शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Sunday, 31 May 2020

ज़रा जप ले साईं का नाम, तू भव से तर जाए

ॐ सांई राम



ज़रा जप ले साईं का नाम
तू भव से तर जाए
बन्दे तेरी तकदीर
पल में ही संवर जाए

तेरे कर्मों का बन्दे
साईं लेखा रखता है
तू बुरा करे या भला
साईं देखा करताहै
ज़रा कर ले,
ज़रा कर ले पुण्य के काम
तेरा जनम संवर जाए
ज़रा जप ले साईं का नाम
तू भव से तर जाए
बाबा की शिर्डी में
ज़रा देख नज़ारा तू
क्यों दिल में बोझ लिए
है गम का मारा तू
सब कर दे,
सब कर दे तू अर्पण
तेरा बोझा घट जाए
ज़रा जप ले साईं का नाम
तू भव से तर जाए
कर दीन-हीन की सेवा
साईं खुश हो जायेंगे
तेरी ख़ाली झोली को
पल में ही भर जायेंगे
रख श्रद्धा,
रख श्रद्धा सबुरी तू
साईं दर्शन हो जाएँ
ज़रा जप ले साईं का नाम
तू भव से तर जाए

Saturday, 30 May 2020

दिल से जो जप ले, साईं का नाम, झोलियाँ वो अपनी भरते हैं

ॐ सांई राम


दिल से जो जप लेसाईं का नाम
झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
श्रद्धा से  जाओ गर शिर्डी पुरी को
साईं जी पीड़ हरते हैं
 .... झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
जब भी जो कुछ करते हैं हम साईं सब जाने
सब कर्मों का लेखा जोखा साईं ही जाने
साईं की माया क्या जग में साईं ही जाने
साईं चरणों  में जिनका लग जाए ध्यान  
संसार से तर जाते हैं
 .... झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
दिल से जो जप लेसाईं का नाम
झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
श्रद्धा से  जाओ गर शिर्डी पुरी को
साईं जी पीड़ हरते हैं
सत्कर्मों से दूर रहो अंजाम क्या होगा
पाप की गठरी कम  हुई परिणाम क्या होगा
कर लो साईं की पूजा तो कल्याण तो होगा
साईं खवैया हैं अपने भक्तों के
भव से वो पार लगाते हैं
साईं चरणों मे लग जाये ध्यान
दुःख वो कभी ना पाते हैं
 .... झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
दिल से जो जप लेसाईं का नाम
झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
श्रद्धा से  जाओ गर शिर्डी पुरी को
साईं जी पीड़ हरते हैं


Kindly Provide Food & clean drinking Water to Birds & Other Animals,
This is also a kind of SEWA.

Friday, 29 May 2020

साईं सभना विच समाया

ॐ सांई राम


साईं सभना विच समाया
जीण सारे तेरे सहारे
तेरे दर ते साईं आ के
झुकदे ने सीस सारे
साईं सभना विच समाया....
सारे देवता ने दिसदे
जड़ों करिए तेरा दर्शन
चलदा हाँ मैं तां साईं
तेरे नाम दे सहारे
साईं सभना विच समाया...
तेरे नाम दी मस्ती विच
मेनू रहण दे ओ साईं
कदी होश विच ना आंवां
झूठे जग दे वेख नज़ारे
साईं सभना विच समाया...
साईं नाम दा पियाला
ओहना सभनां नू प्या दे
जो तकदे  ने राह तेरी
हैण जो गमा दे मारे
साईं सभना विच समाया...

Kindly Provide Food & clean drinking Water to Birds & Other Animals,
This is also a kind of SEWA.

Thursday, 28 May 2020

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 3

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं |
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है |
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा| किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 3
---------------------------------
श्री साईंबाबा की स्वीकृति, आज्ञा और प्रतीज्ञा, भक्तों को कार्य समर्पण, बाबा की लीलाएँ ज्योतिस्तंभ स्वरुप, मातृप्रेम–रोहिला की कथा, उनके मधुर अमृतोपदेश ।
--------------------------------


श्री साईंबाबा की स्वीकृति और वचन देना
----------------------------------------------


जैसा कि गत अध्याय में वर्णन किया जा चुका है, बाबा ने सच्चरित्र लिखने की अनुमति देते हुए कहा कि सच्चरित्र लेखन के लिये मेरी पूर्ण अनुमति है । तुम अपना मन स्थिर कर, मेरे वचनों में श्रदृा रखो और निर्भय होकर कर्त्तव्य पालन करते रहो । यदि मेरी लीलाएँ लिखी गई तो अविघा का नाश होगा तथा ध्यान व भक्तिपूर्वक श्रवण करने से, दैहिक बुदि नष्ट होकर भक्ति और प्रेम की तीव्र लहर प्रवाहित होगी और जो इन लीलाओं की अधिक गहराई तक खोज करेगा, उसे ज्ञानरुपी अमूल्य रत्न की प्राप्ति हो जायेगी । इन वचनों को सुनकर हेमाडपंत को अति हर्ष हुआ और वे निर्भय हो गये । उन्हें दृढ़ विश्वास हो गया कि अब कार्य अवश्य ही सफल होगा । बाबा ने शामा की ओर दृष्टिपात कर कहा – जो, प्रेमपूर्वक मेरा नामस्मरण करेगा, मैं उसकी समस्त इच्छायें पूर्ण कर दूँगा । उसकी भक्ति में उत्तरोत्तर वृदिृ होगी । जो मेरे चरित्र और कृत्यों का श्रदृापूर्वक गायन करेगा, उसकी मैं हर प्रकार से सदैव सहायता करुँगा । जो भक्तगण हृदय और प्राणों से मुझे चाहते है, उन्हें मेरी कथाऐं श्रवण कर स्वभावतः प्रसन्नता होगी । विश्वास रखो कि जो कोई मेरी लीलाओं का कीर्तन करेगा, उसे परमानन्द और चिरसन्तोष की उपलबि्ध हो जायेगी । यह मेरा वैशिष्टय है कि जो कोई अनन्य भाव से मेरी शरण आता है, जो श्रदृापूर्वक मेरा पूजन, निरन्तर स्मरण और मेरा ही ध्यान किया करता है, उसको मैं मुक्ति प्रदान कर देता हूँ ।
जो नित्यप्रति मेरा नामस्मरण और पूजन कर मेरी कथाओं और लीलाओं का प्रेमपूर्वक मनन करते है, ऐसे भक्तों में सांसारिक वासनाएँ और अज्ञानरुपी प्रवृत्तियाँ कैसे ठहर सकती है । मैं उन्हें मृत्यु के मुख से बचा लेता हूँ । मेरी कथाऐं श्रवण करने से मूक्ति हो जायेगी । अतः मेरी कथाओं श्रदृापूर्वक सुनो, मनन करो । सुख और सन्तोष-प्राप्ति का सरल मार्ग ही यही है । इससे श्रोताओं के चित्त को शांति प्राप्त होगी और जब ध्यान प्रगाढ़ और विश्वास दृढ़ हो जायगा, तब अखोड चैतन्यघन से अभिन्नता प्राप्त हो जाएगी । केवल साई साई के उच्चारणमात्र से ही उनके समस्त पाप नष्ट हो जाएगें ।



भिन्न भिन्न कार्यों की भक्तों को प्रेरणा
---------------------------------------------
भगवान अपने किसी भक्त को मन्दिर, मठ, किसी को नदी के तीर पर घाट बनवाने, किसी को तीर्थपर्यटन करने और किसी को भगवत् कीर्तन करने एवं भिन्न भिन्न कार्य करने की प्रेरणा देते है । परंतु उन्होंने मुझे साई सच्चरित्र-लेखन की प्रेरणा की । किसी भी विघा का पूर्ण ज्ञान न होने के कारण मैं इस कार्य के लिये सर्वथा अयोग्य था । गतः मुझे इस दुष्कर कार्य का दुस्साहस क्यों करना चाहिये । श्री साई महाराज की यथार्थ जीवनी का वर्णन करने की सामर्थय किसे है । उनकी कृपा मात्र से ही कार्य सम्पूर्ण होना सम्भव है । इसीलिये जब मैंने लेखन प्रारम्भ किया तो बाबा ने मेरा अहं नष्ट कर दिया और उन्हेंने स्वयं अपना चरित्र रचा । अतः इस चरित्र का श्रेय उन्हीं को है, मुझे नही ।
जन्मतः ब्राहमण होते हुए भी मैं दिव्य चक्षु-विहीन था, अतः साई सच्चरित्र लिखने में सर्वथा अयोग्य था । परन्तु श्री हरिकृपा से क्या सम्भव वहीं है । मूक भी वाचाल हो जाता है और पंगु भी गिरिवर चढ़ जाता है । अपनी इच्छानुसार कार्य पूर्ण करने की युक्ति वे ही जानें । हारमोनियम और बंसी को यह आभास कहाँ कि ध्वनि कैसे प्रसारित हो रही है । इसका ज्ञान तो वादक को ही है । चन्द्रकांतमणि की उत्पत्ति और ज्वार भाटे का रहम्य मणि अथवा उदधि नहीं, वरन् शशिकलाओं के घटने-बढने में ही निहित है ।


बाबा का चरित्रः - ज्योतिस्तंभ स्वरुप
---------------------------------------
समुद्र में अनेक स्थानों पर ज्योतिस्तंभ इसलिये बनाये जाते है, जिससे नाविक चटटानों और दुर्घटनाओं से बच जायें और जहाज का कोई हानि न पहुँचे । इस भवसागर में श्री साई बाबा का चरित्र ठीक उपयुक्त भाँति ही उपयोगी है । वह अमृत से भी अति मधुर और सांसारिक पथ को सुगम बनाने वाला है । जब वह कानों के दृारा हृदय में प्रवेश करता है, तब दैहिक बुदि नष्ट हो जाती है और हृदय में एकत्रित करने से, समस्त कुशंकाएँ अदृश्य हो जाती है । अहंकार का विनाश हो जाता है तथा बौदिृक आवरण लुप्त होकर ज्ञान प्रगट हो जाता है । बाब की विशुदृ कीर्ति का वर्णन निष्ठापूर्वक श्रवण करने से भक्तों के पाप नष्ट होंगे । अतः यह मोक्ष प्राप्ति का भी सरल साधन है । सत्यतुग में शम तथा दम, त्रेता में त्याग, दृापर में पूजन और कलियुग में भगवत्कीर्तन ही मोक्ष का साधन है । यह अन्तिम साधन, चारों वर्णों के लोगों को साध्य भी है । अन्य साधन, योग, त्याग, ध्यान-धारणा आदि आचरण करने में कठिन है, परंतु चरित्र तथा हरिकीर्तन का श्रवण और कीर्तन से इन्द्रियों की स्वाभाविक विषयासक्ति नष्ट हो जाती है और भक्त वासना-रहित होकर आत्म साक्षात्कार की ओर अग्रसर हो जाता है । इसी फल को प्रदान करने के हेतु उन्होंने सच्चरित्र का निर्माण कराया । भक्तगण अब सरलतापूर्वक चरित्र का अवलोकन करें और साथ ही उनके मनोहर स्वरुप का ध्यान कर, गुरु और भगवत्-भक्ति के अधिकारी बनें तथा निष्काम होकर आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त हों । साईं सच्चरित्र का सफलतापूर्वक सम्पूर्ण होना, यह साई-महिमा ही समझें, हमें तो केवल एक निमित्त मात्र ही बनाया गया है ।


मातृप्रेम
---------
गाय का अपने बछडे़ पर प्रेम सर्वविदित ही है । उसके स्तन सदैव दुग्ध से पूर्म रहते हैं और जब भुखा बछड़ा स्तन की ओर दौड़कर आता है तो दुग्ध की धारा स्वतः प्रवाहित होने लगती है । उसी प्रकार माता भी अपने बच्चे की आवश्यकता का पहले से ही ध्यान रखती है और ठीक समय पर स्तनपान कराती है । वह बालक का श्रृंगार उत्तम ढ़ंग से करती है, परंतु बालक को इसका कोई भान ही नहीं होता । बालक के सुन्दर श्रृंगाराररि को देखकर माता के हर्ष का पारावार नहीं रहता । माता का प्रेम विचित्र, असाधारण और निःस्वार्थ है, जिसकी कोई उपमा नही है । ठीक इसी प्रकार सद्गगुरु का प्रेम अपने शिष्य पर होता है । ऐसा ही प्रेम बाबा का मुझ पर था और उदाहरणार्थ वह निम्न प्रकार था ः-
सन् 1916 में मैने नौकरी से अवकाश ग्रहण कीया । जो पेन्शन मुझे मिलती थी, वह मेरे कुटुम्ब के निर्वाह के लिये अपर्याप्त थी । उसी वर्ष ती गुरुपूर्णिमा के विवस मैं अनाय भक्तों के साथ शिरडी गया । वहाँ अण्णा चिंचणीकर ने स्वतः ही मेरे लिये बाबा से इस प्रकार प्रार्थना की, इनके ऊपर कृपा करो । जो पेन्शन इन्हें मिलती है, वह निर्वाह-योग्य नही हैं । कुटुम्ब में वृदि हो रही है । कृपया और कोई नौकरी दिला दीजिये, ताकि इनकी चिन्ता दूर हो और ये सुखपूर्वक रहें । बाबा ने उत्तर दिया कि इन्हें नौकरी मिल जायेगी, परंतु अब इन्हें मेरी सेवा में ही आनन्द लेना चाहिए । इनकी इच्छाएँ सदैव पूर्ण होंगी, इन्हें अपना ध्यान मेरी ओर आकर्षित कर, अधार्मिक तथा दुष्ट जनों की संगति से दूर रहना चाहिये । इन्हें सबसे दया और नम्रता का बर्ताव और अंतःकरण से मेरी उपासना करनी चाहिये । यदि ये इस प्रकार आचरण कर सके तो नित्यान्नद के अधिकारी हो जायेंगे ।




रोहिला की कथा
-------------------
यह कथा श्री साई बाबा के समस्त प्राणियों पर समान प्रेम की सूचक है । एक समय रोहिला जाति का एक मनुष्य शिरडी आया । वह ऊँचा-पूरा, सुदृढ़ एवं सुगठित शरीर का था । बाबा के प्रेम से मुग्ध होकर वह शिरडी में ही रहने लगा । वह आठों प्रहर अपनी उच्च और कर्कश ध्वनि में कुरान शरीफ के कलमे पढ़ता और अल्लाहो अकबर के नारे लगाता था । शिरडी के अधिकांश लोग खेतों में दिन भर काम करने के पश्चात जब रात्रि में घर लौटते तो रोहिला की कर्कश पुकारें उनका स्वागत करती है । इस कारण उन्हें रात्रि में विश्राम न मिलता था, जिससे वे अधिक कष्ट असहनीय हो गया, तब उन्होंने बाबा के समीप जाकर रोहिला को मना कर इस उत्पात को रोकने की प्रार्थना की । बाबा ने उन लोगों की इस प्रार्थना पर ध्यान न दिया । इसके विपरीत गाँववालों को आड़े हाथों लेते हुये बोले कि वे अपने कार्य पर ही ध्यान दें और रोहिला की ओर ध्यान न दें । बाबा ने उनसे कहा कि रोहिला की पत्नी बुरे स्वभाव की है और वह रोहिला को तथा मुझे अधिक कष्ट पहुंचाती है, परंतु वह उसके कलमों के समक्ष उपस्थित होने का साहस करने में असमर्थ है और इसी कारण वह शांति और सुख में है । यथार्थ में रोहिला की कोई पत्नी न थी । बाबा के संकेत केवल कुविचारों की ओर था । अन्य विषयों की अपेक्षा बाबा प्रार्थना और ईश-आराधना को महत्तव देते थे । अतः उन्होंने रोहिला के पक्ष का समर्थन कर, ग्रामवासियों को शांतिपूर्वक थोड़े समय तक उत्पात सहन करने का परामर्श दिया ।


बाबा के मधुर अमृतोपदेश
------------------------------
एक दिन दोपहर की आरती के पश्चात भक्तगण अपने घरों को लौट रहे थे, तब बाबा ने निम्नलिखित अति सुन्दर उपदेश दिया –
तुम चाहे कही भी रहो, जो इच्छा हो, सो करो, परंतु यह सदैव स्मरण रखो कि जो कुछ तुम करते हो, वह सब मुझे ज्ञात है । मैं ही समस्त प्राणियों का प्रभु और घट-घट में व्याप्त हूँ । मेरे ही उदर में समस्त जड़ व चेतन प्राणी समाये हुए है । मैं ही समस्त ब्राहांड़ का नियंत्रणकर्ता व संचालक हूँ । मैं ही उत्पत्ति, व संहारकर्ता हूँ । मेरी भक्ति करने वालों को कोई हानि नहीं पहुँचा सकता । मेरे ध्यान की उपेक्षा करने वाला, माया के पाश में फँस जाता है । समस्त जन्तु, चींटियाँ तथा दृश्यमान, परिवर्तनमान और स्थायी विश्व मेरे ही स्वरुप है ।
इस सुन्दर तथा अमूल्य उपदेश को श्रवण कर मैंने तुरन्त यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब भविष्य में अपने गुरु के अतिरिक्त अन्य किसी मानव की सेवा न करुँगा । तुझे नौकरी मिल जायेगी – बाबा के इन वचनों का विचार मेरे मस्तिष्क में बारंबार चक्कर काटने लगा । मुझे विचार आने लगा, क्या सचमुच ऐसा घटित होगा । भविष्य की घटनाओं से स्पष्ट है कि बाबा के वचन सत्य निकले और मुझे अल्पकाल के लिये नौकरी मिल गई । इसके पश्चात् मैं स्वतंत्र होकर एकचित्त से जीवनपर्यन्त बाबा की ही सेवा करता रहा ।
इस अध्याय को समाप्त करने से पूर्व मेरी पाठकों से विनम्र प्राथर्ना है कि वे समस्त बाधाएँ – जैसे आलस्य, निद्रा, मन की चंचलता व इन्द्रिय-आसक्ति दूर कर और एकचित्त हो अपना ध्यान बाबा की लीलाओं की ओर वें और स्वाभाविक प्रेम निर्माण कर भक्ति-रहस्य को जाने तथा अन्य साधनाओं में व्यर्थ श्रमित न हो । उन्हें केवन एक ही सुगम उपाय का पालन करना चाहिये और वह है श्री साईलीलाओं का श्रवण । इससे उनका अज्ञान नष्ट होकर मोक्ष का दृार खुल जायेगा । जिसप्रकार अनेक स्थानों में भ्रमण करता हुआ भी लोभी पुरुष अपने गड़े हुये धन के लिये सतत चिन्तित रहता है, उसी प्रकार श्री साई को अपने हृदय में धारण करो । अगले अध्याय में श्री साई बाबा के शिरडी आगमन का वर्णन होगा ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday, 27 May 2020

दिल से जो जप ले, साईं का नाम, झोलियाँ वो अपनी भरते हैं

ॐ सांई राम


दिल से जो जप लेसाईं का नाम-2
झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
श्रद्धा से जाओ गर शिर्डी पुरी को
साईं जी पीड़ हरते हैं
 झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
जब भी जो कुछ करते हैं हम साईं सब जाने
सब कर्मों का लेखा जोखा साईं ही जाने
साईं की माया क्या जग में साईं ही जाने
साईं चरणों में जिनका लग जाए ध्यान  
संसार से तर जाते हैं
 झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
दिल से जो जप लेसाईं का नाम-2
झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
श्रद्धा से  जाओ गर शिर्डी पुरी को
साईं जी पीड़ हरते हैं
सत्कर्मों से दूर रहो अंजाम क्या होगा
पाप की गठरी कम  हुई परिणाम क्या होगा
कर लो साईं की पूजा तो कल्याण तो होगा
साईं खवैया हैं अपने भक्तों के
भव से वो पार लगाते हैं
साईं चरणों मे लग जाये ध्यान
दुःख वो कभी ना पाते हैं
 झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
दिल से जो जप लेसाईं का नाम-2
झोलियाँ वो अपनी भरते हैं
श्रद्धा से जाओ गर शिर्डी पुरी को
साईं जी पीड़ हरते हैं 

Kindly Provide Food & clean drinking Water to Birds & Other Animals,
This is also a kind of SEWA.

Tuesday, 26 May 2020

साईं नाम की धुन में रह के, साईं की राह पे चलना

ॐ सांई राम


साईं नाम की धुन में रह के
साईं की राह पे चलना
छोडो माया की नगरी को
कभी  कष्ट पड़े न सहना
मन को वश में तू कर ले और
बंधन   माया के तोड़ सभी
नाता साई से जोड़ के तू
भर ले अपनी खाली झोली
मोह माया से बचकर मनवा तू
अपने कर्मों को करना
छोडो माया की नगरी को
कभी  कष्ट पड़े न सहना
साईं नाम की धुन में रह के
साईं की राह पे चलना
छोडो माया की नगरी को
कभी  कष्ट पड़े न सहना
  
रख   संयम   मन तू मेरे   सदा
जब भी तुझे कष्ट सताते  हैं
तेरे कर्मों के फल हैं  जो
आकर तुझको यूँ सताते हैं
सत कर्मों को अब करना तू
हर जीव की सेवा करना
छोडो माया की नगरी को
कभी  कष्ट पड़े न सहना
साईं नाम की धुन में रह के
साईं की राह पे चलना
छोडो माया की नगरी को
कभी  कष्ट पड़े न सहना
  
रख श्रद्धा सबुरी मन में सदा
साईं जी यही सिखाते हैं
सबका मालिक है एक यही
मेरे साईं जी  बतलाते हैं
मन में साईं नाम को जपना और
साईं चरणों में रहना
छोडो माया की नगरी को
कभी  कष्ट पड़े न सहना
साईं नाम की धुन में रह के
साईं की राह पे चलना
छोडो माया की नगरी को
कभी  कष्ट पड़े न सहना 

Kindly Provide Food & clean drinking Water to Birds & Other Animals,
This is also a kind of SEWA.

Monday, 25 May 2020

साईं सब में तू समाया

ॐ सांई राम




साईं सब में तू समाया
जीयूं कैसे बिन तिहारे
तेरे दर पे साईं आके
झुकते हैं सर हमारे
साईं सब में तू समाया ...
सभी देवता हैं तुझमे
मुझे दिखते हैं जो  हर दम
चलता हूँ मै तो साईं
तेरे नाम के सहारे
साईं सब में तू समाया
मस्ती में मै  डूबा हूँ
दुनिया से जा के कह दो
मुझे होश मै न लायें
झूठे जग के ये नज़ारे
साईं सब में तू समाया
साईं नाम का प्याला
उन सभी को तू पिला दे
जो तकते हैं राह तेरी
हैं सभी जो ग़म के मारे
साईं सब में तू समाया

Kindly Provide Food & clean drinking Water to Birds & Other Animals,
This is also a kind of SEWA.