शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Thursday, 30 September 2021

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 26

  ॐ सांई राम


बाबा जी की कृपा आप सब पर बनी रहे...

आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है | हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चरित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 26
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भक्त पन्त, हरिश्चन्द्र पितले और गोपाल आंबडेकर की कथाएँ
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इस सृष्टि में स्थूल, सूक्ष्म, चेतन और जड़ आदि जो कुछ दृष्टिगोचर हो रहा है, वह सब एक ब्रहृ है और इसी एक अद्घितीय वस्तु ब्रहृ को ही हम भिन्न-भिन्न नामों से सम्बोधित करते तथा भिन्न-भिन्न दृष्टियों से देखते है । जिस प्रकार अँधेरे में पड़ी हुई एक रस्सी या हार को हम भ्रमवश सर्प समझ लेते है, उसी प्रका हम समस्त पदार्थों के केवल ब्रहृ स्वरुप को ही देखते है, न कि उनके सत्य स्वरुप को । एकमात्र सदगुरु ही हमारी दृष्टि से माया का आवरण दूर कर हमें वस्तुओं के सत्यस्वरुप का यथार्थ में दर्शन करा देने में समर्थ है । इसलिये आओ, हम श्री सदगुरु साई महाराज की उपासना कर उनसे सत्य का दर्शन कराने की प्रार्थना करे, जो कि ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ।
आन्तरिक पूजन
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श्री. हेमाडपंत उपासना की एक सर्वथा नवीन पद्घति बताते है । वे कहते है कि सदगुरु के पादप्रक्षालन के निमित्त आनन्द-अश्रु के उष्ण जल का प्रयोग करो । उन्हें सत्यप्रेमरुपी चन्दन का लेप कर, दृढ़विश्वासरुपी वस्त्र पहिनाओ तथा अष्ट सात्विक भावों के स्थान पर कोमल और एकाग्र चित्तरुपी फल उन्हें अर्पित करो । भावरुपी बुक्का उनके श्री मस्तक पर लगा, भक्ति की कछनी बाँध, अपना मस्तक उनके चरणों पर रखो । इस प्रकार श्री साई को समस्त आभूषणों से विभूषित कर, उन्हें अपना सर्वस्व निछावर कर दो । उष्णता दूर करने के लिये भाव की सदा चँवर डुलाओ । इस प्रकार आनन्ददायक पूजन कर उनसे प्रार्थना करो –
हे प्रभु साई । हमारी प्रवृत्ति अन्तर्मुखी बना दो । सत्य और असत्य का विवेक दो तथा सांसारिक पदार्थों से आसक्ति दूर कर हमें आत्मानुभूति प्रदान करो । हम अपनी काया और प्राण आपके श्री चरणों में अर्पित करते है । हे प्रभु साई । मेरे नेत्रों को तुम अपने नेत्र बना लो, ताकि हमें सुख और दुःख का अनुभव ही न हो । हे साई । मेरे शरीर और मन को तुम अपनी इच्छानुकूल चलने दो तथा मेरे चंचल मन को अपने चरणों की शीतल छाया में विश्राम करने दो ।
भक्त पन्त
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एक समय एक भक्त, जिनका नाम पंत था और जो एक अन्य सदगुरु के शिष्य थे, उन्हें शिरडी पधारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उनकी शिरडी आने की इच्छा तो न थी, परन्तु मेरे मन कछु और है, विधिना के कुछ और वाली कहावत चरितार्थ हुई । वे रेल (पश्चिम रोल्वे) द्घारा यात्रा कर रहे थे, जहाँ उनके बहुत से मित्र व सम्बन्धियों से अचानक ही भेंट हो गई, जो कि शिरडी यात्रा को ही जा रहे थे । उन लोगों ने उनसे शिरडी तक साथ-साथ चलने का प्रस्ताव किया । पंत यह प्रस्ताव अस्वीकार न कर सके । तब वे सब लोग बम्बई में उतरे और इसी बीच पन्त विरार में उतर अपने सदगुरु से शिरडी प्रस्थान करने की अनुमति लेकर तथा आवश्यक खर्च आदि का प्रबन्ध कर, सब लोगों के साथ रवाना हो गये । वे प्रातःकाल वहाँ पहुँच गये और लगभग 11 बजे मसजिद को गये । वहाँ पूजनार्थ भक्तों का एकत्रित समुदाय देख सब को अति प्रसन्नता हुई, परन्तु पन्त को अचानक ही मूर्च्छा आ गई और वे बेसुध होकर वहीं गिर पड़े । तब सब लोग भयभीत होकर उन्हें स्वस्थ करने के समस्त उपचार करने लगे । बाबा की कृपा से और मस्तक पर जल के छींटे देने से वे स्वस्थ हो गये और ऐसे उठ बैठे, जैसे कि कोई नींद से जगा है । त्रिकालज्ञ बाबा ने यह सब जानकर कि यह अन्य गुरु का शिष्य है, उन्हें अभय-दान देकर उनके गुरु में ही उनके विश्वास को दृढ़ करते हुए कहा कि कैसे भी आओ, परन्तु भूलो नही, अपने ही स्तंभ को दृढ़तापूर्वक पकड़कर सदैव स्थिर हो उनसे अभिन्नता प्राप्त करो । पन्त तुरन्त इन शब्दों का आशय् समझ गये और उन्हें उसी समय अपने सदगुरु की स्मृति हो आई । उन्हें बाबा के इस अनुग्रह की जीवन भर स्मृति बनी रही ।
हरिश्चन्द्र पितले
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बम्बई में एक श्री. हरिश्चन्द्र पितले नामक सदगृहस्थ थे । उनका पुत्र मिर्गी रोग से पीड़ित था । उन्होंने अनेक प्रकार की देशी व विदेशी चिकित्सायें कराई, परन्तु उनसे कोई लाभ न हुआ । अब केवल यही उपाय शेष रह गया था कि किसी सन्त के चरण-कमलों की शरण ली जाय । 15वें अध्याय में बतलाया जा चुका है कि श्री. दासगणू के सुमधुर कीर्तन से साईबाबा की कीर्ति बम्बई में अधिक फैल चुकी थी । पितले ने भी सन् 1910 में उनका कीर्तन सुना और उन्हें ज्ञात हुआ कि श्री साईबाबा के केवल कर-स्पर्श तथा दृष्टिमात्र से ही असाध्य रोग समूल नष्ट हो जाते है । तब उने मन में भी श्री साईबाबा के प्रिय दर्शन की तीव्र इच्छा जागृत हो जाते है । यात्रा का प्रबन्ध कर भेंट देने को फलों की टोकरी लेकर स्त्री और बच्चों सहित वे शिरडी पधारे । मसजिद पहुँचकर उन्होंने चरण-वंदना की तथा अपने रोगी पुत्र को उनके श्री-चरणों में डाल दिया । बाबा की दृष्टि उस पर पड़ते ही उसमें एक विचित्र परिवर्तन हो गया । बच्चे ने आँखें फेर दी और बेसुध हो कर गिर पड़ा । उसके मुँह से झाग निकलने लगी तथा शरीर पसीने से भीग गया और ऐसी आशंका होने लगी कि अब उसके प्राण निकलने ही वाले है । यह देखकर उसके माता-पिता अत्यंत निराश होकर घबड़ाने लगे । बचेचे को बहुधा थोड़ी मूर्च्छा तो अवश्य आ जाया करती थी, परन्तु यह मूर्च्छा दीर्घ काल तक रही । माता की आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी और वह दुःखग्रसित हो आर्तानाद करने लगी कि मैं ऐसी स्थिति में हूँ, जैसे कि एक व्यक्ति, चोरों के डर से भाग कर किसी घर में प्रविष्टि हो जाय और वह घर ही उसके ऊपर गिर पड़े, या एक भक्त मन्दिर में पूजन के लिये जाय और वह मन्दिर में ही उसके ऊपर गिर पड़े या एक गाय शेर के डर से भागकर किसी कसाई के हाथ लग जाय, या एक स्त्री सूर्य के ताप से व्यथित होकर वृक्ष की छाया में जाये और वह वृक्ष ही उसके ऊपर गिर पड़े । तब बाबा ने सान्त्वना देते हुये कहा कि इस प्रकार प्रलाप न कर, धैर्य धारण करो । बच्चे को अपने निवासस्थान पर ले जाओ । वह आधा घण्टे के पश्चात् ही होश में आ जायेगा । तब उन्होंने बाबा के आदेश का तुरन्त पालन किया । बाबा के वचन सत्य निकले । जैसे ही उसे वाड़े में लाये कि बच्चा स्वस्थ हो गया और पितले परिवार – पति, पत्नी व अन्य सब लोगों को महान् हर्ष हुआ और उनका सन्देह दूर हो गया । श्री. पितले अपनी धर्मपत्नी सहित बाबा के दर्शनो को आये और अति विनम्र होकर आदरपूर्वक चरण-वन्दना कर पादसेवन करने लगे । मन ही मन वे बाबा को धन्यवाद दे रहे थे । तब बाबा ने मुस्कराकर कहा किक्या तुम्हारे समस्त विचार और शंकायें मिट गई । जिन्हें विश्वास और धैर्य है, उनकी रक्षा श्री हरि अवश्य करेंगे । श्री. पितले एक धनाढ्य व्यक्ति थे, इसलिये उन्होंने अधिक मात्रा में मिठाई बाँटी और उत्तम फल तथा पान बीड़े बाबा को भेंट किये । श्रीमती पितले सात्विक वृत्ति की महिला थी । वे एक स्थाने पर बैठकर बाबा की ओर प्रेमपूर्ण दृष्टि से निहारा करती थी । उनकी आँखों से प्रसन्नता के आँसू गिरते थे । उनका मृदु और सरल स्वभाव देखकर बाबा अति प्रसन्न हुए । ईश्वर के समान ही सन्त भी भक्तों के अधीन है । जो उनकी शरण में जाकर उनका अनन्य भाव से पूजन करते है, उनकी रक्षा सन्त करते है । शिरडी में कुछ दिन सुखपूर्वक व्यतीत कर पितले परिवार बाबा के समीप मसजिद में गया और चरण-वन्दना कर शिरडी से प्रस्थान करने की अनुमति माँगी । बाबा ने उन्हें उदी देकर आर्शीवाद दिया । पितले को पास बुलाकर वे कहने लगे । बापू । पहले मैंने तुम्हें दो रुपये दिये थे और अब मैं तुम्हे तीन रुपये देता हूँ । इन्हें अपने पूजन में रखकर नित्य इनका पूजन करो । इससे तुम्हारा कल्याँण होगा । श्री. पितले ने उनहें प्रसादस्वरुप ग्रहण कर, बाबा को पुनः साष्टांग नमस्कार किया तथा आशीष के लिये प्रार्थना की । उन्हें एक विचार भी आया कि प्रथम अवसर होने के कारण मैं इसका अर्थ समझने में असमर्थ हूँ कि दो रुपये मुझे पहले कब दिये थे । वे इस बात का स्पष्टीकरण चाहते थे, परन्तु बाबा मौन ही रहे । बम्बई पहुँचने पर उन्होंने अपनी वृदृ माता को शिरडी की विस्तृत वार्ता सुनाई और उन दो रुपयों की समस्या भी उनसे कही । उनकी माता को भी पहले-पहल तो कुछ समझ में न आया, परन्तु पूरी तरह विचार करने पर उन्हें एक पुरातन घटना की स्मृति हो आई, जिसने यतह समस्या हल कर दी । उनकी वृदृ माता कहने लगी कि जिस प्रकार तुम अपने पुत्र को लेकर श्री साईबाबा के दर्शनार्थ गये थे, ठीक उसी प्रकार तुम्हें लेकर तुम्हारे पिता अनेक वर्षों पहले अक्कलकोटकर महाराज के दर्शनार्थ गये थे । महाराज पूर्ण सिदृ, योगी, त्रिकालज्ञ और बड़े उदार थे । तुम्हारे पिता परम भक्त थे । इस कारण उनकी पूजा स्वीकार हुई । तब महाराज ने उन्हें पूजनार्थ दो रुपये दिये थे, जिनकी उन्होंने जीवनपर्यन्त पूजा की । उनके पश्चात् उनकी पूजा यथाविधि न हो सकी और वे रुपये खो गये । कुछ दिनों के उपरान्त उनकी पूर्ण विसमृति भी हो गई । तुम्हारा सौभाग्य है, जो श्री अक्कलकोटकर महाराज ने साईस्वरप में तुम्हें अपने कर्तव्यों और पूजन की स्मृति कराकर आपत्तियों से मुक्त कर दिया । अब भविष्य में जागरुक रहकर समस्त शंकाएँ और सोच विचार छोड़कर अपने पूर्वजों को स्मरण कर रिवाजों का अनुसरण कर, उत्तम प्रकार का आचरण अपनाओ । अपने कुलदेव तथा इन रुपयों की पूजा कर उनके यथार्थ स्वरुप को समझो और सन्तों का आर्शीवाद ग्रहण करने में गर्व मानो । श्री साई समर्थ ने दया कर तुम्हारे हृदय में भक्ति काबीजारोपण कर दिया है और अब तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम उसकी वृद्घि करो । माता के मधुर वचनामृत का पान कर श्री. पितले को अत्यन्त हर्ष हुआ । उन्हे बाबा की सर्वकालज्ञता विदित हो गई और उनके श्री दर्शन का भी महत्व ज्ञात हो गया । इसके पश्चात वे अपने व्यवहार में अधिक सावधान हो गये ।

श्री. आंबडेकर
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पूने के श्री. गोपाल नारायण आंबडेकर बाबा के परम भक्तों में से एक थे, जो ठाणे जिला और जव्हार स्टेट के आबकारी विभाग में दस वर्षों से कार्य करते थे । वहाँ से सेवानिवृत होने पर उन्होंने अन्य नौकरी ढूँढी, परन्तु वे सफल न हुए । तब उन्हें दुर्भाग्य ने चारों ओर से घेर लिया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी अधिक दयनीय हो गई । ऐसी परिस्थिति में उन्होंने सात वर्ष व्यतीत किये । वे प्रति वर्ष शिरडी जाते और अपनी दुःखदायी कथा वार्ता बाबा को सुनाया करते थे । सन् 1916 में तो उनकी स्थिति और भी अधिक चिन्ताजनक हो गई । तब उन्होंने शिरडी जाकर आत्महत्या करने की ठानी । इसलिये वे अपनी पत्नी को साथ लेकर शिरडी आये और वहाँ दो मास तक ठहरे । एक रात्रि को दीक्षितवाड़े के सामने एक बैलगाड़ी पर बैठे-बैठे उन्होंने कुएँ में गिर कर प्राणान्त करने का और साथ ही बाबा ने उनकी रक्षा करने का निश्चय किया । वहीं समीप ही एक भोजनालय के मालिक श्री. सगुण मेरु नायक ठीक उसी समय बाहर आकर उनसे इस प्रकार वार्तालाप करने लगे कि क्या आपने कभी श्री अक्कलकोट महाराज की जीवनी पढ़ी है । सगुण से पुस्तक लेकर उन्होंने पढ़ना प्रारम्भ कर दिया । पुस्तक पढ़ते-पढ़ते वे एक ऐसी कथा पर पहुँचे, जो इस प्रकार थी – श्री अक्कलकोटकर महाराज के जीवन काल में एक व्यक्ति असाध्य रोग से पीड़ित था । जब वह किसी प्रकार भी कष्ट सह न सका तो वह बिलकुल निराश हो गया और एक रात्रि को कुएँ में कूद पड़ा । तत्क्षण ही महाराज वहाँ पहुँच गये और उन्होंने स्वयं अपने हाथों से उसे बाहर निकाला । वे उसी समझाने लगे कि तुम्हें अपने शुभ अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही भोगना चाहिए । यदि भोग अपूर्ण रह गया तो पुनर्जन्म धारण करना पड़ेगा, इसलिये मृत्यु से यह श्रेयस्कर है कि कुछ काल तक उन्हें सहन कर पूर्व जन्मों के कर्मों का भोग समाप्त कर सदैव के लिये मुक्त हो जाओ । यह सामयिक और उपयुक्त कथा पढ़कर आम्बडेकर को महान् आश्चर्य हुआ और वे द्रवित हो गये । यदि इस कथा द्घारा उन्हें बाबा का संकेत प्राप्त न होता तो अभी तक उनका प्राणान्त ही हो गया होता । बाबा की व्यापकता और दयालुता देखकर उनका विश्वासस दृढ़ हो गया और वे बाबा के परम भक्त बन गये । उनके पिता श्री अक्क्लकोटकर महाराज के शिष्य थे और बाबा की इच्छा भी उन्हें उन्हीं के पद-चिन्हों का अनुसरण कराने की थी । बाबा ने उन्हें आर्शीवाद दिया और अब उनका भाग्य चमक उठा । उन्होंने ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन में निपुणता प्राप्त कर उसमें बहुत उन्नति कर ली और बहुत-सा धन अर्जित करके अपना शेष जीवन सुख और शान्तिपूर्वक व्यतीत किया ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु शुभं भवतु ।।

Wednesday, 29 September 2021

ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन...

ॐ सांई राम


हीरे मोंती से नही शोभा है हाथ की,
है हाथ जो भगवान् का पूजन किया करे,
मर कर भी अमर है नाम उस जिव का जग मैं,
प्रभु प्रेम में बलिदान जो जीवन किया करे ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
वो तो गली-गली हरी गुन गाने लगी
महलो में पली, बन के जोगिन चली
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन ...

कोई रोके नही, कोई टोके नही
मीरा गोविंदा गोपाल गाने लगी
बैठी संतों के संग, रंगी मोहन के रंग
मीरा प्रेमी प्रीतम को मनाने लगी ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
वो तो गली-गली हरी गुना गाने लगी
महलो में पली, बन के जोगिन चली
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन ...

राणा ने विष दिया, मानो अमृत पिया
मीरा सागर में सरिता समाने लगी
दुःख-ऐ लाखों सहे, मुक्से गोविन्द कहे
मीरा गोविंदा गोपाल-ऐ गाने लगी ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
वो तो गली-गली हरी गुण गाने लगी
महलो में पली, बन के जोगिन चली
मीरा रानी दीवानी कहने लगी ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन !!!

Tuesday, 28 September 2021

बाबा पर हर स्थिति  में विश्वास रखो....

ॐ सांई राम




बाबा पर हर स्थिति  में
विश्वास रखो.......
कभी कभी हम जो चाहते हैं
हमें वो नहीं मिलता......
तो इसका अर्थ ये नहीं हुआ की
बाबा हमें प्यार नहीं करते.....
या उन्हें हमारी चिंता नहीं है,
एक घटना.......
आप सब को बताना चाहेंगे....
एक बार की बात हैं..
एक कल्पतरु का वृक्ष था..
जिसके नीचे बैठने से
मन की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती थी,
तो एक दिन एक आदमी धुप में थका हारा था..
पेड़ के नीचे बैठ के सोचने लगा..
के काश पानी मिल जाये..
 तो मेरी प्यास मिट जाएगी ||
तब पानी आ गया,
फिर उसने कहा के काश
यहाँ पर खाना भी मिल जाये
तो पेट भी भर जायेगा,
तो वहां खाना भी आ गया
और उसने खा लिया.....
इसी तरह उसने सोचा के....
कहीं अगर यहाँ भूत आ जाये
और मुझे आ के खा जाये तो,
ठीक वैसा ही हुआ....
भूत आया और उसे आ के
खा भी गया....
क्यूंकि वो एक कल्पतरु का वृक्ष था....
मन की सभी इचाएं पूर्ण करता था......
वो ये नहीं देखता था की
वह किसी के हित में है
या नहीं........
बस जो माँगा वो मिल जाता था......
पर हमारे साईं बाबा एक ऐसे कल्पतरु हैं......
जो सिर्फ वही देते हैं,
जो हमारे हित में होता हैं......
तो बाबा को मालूम हैं की हमें
क्या मिलना चाहिए
और क्या नहीं,
हमें सब उन पर छोड़ कर
निश्चिंत हो जाना चाहिए......
वो हैं ना हमारे बारे में सोचने के लिए......
बस यही बात याद रखो हमेशा......
के मेरी चिंता बाबा को करनी हैं......
बाकी सब तुम्हारी चिन्ताओ का भार....
बाबा अपने कंधे पर ले लेते हैं.......


ॐ साईं राम......

Monday, 27 September 2021

कहीं भी जाऊँ बस तू ही तू है

ॐ सांई राम



कलियों में तू है फूलों में तू है
सागर की इक इक लहरों में तू है
कहीं भी जाऊँ बस तू ही तू है
तुम्हारा ही नाम तुम्हारी ही पूजा
तुम ही तुम हो कोई न दूजा
हमें रास्तों की ज़रूरत नहीं है
हमें तेरे क़दमों के निशान मिल गए है...


यह सौँप दिया सारा जीवन,
सांई नाथ तुम्हारे चरणो मेँ।
अब जीत तुम्हारे चरणोँ मेँ,
अब हार तुम्हारे चरणोँ मेँ॥
मैँ जग मेँ रहूँ तो ऐसे रहूँ,
ज्योँ जल मेँ कमल का फूल रहे।
अब सौँप दिया सारा जीवन,
सांई नाथ तुम्हारे चरणो मेँ।

ॐ साईं......श्री साईं...... जय जय साईं......!

Sunday, 26 September 2021

माँ-बाप को भूलना नहीं

 ॐ साँई राम



माँ-बाप को भूलना नहीं||

भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।
उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।।
पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे।
पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।।
मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया।
अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।।
कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये।
पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।।
लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।
सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।।
सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो।
जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।।
सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह।
माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।।
जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में।
उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।
धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे?

ॐ शिर्डी वासाय विदमहे सचिदानान्दा
धीमहि तन्नो साईं प्रचोदयात

अनंता कोटि ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगिराज परब्रह्म
सच्चिदानंद सद्गुरु साँई नाथ महाराज की जय

Saturday, 25 September 2021

"सबका मालिक एक है"

 ॐ सांई राम




रंग अलग है रूप अलग है, भाव सब में एक है
घाट अलग है ,लहरे अलग है, जल तो सब में एक है ||
काले गोरे पीले तन में, खून का रंग तो एक है ,
प्रेम की भाषा अलग अलग है, प्रेम तो सब में एक है ||
पेड ,पोधे अलग अलग है, तत्व तो सब में एक है
मताए सबकी अलग अलग है, ममता तो सब एक है ||
गाव, शहर, देश सबके अलग अलग है, पर घरती तो एक है ,
गाय अलग अलग रंगों की है, दूध का रंग तो एक है ||
खाना सबका अलग अलग है, पर भूख सबकी है ,
वेशभूषा सबकी अलग अलग है, जीवन सबका एक है ||
सोच सबकी अलग अलग है, पर ज्ञान सबमे एक है ,
सब करते साईं का शुकराना अलग अलग तरीके से,
जिसने ये समझाया की "सबका मालिक एक है"

Friday, 24 September 2021

जरूरत साँईं नाम की हैं

ॐ साँई राम जी


मेरी चमड़ी की बने साँईं पादुका
तर जाये जीवन छू चरण कमल

नाज़ करें पादुकायें पा साँईं आशीष
जीवन संवरे ज्यूँ झरना करे कल-कल

सांसो की नहीं तमन्ना
जरूरत साँईं नाम की हैं

दुख कभी बैरी नहीं होते
सच्चा सुख साँईं धाम ही है

क्यों करूं फिक्र मैं एक रूपया खोने की
साँईं ने जो बख्शी हैं मुझे खान सोने की

मेहनत से कमाया रूपया
खोये तो दुख होता है 

भले तिजोरियों में रूपया
बेशुमार होता है |

Thursday, 23 September 2021

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 25

ॐ साईं राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है|

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|


श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 25

दामू अण्णा कासार-अहमदनगर के रुई और अनाज के सौदे, आम्र-लीला

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प्राक्कथन
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जो अकारण ही सभी पर दया करते है तथा समस्त प्राणियों के जीवन व आश्रयदाता है, जो परब्रहृ के पूर्ण अवतार है, ऐसे अहेतुक दयासिन्धु और महान् योगिराज के चरणों में साष्टांग प्रणाम कर अब हम यह अध्याय आरम्भ करते है । श्री साई की जय हो । वे सन्त चूड़ामणि, समस्त शुभ कार्यों के उदगम स्थान और हमारे आत्माराम तथा भक्तों के आश्रयदाता है । हम उन साईनाथ की चरण-वन्दना करते है, जिन्होंने अपने जीवन का अन्तिम ध्येय प्राप्त कर लिया है । श्री साईबाबा अनिर्वचनीय प्रेमस्वरुप है । हमें तो केवल उनके चरणकमलों में दृढ़ भक्ति ही रखनी चाहिये । जब भक्त का विश्वास दृढ़ और भक्ति परिपक्क हो जाती है तो उसका मनोरथ भी शीघ्र ही सफल हो जाता है । जब हेमाडपंत को साईचरित्र तथा साई लीलाओं के रचने की तीव्र उत्कंठा हुई तो बाबा ने तुरन्त ही वह पूर्ण कर दी । जब उन्हें स्मृति-पत्र (Notes) इत्यादि रखने की आज्ञा हुई तो हेमाडपंत में स्फूर्ति, बुद्घिमत्ता, शक्ति तथा कार्य करने की क्षमता स्वयं ही आ गई । वे कहते है कि मैं इस कार्य के सर्वदा अयोग्य होते हुए भी श्री साई के शुभार्शीवाद से इस कठिन कार्य को पूर्ण करने में समर्थ हो सका । फलस्वरुप यह ग्रन्थ श्री साई सच्चरित्र आप लोगों को उपलब्ध हो सका, जो एक निर्मल स्त्रोत या चन्द्रकान्तमणि के ही सदृश है, जिसमें से सदैव साई-लीलारुपी अमृत झरा करता है, ताकि पाठकगण जी भर कर उसका पान करें । जब भक्त पूर्ण अन्तःकरण से श्री साईबाबा की भक्ति करने लगता है तो बाबा उसके समस्त कष्टों और दुर्भाग्यों को दूर कर स्वयं उसकी रक्षा करने लगते है । अहमदनगर के श्री दामोदर साँवलाराम रासने कासार की निम्नलिखित कथा उपयुक्त कथन की पुष्टि करती है ।

दामू अण्णा
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पाठकों को स्मरण होगा कि इन महाशय का प्रसंग छठवें अध्याय में शिरडी के रामनवमी उत्सव के प्रसंग में आ चुका है । ये लगभग सन् 1895 में शिरडी पधारे थे, जब कि रामनवमी उत्सव का प्रारम्भ ही हुआ था और उसी समय से वे एक जरीदार बढ़िया ध्वज इस अवसर पर भेंट करते तथा वहाँ एकत्रित गरीब भिक्षुओं को भोजनादि कराया करते थे ।

दामू अण्णा के सौदे
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1. रुई का सौदा

दामू अण्णा को बम्बई से उनके एक मित्र ने लिखा कि वह उनके साथ साझेदारी में रुई का सौदा करना चाहते है, जिसमें लगभग दो लाख रुपयों का लाभ होने की आशा है । सन् 1936 में नरसिंह स्वामी को दिये गये एक वक्तव्य में दामू अण्णा ने बतलाया किरुई के सौदे का यह प्रस्तताव बम्बई के एक दलाल ने उनसे किया था, जो कि साझेदारी से हाथ खींचकर मुझ पर ही सारा भार छोड़ने वाला था । (भक्तों के अनुभव भाग 11, पृष्ठ 75 के अनुसार) । दलाला ने लिखा था कि धंधा अति उत्तम है और हानि की कोई आशंका नहीं । ऐसे स्वर्णम अवसर को हाथ से न खोना चाहिए । दामू अण्णा के मन में नाना प्रकार के संकल्प-विकल्प उठ रहे थे, परन्तु स्वयं कोई निर्णय करने का साहस वे न कर सके । उन्होंने इस विषय में कुछ विचार तो अवश्य कर लिया, परन्तु बाबा के भक्त होने के कारण पूर्ण विवरण सहित एक पत्र शामा को लिख भेजा, जिसमें बाबा से परामर्श प्राप्त करने की प्रार्थना की । यह पत्र शामा को दूसरे ही दिन मिल गया, जिसे दोपहर के समय मसजिद में जाकर उन्होंने बाबा के समक्ष रख दिया । शामा से बाबा ने पत्र के सम्बन्ध में पूछताछ की । उत्तर में शामा ने कहा कि अहमदनगर के दामू अण्णा कासार आप से कुछ आज्ञा प्राप्त करने की प्रार्थना कर रहे है । बाबा ने पूछा कि वह इस पत्र में क्या लिख रहा है और उसने क्या योजना बनाई है । मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह आकाश को छूना चाहता है । उसे जो कुछ भी भगवत्कृपा से प्राप्त है, वह उससे सन्तुष्ट नहीं है । अच्छा, पत्र पढ़कर तो सुनाओ । शामा ने कहा, जो कुछ आपने अभी कहा, वही तो पत्र में भी लिखा हुआ है । हे देवा । आप यहताँ शान्त और स्थिर बैठे रहकर भी भक्तों को उद्घिग्न कर देते है और जब वे अशान्त हो जाते है तो आप उन्हें आकर्षित कर, किसी को प्रत्यक्ष तो किसी को पत्रों द्घारा यहाँ खींच लेते है । जब आपको पत्र का आशय विदित ही है तो फिर मुझे पत्र पढ़ने का क्यों विवश कर रहे है । बाबा कहने लगे कि शामा । तुम तो पत्र पढ़ो । मै तो ऐसे ही अनापशनाप बकता हूँ । मुझ पर कौन विश्वास करता है । तब शामा ने पत्र पढ़ा और बाबा उसे ध्यानपूर्वक सुनकर चिंतित हो कहने लगे कि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि सेठ (दामू अण्णा) पागल हो गया है । उसे लिख दो कि उसके घर किसी वस्तु का अभाव नहीं है । इसलिये उसे आधी रोटी में ही सन्तोष कर लाखों के चक्कर से दूर ही रहना चाहिये । शामा ने उत्तर लिखकर भेज दिया, जिसकी प्रतीक्षा उत्सुकतापूर्वक दामू अण्णा कर रहे थे । पत्र पढ़ते ही लाखों रुपयों के लाभ होने की उनकी आशा पर पानी फिर गया । उन्हें उस समय ऐसा विचार आया कि बाबा से परामर्श कर उन्होंने भूल की है । परन्तु शामा ने पत्र में संकेत कर दिया था कि देखने और सुनने में फर्क होता है । इसलिये श्रेयस्कर तो यही होगा कि स्वयं शिरडी आकर बाबा की आज्ञा प्राप्त करो । बाबा से स्वयं अनुमति लेना उचित समझकर वे शिरडी आये । बाबा के दर्शन कर उन्होंने चरण सेवा की । परन्तु बाबा के सम्मुख सौदे वाली बात करने का साहस वे न कर सके । उन्होंने संकल्प किया कि यदि उन्होंने कृपा कर दी तो इस सौदे में से कुछ लाभाँश उन्हें भी अर्पण कर दूँगा । यघपि यह विचार दामू अण्णा बड़ी गुप्त रीति से अपने मन में कर रहे थे तो भी त्रिकालदर्शी बाबा से क्या छिपा रह सकता था । बालक तो मिष्ठान मांगता है, परन्तु उसकी माँ उसे कड़वी ही औषधि देती है, क्योंकि मिठाई स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है और इस कारण वह बालक के कल्याणार्थ उसे समझा-बुझाकर कड़वी औषधि पिला दिया करती है । बाबा एक दयालु माँ के समान थे । वे अपने भक्तों का वर्तमान और भविष्य जानते थे । इसलिये उन्होंने दामू अण्णा के मन की बात जानकर कहा कि बापू । मैं अपने को इन सांसारिक झंझटों में फँसाना नहीं चाहता । बाबा की अस्वीकृति जानकर दामू अण्णा ने यह विचार त्याग दिया।

2. अनाज का सौदा

तब उन्होंने अनाज, गेहूँ, चावल आदि अन्य वस्तुओं का धन्धा आरम्भ करने का विचार किया । बाबा ने इस विचार को भी समझ कर उनसे कहा कि तुम रुपये का 5 सेर खरीदोगे और 7 सेर को बेचोगे । इसलिये उन्हें इस धन्धे का भी विचार त्यागना पड़ा । कुछ समय तक तो अनाजों का भाव चढ़ता ही गया और ऐसा प्रतीत होने लगा कि संभव है, बाबा की भविष्यवाणी असत्य निकले । परन्तु दो-एक मास के पश्चात् ही सब स्थानों में पर्याप्त वृष्टि हुई, जिसके फलस्वरुप भाव अचानक ही गिर गये और जिन लोगों ने अनाज संग्रह कर लिया था, उन्हें यथेष्ठ हानि उठानी पड़ी । पर दामू अण्णाइस विपत्ति से बच गये । यह कहना व्यर्थ न होगा कि रुई का सौदा, जो कि उस दलाल ने अन्य व्यापारी की साझेदारी में किया था, उसमें उसे अधिक हानि हुई । बाबा ने उन्हें बड़ी विपत्तियों से बचा लिया है, यह देखकर दामू अण्णा का साईचरणों में विश्वास दृढ़ हो गया और वे जीवनपर्यन्त बाबा के सच्चे भक्त बने रहे ।

आम्रलीला
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एक बार गोवा के एक मामलतदार ने, जिनका नाम राले था, लगभग 300 आमों का एक पार्सल शामा के नाम शिरडी भेजा । पार्सल खोलने पर प्रायः सभी आम अच्छे निकले । भक्तों में इनके वितरण का कार्य शामा को सौंपा गया । उनमें से बाबा ने चार आम दामू अण्णा के लिये पृथक् निकाल कर रख लिये । दामू अण्णा की तीन स्त्रियाँ थी । परन्तु अपने दिये हुये वक्तव्य में उन्होंने बतलाया था कि उनकी केवल दो ही स्त्रियाँ थी । वे सन्तानहीन थे, इस कारण उन्होंने अनेक ज्योतिषियों से इसका समाधान कराया और स्वयं भी ज्योतिष शास्त्र का थोड़ा सा अध्ययन कर ज्ञात कर लिया कि जन्म कुण्डली में एक पापग्रह के स्थित होने के कारण इस जीवन में उन्हें सन्तान का मुख देखने का कोई योग नहीं है । परन्तु बाबा के प्रति तो उनकी अटल श्रद्घा थी । पार्सल मिलने के दो घण्टे पश्चात् ही वे पूजनार्थ मसजिद में आये । उन्हें देख कर बाबा कहने लगे कि लोग आमों के लिये चक्कर काट रहे है, परन्तु ये तो दामू के है । जिसके है, उन्हीं को खाने और मरने दो । इन शब्दों को सुन दामू अण्णा के हृदय पर वज्राघात सा हुआ, परन्तु म्हालसापति (शिरडी के एक भक्त) ने उन्हें समझाया कि इस मृत्यु श्ब्द का अर्थ अहंकार के विनाश से है और बाबा के चरणों की कृपा से तो वह आशीर्वादस्वरुप है, तब वे आम खाने को तैयार हो गये । इस पर बाबा ने कहा कि वे तुम न खाओ, उन्हें अपनी छोटी स्त्री को खाने दो । इन आमों के प्रभाव से उसे चार पुत्र और चार पुत्रियाँ उत्पन्न होंगी । यह आज्ञा शिरोधार्य कर उन्होंने वे आम ले जाकर अपनी छोटी स्त्री को दिये । धन्य है श्री साईबाबा की लीला, जिन्होने भाग्य-विधान पलट कर उन्हें सन्तान-सुख दिया । बाबा की स्वेच्छा से दिये वचन सत्य हुये, ज्योतिषियों के नहीं । बाबा के जीवन काल में उनके शब्दों ने लोगों में अधिक विश्वास और महिमा स्थापित की, परन्तु महान् आश्चर्य है कि उनके समाधिस्थ होने कि उपरान्त भी उनका प्रभाव पूर्ववत् ही है । बाबा ने कहा कि मुझ पर पूर्ण विश्वास रखो । यधपि मैं देहत्याग भी कर दूँगा, परन्तु फिर भी मेरी अस्थियाँ आशा और विश्वास का संचार करती रहेंगी । केवल मैं ही नही, मेरी समाधि भी वार्तालाप करेगी, चलेगी, फिरेगी और उन्हें आशा का सन्देश पहुँचाती रहेगी, जो अनन्य भाव से मेरे शरणागत होंगे । निराश न होना कि मैं तुमसे विदा हो जाऊँगा । तुम सदैव मेरी अस्थियों को भक्तों के कल्याणार्थ ही चिंतित पाओगे । यदि मेरा निरन्तर स्मरण और मुझ पर दृढ़ विश्वास रखोगे तो तुम्हें अधिक लाभ होगा ।

प्रार्थना
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एक प्रार्थना कर हेमाडपंत यह अध्याय समाप्त करते है ।
हे साई सदगुरु । भक्तों के कल्पतरु । हमारी आपसे प्रार्थना है कि आपके अभय चरणों की हमें कभी विस्मृति न हो । आपके श्री चरण कभी भी हमारी दृष्टि से ओझल न हों । हम इस जन्म-मृत्यु के चक्र से संसार में अधिक दुखी है । अब दयाकर इस चक्र से हमारा शीघ्र उद्घार कर दो । हमारी इन्द्रियाँ, जो विषय-पदार्थों की ओर आकर्षित हो रही है, उनकी बाहृ प्रवृत्ति से रक्षा कर, उन्हें अंतर्मुखी बना कर हमें आत्म-दर्शन के योग्य बना दो । जब तक हमारी इन्द्रयों की बहिमुर्खी प्रवृत्ति और चंचल मन पर अंकुश नहीं है, तब तक आत्मसाक्षात्कार की हमें कोई आशा नहीं है । हमारे पुत्र और मीत्र, कोई भी अन्त में हमारे काम न आयेंगे । हे साई । हमारे तो एकमात्र तुम्हीं हो, जो हमें मोक्ष और आनन्द प्रदान करोगे । हे प्रभु । हमारी तर्कवितर्क तथा अन्य कुप्रवृत्तियों को नष्ट कर दो । हमारी जिहृ सदैव तुम्हारे नामस्मरण का स्वाद लेती रहे । हे साई । हमारे अच्छे बुरे सब प्रकार के विचारों को नष्ट कर दो । प्रभु । कुछ ऐसा कर दो कि जिससे हमें अपने शरीर और गृह में आसक्ति न रहे । हमारा अहंकार सर्वथा निर्मूल हो जाय और हमें एकमात्र तुम्हारे ही नाम की स्मृति बनी रहे तथा शेष सबका विस्मरण हो जाय । हमारे मन की अशान्ति को दूर कर, उसे स्थिर और शान्त करो । हे साई । यदि तुम हमारे हाथ अपने हाथ में ले लोगे तो अज्ञानरुपी रात्रि का आवरण शीघ्र दूर हो जायेगा और हम तुम्हारे ज्ञान-प्रकाश में सुखपूर्वक विचरण करने लगेंगे । यह जो तुम्हारा लीलामृत पान करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ तथा जिसने हमें अखण्ड निद्रा से जागृत कर दिया है, यह तुम्हारी ही कृपा और हमारे गत जन्मों के शुभ कर्मों का ही फल है ।

विशेष
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इस सम्बन्ध में श्री. दामू अण्णा के उपरोक्त कथन को उद्घत किया जाता है, जो ध्यान देने योग्य है – एक समय जब मैं अन्य लोगों सहित बाबा के श्रीचरणों के समीप बैठा था तो मेरे मन में दो प्रश्न उठे । उन्होंने उनका उत्तर इस प्रकार दिया ।
1. जो जनसमुदाय श्री साई के दर्शनार्थ शिरडी आता है, क्या उन सभी को लाभ पहुँचता है । इसका उन्होंने उत्तर दिया कि बौर लगे आम वृक्ष की ओर देखो । यदि सभी बौर फल बन जायें तो आमों की गणना भी न हो सकेगी । परन्तु क्या ऐसा होता है । बहुत-से बौर झर कर गिर जाते है । कुछ फले और बढ़े भी तो आँधी के झकोरों से गिरकर नष्ट हो जाते है और उनमें से कुछ थोड़े ही शेष रह जाते है ।
2. दूसरा प्रश्न मेरे स्वयं के विषय में था । यदि बाबा ने निर्वाण-लाभ कर लिया तो मैं बिलकुल ही निराश्रित हो जाऊँगा, तब मेरा क्या होगा । इसका बाबा ने उत्तर दिया कि जब और जहाँ भी तुम मेरा स्मरण करोगे, मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा । इन वचनों को उन्होंने सन् 1918 के पूर्व भी निभाया है और सन् 1918 के पश्चात आज भी निभा रहे है । वे अभी भी मेरे ही साथ रहकर मेरा पथ-प्रदर्शन कर रहे है । यह घटना लगभग सन् 1910-11 की है । उसी समय मेरा भाई मुझसे पृथक हुआ और मेरी बहन की मृत्यु हो गई । मेरे घर में चोरी हुई और पुलिस जाँच-पड़ताल कर रही थी । इन्हीं सब घटनाओं ने मुझे पागल-सा बना दिया था । मेरी बहन का स्वर्गवास होने के कारम मेरे दुःख का रारावार न रहा और जब मैं बाबा की शरण गया तो उन्होंने अपने मधुर उपदेशों से मुझे सान्तवना देकर अप्पा कुलकर्णी के घर पूरणपोली खलाई तथा मेरे मस्तक पर चन्दन लगाया । जब मेरे घर चोरी हुई और मेरे ही एक तीसवर्षीय मित्र ने मेरी स्त्री के गहनों का सन्दूक, जिसमें मंगलसूत्र और नथ आदि थे, चुरा लिये, तब मैंने बाबा के चित्र के समक्ष रुदन किया और उसके दूसरे ही दिन वह व्यक्ति स्वयं गहनों का सन्दूक मुझे लौटाकर क्षमा-प्रार्थना करने लगा ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday, 22 September 2021

आओ साईं आओ साईं प्रीत की रीत निभाओ साईं

ॐ सांई राम



आओ साईं आओ साईं प्रीत की रीत निभाओ साईं
कहती है ये दुनिया मुजको तेरा प्यार है इतना साचा
तो कियु नहीं आते मेरे साईं
मै जानु तुम साथ हो मेरे पर सबको तुम दिखला दो ये साईं
तेरे आगे ही सर ये जुका था दुनिया ने भी अब जुका दिया है
वो समझे मै पागल हु मुझको दर्द न होता होगा
वो न जाने इससे जायदा दर्द तो तुमको भी साईं होता होगा
है रोसा मुझको तुम पे जो सर दुनिया ने है जुकाया
उसको ऊंचा करने के लिए भी तुम ही तो आओगे मेरे साईं


जब से लगी साईं जी से लगन....
तभी मिट गयी इस मन की अगन....
मिल जाएँ गे साईं हमे.....
जब हम होंगे साईं में मगन....

सचे दिल से जैसै ही तू साईं को बुलाएगा,
......इधर उधर ना जा मेरे भाई, साईँ दौड़ा आएगा

Tuesday, 21 September 2021

जिस हाल में रखे साई.....

 ॐ सांई राम




मैं रोज़ गुनाह करता हूँवो छुपाता है अपनी रहमत से,
मैं मजबूर अपनी आदत सेवो मजबूर अपनी रहमत से

 जिस हाल में रखे साई......
उस हाल में रहते जाओ
तुफंनों से क्या घबराना
तूफानों में बहते जाऊ

गम और ख़ुशी की रातें
सब हैं उसकी सौगांते
देनेवाला जो दे दे
हंस-हंसके सहते जाओ
जिस हाल में रखे साई......

तुम दूर नहीं मंजिल से
बस दिल को लगालो दिल से
और उसके गले से लगकर
जो कहना है कहते जाओ
जिस हाल में रखे साई......
उस हाल में रहते जाओ

सतगुरु साईं हम सभी पर हमेशा रहमत बनाये रखें


रहम नजर करो,अब मोरे साईं |
तुम वीन नहीं मुझे मा बाप भाई |
मैं अंधा हूं बंदा तुम्हारा ||
मैं ना जानूंअल्लाइलाही || रहम.||||
खाली जमाना मैंने गमाया,
साथी आखर का किया न कोई || रहम.||||
अपने मशिद का झाडू गणू है,
मालिक हमारेतुम बाबा साई || ...रहम.||||

Monday, 20 September 2021

सब कुछ वार दूँ तुझ पर साँई

ॐ साँई राम





नाज़ करूँ मैं खुद पर साँई,
सब कुछ वार दूँ तुझ पर साँई,
जब से प्यार मिला तेरा,
सुंदर दीदार मिला तेरा,
सब कुछ पा लिया मैने साँई ,
दिल गद गद हो गया मेरा,
हे साँईपाया दीदार जब से तेरा,
अब और कुछ रही ना इस मन की चाह,
साँई मैं दूँ सब कुछ तुझ पर वार,
किया तूने हम पतितो का उद्धार,
परमेश्वरतेरे इस रूप को,
मेरा करोङो बार नमस्कार,
नमस्कारनमस्कार
!!! जय साँई राम !!!