शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Saturday, 7 September 2019

जबसे पाया साँई कृपा का धन

ॐ साँई राम जी


बरखा की दो बूंदे जब मिट्टी से मिलती हैं
सबसे अद्धभुत भीनी-भीनी खुशबू  महकती हैं
ठीक ऐसा ही अनुभव हमको भी होता हैं
जब साँई चरणों में माथा हमारा टिका होता हैं


ज्यूँ भटके वन में मृग पाने को महक कस्तूरी
त्यूँ यह बावला मन मंदिर में ढूंढे श्रध्दा सबूरी


भटके जंगल भटके चौबारे
फिरते रहे हम बस मारे मारे
जबसे पाया साँई कृपा का धन
कष्ट हो गये फुर्र सब हमारे


कथा कहु मैं अब क्या कोई
जागी हैं अब आत्मा सोई
सब खो कर मैंने तुझे पाया
तू बस अपना जग पराया


मुझमें ऐसी नहीं कोई भी बात खास
रखना बना कर अपने भक्तो का दास
खुशियाँ मांगू हरपल साँई भक्तो की
मुख से हरपल निकले यही अरदास


हम ठहरे बंजर जमीन के जैसे
पाये तेरी श्रध्दा के बीज हम कैसे
सबूरी की खाद भी डाल दो साँई
हो अच्छी फस्ल जो भक्ति की उगाई

साँई साँई बोले मेरा मन बन इक तारा
साँई को चाहा मैंने बस जग बिसराया
साँई वचनों का है बस यह ही तो मोल
रोते रोते आये साँई शरण ने हमें हँसाया