शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Monday, 31 August 2020

साईं बाबा ने भेजा है बुलावा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के

ॐ सांई राम


साईं बाबा ने भेजा है बुलावा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 
सारे जग में है सच्चा साईं द्वारा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 
मेरे बाबा ने भेजा है बुलावा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के
हर पथ में तुम चलते जाना ॐ साईं श्री साईं कहते जाना 
साईं बाबा ने जग सारा तारा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 
साईं बाबा ने भेजा है बुलावा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 

सच्चे मन से ज्योत जगा ले साईं विभूति तन से लगा ले 
कट जायेगा कष्ट तुम्हारा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 
साईं बाबा ने भेजा है बुलावा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 

लीला कैसी साईं ने रचाई मस्जिद द्वारिकामाई में बनाई 
जिसके चरणों में झुके जग सारा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 
साईं बाबा ने भेजा है बुलावा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 

साईं बाबा ने भेजा है बुलावा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के
सारे जग में है सच्चा साईं द्वारा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के 
मेरे बाबा ने भेजा है बुलावा जयकारे बोलो रज्ज रज्ज के

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Sunday, 30 August 2020

कभी घबरा कर मैं संसार मांग भी लूं, तो इतनी कृपा कीजिये

ॐ सांई राम


कभी घबरा कर मैं संसार मांग भी लूं
तो इतनी कृपा कीजिये
जब भी मैं धन मांगू तो
श्रद्धा और भक्ति का धन दीजिये
जब मैं संपत्ति मांगू तो
सद्गुण दीजिये

जब मैं खजाना मांगू तो
चरण कमलों का प्रेम दीजिये
और यदि मैं घर मांगू
तो वादा कीजिये कि आप 
अपने चरण - कमलों में
शाश्वत - शरण बना देंगे 
यदि कोई इच्छा उठे तो
वह आपकी इच्छा में विलीन हो जाये
और आपका यह भक्त आप से
नवधा भक्ति के 9  सिक्के पाए !!

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Saturday, 29 August 2020

जब से साईं मैंने तेरा नाम लिया है

ॐ सांई राम


जब से साईं मैंने तेरा नाम लिया है
तुमने मेरा हर काम किया है...


जिंदगी में मैंने बड़े दुःख पाए
अब तो साईं जी हम तेरी शरण में आये
तेरी भक्ति का ऐसा जाम पिया है...
तुमने मेरा हर काम किया है...
जो कुछ किया है तुमने मेरे लिए
कौन करता है किसी के लिए
मेरी हर खुशी का इंतजाम किया है...
तुमने मेरा हर काम किया है...
सुख और दुःख से है नाता मेरा
तेरा नाम लेने से हल मिलता है
राज़ ये खुशी का मैंने जान लिया है..
तुमने मेरा हर काम किया है...

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Friday, 28 August 2020

साईं दी हो गई फुल किरपा

ॐ सांई राम


 हर रोज़ खुराकां खाने आं, नित गिद्दे भंगडे पाने आं 
साईं दा शुकर मनाने आं, हर वेले नाम ध्याने आं
बाबे दी हो गई फुल किरपा, साईं दी हो गई फुल किरपा


दिल वाली दिल विच रखदे नईं, इस झूठे जग नूँ  दसदे नई
साईं नूँ खोल सुनाने आँ, तेरा लक्ख लक्ख शुकर मनाने आँ
बाबे दी हो गई फुल किरपा, साईं दी हो गई फुल किरपा

जल, थल ते अम्बर है साईं, दिसदा कण-कण अन्दर  साईं
हर पासे शीश झुकाने आं, साईं दा शुकर मनाने आं
बाबे दी हो गई फुल किरपा, साईं दी हो गई फुल किरपा

श्रद्धा दे नाल सबूरी ऐ, नाले रब्ब दी वी मंज़ूरी ऐ
असीं सबदा सुख चाहने आं, साईं दा शुकर मनाने आं
बाबे दी हो गई फुल किरपा, साईं दी हो गई फुल किरपा

हर रोज़ खुराकां खाने आं, नित गिद्दे भंगडे पाने आं
साईं दा शुकर मनाने आं, हर वेले नाम ध्याने आं
बाबे दी हो गई फुल किरपा, साईं दी हो गई फुल किरपा


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।
 

Thursday, 27 August 2020

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 16/17

ॐ सांँई राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की और से साँईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साँईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साँईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साँईं जी से अनुमति चाहते है |

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साँईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा | किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साँईं चरणों में क्षमा याचना करते है |


श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 16/17
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शीघ्र ब्रहृज्ञान की प्राप्ति
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इन दो अध्यायों में एक धनाढ्य ने किस प्रकार साईबाबा से शीघ्र ब्रहृज्ञान प्राप्त करना चाहा था , उसका वर्णन हैं ।
पूर्व विषय
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गत अध्याय में श्री. चोलकर का अल्प संकल्प किस प्रकार पूर्णतः फलीभूत हुआ, इसका वर्णन किया गया हैं । उस कथा में श्री साईबाबा ने दर्शाया था कि प्रेम तथा भक्तिपूर्वक अर्पित की हुई तुच्छ वस्तु भी वे सहर्श स्वीकार कर लेते थे, परन्तु यदि वह अहंकारसहित भेंट की गई तो वह अस्वीकृत कर दी जाती थी । पूर्ण सच्चिदानन्द होने के कारण वे बाहृ आचार-विचारों को विशेष महत्त्व न देते थे । और विनम्रता और आदरसहित भेंट की गई वस्तु का स्वागत करते थे । यथार्थ में देखा जाय तो सद्गगुरु साईबाबा से अधिक दयालु और हितैषी दूसरा इस संसार में कौन हो सकता है । उनकी तुला (समानता) समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली चिन्तामणि या कामधेनु से भी नहीं हो सकती । जिस अमूल्य निधि की उपलब्धि हमें सदगुरु से होती है, वह कल्पना से भी परे है।

ब्रहृज्ञान - प्राप्ति की इच्छा से आये हुए एक धनाढय व्यक्ति को श्री साईबाबा ने किस प्रकार उपदेश किया , उसे अब श्रवण करें ।
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एक धनी व्यक्ति (दुर्भाग्य से मूल ग्रंथ में उसका नाम और परिचय नहीं दिया गया है) अपने जीवन में सब प्रकार से संपन्न था । उसके पास अतुल सम्पत्ति, घोडे, भूमि और अनेक दास और दासियाँ थी । जब बाबा की कीर्ति उसके कानों तक पहुँची तो उसने अपने एक मित्र से कहा कि मेरे लिए अब किसी वस्तु की अभिलाषा शेष नहीं रह गई है, इसलिये अब शिरडी जाकर बाबा से ब्रहृज्ञान-प्राप्त करना चाहिये और यदि किसी प्रकार उसकी प्राप्ति हो गई तो फिर मुझसे अधिक सुखी और कौन हो सकता है । उनके मित्र ने उन्हें समझाया कि ब्रहृज्ञान की प्राप्ति सहज नहीं है, विशेषकर तुम जैसे मोहग्रस्त को, जो सदैव स्त्री, सन्तान और द्रव्योपार्जन में ही फँसा रहता है । तुम्हारी ब्रहृज्ञान की आकांक्षा की पूर्ति कौन करेगा, जो भूलकर भी कभी एक फूटी कौड़ी का भी दान नहीं देता । अपने मित्र के परामर्श की उपेक्षा कर वे आने-जाने के लिये एक ताँगा लेकर शिरडी आये और सीधे मसजिद पहुँचे । साईबाबा के दर्शन कर उनके चरणों पर गिरे और प्रार्थना की कि आप यहाँ आनेवाले समस्त लोगों को अल्प समय में ही ब्रहृ-दर्शन करा देते है, केवल यही सुनकर मैं बहुत दूर से इतना मार्ग चलकर आया हूँ । मैं इस यात्रा से अधिक थक गया हूँ । यदि कहीं मुझे ब्रहृज्ञान की प्राप्ति हो जाय तो मैं यह कष्ट उठाना अधिक सफल और सार्थक समझूँगा । बाबा बोले, मेरे प्रिय मित्र । इतने अधीर न होओ । मैं तुम्हें शीघ्र ही ब्रहृ का दर्शन करा दूँगा । मेरे सब व्यवहार तो नगद ही है और मैं उधार कभी नहीं करता । इसी कारण अनेक लोग धन, स्वास्थ्य, शक्ति, मान, पद आरोग्य तथा अन्य पदार्थों की इच्छापूर्ति के हेतु मेरे समीप आते है । ऐसा तो कोई बिरला ही आता है, जो ब्रहृज्ञान का पिपासु हो । भौतिक पदार्थों की अभिलाषा से यहाँ अने वाले लोगो का कोई अभाव नही, परन्तु आध्यात्मिक जिज्ञासुओं का आगमन बहुत ही दुर्लभ हैं । मैं सोचता हूँ कि यह क्षण मेरे लिये बहुत ही धन्य तथा शुभ है, जब आप सरीखे महानुभाव यहाँ पधारकर मुझे ब्रहृज्ञान देने के लिये जोर दे रहे है । मैं सहर्ष आपको ब्रहृ-दर्शन करा दूँगा । यह कहकर बाबा ने उन्हें ब्रहृ-दर्शन कराने के हेतु अपने पास बिठा लिया और इधर-उधर की चर्चाओं में लगा दिया, जिससे कुछ समय के लिये वे अपना प्रश्न भूल गये । उन्होंने एक बालक को बुलाकर नंदू मारवाड़ी के यहाँ से पाँच रुपये उधार लाने को भेजा । लड़के ने वापस आकर बतलाया कि नन्दू का तो कोई पता नहीं है और उसके घर पर ताला पड़ा है । फिर बाबा ने उसे दूसरे व्यापारी के यहाँ भेजा । इस बार भी लड़का रुपये लाने में असफल ही रहा । इस प्रयोग को दो-तीन बार दुहराने पर भी उसका परिणाम पूर्ववत् ही निकला । हमें ज्ञात ही है कि बाबा स्वंय सगुण ब्रहृ के अवतार थे । यहाँ प्रश्न हो सकता है कि इस पाँच रुपये सरीखी तुच्छ राशि की यथार्थ में उन्हें आवश्यकता ही क्या थी । और उस श्रण को प्राप्त करने के लिये इतना कठिन परिश्रम क्यों किया गया । उन्हें तो इसकी बिल्कुल आवश्यकता ही न थी । वे तो पूर्ण रीति से जानते होंगे कि नन्दूजी घर पर नहीं है । यह नाटक तो उन्होंने केवल अन्वेषक के परीक्षार्थ ही रचा था । ब्रहाजिज्ञासु महाशय जी के पास नोटों की अनेक गडडियाँ थी और यदि वे सचमुच ही ब्रहृज्ञान के आकांक्षी होते तो इतने समय तक शान्त न बैठते । जब बाबा व्यग्रतापूर्वक पाँच रुपये उधार लाने के लिये बालक को यहाँ-वहाँ दौड़ा रहे थे तो वे दर्शक बने ही न बैठे रहते । वे जानते थे कि बाबा अपने वचन पूर्ण कर श्रण अवश्य चुकायेंगे । यघपि बाबा द्घारा इच्छित राशि बहुत ही अल्प थी, फिर भी वह स्वयं संकल्प करने में असमर्थ ही रहा और पाँच रुपया उधार देने तक का साहस न कर सका । पाठक थोड़ा विचार करें कि ऐसा व्यक्ति बाबा से ब्रहृज्ञान, जो विश्व की अति श्रेष्ठ वस्तु है, उसकी प्राप्ति के लिये आया हैं । यदि बाबा से सचमुच प्रेम करने वाला अन्य कोई व्यक्ति होता तो वह केवल दर्शक न बनकर तुरन्त ही पाँच रुपये दे देता । परन्तु इन महाशय की दशा तो बिल्कुल ही विपरीत थी । उन्होंने न रुपये दिये और न शान्त ही बैठे, वरन वापस जल्द लौटने की तैयारी करने लगे और अधीर होकर बाबा से बोले कि अरे बाबा । कृपया मुझे शीघ्र ब्रहृज्ञान दो । बाबा ने उत्तर दिया कि मेरे प्यारे मित्र । क्या  इस नाटक से तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आया । मैं तुमहें ब्रहृ-दर्शन कराने का ही तो प्रयत्न कर रहा था । संक्षेप में तात्पर्य यह हो कि ब्रहृ का दर्शन करने के लिये पाँच वस्तुओं का त्याग करना पड़ता हैं-

1. पाँच प्राण
2. पाँच इन्द्रयाँ
3. मन
4. बुद्घि तथा
5. अहंकार ।

यह हुआ ब्रहृज्ञान । आत्मानुभूति का मार्ग भी उसी प्रकार है, जिस प्रकार तलवार की धार पर चलना । श्री साईबाबा ने फिर इस विषय पर विस्तृत वत्तव्य दिया, जिसका सारांश यह है –
ब्रहृज्ञान या आत्मानुभूति की योग्यताएँ
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सामान्य मनुष्यों को प्रायः अपने जीवन-काल में ब्रहृ के दर्णन नहीं होते । उसकी प्राप्ति के लिये कुछ योग्यताओं का भी होना नितान्त आवश्यक है ।

1. मुमुक्षुत्व (मुक्ति की तीव्र उत्कणठा)
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जो सोचता है कि मैं बन्धन में हूं और इस बन्धन से मुक्त होना चाहे तो इस ध्ये की प्राप्ति क लिये उत्सुकता और दृढ़ संकल्प से प्रयत्न करता रहे तथा प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने को तैयार रहे, वही इस आध्यात्मिक मार्ग पर चलने योग्य है ।

2. विरक्ति
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लोक-परलोक के समस्त पदार्थों से उदासीनता का भाव । ऐहिक वस्तुएँ, लाभ और प्रतिष्ठा, जो कि कर्मजन्य हैं – जब तक इनसे उदासीनता उत्पन्न न होगी, तब तक उसे आध्यात्मिक जगत में प्रवेश करने का अधिकार नहीं ।

3. अन्तमुर्खता
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ईश्वर ने हमारी इन्द्रयों की रचना ऐसी की है कि उनकी स्वाभाविक वृत्ति सदैव बाहर की और आकृष्ट करती है । हमें सदैव बाहर का ही ध्यान रहता है, न कि अन्तर का जो आत्मदर्शन और दैविक जीवन के इच्छुक है, उन्हें अपनी दृष्टि अंतमुर्खी बनाकर अपने आप में ही होना चाहिये ।

4. पाप से शुद्घि
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जब तक मनुष्य दुष्टता त्याग कर दुष्कर्म करना नहीं छोड़ता, तब तक न तो उसे पूर्ण शान्ति ही मिलती है और न मन ही स्थिर होता है । वह मात्र बुद्घि बल द्घारा ज्ञान-लाभ कदारि नहीं कर सकता ।

5. उचित आचरण
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जब तक मनुष्य सत्यवादी, त्यागी और अन्तर्मुखी बनकर ब्रहृचर्य ब्रत का पालन करते हुये जीवन व्यतीत नहीं करता, तब तक उसे आत्मोपलब्धि संभव नहीं ।

6. सारवस्तु ग्रहण करना
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दो प्रकार की वस्तुएँ है – नित्य और अनित्य । पहली आध्यात्मिक विषयों से संबंधित है तथा दूसरी सासारिक विषयों से । मनुष्यों को इन दोनो का सामना करना पड़ता है । उसे विवेक द्घारा किसी एक का चुनाव करना पड़ता है । विद्घान् पुरुष अनित्य से नित्य को श्रेयस्कर मानते है, परन्तु जो मूढ़मति है, वे आसक्तियों के वशीभूत होकर अनित्य को ही श्रेष्ठ जानकर उस पर आचरण करते है ।

7. मन और इन्द्रयों का निग्रह
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शरीर एक रथ हैं । आत्मा उसका स्वामी तथा बुद्घि सारथी हैं । मन लगाम है और इन्द्रयाँ उसके घोड़े । इन्द्रिय-नियंत्रण ही उसका पथ है । जो अल्प बुद्घि है और जिनके मन चंचल है तथा जिनकी इन्द्रयाँ सारथी के दुष्ट घोड़ों के समान है, वे अपने गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुँचते तथा जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमते रहते है । परंतु जो विवेकशील है, जिन्होंने अपने मन पर नियंत्रण में है, वे ही गन्तव्य स्थान पर पहुँच पाते है, अर्थात् उन्हें परम पद की प्राप्ति हो जाती है और उनका पुनर्जन्म नहीं होता । जो व्यक्ति अपनी बुद्घि द्घारा मन को वश में कर लेता है, वह अन्त में अपना लक्ष्य प्राप्त कर, उस सर्वशक्तिमान् भगवान विष्णु के लोक में पहुँच जाता है ।

8.मन की पवित्रता
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जब तक मनुष्य निष्काम कर्म नहीं करता, तब तक उसे चित्त की शुद्घि एवं आत्म-दर्शन संभव नहीं है । विशुदृ मनव में ही विवेक और वैराग्य उत्पन्न होते है, जिससे आत्म-दर्शन के पथ में प्रगति हो जाती है । अहंकारशून्य हुए बिना तृष्णा से छुटकारा पाना संभव नहीं है । विषय-वासना आत्मानुभूति के मार्ग में विशेष बाधक है । यह धारणा कि मैं शरीर हूँ, एक भ्रम है । यदि तुम्हें अपने जीवन के ध्येय (आत्मसाक्षात्कार) को प्राप्त करने की अभिलाषा है तो इस धारणा तथा आसक्ति का सर्वथा त्याग कर दो ।

9. गुरु की आवश्यकता
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आत्मज्ञान इतना गूढ़ और रहस्यमय है कि मात्र स्वप्रयत्न से उसककी प्राप्ति संभव नहीं । इस कारण आत्मानुभूति प्राप्त गुरु की सहायता परम आवश्यक है । अत्यन्त कठिन परिश्रम और कष्टों के उपरान्त भी दूसरे क्या दे सकते है, जो ऐसे गुरु की कृपा से सहज में ही प्राप्त हो सकता है । जिसने स्वयं उस मार्ग का अनुसरण कर अनुभव कर लिया हो, वही अपने शिष्य को भी सरलतापूर्वक पग-पग पग आध्यात्मिक उन्नति करा सकता है ।

10. अन्त में ईश-कृपा परमावश्यक है ।
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जब भगवान किसी पर कृपा करते है तो वे उसे विवेक और वैराग्य देकर इस भवसागर से पार कर देते है । यह आत्मानुभूति न तो नाना प्रकार की विघाओं और बुद्घि द्घारा हो सकती है और न शुष्क वेदाध्ययन द्घारा ही । इसके लिए जिस किसी को यह आत्मा वरण करती है, उसी को प्राप्त होती है तथा उसी के सम्मुख वह अपना स्वरुप प्रकट करती है – कठोपनिषद में ऐसा ही वर्णन किया गया है ।





बाबा का उपदेश
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जब यह उपदेश समाप्त हो गया तो बाबा उन महाशय से बोले कि अच्छा, महाशय । आपकी जेब में पाँच रुपये के पचास गुने रुपयों के रुप में ब्रहृ है, उसे कृपया बाहर निकालिये । उसने नोटों की गड्डी बाहर निकाली और गिनने पर सबको अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि वे दस-दस के पच्चीस नोट थे । बाबा की यह सर्वज्ञता देखकर वे महाशय द्रवित हो गये और बाबा के चरणों पर गिरकर आशर्वाद की प्रार्थना करने लगे । तब बाबा बोले कि अपना ब्रहा का (नोटों का) यह बण्डल लपेट लो । जब तक तुम्हारा लोभ और ईष्र्या से पूर्ण छुटकारा नही हो जाता, तबतक तुम ब्रहृ के सत्यस्वरुप को नहीं जान सकते । जिसका मन धन, सन्तान और ऐश्वर्य में लगा है, वह इन सब आसक्तियों को त्यागे बिना कैसे ब्रहृ को जानने की आशा कर सकता है । आसक्ति का भ्रम और धन की तृष्णा दुःख का एक भँवर (विवर्त) है, जिसमेंअहंकारा और ईष्र्या रुपी मगरों को वास है । जो निरिच्छ होगा, केवल वही यह भवसागर पार कर सकता है । तृष्णा और ब्रहृ के पारस्परिक संबंध इसी प्रकार के है । अतः वे परस्पर कट्टर शत्रु है ।

तुलसीदास जी कहते है –
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जहाँ राम तहँ काम नहिं, जहाँ काम नहिं राम । तुलसी कबहूँ होत नहिं, रवि रजनी इक ठाम ।।
जहाँ लोभ है, वहाँ ब्रहृ के चिन्तन या ध्यान कीगुंजाइश ही नहीं है । फिर लोभी पुरुष को विरक्ति और मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो सकती है । लालची पुरुष को न तो शान्ति है और न सन्तोष ही, और न वह दृढ़ निश्चयी ही होता है । यदि कण मात्र भी लोभ मन में शेष रह जाये तो समझना चाहिये कि सब साधनाएँ व्यर्थ हो गयी । एक उत्तम साधक यदि फलप्राप्ति की इछ्छा या अपने कर्तव्यों का प्रतिफल पाने की भावना से मुक्त नहीं है और यदि उनके प्रति उसमें अरुचि उत्पन्न न हो तो सब कुछ व्यर्थ ही हुआ । वह आत्मानुभूति प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकता । जो अहंकारी तथा सदैव विषय-चिंतन में रत है, उन पर गुरु के उपदेशों तथा शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । अतः मन की पवित्रता अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि उसके बिना आध्यात्मिक साधनाओं का कोई महत्व नहीं तथा वह निरादम्भ ही है । इसीलिये श्रेयस्कर यही है कि जिसे जो मार्ग बुद्घिगम्य हो, वह उसे ही अपनाये । मेरा खजाना पूर्ण है और मैं प्रत्येक की इच्छानुसार उसकी पूर्ति कर सकता हूँ, परन्तु मुझे पात्र की योग्यता-अयोग्यता का भी ध्यान रखना पड़ता है । जो कुछ मैं कह रहा हूँ, यदि तुम उसे एकाग्र होकर सुनोगे तो तुम्हें निश्चय ही लाभ होगा । इस मसजिद में बैठकर मैं कभी  असत्य भाषण नहीं करता । जब घर में किसी अतिथि को निमंत्रण दिया जाता है तो उसके साथ परिवार, अन्य मित्र और सम्बन्धी आदि भी भोजन करने के लिये आमंत्रित किये जाते है । बाबा द्घारा धनी महाशय को दिये गये इस ज्ञान-भोज में मसजिद में उपस्थित सभी जन सम्मलित थे । बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर सभी लोग उन धनी महाशय के साथ हर्ष और संतोषपूर्वक अपने-अपने घरों को लौट गये ।


बाबा का वैशिष्टय
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ऐसे सन्त अनेक है, जो घर त्याग कर जंगल की गुफाओं या झोपड़ियों में एकान्त वास करते हुए अपनी मुक्ति या मोक्ष-प्राप्ति का प्रयत्न करते रहते है । वे दूसरों की किंचित मात्र भी अपेक्षा न कर सदा ध्यानस्थ रहते है । श्री साईबाबा इस प्रकृति के न थे । यघपि उनके कोई घर द्घार, स्त्री और सन्तान, समीपी या दूर के संबंधी न थे, फिर भी वे संसार में ही रहते थे । वे केवल चार-पाँच घरों से भिक्षा लेकर सदा नीमवृक्ष के नीचे निवास करते तथा समस्त सांसारिक व्यवहार करते रहते थे । इस विश्व में रहकर किस प्रकार आचरण करना चाहिये, इसकी भी वे शिक्षा देते थे । ऐसे साधु या सन्त प्रायः बिरले ही होते है, जो स्वयं भगवत्प्राप्ति के पश्चात् लोगों के कल्याणार्थ प्रयत्न करें । श्री साईबाबा इन सब में अग्रणी थे, इसलिये हेमाडपंत कहते है - वह देश धन्य है, वह कुटुम्ब धन्य है तथा वे माता-पिता धन्य है, जहाँ साईबाबा के रुप में यह असाधारण परम श्रेष्ठ, अनमोल विशुदृ रत्न उत्पन्न हुआ ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

प सभी से अनुरोध है कि कृपा करके परिन्दो-चरिन्दो को भी उत्तम भोजन एवम पेय जल प्रदान करे, आखिर उनमे भी तो साई जी ही समाये है।

बाबा जी ने स्वयं इस बात की पुष्टि की है कि मुझे सभी जीवो में देखो।

Wednesday, 26 August 2020

कागा सब तन खाइयो मेरा चुन चुन खाइयो माँस, ये दो नैन मत खाइयो मोहे साईं मिलन की आस

ॐ सांई राम 


कागा सब तन खाइयो मेरा चुन चुन खाइयो माँस
ये दो नैन मत खाइयो मोहे साईं मिलन की आस

साईं साईं सुमर ले मनवा, साईं नाम अनमोल
साईंनाथ के होंगे रे दर्शन, मन की आँखें खोल

झगडा नफरत छोड़ दे बन्दे कर्म तू कर सब नेक
साईं सबको समझाते सब का मालिक एक

साईं किसी के नानक हैं किसी के राम रहीम
साईं कृपा से हो गया देखो मीठा कड़वा नीम

करूणाकर हैं साईं जी करूणा के अवतार
भक्त चाहे हो कोई यह करते सब से प्यार

कागा सब तन खाइयो मेरा चुन चुन खाइयो माँस
ये दो नैन मत खाइयो मोहे साईं मिलन की आस

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Tuesday, 25 August 2020

यह सौंप दिया सारा जीवन, साईंनाथ तुम्हारे चरणों में|

ॐ सांई राम



यह सौंप दिया सारा जीवन, साईंनाथ तुम्हारे चरणों में|
अब जीत तुम्हारे चरणों में, अब हार तुम्हारे चरणों में||


मैं जग में रहूं तो ऐसे रहूं, ज्यों जल में कमल का फूल रहे|
मेरे अवगुण दोष समर्पित हों, हे नाथ तुम्हारे चरणो में||

मेरा निश्चय है बस एक यही, इक बार तुम्हें मैं पा जाऊं|
अर्पित कर दूं दुनियाभर का सब प्यार तुम्हारे चरणों में||

जब-जब मानव का जन्म मिले, तब-तब चरणों का पुजारी बनूं|
इस सेवक की एक-एक रग का हो तार तुम्हारे हाथ में||

मुझमें तुमसें भेद यही, मैं नर हूं, तुम नारायण हो|
मैं हूँ संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे चरणों में||

Monday, 24 August 2020

दे दो अपनी नौकरी मेरे साईं जी इक बार

ॐ सांई राम


दे दो अपनी नौकरी मेरे साईं जी इक बार 
बस इतनी तनख्वाह दे देना मेरा सुखी रहे परिवार

तुम तो जगत के दाता हो साईं मेरी क्या औकात
तेरी सेवा मिल जाये यह किस्मत की है बात
मानूँगा तेरा कहना यह करता हूँ इक़रार
बस इतनी तनख्वाह दे देना मेरा सुखी रहे परिवार

तेरे काम नहीं हूँ साईं फिर भी काम चला लेना
जैसा भी हूँ तेरा हूँ अवगुण मेरे बिसरा देना
तेरी कृपा होगी तो मेरा बदलेगा संसार
बस इतनी तनख्वाह दे देना मेरा सुखी रहे परिवार

रोज़ सुबह उठ के साईं मैं जोत तेरी जलाता हूँ
हर पल तेरा नाम जपूँ साईं तेरे ही गुण गाता हूँ
साईं तू रहना साथ सदा करना इतना उपकार
बस इतनी तनख्वाह दे देना मेरा सुखी रहे परिवार

दे दो अपनी नौकरी मेरे साईं जी इक बार
बस इतनी तनख्वाह दे देना मेरा सुखी रहे परिवार 


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।


Sunday, 23 August 2020

कण कण विच साईं वास है तेरा

ॐ सांई राम


 कण कण विच साईं वास है तेरा, हर प्राणी साईं दास है तेरा
तेरी कुल कायनात है साईंयाँ, साडी की औकात


मैं मैं करके पाप दे भागी, क्यों बणिये क्यों बणिये
क्यों न तेरी रज़ा च रह के साईंयाँ  सिमरन करिये
क्यों करिये हंकार निमाणा, दसदा ऐ इतिहास पुराणा
मैं दी हुन्दी मात मालका, साडी की औकात

नीवें होके सेवा करिये, नाम प्रभु दा लईये
भुलके वी अभिमान न करिये, हरदम राज़ी रहिये
सुख दे चाहे दुःख दे दाता, टूट नहीं सकदा अपना नाता
बणी रहे गल्ल बात मालका, साडी की औकात

दौलत शौहरत रुतबा ओहदा, सब कुछ तेरी माया
अज्ज इसनू कल उसनू बक्शे, अजब तू खेल रचाया
तेरे हथ विच डोर ऐ साईंयाँ, असी हाँ कमज़ोर वे साईंयाँ
मेहर करीं दिन रात वे साईंयाँ, साडी की औकात

कण कण विच साईं वास है तेरा, हर प्राणी साईं दास है तेरा
तेरी कुल कायनात है साईंयाँ, साडी की औकात


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।


Saturday, 22 August 2020

शिर्डी विच रहन वालेया, कदी टकरें ते हाल सुनावां

ॐ सांई राम


शिर्डी विच रहन वालेया, कदी टकरें ते हाल सुनावां
अक्ख लाई मैं जदों दी तेरे नाल, अक्ख लावां अक्ख न लग्गे


गल मुक्की न सज्जन (साईं) नाल मेरी, रब्बा तेरी रात मुक्क गई
शिर्डी विच रहन वालेया, कदी टकरें ते हाल सुनावां

मेरी खुल गई पटक दे के अक्ख नी, गली दे विचों कौन लंगेया
ऐवें खुली नहीं पटक देके अक्ख नी, गली चों मेरा साईं लंगेया
सानू भुल गई ख़ुदाई साईंयां सारी, तेरे नहीं ख्याल भुल्दे
शिर्डी विच रहन वालेया, कदी टकरें ते हाल सुनावां

आप यार (ईश्वर) बिना नहीं रहन्दा, लोकां नू कहन्दा चन्गी गल नहीं
वादा कर के सजन (साईं) नहीं आया, उडीकाँ विच रात लंग गई
राँझा (साईं) चौधवीं दे चन्न नालों सोहना, मायें की एहनु झात न लवीं
मायें की कराँ मैं तेरा साडा खैड़ा, राँझा ते मेरा रब्ब वरगा
शिर्डी विच रहन वालेया, कदी टकरें ते हाल सुनावां

===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।



Friday, 21 August 2020

तू ही साईंनाथ तू ही शम्भू, है राम तू ही रहीम भी तू

ॐ सांई राम


तू ही साईंनाथ तू ही शम्भू, है राम तू ही रहीम भी तू
तेरे हज़ारों हैं नाम कण कण में है तेरा धाम  करूँ बाबा तुझे मैं प्रणाम
तू ही साईंनाथ तू ही शम्भू, है राम तू ही रहीम भी तू


जो भी तेरे दर आ गया माँगा है जो वो पा गया
चौखट से तेरी ओ दाता कभी खाली न कोई गया
ऊँची तेरी शान है सबका तुझे ध्यान है सार जग तेरी सन्तान है
तू ही साईंनाथ तू ही शम्भू, है राम तू ही रहीम भी तू

साईं करुणा का सागर है तू रहमत भरी गागर है तू
तेरा नहीं कोई सानी पीरों का भी पैगम्बर है तू
जिसपे तेरा हाथ है तू जिसके भी साथ है उसकी क़िस्मत की क्या बात है
तू ही साईंनाथ तू ही शम्भू, है राम तू ही रहीम भी तू 


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Thursday, 20 August 2020

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 15

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं 
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और  शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है



श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 15

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नारदीय कीर्तन पदृति , श्री. चोलकर की शक्कररहित चाय , दो छिपकलियाँ ।
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पाठकों को स्मरण होगा कि छठें अध्याय के अनुसार शिरडी में राम नवमी उत्सव मनाया जाता था । यह कैसे प्रारम्भ हुआ और पहने वर्ष ही इस अवसर पर कीर्तन करने के लिये एक अच्छे हरिदास के मिलने में क्या-क्या कठिनाइयाँ हुई, इसका भी वर्णन वहाँ किया गया है । इस अध्याय में दासगणू की कीर्तन पदृति का वर्णन होगा ।
नारदीय कीर्तन पदृति
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बहुधा हरिदास कीर्तन करते समय एक लम्बा अंगरखा और पूरी पोशाक पहनते है । वे सिर पर फेंटा या साफा बाँधते है और एक लम्बा कोट तथा भीतर कमीज, कन्धे पर गमछा और सदैव की भाँति एक लम्बी धोती पहनते है । एक बार गाँव में कीर्तन के लिये जाते हुए दासगणू भी उपयुक्त रीति से सज-धज कर बाबा को प्रणाम रने पहुँचे । बाबा उन्हें देखते ही कहने लगे, अच्छा । दूल्हा राजा । इस प्रकार बनठन कर कहाँ जा रहे हो । उत्तर मिला कि कीर्तन के लिये । बाबा ने पूछा कि कोट, गमछा और फेंटे इन सब की आवश्यकता ही क्या है । इनकों अभी मेरे सामने ही उतारो । इस शरीर पर इन्हें धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं है । दासगणू ने तुरन्त ही वस्त्र उतार कर बाबा के श्री चरणों पर रख दिये । फिर कीर्तन करते समय दासगणू ने इन वस्त्रों को कभी नहीं पहना । वे सदैव कमर से ऊपर अंग खुले रखकर हाथ में करताल औ गले में हार पहन कर ही कीर्तन किया करते थे । यह पदृति यघपि हरिदासों द्घारा अपनाई गई पदृति के अनुरुप नहीं है, परन्तु फिर भी शुदृ तथा पवित्र हैं । कीर्तन पदृति के जन्मदाता नारद मुनि कटि से ऊपर सिर तक कोई वस्त्र धारण नहीं करते थे । वे एक हाथ में वीणा ही लेकर हरि-कीर्तन करते हुए त्रैलोक्य में घूमते थे ।
श्री चोलकर की शक्कररहित चाय
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बाबा की कीर्ति पूना और अहमदनगर जिलों में फैल चुकी थी, परन्तु श्री नानासाहेब चाँदोरकर के व्यक्तिगत वार्ताँलाप तथा दासगणू के मधुर कीर्तन द्घारा बाबा की कीर्ति कोकण (बम्बई प्रांत) में भी फैल गई । इसका श्रेय केवल श्री दासगणू को ही है । भगवान् उन्हें सदैव सुखी रखे । उन्होंने अपने सुन्दर प्राकृतिक कीर्तन से बाबा को घर-घर पहुँचा दिया । श्रोताओं की रुचु प्रायः भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है । किसी को हरिदासों की विदृता, किसी को भाव, किसी को गायन, तो किसी को चुटकुले तथा किसी को वेदान्त-विवेचन और किसी को उनकी मुख्य कथा रुचिकर प्रतीत होती है । परन्तु ऐसे बिरले ही है, जिनके हृदय में संत-कथा या कीर्तन सुनकर श्रद्घा और प्रेम उमड़ता हो । श्री दासगणू का कीर्तन श्रोताओं के हृदय पर स्थायी प्रभाव डालता था । एक ऐसी घटना नीचे दी जाती है ।



एक समय ठाणे के श्रीकौपीनेश्वर मन्दिर में श्री दासगणू कीर्तन और श्री साईबाबा का गुणगान कर रहे थे । श्रोताओं मे एक चोलकर नामक व्यक्ति, जो ठाणे के दीवानी न्यायालय में एक अस्थायी कर्मचारी था, भी वहाँ उपस्थित था । दासगणू का कीर्तन सुनकर वह बहुत प्रभावित हुआ और मन ही मन बाबा को नमन कर प्रार्थना करने लगा कि हे बाबा । मैं एक निर्धन व्यक्ति हूँ और अपने कुटुम्ब का भरण-पोशण भी भली भाँति करने में असमर्थ हूँ । यदि मै आपकी कृपा से विभागीय परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया तो आपके श्री चरणों में उपस्थित होकर आपके निमित्त मिश्री का प्रसाद बाँटूँगा । भाग्य ने पल्टा खाया और चोलकर परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया । उसकी नौकरी भी स्थायी हो गई । अब केवल संकल्प ही शेष रहा । शुभस्य शीघ्रम । श्री. चोलकर निर्धन तो था ही और उसका कुटुम्ब भी बड़ा था । अतः वह शिरडी यात्रा के लिये मार्ग-व्यय जुटाने में असमर्थ हुआ । ठाणे जिले में एक कहावत प्रचलित है कि नाठे घाट व सहाद्रि पर्वत श्रेणियाँ कोई भी सरलतापूर्वक पार कर सकता है, परन्तु गरीब को उंबर घाट (गृह-चक्कर) पार करना बड़ा ही कठिन होता हैं । श्री. चोलकर अपना संकल्प शीघ्रातिशीघ्र पूरा करने कि लिये उत्सुक था । उसने मितव्ययी बनकर, अपना खर्च घटाकर पैसा बचाने का निश्चय किया । इस कारण उसने बिना शक्कर की चाय पीना प्रारम्भ किया और इस तरह कुछ द्रव्य एकत्रित कर वह शिरडी पहुँचा । उसने बाबा का दर्शन कर उनके चरणों पर गिरकर नारियल भेंट किया तथा अपने संकल्पानुसार श्रद्घा से मिश्री वितरित की और बाबा से बोला कि आपके दर्शन से मेरे हृदय को अत्यंत प्रसन्नता हुई है । मेरी समस्त इच्छायें तो आपकी कृपादृष्टि से उसी दिन पूर्ण हो चुकी थी । मसजिद में श्री. चोलकर का आतिथ्य करने वाले श्री बापूसाहेब जोग भी वहीं उपस्थित थे । जब वे दोनों वहाँ से जाने लगे तो बाबा जोग से इस प्रकार कहने लगे कि अपने अतिथि को चाय के प्याले अच्छी तरह शक्कर मिलाकर देना । इन अर्थपूर्ण शब्दों को सुनकर श्री. चोलकर का हृदय भर आया और उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । उनके नेत्रों से अश्रु-धाराएँ प्रवाहित होने लगी और वे प्रेम से विहृल होकर श्रीचरणों पर गिर पड़े । श्री. जोग को अधिक शक्कर सहित चाय के प्याले अतिथि को दो यह विचित्र आज्ञा सुनकर बड़ा कुतूहल हो रहा था कि यथार्थ में इसका अर्थ क्या है बाबा का उद्देश्य तो श्री. चोलकर के हृदय में केवल भक्ति का बीजारोपण करना ही था । बाबा ने उन्हें संकेत किया था कि वे शक्कर छोड़ने के गुप्त निश्चय से भली भाँति परिचित है ।

बाबा का यह कथा था कि यदि तुम श्रद्घापूर्वक मेरे सामने हाथ फैलाओगे तो मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूँगा । यघपि मैं शरीर से तो यहाँ हू, परन्तु मुझे सात समुद्रों के पार भी घटित होने वाली घटनाओं का ज्ञान है । मैं तुम्हारे हृदय में विराजीत, तुम्हारे अन्तरस्थ ही हूँ । जिसका तुम्हारे तथा समस्त प्राणियों के हृददय में वास है, उसकी ही पूजा करो । धन्य और सौभाग्यशाली वही है, जो मेरे सर्वव्यापी स्वरुप से परिचित हैं । बाबा ने श्री. चोलकर को कितनी सुन्दर तथा महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान की ।


दो छिपकलियों का मिलन
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अब हम दो छोटी छिपकलियों की कथा के साथ ही यह अध्याय समाप्त करेंगे । एक बार बाबा मसजिद में बैठे थे कि उसी समय एक छिपकली चिकचिक करने लगी । कौतूहलवश एक भक्त ने बाबा से पूछा कि छिपकली के चिकचिकाने का क्या कोई विशेष अर्थ है । यह शुभ है या अशुभ । बाबा ने कहा कि इस छिपकली की बहन आज औरंगाबाद से यहाँ आने वाली है । इसलिये यह प्रसन्नता से फूली नहीं समा रही है । वह भक्त बाबा के शब्दों का अर्थ न समझ सका । इसलिये वह चुपचाप वहीं बैठा रहा । इसी समय औरंगाबाद से एक आदमी घोडे पर बाबा के दर्शनार्थ आया । वह तो आगे जाना चाहता था, परन्तु घोड़ा अधिक भूखा होने के कारण बढ़ता ही न था । तब उसने चना लाने को एक थैली निकाली और धूल झटकारने कि लिये उसे भूमि पर फटकारा तो उसमें से एक छिपकली निकली और सब के देखते-देखते ही वह दीवार पर चढ़ गई । बाबा ने प्रश्न करने वाले भक्त से ध्यानपूर्वक देखने को कहा । छिपकली तुरन्त ही गर्व से अपनी बहन के पास पहुँच गई थी । दोनों बहनें बहुत देर तक एक दूसरे से मिलीं और परस्पर चुंबन व आलिंगन कर चारों ओर घूमघूम कर प्रेमपूर्वक नाचने लगी । कहाँ शिरडी और कहाँ औरंगाबाद । किस प्रकार एक आदमी घोड़े पर सवार होकर, थैली में छिपकली को लिये हुए वहाँ पहुँचता है और बाबा को उन दो बहिनों की भेंट का पता कैसे चल जाता है-यह सब घटना बहुत आश्चर्यजनक है और बाबा की सर्वव्यापकता की घोतक है ।
शिक्षा
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जो कोई इस अध्याय का ध्यानपूर्वक पठन और मनन करेगा, साईकृपा से उसके समस्त कष्ट दूर हो जायेंगे और वह पूर्ण सुखी बनकर शांति को प्राप्त होगा ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday, 19 August 2020

ओ साईं बाबा मेरे, चरणों में रख लो मुझे

ॐ सांई राम


ओ साईं बाबा मेरे, चरणों में रख लो मुझे 
दोगे दर्शन इस आशा में, जीवन ज्योति जले
 ओ साईं बाबा मेरे, चरणों में रख लो मुझे


अधरों पर है नाम तुम्हारा, हरपल मैंने तुमको पुकारा
दुनिया के इस भवसागर से, तुम बिन कैसे पाऊँ किनारा
देखेंगे हम राह तुम्हारी, जब तक यह साँस चले
ओ साईं बाबा मेरे, चरणों में रख लो मुझे

मेरा तन-मन मेरा जीवन, कर दिया मैंने तुमको समर्पण
नाथ तुम्हारी शरण में आये, तोड़ के सारे मोह के बन्धन
मिल जाओ तो जन्म- मरण से, मुझको मुक्ति मिले
ओ साईं बाबा मेरे, चरणों में रख लो मुझे


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।


Tuesday, 18 August 2020

हे साईं दयाल मेरा अंत काल जब निकट मेरे आये

ॐ सांई राम


हे साईं दयाल मेरा अंत काल जब निकट मेरे आये

यमदूत को है देख मेरे प्राण ये घबराये

निकले मेरे मुख से साईं तेरा ही शुभ नाम
साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम 

ममता का न हो बन्धन माया का नहीं हो दर्पण
आँखों में छवि हो तेरी अधरों पे साईं सुमिरन
तेरे ध्यान में हो मेरे जीवन की यह शाम
साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम

मौत का हो डर न पीड़ा कष्ट को हरना
आजाना बन के माझी पार भव से करना
जन्म मरण का कोई फिर रहे न बाबा काम
साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम

इक भक्त की अभिलाषा मनोभाव की ये भाषा 
कर के कृपा हे साईं कर देना पूरी आशा
तन त्याग मैं जाऊँ अपने ही गुरु के धाम
साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम

हे साईं दयाल मेरा अंत काल जब निकट मेरे आये
यमदूत को है देख मेरे प्राण ये घबराये
निकले मेरे मुख से साईं तेरा ही शुभ नाम
साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम



ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Monday, 17 August 2020

तेरी शरण में आया हूँ साईं

ॐ सांई राम


तेरी शरण में आया हूँ साईं,
मुझको अब तुम दे दो सहारा
छोड़ न देना बीच भवर में,

दिखला दो न मुझको किनारा

राह में तेरी पलकें बिछाए,
बैठा हूँ कब से आस लगाए
रहता है यह दिल बेचैन सा हरपल,
हरपल तुम्हारी याद सताए
आजा ओ तुमको पुकारूँ, 
सांई भूल गए क्यूँ रस्ता हमारा
तुमको पुकारे रस्ता निहारूँ,
भूल गए क्यूँ रस्ता हमारा

भटक रहा था तेरे बिना मैं,
अब जो मिले हो तो जाने न दूँगा
तुमको रखूँगा दिल में छुपा के,
तेरी धुन में मैं खोता रहूँगा
साईं सँग मेरे रहना हर पल हर क्षण,
थामे ही रखना हाथ हमारा
तेरी शरण में आया हूँ साईं,
मुझको अब तुम दे दो सहारा

भक्ति तुम्हारी तुम मुझे दे दो,
मुक्ति जहाँ से मुझे मिल जायेगी
खिल जायेगी हर कली दिल की,
इच्छा न कोई रह जायेगी
सुन लो न साईं श्रद्धा सुमन और,
सबुरी के गुण से भर दो न यह दामन हमारा
तेरी शरण में आया हूँ साईं,
मुझको अब तुम दे दो सहारा

Saturday, 15 August 2020

हम मतवाले हैं, चले साईं के देस

ॐ सांई राम


हम मतवाले हैं
चले साईं के देस
यहाँ सभी को चैन मिलेगा
कभी न लागे ठेस ....

फूल-सी धरती बनती जाए
एक पिघलता लावा .
पहन रही पगली दुनिया
अग्नि का पहरावा .
जाने अभी ये बन्दे तेरे

बदले कितने भेस ....
हम मतवाले हैं ....
देखो अपनी हार मुश्किल है
आज समस्या उसकी .
चलो चलें चरणों में सोकर 

करें तपस्या उसकी .
किस सपने में, कब मिल जाए
प्रेम भरा सन्देश ....
हम मतवाले हैं ....

हमें न है कुछ फिक्र आज की
ना अंदेशा कल का .
मनका-मनका जपते कर लिया
मन का बोझा हल्का
दो दिन की बहरूपि दुनिया
असल में है परदेश ....
हम मतवाले हैं ......