा पर आते है, जिससे स्पष्ट होता है कि सन्त परस्पर एक दूसरे को किस प्रकार भ्रतृवत् प्रेम किया करते है । एक बार श्री वासुदेवानन्द सरस्वती, जो श्री. टेंबे स्वामी के नाम से प्रसिदृ है, ने गोदावरी के तीर पर रामहेन्द्री में आकर डेरा डाला । वे भगवान दत्तात्रेय के कर्मकांडी, ज्ञानी तात योगी भक्त थे । नाँदेड़ (निजाम स्टेट) के एक वकील अपने मित्रों के सहित उनसे भेंट करने आये और वार्तालाप करते-करते श्री साईबाबा की चर्चा भी निकल पड़ी । बाबा का नाम सुनकर स्वामी जी ने उन्हें करबदृ प्रणाम किया और पुंडलीकराव (वकील) को एक श्रीफल देकर उन्होंने कहा कि तुम जाकर मेरे भ्राता श्री साई को प्रणाम कर कहना कि मुझे न बिसरे तथा सदैव मुझ पर कृपा दृष्टि रखें । उन्होंने यह भी बतलाया कि सामान्यतः एक स्वामी दूसरे को प्रणाम नहीं करता, परन्तु यहाँ विशेष रुप से ऐसा किया गया है । श्री. पुंडलीकराव ने श्रीफल लेकर कहा कि मैं इसे बाबा को दे दूँगा तथा आपका सन्देश भी उचित था । स्वामी ने बाबा को जो भाई शब्द से सम्बोधित किया था, वह बिकुल ही उचित था । उधर स्वामी जी अपनी कर्मकांडी पदृति के अनुसार दिनरात अग्नहोत्र प्रज्वलित रखते थे और इधर बाबा की धूनी दिन रात मसजिद में जलती रहती थी

एक मास के पश्चात ही पुंडलीकराव अन्य मित्रों सहित श्रीफल लेकर शिरडी को रवाना हुये । जब वे मनमाड पहुँचे तो प्यास लगने के कारम एक नाले पर पानी पीने गये । खाली पेट पानी न पीना चाहिये, यह सोचकर उन्होंने कुछ चिवड़ा खाने को निकाल, जो खाने में कुछ अधिक तीखा-सा प्रतीत हुआ । उसका तीखापन कम करने के लिये किसी ने नारियल फोड़ कर उसमें खोपरा मिला दिया और इस तरह उन लोगों ने चिवड़ा स्वादिष्ट बनाकर खाया । अभाग्यवश जो नारियल उनके हाथ से फूटा, वह वही था, जो स्वामीजी ने पुंजलीकराव को भेंट में देने को दिया था । शिरडी के समीप पहुँचने पर उन्हें नारियल की स्मृति हो आई । उन्हें यह जानकर बड़ा ही दुख हुआ कि भेंट स्वरुप दिये जाने वाला नारियल ही फोड़ दया गया है । डरते-डरते और काँपते हुए वे शिरडी पहुँचे और वहाँ जाकर उन्होंने बाबा के दर्शन किये । बाबा को तो यहाँ नारियल के सम्बन्ध में स्वामी से बेतार का तार प्राप्त हो चुका था । इसीलिये उन्होंने पहले से ही पुंडलीकराव से प्रश्न किया कि मेरे भाई की भेजी हुई वस्तु लाओ । उन्होंने बाबा के चरण पकड़ कर अपना अपराध स्वीकार करते हुये अपनी चूक के लिये उनसे क्षमा याचना की । वे उसके बदले में दूसरा नारियल देने को तैयार थे, परन्तु बाबा ने यह कहते हुए उसे अस्वीकार कर दिया कि उस नारियल का मूल्य इस नारियल से कई गुना अधिक था और उसकी पूर्ति इस साधारण नारियल से नहीं हो सकती । फिर वे बोले कि अब तुम कुछ चिन्ता न करो । मेरी ही इच्छा से वह नारियल तुम्हें दिया गया तथा मार्ग में फोड़ा गया है । तुम स्वयं में कर्तापन की भावना क्यों लाते हो । कोई भी श्रेष्ठ या कनिष्ठ कर्म करते समय अपने को कर्ता न जानकर अभिमान तता अहंकार से परे होकर ही कार्य करो, तभी तुम्हारी द्रुत गति से प्रगति होगी । कितना सुन्दर उनका यह आध्यात्मिक उपदेश था ।

बालाराम धुरन्धर
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सान्ताक्रूज, बम्बई के श्री. बालाराम धुरन्धर प्रभु जाति के एक सज्जन थे । वे बम्बई के उच्च न्यायालय में एडवोकेट थे तथा किसी समय शासकीय विधि विघालय (Govt. Law School) और बम्बई के प्राचार्य (Principal) भी थे । उनका सम्पूर्ण कुटुम्ब सात्विक तथा धार्मिक था । श्री बालाराम ने अपनी जाति की योग्य सेवा की और इस सम्बन्ध में एक पुस्तक भी प्रकाशित कराई । इसके पश्चात् उनका ध्यान आध्यात्मिक और धार्मिक विषयों पर गया । उन्होंने ध्यानपूर्वक गीता, उसकी टीका ज्ञानेश्वरी तथा अन्य दार्शनिक ग्रन्थों पर अध्ययन किया । वे पंढरपुर के भगवान विठोबा के परम भक्त ते । सन् 1912 में उन्हें श्री साईबाबा के दर्शनों का लाभ हुआ । छः मास पूर्व उनके भाई बाबुलजी और वामनराव ने शिरडी आकर बाबा के दर्शन किये थे और उन्होंने घर लौटकर अपने मधुर अनुभव भी श्री. बालाराम व परिवार के अन्य लोगों को सुनाये । तब सब लोगों ने शिरडी जाकर बाबा के दर्शन करने का निश्चय किया । यहाँ शिरडी में उनके पहुँचने के पूर्व ही बाबा ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि आज मेरे बहुत से दरबारीगण आ रहे है । अन्य लोगों द्घारा बाबा के उपरोक्त वचन सुनकर धुरन्धर परिवार को महान् आश्चर्य हुआ । उन्होंने अपनी यात्रा के सम्बन्ध में किसी को भी इसकी पहले से सूचना न दी थी । सभी ने आकर उन्हें प्रणाम किया और बैठकर वार्तालाप करने लगे । बाबा ने अन्य लोगों को बतलाया कि ये मेरे दरबारीगण है, जिनके सम्बन्ध में मैंने तुमसे पहले कहा था । फिर धुरन्धर भ्राताओं से बोले कि मेरा और तुम्हारा परिचय 60 जन्म पुराना है । सभी नम्र और सभ्य थे, इसलिये वे सब हाथ जोड़े हुए बैठे-बैठे बाबा की ओर निहारते रहे । उनमें सब प्रकार के सात्विक भाव जैसे अश्रुपात, रोमांच तथा कण्ठावरोध आदि जागृत होने लगे और सबको बड़ी प्रसननता हुई । इसके पश्चात वे सब अपने निवासस्थान पर भोजन को गये और भोजन तथा थोड़ा विश्राम लेकर पुनः मसजिद में आकर बाबा के पांव दबाने लगे । इस समय बाबा चिलम पी रहे थे । उन्होंने बालाराम को भी चिलम देकर एक फूँक लगाने का आग्रह किया । यघपि अभी तक उन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया था, फिर भी चिलम हाथ में लेकर बड़ी कठिनाई से उन्होंने एक फूँक लगाई और आदरपूर्वक बाबा को लौटा दी । बालाराम के लिये तो यह अनमोल घडी थी । वे 6 वर्षों से श्वास-रोग से पीड़ित थे, पर चिलम पीते ही वे रोगमुक्त हो गये । उन्हें फिर कभी यह कष्ट न हुआ । 6 वर्षों के पश्चात उन्हें एक दिन पुनः श्वास रोग का दौरा पड़ा । यह वही महापुण्यशाली दिन था, जब कि बाबा ने महासमाधि ली । वे गुरुवार के दिन शिरडी आये थे । भाग्यवश उसी रात्रि को उन्हें चावड़ी उत्सव देखने का अवसर मिल गया । आरती के समय बालाराम को चावड़ी में बाबा का मुखमंडल भगवान पंडुरंग सरीखा दिखाई पड़ा । दूसरे दिन कांकड़ आरती के समय उन्हें बाबा के मुखमंडल की प्रभा अपने परम इष्ट भगवान पांडुरंग के सदृश ही पुनः दिखाई दी ।
श्री बालाराम धुरन्धर ने मराठी में महाराष्ट्र के महान सन्त तुकाराम का जीवन चरित्र लिखा है, परन्तु खेद है कि पुस्तक प्रकाशित होने तक वे जीवित न रह सके । उनके बन्धुओं ने इस पुस्तक को सन् 1928 में प्रकाशित कराया। इस पुस्तक के प्रारम्भ में पृष्ठ 6 पर उनकी जीवनी से सम्बन्धित एक परिक्षेपक में उनकी शिरडी यात्रा का पूरा वर्णन है ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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Wednesday, 30 March 2022

मेरे मन दिल किसी का ना दुखा

ॐ सांई राम



 मेरे मन दिल किसी का ना दुखा,
भले ही ऱब को तू मना ना मना,

न जा मंदिर, न दीपक जला ,
पर किसी को यूं ही न सता ,
आंसू कही जो तेरे कारण बहे ,
न सोच कि तू बच जाएगा ,
ये आंसू नहीं दरिया है पाप के,
जिसमें तू गोते खाएगा ,
छटपटाएगा, चिल्लाएगा ,
पर कोई ना बचाएगा ,
तेरी करनी क्या रंग लाए ,
ये तो ऱब ही तुझे बताएगा

-: आज का साईं सन्देश :-
बहिखाते बढ़िया लिखें,
बहुत बड़े विद्वान् ।
महाकाव्य रचना करें,
साईं चरित बखान ।।
 
आत्म निवेदन होय कस,
शरणागति समझाय ।
ज्ञान,भक्ति,वैराग्य की,
महिमा दी बतलाय ।।

Tuesday, 29 March 2022

कान्हा बन के जो आओ साईं राम तो प्यारी राधे रानी भी संग लाना

ॐ सांई राम



 कान्हा बन के जो आओ साईं राम तो प्यारी राधे रानी भी संग लाना 
इक अर्ज़ी मेरे घनश्याम के प्यारी राधे रानी भी संग लाना


लिख दी है मैं बस अपने दिल से तुमको साईंजी इक अर्ज़ी
मानो न मानो जानो न जानो आगे तुम्हारी है मर्ज़ी
तेरा होगा ये बड़ा ये एहसान के प्यारी राधे रानी भी संग लाना
कान्हा बन के जो आओ साईं राम तो प्यारी राधे रानी भी संग लाना

गैयन का ग्वाला बन के जो आना मुरली की धुन फिर सुनाना
नटखट झट से मटकी जो फोड़ो माखन मुझे ही खिलाना
जब छेड़ो कोई मुरली की तान तो प्यारी राधे रानी भी संग लाना
कान्हा बन के जो आओ साईं राम तो प्यारी राधे रानी भी संग लाना

राधा बिना कान्हा होली न खेले कान्हा बिना राधा रानी
होली खेलो संग हमरे ओ साईं रंगों में रंग जाये दीवानी
जब हाथों में हो थोडा सा गुलाल, जब रंगों में हो साईं का कमाल
तो प्यारी राधे रानी भी संग लाना
कान्हा बन के जो आओ साईं राम तो प्यारी राधे रानी भी संग लाना
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-: आज का साईं सन्देश :-
राजवंशी राजा हुए,
यादव वंश सुहाय |
देवगिरी राजा बड़े,
महादेव कहलाय ||

हेमान्द्री से राज सचिव,
उच्च कोटि विद्वान् |
मैं मूरख व मन्दमति,
मुझे न कोई जान ||
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Monday, 28 March 2022

साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा

ॐ सांई राम


 साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा
इन वचनों को समझ सके तो, चैन तू मनवा पायेगा
साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा

शिर्डी पावन भूमि इस पर, पाँव रखेगा जो आके
तत्क्षण उसके पाप मिटेंगे, लौटेगा वो हर वर पाके
जो भी चढ़ेगा समाधि मेरी, उसका दुःख मिट जायेगा
साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा

छोड़ गया मैं देह परन्तु, आऊँगा भक्तों के लिये
सिद्धिदायिनी मेरी समाधि, दृढ विश्वास तू रख इसमें
नित्य हूँ जीवित सत्य यही है, भक्त ये अनुभव पायेगा
साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा

मेरी शरण में आके सवाली, लौटा कभी नहीं कोई खाली
मुझ को भजे जिस भाव से जो भी, पाये मुझे उस भाव में ही
सत्य वचन है मत कर संशय, साईं तेरा भार उठायेगा
साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा

मदद मिलेगी सब को ही जानो, पायेगा जो भी माँगेगा
मन मन वचन से जो है मेरा, ऋणी हूँ सदा ही मैं उसका
धन्य है वो जो भिन्न न मुझसे, मुझ में वो आन समायेगा
साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा

साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा
इन वचनों को समझ सके तो, चैन तू मनवा पायेगा
साईं ने दिये जो ग्यारह वचन वो, तू पढ़ ले तर जायेगा


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-: आज का साईं सन्देश :-  
बाबाजी की बात सुन, वे अचरज कर जाय |
वाड़े वाली बात को, साईं कैसे पाय ||
'हेमांड पन्त' नाम से, बाबाजी बुलवाय |
'हेमांद्री' सा नाम पा, गोविन्द जी चकराय ||
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Sunday, 27 March 2022

दुनिया का उद्धार करने आये मेरे साईं जी

ॐ सांई राम


कलयुग में अवतार लेके आये मेरे साईं जी
दुनिया का उद्धार करने आये मेरे साईं जी

सतयुग में ये नरसिंह थे और त्रेता में श्री राम
द्वापर में ये कृष्ण भये कलयुग में साईं भगवान्
इस युग का आधार बनके आये मेरे साईं जी
राम, कृष्ण का सार लेके आये मेरे साईं जी
कलयुग में अवतार लेके आये मेरे साईं जी
दुनिया का उद्धार करने आये मेरे साईं जी

साईं जी साईं जी मेरे प्यारे साईं जी

कलयुग में अवतार लिया तो पहुंचे शिर्डी धाम
सबका मालिक एक है भेजा दुनिया को पैग़ाम
दर्शन दे दो अब तो साईं अखियाँ क्यों तरसाई रे
दर्शन करने सारी दुनिया तुमरे दर पे आई रे
कलयुग में अवतार लेके आये मेरे साईं जी
दुनिया का उद्धार करने आये मेरे साईं जी

साईं जी साईं जी मेरे प्यारे साईं जी

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-: आज का साईं सन्देश :-

वे दोनों मस्जिद गये,
बाबा बैठे आय |
साईं कहते प्रेम से,
बहस न करना भाय ||

वाड़े साठे बैठकर,
काहे बहस कराय |
बात कहे हेमांड जो,
मुझको दो समझाय ||
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Saturday, 26 March 2022

गुरुदेव मेरे गुरुदेव मेरे, सब रंग तेरे रंगरेज तेरे

ॐ साईं राम



गुरुदेव मेरे गुरुदेव मेरे, सब रंग तेरे रंगरेज तेरे
मुझ दीन के घर जब आओगे,स्वागत में पलक बिछाऊंगा

अँसुवन जल से पग धोऊंगा, और धो धो कर पी जाऊँगा
तू लेकर अपनी शरण मुझे, फिर चाहे जिस रंग में रंग दे
रंगरेज मेरे सब रंग तेरे, गुरुदेव मेरे गुरुदेव मेरे
जाने कितने दिन बाद मैने, यह अपना भवन बुहारा है
तुमको कोई भी कष्ट न हो, इस तरह से इसे संवारा है
इच्छा है मेरी यही प्रभु, तुम मुझको अब तो अपना लो
गुरुदेव मेरे गुरुदेव मेरे, सब रंग तेरे रंगरेज मेरे
तुम सारे जग के मालिक हो,तुम तो घट घट के वासी हो
तुमको ये कहाँ पसंद, किसी के चेहरे चढ़ी उदासी हो
हे देव अगर संभव हो तो,इन आंखो को दर्शन दे दो
तू ले कर अपनी शरण मुझे,फिर चाहे जिस रंग में रंग दो
गुरु देव मेरे सब रंग तेरे रंगरेज मेरे सब रंग तेरे 
 
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-: आज का साईं सन्देश :-
ठहरे शिर्डी पन्त जी,
घर साठे का होय |
बाबा साहब भी रहें,
चर्चा करते दोय ||

गुरु काहे को चाहिये,
मेरे मन का भाय |
बिना गुरु जीवन नहीं,
बालाजी बतलाय ||
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Friday, 25 March 2022

एक वक़्त आयेगा ऐसा सब धरा रह जायेगा

ॐ साईं राम


एक वक़्त आयेगा ऐसा सब धरा रह जायेगा
देखता तू क्या है इक दिन देखता रह जायेगा

रब से ग़फलत छोड़ कब से है अजब मस्ती में तू
आने वाली है क़यामत बैठ जा कश्ती में तू
साईं के बन्दों का बस इक काफला रह जायेगा
एक वक़्त आयेगा ऐसा सब धरा रह जायेगा

वो है इक गहरा समंदर तू मैं मिट्टी की लकीर
तूने गर उसको न पाया वो अमीर और तू फकीर
तेरे उसके दरमियाँ इक फासला रह जायेगा
एक वक़्त आयेगा ऐसा सब धरा रह जायेगा

उसके क़दमों से लिपट जा जिंदगी मिल जायेगी
रास्ते में है अँधेरा रौशनी मिल जायेगी
अक्ल वाला चल पड़ेगा सरफिरा रह जायेगा
एक वक़्त आयेगा ऐसा सब धरा रह जायेगा

रात दिन की इस तपस्या को भी क्या समझेगा तू
ना-समझ बन कर अगर ख़ुद को खुदा समझेगा तू
ढूँढने निकला है जिसको ढूँढता रह जायेगा
एक वक़्त आयेगा ऐसा सब धरा रह जायेगा

तू फ़क़त साईं का बन जिसका कोई मज़हब नहीं
जिसने अपने चाहने वालों को चाहा कब नहीं
आसरा रख वर्ना तू बे-आसरा रह जायेगा
एक वक़्त आयेगा ऐसा सब धरा रह जायेगा

एक वक़्त आयेगा ऐसा सब धरा रह जायेगा
देखता तू क्या है इक दिन देखता रह जायेगा

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-: आज का साईं सन्देश :-
जो साईं दर्शन करे,
पाप कर्म धुल जाय |
सदविचार मन में उठे,
बाबा भक्ति पाय ||

पुण्य किये पिछले जनम,
दर्शन उसको होय |
देख नज़र भर साईं को.
जग साईं मय होय ||

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Thursday, 24 March 2022

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 49

ॐ सांई राम जी 



श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 49


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम  घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 49

हरि कानोबा, सोमदेव स्वामी, नानासाहेब चाँदोरकर की कथाएँ ।
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प्रस्तावना
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जब वेद और पुराण ही ब्रहमा या सदगुरु का वर्णन करने में अपनी असमर्थता प्रगट करते है, तब मैं एक अल्पज्ञ प्राणी अपने सदगुरु श्रीसाईबाबा का वर्णन कैसे कर सकता हूँ । मेरा स्वयं का तो यतह मत है कि इस विषय में मौन धारण करना ही अति उत्तम है । सच पूछा जाय तो मूक रहना ही सदगुरु की विमल पताकारुपी विरुदावली का उत्तम प्रकार से वर्णन करना है । परन्तु उनमें जो उत्तम गुण है, वे हमें मूक कहाँ रहने देत है । यदि स्वादिष्ट भोजन बने और मित्र तथा सम्बन्धी आदि साथ बैठकर न खायेंतो वह नीरस-सा प्रतीत होता है और जब वही भोजन सब एक साथ बैठकर खाते है, तब उसमें एक विशेष प्रकार की सुस्वादुता आ जाती है । वैसी ही स्थिति साईलीलामृत के सम्बन्ध में भी है । इसका एकांत में रसास्वादन कभी नहीं हो सकता । यदि मित्र और पारिवारिक जन सभी मिलकर इसका रस लें तो और अधिक आनन्द आ जाता है । श्री साईबाबा स्वयं ही अंतःप्रेरणा कर अपनी इच्छानुसार ही इन कथाओं को मुझसे वर्णित कर रहे है । इसलिये हमारा तो केवल इतना ही कर्तव्य है कि अनन्यभाव से उनके शरणागत होकर उनका ही ध्यान करें । तप-साधन, तीर्थ यात्रा, व्रत एवं यज्ञ और दान से हरिभक्ति श्रेष्ठ है और सदगुरु का ध्यान इन सबमें परम श्रेष्ठ है । इसलिये सदैव मुख से साईनाम का स्मरण कर उनके उपदेशों का निदिध्यासन एवं स्वरुप का चिनत्न कर हृदय में उनके प्रति सत्य और प्रेम के भाव से समस्त चेष्टाएँ उनके ही निमित्त करनी चाहिये । भवबन्धन से मुक्त होने का इससे उत्तम साधन और कोई नहीं । यदि हम उपयुक्त विधि से कर्म करते जाये तो साई को विवश होकर हमारी सहायता कर हमें मुक्ति प्रदान करनी ही पड़ेगी । अब इस अध्याय की कथा श्रवण करें ।


हरि कानोबा
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बम्बई के हरि कानोबा नामक एक महानुभाव ने अपने कई मित्रों और सम्बन्धियों से साई बाबा की अनेक लीलाऐं सुनी थी, परन्तु उन्हें विश्वास ही न होता था, क्योंकि वे संशयालु प्रकृति के व्यक्ति थे । अविश्वास उनके हृदयपटल पर अपना आसन जमाये हुये था । वे स्वयं बाबा की परीक्षा करने का निश्चय करके अपने कुछ मित्रों सहित बम्बई से शिरडी आये । उन्होंने सिर पर एक जरी की पगड़ी और पैरों में नये सैंडिल पहिन रखे थे । उन्होंने बाबा को दूर से ही देखकर उनके पास जाकर उन्हें प्रणाम तो करना चाहा, परन्तु उनके नये सैंडिल इस कार्य में बाधक बन गये । उनकी समझ में नही आ रहा था कि अब क्या किया जाय । तब उन्होंने अपने सैंडिल मंडप क एक सुरक्षित कोने में रखे और मसजिद में जाकर बाबा के दर्शन किये । उनका ध्यान सैंडिलों पर ही लगा रहा । उन्होंने बड़ी नम्रतापूर्वक बाबा को प्रणाम किया और उनसे प्रसाद और उदी प्राप्त कर लौट आये । पर जब उन्होंने कोने में दृष्टि डाली तो देखा कि सैंडिल तो अंतद्घार्न हो चुके है । पर्याप्त छानबीन भी व्यर्थ हुई और अन्त में निराश होकर वे अपने स्थान पर वापस आ गये ।

स्नान, पूजन और नैवेघ आदि अर्पित करक वे भोजन करने को तो बैठे, परन्तु वे पूरे समय तक उन सैंडिलों के चिन्तन में ही मग्न रहे । भोजन कर मुँह-हाथधोकर जब वे बाहर आये तो उन्होंने एक मराठा बालक को अपनी ओर आते देखा, जिसके हाथ में डण्डे के कोने पर एक नये सैंडिलों का जोड़ा लटका हुआ था । उस बालक ने हाथ धोने के लिये बाहर आने वाले लोगों से कहा कि बाबा ने मुझे यह डण्डा हाथ में देकर रास्तों में घूम-गूम कर हरि का बेटा जरी का फेंटा की पुकार लगाने को कहा है तथा जो कोई कहे कि सैंडिल हमारे है, उससे पहले यह पूछना कि क्या उसका नाम हरि और उसके पिता का क (अर्थात् कानोबा) है । साथ ही यह भी देखना कि वह जरीदार साफा बाँधे हुए है या नही, तब इन्हें उसे दे देना । बालक का कथन सुनकर हरि कानोबा को बेहद आनन्द व आश्चर्य हुआ । उन्होंने आगे बढ़कर बालक से कहा कि ये हमारे ही सैंडिल है, मेरा ही नाम हरि और मैं ही क (कानोबा) का पुत्र हूँ । यह मेरा जरी का साफा देखो । बालक सन्तुष्ट हो गया और सैंडिल उन्हें दे दी । उन्होंने सोचा कि मेरी जरी का साफा देखो । बालक सन्तुष्ट हो गया और सैंडिल उन्हें दे दी । उन्होंने भी सोचा कि मेरी जरीदार पगड़ी तो सब को ही दिख रही थी । हो सकता है कि बाबा की भी दृष्टि में आ गई हो । परन्तु यह मेरी शिरडी-यात्रा का प्रथम अवसर है, फिर बाबा को यह कैसे विदित हो गया कि मेरा ही नाम हरि है और मेरे पिता का कानोबा । वहतो केवल बाबा की परीक्षार्थ वहाँ आया था । उसे इस घटना से बाबा की महानता विदित हो गई । उसकी इच्छा पूर्ण हो गई और वह सहर्ष घर लौट गया ।
सोमदेव स्वामी
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अब एक दूसरे संशयालु व्यक्ति की कथा सुनिये, जो बाबा की परीक्षा करने आया था । काकासाहेब दीक्षित के भ्राता श्री. भाईजी नागपुर में रहते थे । जब वे सन् 1906 में हिमालय गये थे, तब उनका गंगोत्री घाटी के नीचे हरिद्घार के समीप उत्तर काशी में एक सोमदेव स्वामी से परिचय हो गया । दोनों ने एक दूसरे के पते लिख लिये । पाँच वर्ष पश्चात् सोमदेव स्वामी नागपुर में आये और भाईजी के यहां ठहरे । वहाँ श्री साईबाबा की कीर्ति सुनकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई तथा वहाँ श्री साईबाबा के दर्शन करने की तीव्र उत्कंठा हुई । मनमाड और कोपरगाँव निकल जाने पर वे एक ताँगे में बैठकर शिरडी को चल पड़े । शिरडी के समीप पहुँचने पर उन्होंने दूर से ही मसजिद पर दो ध्वज लहरते देखे । सामान्यतः देखने में आता है कि भिन्न-भिन्न सन्तों का बर्ताव, रहन-सहन और बाहृ सामग्रियाँ प्रायः भिन्न प्रकार की ही रहा करती है । परन्तु केवल इन वस्तुओं से ही सन्तों की योग्यता का आकलन कर लेना बड़ी भूल है । सोमदेव स्वामी कुछ भिन्न प्रकृति के थे । उन्होंने जैसे ही ध्वजों को लहराते देखा तो वे सोचने लगे कि बाबा सन्त होकर इन ध्वजों में इतनी दिलचस्पी क्यों रखते है । क्या इससे उनका सन्तपन प्रकट होता है । ऐसा प्रतीत होता है कि यह सन्त अपनी कीर्ति का इच्छुक है । अतएव उन्होंने शिरडी जाने का विचार त्याग कर अपने सहयात्रियों से कहा कि मैं तो वापस लौटना चाहता हूँ । तब वे लोग कहने लगे कि फिर व्यर्थ ही इतनी दूर क्यों आये । अभी केवल ध्वजों को देखकर तुम इतने उद्गिग्न हो उठे हो तो जब शिरडी में रथ, पालकी, घोड़ा और अन्य सामग्रियाँ देखोगे, तब तुम्हारी क्या दशा होगी । स्वामी को अब और भी अधिक घबराहट होने लगी और उसने काह कि मैंने अनेक साधु-सन्तों के दर्शन किये है, परन्तु यह सन्त कोई बिरला ही है, जो इस प्रकार ऐश्वर्य की वस्तुएँ संग्रह कर रहा है । ऐसे साधु के दर्शन न करना ही उत्तम है, ऐसा कहकर वे वापस लौटने लगे । तीर्थयात्रियों ने प्रतिरोध करते हुए उन्हें आगे बढ़ने की सलाह दी और समझाया कि तुम यह संकुचित मनोवृत्ति छोड़ दो । मसजिद में जो साधु है, वे इन ध्वजाओं और अन्य सामग्रियों या अपनी कीर्ति का स्वप्न में भी सोचविचार नहीं करते । ये सब तो उनके भक्तगण प्रेम और भक्ति के कारण ही उनको भेंट किया करते है । अन्त में वे शडी जाकर बाबा के दर्शन करने को तैयार हो गये । मसजिद के मंडप में पहुँच कर तो वे द्रवित हो गये । उनकी आँखों से अश्रुधारा बहले लगी और कंठ रुँध गया । अब उनके सब दूषित विचार हवा हो गये और उन्हें अपने गुरु के शब्दों की स्मृति हो आई कि मन जहाँ अति प्रसन्न औ आकर्षित हो जाय, उसी स्थान को ही अपना विश्रामधाम समझना । वे बाबा की चरण-रज में लोटना चाहते थे, परन्तु वे उनके समीप गये तो बाबा एकदम क्रोधित होकर जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगे कि हमारा सामान हमारे ही साथ रहने दो, तुम अपने घर वापस लौट जाओ । सावधान । यदि फिर कभी मसजिद की सीढ़ी चढ़े तो । ऐसे संत के दर्शन ही क्यों करना चाहिये, जो मसजिद पर ध्वजायें लगाकर रखे । क्या ये सन्तपन के लक्षण है । एक क्षण भी यहाँ न रुको । अब उसे अनुभव हो गया कि बाबा ने अपने हृदय की बात जान ली है और वे कितने सर्वज्ञ है । उसे अपनी योग्यता पर हँसी आने लगी तथा उसे पता चल गया कि बाबा कितने निर्विकार और पवित्र है । उसने देखा कि वे किसी को हृदय से लगाते और किसी को हाथ से स्पर्श करते है तथा किसी को सान्तवना देकर प्रेमदृष्टि से निहारते है । किसी को उदी प्रसाद देकर सभी प्रकार से भक्तों को सुख और सन्तोष पहुँचा रहे है तो फिर मेरे साथ ऐसा रुक्ष बर्ताव क्यों । अधिक विचार करने पर वे इसी निष्कर्ष पर पहुँचे कि इसका कारण मेरे आन्तरिक विचार ही थे और इससे शिक्षा ग्रहण कर मुझे अपना आचरण सुधारना चाहिये । बाबा का क्रोध तो मेरे लिये वरदानस्वरुप है । अब यह कहना व्यर्थ ही होगा, कि वे बाबा की शरण मे आ गये और उनके एक परम भक्त बन गये ।


नानासाहेब चाँदोरकर
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अन्त में नानासाहेब चाँदोरकर की कथा लिखकर हेमाडपंत ने यह अध्याय समाप्त किया है । एक समय जब नानासाहेब म्हालसापति और अन्य लोगों के साथ मसजिद में बैठे हुए थे तो बीजापुर से एक सम्भ्रान्त यवन परिवार श्री साईबाबा के दर्शनार्थ आया । कुलवन्तियों की लाजरक्षण भावना देखकर नानासाहेब वहाँ से निकल जाना चाहते थे, परन्तु बाबा ने उन्हे रोक लिया । स्त्रियाँ आगे बढ़ी और उन्होंने बाबा के दर्शन किये । उनमें से एक महिला ने अपने मुँह पर से घूँघट हटाकर बाबा के चरणों में प्रणाम कर फिर घूँघट डाल लिया । नानासाहेब उसके सौंद4य से आक4षित हो गये और एक बार पुनः वह छटा देखने को लालायित हो उठे । नाना के मन की व्यथा जानकर उन लोगों के चले जाने के पश्चात् बाबा उनसे कहने लगे कि नाना, क्यों व्यर्थ में मोहित हो रहे हो । इन्द्रयों को अपना कार्य करने दो । हमें उनके कार्य में बाधक न होना चाहिये । भगवान् ने यह सुन्दर सृष्टि निर्माण की है । अतः हमारा कर्तव्य है कि हम उसके सौन्दर्य की सराहना करें । यह मन तो क्रमशः ही स्थिर, होता है और जब सामने का द्घार खुला है, तब हमें पिछले द्घार से क्यों प्रविष्ट होना चाहिये । चित्त शुदृ होते ही फिर किसी कष्ट का अनुभव नहीं होता । यदि हमारे मन में कुविचार नहीं है तो हमें किसी से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं । नेत्रों को अपना कार्य करने दो । इसके लिये तुम्हें लज्जित तथा विचलित न होना चाहिये । उस समया शामा भी वही थे । उनकी समझ में न आया कि आखिर बाबा के कहने का तात्पर्य क्या है । इसलिये लौटते समय इस विषय में उन्होंने नाना से पूछा । उस परम सुन्दरी के सौन्दर्य को देखकर जिस प्रकार वे मोहित हुए तता यह व्यथा जानकर बाबा ने इस विषय पर जो उपदेश उन्हें दिये, उन्होंने उसका सम्पूर्ण वृतान्त उनसे कहकर शामा को इस प्रकार समझाया – हमारा मन स्वभावतः ही चंचल है, पर हमें उसे लम्पट न होने देना चाहिये । इन्द्रयाँ चाहे भले ही चंचल हो जाये, परन्तु हमें अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण रखकर उसे अशांत न होने देना चाहिये । इन्द्रियाँ तो अपने विषयपदार्थों के लिये सदैव चेष्टा कि यही करती है, पर हमें उनके वशीभूत होकर उनके इच्छित पदार्थों के समीप न जाना चाहिये । क्रमशः प्रयत्न करते रहने से इस चंचलता को नियंत्रित किया जा सकता है । यघपि उन पर पूर्ण नियंत्रण सम्भव नहीं है तो भी हमें उनके वशीभूत न होना चाहिये ।

प्रसंगानुसार हमें उनका वास्तविक रुप से उचित गति-अवरोध करना चाहिये । सौन्दर्य तो आँखें सेंकने का विषय है, इसलिये हमें निडर होकर सुन्दर पदार्थों की ओर देखना चाहिये । यदि हममें किसी प्रकार के कुविचार न आवे तो इसमें लज्जा और भय की आवश्यकता ही क्या है । यदि मन को निरिच्छ बनाकर ईश्वर के सौन्दर्य को निहारो तो इन्द्रियाँ सहज और स्वाभाविक रुप से अपने वश में आ जायेगी और विषयानन्द लेते समय भी तुम्हें ईश्वर की स्मृति बनी रहेगी । यदि उसे इन्द्रियों के पीछे दौड़ने तथा उनमें लिप्त रहने दोगे तो तुम्हारा जन्म-मृत्यु के पाश से कदापि छुटकारा न होगा । विषयपदार्थ इंद्रियों को सदा पथभ्रष्ट करने वाले होते है । अतएव हमें विवेक को सारथी बनाकर मन की लगाम अपने हाथ में लेकर इन्द्रिय रुपी घोड़ों को विषयपदार्थों की ओर जाने से रोक लेना चाहिये । ऐसा विवेक रुपी सारथी हमें विष्णु-पद की प्राप्ति करा देगा, जो हमारा यथार्थ में परम सत्य धाम है और जहाँ गया हुआ प्राणी फिर कभी यहाँ नहीं लौटता ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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Wednesday, 23 March 2022

सुनो साईं के जाप से धुल जाते हैं पाप

ॐ साईं राम



कैसी सोच में डूबे हो क्यों घबराए हो आप
सुनो साईं के जाप से धुल जाते हैं पाप

सोचना तेरा काम नहीं तू काहे होत उदास
दुनिया भर की खुशियाँ देगी साईं की अरदास
श्रद्धा से जब नाम लो उसका मिले दिलों को चैन
उसकी लीला की खुशबू है सुख दुःख के दिन रैन
चलो चलें दरबार में सभी परिवार समेत
उसकी रहमत के बिना मोती भी हैं रेत
सब कुछ उसके हाथ में है इस बात को तू न भूल
उसके एक इशारे से काँटे बनते हैं फूल
देख रहा है दूर खड़ा वो कठपुतली का नाच
वो चाहे तो पलभर में बरखा को कर दे आंच
मधुर तान दरबार की बस है असली संगीत
जितनी जल्दी हो सके तू बन जा उसका मीत

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-: आज का साईं सन्देश:-
घटना यह ऐसी घटी,
समझा मन की भूल |
साईं से श्रद्धा बढ़ी,
निकले सब भ्रमशूल ||
होते ही साईं मिलन,
शंका सब मिट जाय |
भूख प्यास जाती रही,
मन हर्षित हो जाय || 
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Tuesday, 22 March 2022

कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा

ॐ साईं राम



कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा
लेकिन ये साईं शक्ति कुछ दर्द कम करेगी
कुछ अपने सर पे लेगी कुछ तेरे सर रहेगा
कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा

आया है तू जहां से जाएगा तू वहीँ पर
पूछेगा आसमां जब तूने क्या किया ज़मीं पर
तू अभी से सोच रखियो, उसे क्या जवाब देगा
कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा

औरों को क्या दिया है औरों से क्या लिया है
शिकवों के साथ तूने कभी शुक्र भी किया है
जिस दिन हिसाब होगा उस वक़्त क्या करेगा 
कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा

तन की सजावटों में जो मन को भूल बैठा
समझो के अपने साईं भगवन को भूल बैठा
तेरा ये हाल है तो इसी हाल में रहेगा
कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा

लेकिन ये साईं शक्ति कुछ दर्द कम करेगी
कुछ अपने सर पे लेगी कुछ तेरे सर रहेगा
कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा
तुझे भोगना पड़ेगा तुझे भोगना पड़ेगा तुझे भोगना पड़ेगा

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-: आज का साईं सन्देश :-

दीक्षित जी, चांदोरकर,
ये दो मन के मीत | 
बार बार मुझसे कहें ,
गाओ साईं गीत ||

कई बार विनती करें,
घर पर मेरे आय |
बाबा दर्शन लाभ को,
शिर्डी मुझे भिजाय ||

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Monday, 21 March 2022

बाबाजी ने सुनी है मेरी पुकार, बुलाया है मुझे अपने दरबार,

ॐ साईं राम



बाबाजी  ने  सुनी  है  मेरी  पुकार,
बुलाया  है  मुझे  अपने  दरबार,

दरबार  में साईं  जी  के,
हर  पाप  मिट  जाते  है,
अपने  दुखो  को  भूलकर,
खुशियाँ  हम  पाते  है,
साईं  के  दरबार  में,
आता  है  मुझे  करार,
इसीलिए  बाबाजी  से  मैंने,
की  थी  फरियाद,


बाबाजी  ने  सुनी  है  मेरी  पुकार,
बुलाया  है  मुझे  अपने  दरबार ,

समाधी  मंदिर  जाकर,
दर्शन  साईं  के  पाऊँगी,
अपना  सब  हाल  बाबा  को  सुनाऊंगी,
बस  एक  बाबा  ही  तो,
सुनते  है  मेरी  फरियाद ,
और  क्यों  जाऊं   मैं,
किसी  और  के  द्वार,

बाबाजी  ने  सुनी  है  मेरी  पुकार,
बुलाया  है  मुझे  अपने  दरबार,

द्वारकामाई  की  गोद  में,
नींद  प्यारी  मुझे  आती  है,
वह  पर  मेरे  साईं  की ,
परछाई  नज़र  मुझे  आती  है,
करते  है  साईंजी,
मुझसे  भी  बहुत  प्यार,
इसीलिए  साईंजी  ने  बुलाया  है,
मुझे अपने  दरबार

बाबाजी  ने  सुनी  है  मेरी  पुकार,
बुलाया  है  मुझे  अपने  दरबार 

अगर  नज़रे  साईंजी  को  देखना  चाहें  तो  आँखों  का  क्या कसूर,
हर  वक़्त  खुशबु  साईं  की  आये  तो  साँसों  का  क्या  कसूर,
सपनों  में  साईंजी  शिर्डी  बुलाये  तो  रातों  का  क्या  कसूर

 -: आज का साईं सन्देश :-
 

बाबा जी के चरित से,
श्रद्धा भक्ति जगाय |
हृदय बैठ हेमांड के,
बाबा ही लिखवाय ||

गोविन्द जी दाभोलकर,
अब हेमांड कहाय |
नया नाम कैसे मिला,
वे खुद ही समझाय || 


Sunday, 20 March 2022

बिन साईं के मैं ऐसी, जैसे अनाथ हो कोई

ॐ सांई राम



बिन साईं के मैं ऐसी, जैसे अनाथ हो कोई
बिन बाबा के मैं ऐसी, जैसे पत्थर हो राह का कोई

बिन बाबा के मैं ऐसी, जैसे बिन मांझी के नाव
बिन साईं के मैं ऐसी, जैसे हो न किसी के पाँव
बिन बाबा के मैं ऐसी, जैसे कटी हुई पतंग
बिन साईं के मैं ऐसी जैसे जीवन हो एक जंग
बाबाजी कर दो कुछ ऐसा चरणों में आपके में रहूँ
न रहूँ अनाथ, न पत्थर राह का बनूँ
मांझी आप बन जाओ बाबाजी, नाव में मैं बैठी रहूँ
पैर मेरे जाए सिर्फ आपके द्वार, पतंग हवा में उडती रहे
जीवन मेरा बीते आपके चरणों में, स्वर्ग से सुंदर बना रहे
बाबाजी कर दो कुछ ऐसा चरणों में आपके में रहूँ
 
बाबाजी मेरे मन में भक्ति की, सदा ज्योति जगाये रखना,
अपनी कृपा की धारा साईं जी, मुझपर बरसाए रखना ।
तेरी कृपा से ही बाबा, बना ये संसार है,
हम सबका साईं जी बस, तू ही पालनहार है ।

-: आज का साईं सन्देश :-

साथ पन्त शामा चले,
चरणन साईं जाय ।
लिखे जीवनी साईं की,
बाबा अनुमति पाय ।।

अहंकार जो त्याग के,
शिर्डी तीरथ जाय ।
इच्छा पूरण होय सब,
साईं करे सहाय ।।

Saturday, 19 March 2022

कृष्ण कन्हैया साईं गोपाला है साईं

ॐ साईं राम



 कृष्ण  कन्हैया  साईं
गोपाला  है  साईं
मुरली  मनोहर  साईं
लीलाधर  है  साईं
है  गोविंदा  साईं
गोकुल  वासी  साईं
मुरलीधर  है  साईं
गिरधर  प्यारा  साईं .....
साईं  कृष्ण  साईं  केशव
साईं  है  घनश्याम  हमारे
अल्लाह  साईं  मौला  साईं 
नानक  साईं  भोला  साईं
साईं  साईं  साईं ......जय  जय  साईं 
सबकी  चिंता  हरने  वाले 
साईं  है  भगवान  हमारे

मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे,
बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे ।
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्र या, तेरी ही जुस्तजू रहे ।
अल्लाह  अपने  बन्दों  पर  इतना  करम  करना,
सुख  हो  या  दुःख  सब  पर  रहें  नज़र  करना
उसके  दर  पे  "सुकून "  मिलता  है, उसके  "इबादत " से  नूर  मिलता  है 
जो  झुक  गया  " साईं " के  सजदे  में, उसे  कुछ  न  कुछ  ज़रूर  मिलता  है 

सब  मिल  बोलो  साईं  नाथ  महाराज  की  जय

 -: आज का साईं सन्देश :-

साईं बाबा का चरित,
सागर जैसा होय ।
 ज्ञान और भक्ति रतन,
वह पाय जो खोय ।।

 सीख भरे वेदांत के,
बाबा के उपदेश ।
 श्रवण करो अति ध्यान से,
 साईं के सन्देश ।।