नासिक निवासी भाऊ साहब धुमाल पेशे से एक जाने-माने वकील थे| एक कानूनी मुकदमे के सिलसिले में उन्हें निफाड़ जाना था| चूंकि शिरडी रास्ते में पड़ता था इसलिए बाबा के दर्शन करने के लिए शिरडी में ही उतर गए| मस्जिद में जाकर दर्शन करने के बाद जब उन्होंने बाबा से जाने की आज्ञा मांगी तो बाबा ने उन्हें शिरडी में ही रुकने के लिए कहा| उन्हें तो अदालत में जाना जरूरी था, पर बाबा की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस उनमें न था| वह मजबूरी में रुक गये| वह रोजाना बाबा से आज्ञा मांगते जाते और बाबा उन्हें मना कर देते|इस तरह उन्हें शिरडी में रहते हुए एक सप्ताह हो गया| एक सप्ताह बाद एक दिन जब उन्होंने बाबा से आज्ञा मांगी, तो इस बार ने उन्हें लौटने की अनुमति दे दी|इस तरह जब वह सप्ताह बाद निफाड़ पहुंचे तो पता चला कि मुकदमे की सुनवाई करने वाले जज को पेट का रोग हो गया था जिस कारण मुकदमे की सुनवाई को आगे टालना पड़ा| उनके स्थान पर चार जजों ने महीनों तक मामले की सुनवाई कर निर्णय धुमाल के मुवक्किल ने सुना दिया| जिससे वह बरी हो गया| अब धुमाल को मालूम हुआ कि बाबा ने क्यों उन्हें जाने की अनुमति नहीं दी थी|
शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)
Saturday, 31 October 2020
श्री साईं लीलाएं - कुछ दिन रुको, आराम से चले जाना
नासिक निवासी भाऊ साहब धुमाल पेशे से एक जाने-माने वकील थे| एक कानूनी मुकदमे के सिलसिले में उन्हें निफाड़ जाना था| चूंकि शिरडी रास्ते में पड़ता था इसलिए बाबा के दर्शन करने के लिए शिरडी में ही उतर गए| मस्जिद में जाकर दर्शन करने के बाद जब उन्होंने बाबा से जाने की आज्ञा मांगी तो बाबा ने उन्हें शिरडी में ही रुकने के लिए कहा| उन्हें तो अदालत में जाना जरूरी था, पर बाबा की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस उनमें न था| वह मजबूरी में रुक गये| वह रोजाना बाबा से आज्ञा मांगते जाते और बाबा उन्हें मना कर देते|इस तरह उन्हें शिरडी में रहते हुए एक सप्ताह हो गया| एक सप्ताह बाद एक दिन जब उन्होंने बाबा से आज्ञा मांगी, तो इस बार ने उन्हें लौटने की अनुमति दे दी|इस तरह जब वह सप्ताह बाद निफाड़ पहुंचे तो पता चला कि मुकदमे की सुनवाई करने वाले जज को पेट का रोग हो गया था जिस कारण मुकदमे की सुनवाई को आगे टालना पड़ा| उनके स्थान पर चार जजों ने महीनों तक मामले की सुनवाई कर निर्णय धुमाल के मुवक्किल ने सुना दिया| जिससे वह बरी हो गया| अब धुमाल को मालूम हुआ कि बाबा ने क्यों उन्हें जाने की अनुमति नहीं दी थी|
Friday, 30 October 2020
श्री साईं लीलाएं - काका आप कल जायें
श्री साईं लीलाएं - काका आप कल जायें
शिरडी में जिस तरह रामजन्म उत्सव मनाया जाता, वैसे ही कृष्ण जन्मोत्सव भी मनाया जाता था| पालना बांधकर कृष्ण जन्मदिन बड़ी धूमधाम से, हँसते गाते, नाचते-भजन-कीर्तन करते हुए मनाया जाता| आस-पास के गांवों से भी लोग इस उत्सव को देखने के लिए आते थे|एक बार मुम्बई से काका महाजनी शिरडी आये| सप्ताह भर शिरडी में रहकर बाबा के सत्संग का लाभ उठाकर, फिर कृष्ण जन्मोत्सव में शामिल होकर उसके आनंद का लाभ लेनें के बाद मुम्बई लौटने का उनका विचार था, परन्तु बाबा तो अंतर्यामी थे| वे सबके मन की बात पहले ही जान लेते थे| इसलिये काका महाजनी जब बाबा के दर्शन करने आये तो दर्शन कर चुकने के बाद साईं बाबा ने उनसे पूछा - "काका, आपका वापस जाने का विचार कब का है ?" बाबा का सवाल सुनकर काका हैरानी में पड़ गये| उन्होंने तो आठ-दस दिन रहने का विचार बना रखा था| सवाल सुनकर काका उलझन में पड़ गये| फिर भी उन्होंने जवाब दिया - "बाबा, जब भी आपकी आज्ञा होगी|" बाबा ने कहा - "तुम कल ही चले जाओ|
परसों चर्चा करेंगे... कुछ दिन रुको, आराम से चले जाना
Thursday, 29 October 2020
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 27

Wednesday, 28 October 2020
श्री साईं लीलाएं - संकटमोचक साईं बाबा
श्री साईं लीलाएं - संकटमोचक साईं बाबा
एक दिन संध्या के समय अचानक तूफान आया| आसमान काले बादलों से घिर गया, बिजली बड़े जोर-शोर से कड़क रही थी| वायु भी पूरी प्रचंडता के साथ बह रही थी और तभी मूसलाधार बारिश भी शुरू हो गयी| चारों तरफ पानी-ही-पानी हो गया| फसलें भीग गयीं| सुखी घास बह गयी| पालतू जानवर इधर-उधर भागने लगे| गांव वाले भी भयाक्रांत हो उठे| सब लोग मस्जिद में इकट्ठे हो गये और उन्होंने बचाव के लिए बाबा से प्रार्थना की|साईं बाबा के दिल में लोगों के प्रति दया आ गई| बाबा उठकर मस्जिद के बाहर आकर आसमान की ओर देखते हुए जोर-जोर से गरजने लगे| बाबा की आवाज चारों तरफ गूंज उठी| मस्जिद और मंदिर कांप उठे तथा लोगों ने कानों में अंगुलियां डाल लीं| वहां उपस्थित सभ ग्रामवासी बाबा का यह अनोखा स्वरूप देखते ही रह गये|
बस थोड़ी ही देर में वर्षा का जोर धीमा हो गया, हवा की गति भी थम-सी गयी| बादलों का कड़कना रुक गया और वे छंट गये तथा आसमान में तारों के साथ चाँद चमकने लगा| पशु-पक्षी अपने-अपने घरौंदों की ओर वापस लौटने लगे| सब लोग भी प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने घर रवाना हुए|बाबा अपने भक्तों से एक माँ की तरह प्यार करते थे| भक्त की पुकार सुनते ही बाबा न दौड़ हों - ऐसा कभी हुआ ही नहीं|इसी तरह एक बार दोपहर के समय मस्जिद में प्रज्जवलित रहने वाली धुनी एकाएक भड़क उठी| उसकी लपटें इतनी बढ़ गयीं कि वे ऊपरी छत तक पहुंचने लगीं| लपटों की भयानकता को देखते हुए वहां उपस्थित भक्तों को ऐसा लगा, मानो यह आग मस्जिद को जलाकर राख कर देगी| सब फिक्रमंद थे कि क्या करना चाहिए ? पानी डालकर अग्नि को शांत कर देना चाहिए| पानी डालें तो डाले भी कैसे ? बाबा से पूछने की हिम्मत किसी में भी न हुई| बाबा तो अंतर्यामी थे| बड़ी खामोशी से सब देख रहे थे| फिर कुछ देर बाद भक्तों की बढ़ती हुई बेचैनी को देखते बाबा ने हाथ में अपना सटका उठाया और धूनी के पास वाले खम्बे पर जोरदार प्रहार करते हुए बोले - "शांत हो जाओ, नीचे उतरो|" हर प्रहार के साथ अग्नि की लपटें धीमी होती चली गयीं और कुछ देर बाद वे सामान्य दिनों की तरह जलने लगीं तथा इस तरह लोगों के मन का डर भी मिट गया|
Tuesday, 27 October 2020
श्री साईं लीलाएं - डॉक्टर द्वारा साईं बाबा की पूजा
कुछ देर बाद जब केलकर बाबा का पूजन करने के लिए चलने लगे तो डॉक्टर भी उनके साथ हो लिये| मस्जिद पहुंचकर पहले केलकर ने बाबा का पूजन किया, फिर डॉक्टर ने बाबा का पूजन किया और पूजन करते हुए पूजा की थाली में से चंदन लेकर बाबा के मस्तक पर त्रिपुंड आकार का तिलक लगा दिया| पर, बाबा ने कुछ भी नहीं कहा| बाबा ने बड़े शांत भाव से तिलक लगवा लिया| वहां उपस्थित भक्तों के मन कांप उठे, कि अब बाबा गुस्से में आयेंगे| क्योंकि बाबा किसी को गंध (चंदन आदि) लगाने नहीं देते थे| यदि किसी को लगाना होता तो वह बाबा के चरणों में लगाता था| केवल म्हालसापति ही बाबा के गले पर चंदन लगाते थे| मस्तक पर तिलक लगाने का साहस आज तक किसी ने नहीं किया था| डॉक्टर इस बात को नहीं जानते थे| पर, सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जब डॉक्टर ने बाबा के मस्तक पर त्रिपुंड आकार का तिलक लगाया तो बाबा कुछ भी नहीं बोले और न बाबा को गुस्सा ही आया, न बाबा ने मना ही किया|
उस समय तो केलकर जी चुप रहे, लेकिन जब शाम को बाबा के दर्शनार्थ मस्जिद आये तो उन्होंने बाबा से इसका कारण पूछा, तो बाबा बोले कि - "डॉक्टर पंडित ने मुझे जो तिलक लगाया था, वह मुझे श्री साईं बाबा समझकर नहीं लगाया, बल्कि अपने गुरु रघुनाथ महाराज घोपेश्वर कर (जो काका पुराणिक के नाम से प्रसिद्ध है) समझकर लगाया था| उस समय उन्हें मुझमें अपने गुरु के दर्शन हो रहे थे, जिन्हें वे चंदन का तिलक लगाया करते थे| उस समय उन्होंने मुझे अपने गुरु के रूप में तिलक लगाया था| उस समय उनके मन में वही श्रद्धा और प्रेमभाव था जो अपने गुरु के लिए था| उनके उस श्रद्धा और प्रेमभाव के आगे में विवश था| तब मैं भला उनको तिलक करने से कैसे रोक सकता था|"साईं बाबा अपने भक्तों की इच्छा या भावना के अनुसार ही पूजा करवाते थे| या फिर किसी को स्पष्ट मना भी कर देते थे| तब किसी में इतना साहस नहीं होता था कि वह बाबा से इसका कारण पूछ सके| क्योंकि बाबा अपने भक्त की भावना को पहले ही जान जाते थे|
Monday, 26 October 2020
श्री साईं लीलाएं- बाबा का विचित्र शयन
जब साईं बाबा सोते थे तो वह दृश्य बड़ा ही लुभावना होता था| बाबा के सिर और पैरों की तरफ मिट्टी के दीये जलते रहते थे| देखने वाले यह नहीं जान पाते थे कि बाबा कब इस तख्ती पर चढ़ते और उतरते हैं ? साईं की लीला तो बस साईं ही जानें| जब बाबा के शयन को देखने के लिए लोगों की भीड़ लगने लगी तो एक दिन बाबा ने उस तख्ती को तोड़कर फेंक दिया और फिर सदैव टाट के टुकड़े पर ही शयन करने लगे| बाबा को आठों सिद्धियां और नवनिधियां हासिल थीं, पर बाबा ने अपने जीवन में कभी किसी चमत्कार का प्रदर्शन नहीं किया|
Sunday, 25 October 2020
श्री साईं लीलाएं - मेरा पेड़ा मुझे दो
यह घटना दिसम्बर, 1915 की है| गोविन्द बालाराम मानकर जो बांद्रा में रहते थे| साईं बाबा की भक्ति के दीवाने थे| अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् मानकर ने उनकी अंत्येष्टि क्रिया शिरडी में करने का अपने मन में विचार किया| शिरडी जाने से पूर्व जब श्रीमती तर्खड से मिलने गये तो श्रीमती तर्खड के मन में विचार आया कि बाबा के लिए कुछ और भेंट भेजनी चाहिए| लेकिन क्या दें ? घर में ढूंढने पर उस समय केवल एक मावे का पेड़ा प्रसाद के रूप में बचा हुआ था| उन्होंने वह पेड़ा मानकर को देते हुए कहा कि आप यह पेड़ा बाबा को मेरी तरफ से भेंट दे देना| उन्हें पूर्ण विश्वास था कि बाबा पेड़ा अवश्य स्वीकार कर लेंगे| क्योंकि वह बाबा की भक्ति पूरी निष्ठा से करती थीं|
शिरडी पहुंचकर मानकर जब बाबा के दर्शनों के लिए मस्जिद गया, तो पेड़ा ले जाना भूल गया| लेकिन बाबा ने उसे कुछ नहीं कहा| मानकर जब पुन: शाम को बाबा के दर्शन करने के लिए गया, तो बाबा ने उससे पूछा - "तुम मेरे लिए कुछ लाए हो क्या ?" तब मानकर ने कहा, मैं तो कुछ भी नहीं लाया| जब बाबा ने दुबारा पूछा, तब भी मानकर ने वही उत्तर दिया|
इस बार बाबा ने उससे पूछा कि क्या माँ (श्रीमती तर्खड) में तुम्हें मेरे लिए मिठाई नहीं दी थी ? यह सुनते ही मानकर को श्रीमती तर्खड द्वारा बाबा के लिए दिया गया पेड़ा स्मरण हो आया| वह बाबा से क्षमा मांगकर, दौड़ते हुए अपने ठहरने वाली जगह पर गया और वहां से पेड़ा लाकर बाबा को अर्पण कर दिया| बाबा ने भी वह पेड़ा तुरंत खा लिया|
नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं।
आप सभी को श्री राम नवमी के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनायें
This is also a kind of SEWA.
Saturday, 24 October 2020
श्री साईं लीलाएं - कतलियां कहां हैं?
कल चर्चा करेंगे... मेरा पेड़ा मुझे दो